RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
आवाज : "हा हा .हा...बुड्ढ़े, तू क्या सोचता है, मैं सुबह सो रहा था, मैंने सब देखा जब तू अपनी बहु के नंगे बदन को घूर -२ कर देख रहा था...और तेरा लम्बा लंड अपनी बेटी जैसी बहु ने नंगे चुतड देखकर काबू में नहीं रहा था..तेरा शरीर कुछ और कह रहा है और तेरी जबान कुछ और.. हा हा ...बढ़िया है..."
दादाजी उसकी बात सुनकर सन्न से रह गए, उन्होंने सोचा भी नहीं था की उनकी हरकत दुसरे कमरे में बैठा वो शैतान भी देख रहा था, उन्हें अपने आप पर बड़ी शर्मिंदगी हुई, खासकर तब, जब उनका भांडा सबके सामने साईको यानी विशाल ने फोड़ दिया था..
दादाजी (हडबडाते हुए) : "ये क्या बकवास कर रहे हो...मैं तो बहु को उठाने की सोच रहा था, पर उसे गहरी नींद में सोता देखकर मैं चला गया..ऐसा कुछ नहीं है, जो तुम कह रहे हो.."
उनकी आवाज से साफ़ पता चल रहा था की वो गुस्से में नहीं, बल्कि अपनी सफाई देने वाले लहजे में बात कर रहे हैं.."
आवाज : "मैंने तुम्हे कहा था,ये तुम्हारे ऊपर है, तुम कब तक यहाँ रहना चाहते हो, जो मैंने कहा, वही करना होगा, वर्ना पूरी जिन्दगी यही पड़े रहो और सड़ते रहो...हा हा हा..."
विशाल की खुँखार हंसी की आवाज सुनकर तो कोई भी सहम जाए, ये तो हमें ही मालुम था की असली माजरा क्या था, इसलिए हम ऊपर से डरने का नाटक कर रहे थे और अंदर से इस पुरे खेल का मजा ले रहे थे. वर्ना अगर सच में ऐसी हालत असल में होती तो सभी की फट रही होती..जैसी इस समय दादाजी की फट रही थी.
दादाजी बुदबुदाते हुए उस साईको को गन्दी-२ गालियाँ निकाल रहे थे..तभी उनका बुदबुदाना बंद सा हो गया..
मैंने उनकी नजरों का पीछा किया तो पता चला की उनकी नजरें अब ऋतू के मोटे-२ लटकते हुए रसीले आम पर हैं, और वो भी इसलिए की उसकी ब्रा में से उसका एक निप्पल बाहर झाँक रहा था..
जो शायद उसे भी नहीं मालुम था , शायद ब्रा पहनते हुए उसने ध्यान नहीं दिया की उसका कुछ सामान बहार ही रह गया है ...या फिर उसने जान बुझकर दादाजी को उत्तेजित करने के लिए ऐसा किया था..पर वो अनजान बनने का नाटक करती हुई मम्मी से धीरे-२ कुछ बात कर रही थी..
दादाजी भी अपनी सुध बुध भूले उसके गुलाबी रंग के दाने को देखने में लगे थे, जैसे अपने ख्यालों में उसमे से दूध पी रहे हो.. उन्होंने अपने सूखे होंठों पर जीभ घुमाई..और फिर मेरी तरफ देखा, मुझे अपनी तरफ देखता पाकर वो एकदम से घूम कर दूसरी तरफ देखने लगे, और फिर पुरे कमरे में घूम -घूमकर किसी जासूस की तरह, ये देखने लगे की कहीं से कोई भाग निकलने का रास्ता मिल जाए शायद..पर सब बेकार, वो कमरा था ही ऐसा की कोई दरवाजे के अलावा बाहर निकल ही ना पाए.
फिर उन्होंने ऊपर रोशनदान की तरफ देखा..वो काफी ऊपर था, लगभग 12 फीट के आस पास..उन्होंने मेरी तरफ देखा और मुझे अपने पास बुलाया, और मुझे ऊपर चड़ने को कहा, पर कैसे?
उन्होंने कहा की मैं उनके कंधे पर चढ़ जाऊ ..मैंने कोशिश की, वो नीचे बैठे और मैंने उनके कंधे पर अपने पैर रखकर ऊपर चढ़ने की कोशिश की पर मेरा वजन संभल पाने में उन्हें परेशानी हो रही थी..
तभी ऋतू ने कहा : "दादाजी, आप मुझे ऊपर उठाओ..मैं देखती हूँ, मेरा वजन भैय्या से काफी कम है.."
बात भी सही थी, कहाँ मैं 80 किलो का हट्टा कट्टा सांढ़ और कहाँ वो 50 किलो की हलकी-फुलकी सी बकरी..सो उन्होंने उस बकरी को यानी ऋतू को अपने कंधे के ऊपर चढ़ने को कहा.
दादाजी दीवार की तरफ पीठ करे खड़े थे, ऋतू उनके सामने आई और उनके एक कंधे पर पैर रखकर ऊपर चड़ी, पीछे से मैंने उसे सपोर्ट किया, उसकी गद्देदार गांड पर अपने हाथ रखकर, और उसने अपना दूसरा पैर भी दादाजी के दुसरे कंधे पर रख दिया और आगे से अपने हाथ दिवार पर टिका दिए, दादाजी ने ऊपर उठाना शुरू किया, अब वो उठ पा रहे थे, ऋतू के कम वजन की वजह से..
दादाजी अब पुरे खड़े हो गए, और नीचे से उनका लंड भी ..जिसे सिर्फ मैंने ही नोट किया..वो अपने लंड को सही भी नहीं कर सकते थे, क्योंकि उन्होंने अपने हाथों से ऋतू के दोनों पैर पकडे हुए थे, ऋतू ऊपर तक गयी, पर फिर भी वो रोशनदान तक नहीं पहुँच पायी, दादाजी ने अपने पंजो के बल पर उसे थोडा और ऊपर किया, तब कहीं जाकर उसका हाथ रोशनदान तक पहुंचा...और वो एक तरह से उसे पकड़कर लटक सी गयी, पर उसकी पकड़ जंगले पर ज्यादा देर तक बनी ना रह सकी और अगले ही पल उसने उसे छोड़ दिया...
उसके पैर फिर से नीचे आये पर एक दम से नीचे आने की वजह से उसका बेलेंस बिगड़ा और उसके पैर दादाजी के कंधो से नीचे की तरफ फिसल गए और वो चीखती हुई नीचे की और आने लगी.. आआआआअ ....... आआआआआह्ह्ह्ह दादाजी......बचाओ...
दादाजी ने अपने दोनों हाथों से उसके नीचे गिरते शरीर को सँभालने की कोशिश की, ऋतू का पूरा जिस्म, दादाजी के मुंह से रगड़ खाता हुआ नीचे आने लगा, ऋतू की जांघे , चूत, पेट और अंत में जैसे ही उसके मुम्मे दादाजी के मुंह से रगड़ खाए, उसके शरीर को एक झटका सा लगा, दादाजी ने अपने हाथ ऋतू के पीछे जमा दिए और उसकी मोटी गांड दादाजी के मजबूत हाथों में फंस गयी, और वो वहीँ रुक गयी. पर तब तक जो होना था, वो हो चूका था, दादाजी के मुंह से झटका खाकर ऋतू की ब्रा आगे से फट गयी और उसके दोनों कप एक दुसरे से जुदा होकर दोनों तरफ लटक गए..और अब दादाजी की आँखों के सामने ऋतू के हसीन पर्वत थे जो लहरा कर अपनी घाटियों की सुन्दरता चारों तरफ बिखेर रहे थे..
किसी को कुछ समझ नहीं आया की क्या हुआ, ऋतू तो डर के मारे कांप रही थी, उसे लगा था की वो नीचे जमीन पर गिर जायेगी और उसे चोट लग जायेगी.. पर दादाजी ने उसे बचा लिया..वो ये देखकर बड़ी खुश हुई और दादाजी के गले लग गयी और उन्हें थेंक यू बोलने लगी...ये जाने बिना की उसकी ब्रा ने उसके शरीर का साथ छोड़ दिया है..हमेशा के लिए. और उस बूढ़े व्यक्ति की हालत तो आप समझ ही सकते हैं, उसने अपनी जवान पोती को गिरने से तो बचा लिया था पर इस एक्स्सिडेंट की वजह से वो अब उनकी गोद में, ऊपर से नंगी होकर, उनके गले से लिपटी हुई थी...और ऊपर से आलम ये था की नीचे उनका लंड भी खड़ा होकर ऋतू की गांड को चूम रहा था. दादाजी की हालत देखकर मेरा हंसने का मन कर रहा था..पर माहोल ऐसा नहीं था.
पर जो हुआ, अच्छा हुआ, अब देखते हैं की दादाजी क्या करते हैं.
ऋतू नीचे उतरी, और तब उसे पता चला की उसकी ब्रा बीच में से फट चुकी है, और अब वो एक तरह से बेकार ही है, मम्मी ने उसे दादाजी की नजरों से दूसरी तरफ घुमाया..एक अच्छी बहु की तरह और ऋतू की ब्रा को वापिस जोड़कर देखने लगी...पर कुछ फायदा नहीं..वो ऐसी जगह से फटी थी या ये कहो की अलग हुई थी की अब उसका जुड़ना मुश्किल था..कोई दरजी ही उसे सिलाई करके ठीक कर सकता था.
दादाजी हक्के-बक्के से उन माँ-बेटी को देखे जा रहे थे..
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