RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
मम्मी भी एक गहरी सांस लेकर, लाचार नजरों से मुझे और दादाजी को देखने लगी, जैसे वो कह रही हो...ठीक ही तो कह रही है बेचारी...
वो आज अपने बदन के हर हिस्से को साबुन से रगड़ रही थी, चाहे ऐसा वो रोज ना करती हो, पर दादाजी को अपने नंगे शरीर का रसपान करवाने के लिए, वो नहाने में ज्यादा समय ले रही थी..
उसने अपने मुंह पर साबुन लगाया, और तभी वो साबुन की टिकिया उसके हाथ से निकल कर दूर जा गिरी..
उसकी आँखों में साबुन था, इसलिए वो देख नहीं पा रही थी की साबुन कहाँ गिरा. वो नीचे पंजों के बल बैठ गयी और अपने हाथों से साबुन को ढूंढने लगी.. उसके इस तरह से बैठने से उसकी चौडी गांड फैलकर हमारी आँखों के सामने आ गयी, जिसे देखकर कोई भी पागल हो जाता..
उसकी टांगों के बीच में से ताजमहल की भाँती उसकी चूत चमक रही थी, फेले हुए चूत के होंठ चिपक कर एक दुसरे के ऊपर चढ़े हुए थे, वो पूरी तरह से गीली थी, पता नहीं अपने ही रस से या पानी से.
दादाजी इतनी गहरी सांस ले रहे थे मानो उन्हें हार्ट अटेक आने वाला हो...मुझे उनकी चिंता होने लगी, बेचारे एक बुड्ढे इंसान को हम कितना तडपा रहे हैं... पर ये नौबत ही ना आती अगर वो अपना रोब बिना वजह न दिखाते...उन्हें सीधा करने के लिए ही तो हम ये सब कर रहे हैं..पर सच कहूँ, इस खेल में मजा भी आ रहा था सभी को,
चाहे वो ऋतू हो, या मम्मी, या फिर दुसरे कमरे में बैठे पापा के साथ वो दोनों सन्नी और विशाल, और साथ में उन तीनो के लंड से चुदती सोनी और अन्नू.. सभी मजे ले रहे थे.
वो कुछ देर तक नीचे बैठी हुई साबुन ढूँढती रही, और फिर वो हमारी तरफ घूम गयी, घुटनों और हाथो के बल बैठी हुई वो कुतिया वाले पोस में जैसे वो चुदवाने को तैयार हो...अब उसके लटकते हुए पपीते सभी के सामने थे, जिनपर साबुन के बुलबुले लगे हुए थे, और फिर जब ऋतू को साबुन नहीं मिला तो वो उठ खड़ी हुई और अपने शरीर पर जो साबुन लगा था उसी को रगड़ने लगी..
वो शायद ये भूल चुकी थी की उसका चेहरा अब हमारी तरफ है, साबुन लगते हुए उसका हाथ जब अपनी चूत पर पहुंचा तो वो उस जगह को कुछ ख़ास तरीके से मसलने लगी..
ऋतू पूरी तरह से नंगी होकर, हमसे कुछ ही कदम की दुरी पर, साबुन लगाकर नहा रही थी, सभी दम साधे उसकी दिलेरी देख रहे थे, पर अब कोई कुछ बोल नहीं रहा था...
उसने अपनी एक ऊँगली अपनी चूत की फांकों के बीच रखी और अगले ही पल वहां मोजूद साबुन की फिसलन ने उस ऊँगली को अन्दर की और खींच लिया...ऋतू के मुंह से हलकी सी सिसकारी निकली..."आआअह्ह्ह्हsssssssssssssssss"
पर हम तीनो ने ऐसे दर्शाया जैसे हमने उसकी सिसकारी सुनी ही न हो...सभी जानते थे की वो क्या कर रही है..कमीनी अपने दादाजी, भाई और मम्मी के सामने मास्टर बेट कर रही है, नहाते हुए. मैं जानता था की ये तो वो रोज करती है, नहाते हुए...पर ये काम वो सब के सामने करेगी, मुझे इसका अंदाजा भी नहीं था.
उसके होंठ गोल होकर O की आकृति बना रहे थे, उसकी आँखें तो पहले से बंद थी, फिर उसने एक और ऊँगली अन्दर डाल दी चूत में...फिर तीसरी और फिर चोथी भी....अब सिर्फ उसका अंगूठा ही बाहर था चूत के..कहीं दादाजी को शक न हो जाए की ऋतू की चूत इतनी खुली कैसे है जिसमे वो चार-२ उँगलियाँ ले पा रही है...
उसका पूरा हाथ साबुन से सना हुआ था, वो अपनी उँगलियों से चूत के अन्दर का हिस्सा बड़ी मेहनत से साफ़ कर रही थी..जिसे हम सभी दर्शक बने बड़े गौर से देख रहे थे.. फिर उसने टटोल कर शावर को ओन किया और उसके बदन से झाग साफ़ होने लगी, पर उसकी उंगलिया अपनी चूत के अन्दर ही थी, उसने शायद शावर इसलिए चलाया था की उसकी सिस्कारियां उसमे दब जाए.. पर शावर की आवाज के साथ-२ मेरे तेज कान उसकी लम्बी सिस्कारियां सुन पा रहे थे..अह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह अह्ह्ह्हह्ह म्मम्मम्म म्मम्मम ऊऊओ गोद्द्द्दद ........अह्ह्ह्हह्ह फिर उसका रस चूत में से निकल कर पानी के साथ-२ नीचे गिरने लगा, इतना बहुमूल्य रस कैसे नीचे बहे जा रहा था, अगर दादाजी न होते तो उसे वेस्ट नहीं जाने देता...मैं सारा पी लेता.
अपने शरीर को पानी से पूरी तरह से साफ़ करने के बाद उसने शावर बंद किया..और फिर उसने नीचे पड़ी पेंटी को उठाया और उसे धोने लगी, फिर उसे निचोड़ कर सारा पानी निकाल दिया...पर पेंटी अभी भी पहनने लायक नहीं थी..
ऋतू : "मम्मी, ये पेंटी तो काफी गीली है, मैंने इसे अभी पहना तो रेशेस हो जायेंगे..इसे सूखने के बाद पहनूंगी .."
और ये कहते हुए उसने उसे एक कोने में सूखने को डाल दिया, वहां टावल तो था नहीं, इसलिए वो ऐसी ही मम्मी की तरफ चलती चली आई, उसके नंगे बदन से पानी की बुँदे ढलक कर नीचे गिरती चली जा रही थी.
उसने आकर मम्मी को देखा और एक आँख मारकर उनसे कहा : "मम्मी...अब आप भी नहा लो.."
पर मम्मी को शायद अभी भी अपने ससुर के सामने शर्म आ रही थी, उन्होंने कहा वो बाद में नहा लेंगी, और मुझे देखकर बोली "बेटा ..तू नहा ले."
मैंने बिना किसी की परवाह किये बिना, अपना जोकी वहीँ उतरा, और नहाने चल दिया, मेरे आगे-२ मेरा खड़ा लंड चला जा रहा था और उसके पीछे मैं.
मैंने जाकर शावर ओन किया और नहाने लगा...मैं जानता था की जैसे ऋतू को सब देख रहे थे, वैसे ही अब सभी मुझे देख रहे होंगे..खासकर मम्मी और ऋतू..
मैंने अपना अन्डरवेअर इसलिए उतारा था की दादाजी की भी शर्म खुल जाए और दादाजी भी शायद इसलिए मेरी तरफ देख रहे होंगे की शायद उनमे भी मुझे देखकर नंगे नहाने की हिम्मत आ जाए.. \
नहाकर मैं भी मम्मी के दूसरी तरफ आकर बैठ गया..बेड पर अब बीच में मम्मी थी, जिन्होंने ब्रा और पेंटी पहनी हुई थी और उनके दोनों तरफ उनके दोनों बच्चे...पुरे नंगे.
दादाजी ये नजारा देखकर क्या सोच रहे होंगे...ये तो भगवान् ही जानता था.
मैं भी ऋतू की तरह अपने शरीर के सूखने का इन्तजार करने लगा...उसकी नजरें तो रह रहकर मेरे खड़े हुए लंड के ऊपर आ जमती थी...
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