RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
उन्होंने ऋतू को किसी फुल की तरह से उठाया और उसकी जींस उतार दी, जींस के साथ उसकी पेंटी भी उतर गयी...और नीचे उसकी नंगी चूत एक बार फिर अपनी आँखों के सामने देखकर दादाजी के मुंह में फिर से पानी आ गया, उन्होंने पानी अपनी हथेली पर निकाला और ऋतू की गीली सी चूत के ऊपर अपनी थूक मलने लगे....
दादाजी के सामने खड़ी हुई ऋतू उनके खुरदुरे हाथ अपनी चूत के ऊपर पाकर लम्बी-२ सिस्कारियां लेने लगी...
"आआआआआह्ह्ह्ह दादाजी......ये क्या.....ये क्या...कर रहे हो.....अह्ह्हह्ह......म्मम्मम्मम " और फिर दादाजी ने अपनी ताकत का प्रदर्शन करते हुए ऋतू की दोनों टांगो को उठाया और उसे किसी खिलोने की भाँती उठाकर अपने मुंह के ऊपर बिठा लिया....और उसकी चूत को बुरी तरह से खाने लगे...
हम सभी दादाजी के इस खुन्कार रूप को देखकर सकते में आ गए..
ऋतू का चेहरा दादाजी की तरफ ही था, उसने दादाजी के सर के बाल पकड़ लिए और अपने पैर उनकी पीठ के ऊपर जमा लिए, वो सिर्फ उनके बालों के सहारे उनके चेहरे पर बैठी थी, दादाजी और मोटी जीभ ऋतू की चूत के अन्दर से सारा नेक्टर पीने में लगी हुई थी....
"अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह दादाजी.....अह्ह्हह्ह......ऊऊऊओ.....मर गयी....अह्ह्हह्ह......म्मम्मम....मैं ....आई.....दादाजी....आःह्ह............ऊऊओ गोड......ऊऊ गोड......ओ गोड.....अह्ह्हह्ह......आई एम् कमिंग......."
और फिर जैसे ऋतू की चूत में से गर्म पानी का बाँध सा टूट पड़ा....और दादाजी के पुरे चेहरे को भिगोता हुआ, उनके पेट से होता हुआ...नीचे आने लगा...
मम्मी और मैं दादाजी और ऋतू की इस शानदार चुदाई को देखकर गर्म होने लगे,,,मैंने अपना लंड बाहर निकाला और उसे हिलाने लगा,
मम्मी ने जब मुझे ऐसा करते देखा तो वो मेरे पास आकर बैठ गयी और अपनी साडी और ब्लाउस को खोलकर नंगी हो गयी, मेरा ध्यान तो दादाजी के ऊपर था, मैंने लंड पर मम्मी के होंठों को महसूस किया तो देखा की वो मेरे सामने नंगी बैठी हुई हैं ...मैंने भी अपने जींस उतार दी और ऊपर से टी शर्ट...अब मम्मी अपने मोटे मुम्मे मेरी टांगों के ऊपर रखकर आराम से मेरे लंड को चूसने लगी...और मैं बैठ कर दादाजी का शो देखने लगा...
झड़ने के बाद ऋतू को दादाजी ने नीचे उतारा और सोफे पर लिटा दिया...वो ऑंखें बंद किये गहरी साँसे ले रही थी, वो शायद आज से पहले इस तरह से नहीं झड़ी थी...
दादाजी ने अपनी लुंगी खोली और फिर अपना कच्छा उतार दिया और वो भी नंगे हो गए...उन्होंने मेरी तरफ देखा और अपनी बहु को अपने ही बेटे यानी मेरा लंड चूसते देखा तो वो भी मुस्कुराने लगे, जैसे अब उन्हें इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता....और फिर उन्होंने अपनी छाती पर लगा ऋतू की चूत का रसीला रस अपने लंड पर मला और सामने लेटी हुई ऋतू की चूत के ऊपर अपना लंड लगाकर एक तेज धक्का मारा....
"आआआआआआह्ह्ह्ह .........ऊऊऊओ दादाजी.........दर्द हो रहा है.....अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह धीरे......धीरे डालो......"
मुझे ऋतू की दर्द भरी चीख सुनकर वो दिन याद आ गया जब मैंने पहली बार उसकी चूत मारी थी...दादाजी का लंड उसकी खेली खायी चूत में जा रहा था...पर उसे आज भी उस दिन जैसा दर्द हो रहा था, इससे आप दादाजी के मोटे लंड का अंदाजा लगा सकते हैं....
दादाजी ने धीरे-2 धक्के मार मारकर अपना लंड ऋतू की चूत में डाला और फिर जब पूरा अन्दर तक समा गया तो उन्होंने धक्को की स्पीड बड़ा दी ...हर धक्के से ऋतू के मुम्मे ऊपर नीचे हिल हिलकर नाच रहे थे...
ऋतू ने उन्हें अपने हाथों से पकड़कर शांत करने की कोशिश करी पर दादाजी ने उसके हाथ हटा दिए, वो ऋतू को चोदते हुए उसके हिलते हुए मुम्मे देखना चाहते थे... ऋतू की चूत में दादाजी का पूरा लंड था, उसे भी अब मजे आने लगे थे....उसकी दर्द भरी चीख अब लम्बी सिस्कारियों में बदल चुकी थी...
अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह......अयीई.....दादाजी....मजा आ रहा है.....अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह.....कितना मोटा है...आपका लंड.....आः.....चोदो मुझे दद्दू....चोदो अपनी ऋतू को.....अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह हान्न्न्न और तेज....ऐसे ही....अह्ह्ह्ह........मेरे अन्दर छोडो अपना रस ....अह्ह्ह्ह...........जल्दी करो....अह्ह्हह्ह......मैं आई.....आःह्ह दादाजी.....अह्ह्ह्ह.....ऊ ऊ हो हो हो हो हो हो हो हो हो ......." और एक तेज हुंकार भरते हुए दादाजी भी ऋतू की चूत में ही झड़ने लगे....और उनके लंड से निकलता प्रेशर अपनी चूत पर पाकर ऋतू भी दोबारा झड़ने लगी...
उनकी चुदाई देखकर मम्मी भी मेरे लंड पर आ बैठी और अगले पांच मिनट तक वो भी मेरे लंड के ऊपर नाच नाचकर अपनी चूत से मेरे लंड को रगडती रही...और अंत में, मेरा रस भी उनकी चूत के अन्दर जाकर वहां से निकलते रस से मिलकर, बाहर आने लगा....
पुरे कमरे में सेक्स की स्मेल आ रही थी....सोनी और अन्नू तो अपना मुंह फाड़े सभी को चुदाई करते हुए देख रही थी... और सोनी..जो दद्दू के लंड को अपने सामने पाकर ये सोच रही थी की वो मालिश के लिए उसे कब बुलाएँगे...
सभी लोग चुदाई से इतने थक गए थे की कपडे पहनने की भी हिम्मत नहीं थी अब..इसलिए हम सभी नंगे ही वहां बैठे रहे ..
दादाजी इस घमासान चुदाई से थक चुके थे, वो उठ कर अपने कमरे में गए , उनके जाते ही सोनी मेरे पास आई और बोली : "ओ बाबु...दो दिनों से सिर्फ कैमरे में से तुम लोगो को नंगा देख रही थी वहां, मेरा तो मन कर रहा था की मैं भी उस कमरे में आ जाऊ पर तुमने अपने पापा और दोस्तों की सेवा में जो लगा रखा था हम दोनों बहनों को...
पर अब सबर नहीं होता मुझसे...आज किसी भी हालत में मुझे दद्दू का घोड़े जैसा लंड चाहिए ही चाहिए...कुछ करो न बाबु... मैं पूरी जिन्दगी तुम्हारी दासी बनकर रहूंगी, जो बोलोगे, वो करुँगी, जिससे कहोगे उससे चुदुंगी...पर मुझे आज दद्दू का लंड दिलवा दो..बड़े साब ने भी कहा था की मैं उनकी मालिश कर दूं, पर ऋतू बेबी ने पहले ही दद्दू का लंड अपनी चुत में पिलवाकर उनका सारा रस निकाल दिया, अब पता नहीं वो चुदाई के लिए कब तैयार होंगे..प्लीस....साब...कुछ करो न.." और सोनी मेरे सामने खड़ी होकर एक हाथ से अपनी चुत और दुसरे से अपनी चूची को मसलने लगी..वो सच में काफी गर्म हो चुकी थी, वो दद्दू का लंड लेने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी,
मैंने मन में एक प्लान बनाया, था तो थोडा रिस्की पर सोनी की हालत देखकर मुझे मालुम था की वो मुझे मना नहीं करेगी उस काम के लिए..
और ये सोनी तो ये सोच रही थी की दादाजी की उम्र की वजह से अब उनका लंड पुरे दिन खड़ा ही नहीं होगा या वो अब पता नहीं एकदम से दूसरी चुदाई के लिए तैयार हो भी पाएंगे या नहीं..पर सोनी ये नहीं जानती थी की दादाजी गाँव के रहने वाले हैं, वो दिन में दस चूतें चोद सकते हैं, और अभी तो सिर्फ एक ही हुई थी...
मैं : "ठीक है...मैं दादाजी को मनाता हूँ तुम्हारे लिए, तुम एक काम करना.."
और फिर मैंने उसे आगे का प्लान समझाया की कैसे दादाजी से चुदाई करवानी है..वो समझ गयी और ख़ुशी से उछल कर मुझसे लिपट गयी..और मुझे चूम लिया.
मैं दादाजी के कमरे में गया , वो नहा रहे थे, मैंने सोचा की उनका वेट कर लेता हूँ..मैं बैठा हुआ था की मुझे बाथरूम से दादाजी की हलकी-फुलकी आवाजें आई, मैं दरवाजे के पास गया, वो खुला हुआ था, मैंने धीरे से उसे खोला,
दादाजी अन्दर शावर के नीचे खड़े होकर नहा रहे थे, उनके पुरे बदन पर साबुन लगा था और वही साबुन वो लंड पर भी लगा रहे थे और मुठ मार रहे थे ,साथ ही साथ वो बुदबुदा भी रहे थे...अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह ऋतू.......क्या चुत थी तेरी.....मजा आ गया.....अह्ह्हह्ह.....ओऊ....आह्ह्ह पूर्णिमा (मेरी माँ) .........तेरी चूचियां बड़ी रसीली थी.....अह्ह्ह्हह्ह तेरी चुत की तरह....अह्ह्ह्ह.......आरती (मेरी चाची) तुझे भी चोदुंगा एक दिन....बड़ी मोटी छाती है तेरी भी....साली की गांड में लंड पेलकर उन्हें चुसुंगा ...अह्ह्ह्ह तब पता चलेगा..ऊऊऊ......"
तो दादाजी यहाँ सभी के बारे में सोच सोचकर मुठ मार रहे हैं...मम्मी और ऋतू की तो वो मार ही चुके हैं, अब उनकी नजर आरती चाची के ऊपर है, मुझे पक्का विश्वास था की वो जल्दी ही आरती चाची की चुत मारकर रहेंगे...पर अभी तो मुझे दादाजी से सोनी को चुदवाना है, ताकि वो आगे मेरा काम करने के लिए राजी हो सके... पर इसके लिए मुझे दादाजी को मुठ मारने से रोकना होगा, नहीं तो सोनी अगले एक घंटे तक फिर से तड़पती रहेगी...ये सोचकर मैंने जोर से दादाजी को आवाज लगायी : "दादाजी....दादाजी....कहाँ है आप...."
दादाजी ने हडबडाकर जल्दी से अपने ऊपर पानी डाला और लंड को बड़ी मुश्किल से बिठाकर बाहर निकले..
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