RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
दादाजी : "बोल आशु बेटा...क्या बात है."
मैं : "दादाजी, मैं सोच रहा था की क्यों न मैं भी इस बार आपके साथ गाँव चलूँ, बड़ा टाईम हो गया वहां गए हुए, वो धनिया काका अभी भी आपके खेतों में काम करते हैं ना..उनकी भी काफी याद आती है.."
दादाजी : "अरे सीधा-२ बोल न की तुझे उनकी बेटी रूपा से मिलना है, मुझे सब मालुम है, तुम दोनों सारा दिन खेलते रहते थे, और ये जवानी के खेल हमने भी बहुत खेले हैं, हा हा.."
मैं तो दादाजी से ऐसे ही इधर उधर की बात का बहाना करके सोनी की चुदाई की बात करने आया था, पर दादाजी ने रूपा की बात छेड़कर मुझे अतीत में जाने को मजबूर कर दिया..
रूपा, धनिया काका की बेटी थी, मैं पिछली बार जब उसे मिला था तो मेरी उम्र 16 साल और उसकी शायद मुझसे एक-दो साल कम थी, पर अब तो काफी साल बीत चुके हैं, वो भी बड़ी हो चुकी होगी, हम खेतों में छुपन छुपायी खेलते थे और खेतों की लम्बी झाड़ियों में अक्सर मैं उसे गिराकर कुश्ती जैसा खेल भी खेलता था.., ताकि मुझे उसके गदराये हुए बदन को छुने का मौका मिल सके, इसके अलावा कुछ और नहीं हुआ था हमारे बीच...
वो टाईम कुछ और था, अब कुछ और है, वो भी शायद समझदार हो चुकी होगी और मैं तो आप जानते ही हैं की चुत के नाम से ही मेरे लंड में खुजली होने लगती है..
मैं : "अरे नहीं दादाजी...आप कैसी बात कर रहे है, मुझे तो उसके बारे में कुछ याद भी नहीं है...तीन-चार साल हो चुके हैं मुझे गाँव गए हुए...आप भी न...और हमारे बीच ऐसा कुछ हुआ भी नहीं था, जैसा आप सोच रहे है...आप मुझे नहीं ले जाना चाहते तो बता दो.." और मैंने रूठने का बहाना किया...
दादाजी : "अरे बेटा...मैं तो मजाक कर रहा था...ठीक है, तुम भी चलना मेरे साथ, और रूपा को देखोगे तो तुम उसे पहचान भी नहीं पाओगे, अपने नाम की तरह है वो भी, तुम्हे बड़ा याद करती है वो, चलो जरा उसे भी दिखाओ की शहर के लोंडे का लंड कैसा होता है... और मैं तो कहता हूँ की तुम ऋतू को भी कहो साथ चलने में, मजा आएगा..मेरा भी मन लगा रहेगा...है. हे हे..."
मैं दादाजी की बात का मतलब समझ गया, वो मुझे रूपा के नाम का चारा खिला रहे थे और अपना उल्लू सीधा करने के लिए ऋतू को भी साथ ले जाना चाहते थे..
मैं : "ठीक है दादाजी, मैं चलने के लिए तैयार हूँ, और ऋतू भी शायद मना नहीं करेगी, पर अभी के लिए आपके लिए मेरे पास एक और काम है.."
दादाजी : कैसा काम ?
मैं : चुदाई का..
दादाजी चुदाई का नाम सुनते ही खिल उठे, उनके लंड ने फिर से अंगडाई लेनी शुरू कर दी..
दादाजी : "बोल बेटा, किसको चोदना है, अब जब मेरा शेर दस साल के बाद खड़ा हो ही गया है तो इसे हर पल सिर्फ चूत ही दिखाई देती है..."
मैं : "वो आपने देखा न बाहर हमारी नौकरानी को, सोनी, उसको...वो तो आपके लंड को देखकर कब से तड़प रही है, और पापा ने जब से उसे आपकी मालिश करने को कहा है वो यही इन्तजार कर रही है की कब आप उसे बुलाये और कब वो आकर आपसे चुदे.."
दादाजी : "अरे, पागल है क्या, वो तो काफी छोटी लगती है, बेचारी मेरा लंड ले भी नहीं पाएगी.."
मैं : "अरे दादाजी, उसकी आप फिकर मत करो, वो जैसी दिखाई देती है, वैसी है नहीं, उसकी चूत में इतनी जगह है की वो हम दोनों का एक साथ ले सकती है..."
दादाजी : "तो ठीक है, बुला उसको.."
मैंने सोनी को आवाज दी, वो अन्दर आई, उसके हाथ में तेल की शीशी थी..
मैं : "सोनी, देख दादाजी थोडा थक गए हैं, उनकी अच्छी तरह से मालिश कर दे.."
दादाजी सामने लेट गए उन्होंने अपने सारे कपडे उतार दिए, जैसा की मैंने उन्हें कहा था, क्योंकि अब ज्यादा देर तक रुकने का न ही उनका मन था और न ही सोनी रुक पाती..
सोनी ने जब दादाजी को नंगे लेटे हुए देखा तो उसके होश ही उड़ गए, उसके सामने दादाजी का क़ुतुब मीनार अपने पुरे शबाब में खड़ा हुआ था..सोनी ने कांपते हाथों से अपने हाथ में तेल डाला और और दादाजी की छाती पर लगाने लगी.
मैं : "अरे सोनी, तेरे कपडे खराब हो जायेंगे, इन्हें उतार दे.."
सोनी (शर्माते हुए) : "पर बाबु मैंने नीचे कुछ नहीं पहना हुआ "
मैं : "अरे तो क्या हुआ, दादाजी अपने ही तो है, कोई बात नहीं, उतार दे."
और फिर सोनी ने अपने सारे कपडे उतार कर एक तरफ रख दिए.
दादाजी तो नंगी होती सोनी को देखते हुए अपनी मुठ ही मारने लगे.
सोनी की चूत टप टप बह रही थी, दादाजी के लंड के बारे में सोचकर..
उसने जैसे ही दादाजी को फिर से छाती पर तेल लगाना चाहा तो उन्होंने उसे रोक दिया..और कहा : "अरी, मेरे तो लंड के ऊपर लगा ये तेल, कल से काफी वर्जिश कर रहा है ये.."
सोनी ने शर्माते हुए उनके लंड के ऊपर तेल लगाना शुरू कर दिया..अपने हाथों में उस मोटे लंड की गर्माहट पाकर वो अपने आप को रोक नहीं पा रही थी..और दादाजी के साथ वो लगभग, अपने मुम्मो को उनपर रगड़ते हुए, लेटी सी हुई थी...
दादाजी ने सोनी की टांगो को अपनी तरफ खींचा और उसकी चूत में एक ऊँगली दाल दी..
"आःह्ह्ह दद्दू......क्या करते हो...."
सोनी की चूत में से इतना पानी निकल रहा था की बेड के ऊपर भी गिला धब्बा सा बन गया था..
दादाजी ने भी अपने हाथ में ढेर सारा तेल निकाला और सोनी की चूत के अन्दर तक ऊँगली डालकर उसकी गीली चूत को तेल पिलाने लगे..सोनी भी दादाजी के लंड को तेल पिला रही थी..
मैं सोफे पर टेक लगाकर आराम से उनकी चुदाई की तय्यारी को देख रहा था.
दादाजी : "अरे सोनी बेटा, तू कब तक अपने हाथों से मेरे लंड की मालिश करेगी, तू थक जायेगी...ऐसा कर मैंने तेरी चूत के अन्दर काफी तेल डाल दिया है, तू इसे मेरे लंड के चारों तरफ लपेट दे और फिर इससे मालिश कर, ठीक है न बेटा.."
सोनी (मन ही मन खुश होते हुए) : "ठीक है दादाजी.."
और फिर वो लेटे हुए दादाजी के ऊपर सवार हो गयी और अपनी तेल और रस के मिश्रण से लबालब चूत को उनके लंड के ऊपर लाकर टिका दिया.. मैं सोनी के पीछे की तरफ बैठा था..और उस एंगल से ऐसे लग रहा था की सोनी किसी लम्बे से डंडे के ऊपर बैठने का करतब दिखा रही है..
दादाजी ने सोनी के मोटे ताजे मुम्मो को दबाया और उन्हें पकड़ कर नीचे खींच दिया, उनका दबाव इतना तेज था की सोनी का पूरा शरीर नीचे की तरफ आता चला गया और उसकी चूत में दादाजी का मोटा लंड, सरसों के तेल में सना हुआ, उसकी चूत को ककड़ी की तरह चीरता हुआ अन्दर तक चलता चला गया... "आआआआह्ह अय्य्यिओईई ऊऊऊह....मर्र्र्रर....गयी.....रे.....दद्दू..... लंड है या.... मोटा डंडा...... अह्ह्ह्हह्ह...... बड़ा दर्द हो रहा है.... ऊऊऊओ .....मम्मी..........."
उसकी हालत देखकर मुझे भी तरस आ गया, अभी कुछ ही दिन पहले मैंने ही उसकी चूत को फाड़ा था तब भी उसे इतना ही दर्द हुआ था, पर उसके बाद कई लंडो से चुदने के बाद आज जब दादाजी ने अपना लंड डाला तो उसे फिर से दर्द होने लगा, दादाजी का लंड था ही इतना मोटा...
उसकी मोटी गांड धीरे से आकर दादाजी की जांघों पर लेंड कर गयी....दादाजी ने अपना पूरा मुसल उसकी कमसिन सी चूत में उतार दिया था...उसकी आँखों से आंसू भी निकल रहे थे...
दादाजी ने उसे अपने ऊपर झुका लिया और उसके होंठ चूसने लगे..अब उसकी चूत में घुसा हुआ लंड मुझे साफ़ दिखाई दे रहा था..और मैंने जब ध्यान दिया तो उसकी चूत में से भी खून निकल रहा था, जो दादाजी के दोनों टांगो के बीच में गिर रहा था...बेचारी की चूत फट गयी थी...
थोड़ी ही देर में दादाजी ने उसकी चूत में हलके धक्के देने शुरू कर दिए..
पहले तो वो लेटी रही और फिर वो भी उनका साथ देने लगी, अब उसे भी मजा आने लगा था..
"अह्ह्ह्ह दद्दू...क्या चीज है...मजा आ गया....जितना मोटा...उतना ही खरा....अह्ह्ह्हह्ह.....चोदो मुझे.....और तेज चोदो......अह्ह्ह्ह.......दाल दो....फाड़ दो मेरी चूत आज.... ह्ह्ह्हह्ह...... ओह्ह्ह्ह..... म्मम्म......यो ..... मैं तो आई....आयी.....ई............" और ये कहते हुए उसने बाल्टी भर कर अपना रस बाहर की तरफ फेंक दिया..
पर दादाजी तो किसी हब्शी की तरह उसे चोदने में लगे हुए थे, वैसे भी वो अभी थोड़ी देर पहले ही झडे थे, वो उसे चोदते रहे और सोनी ना जाने कितनी बार झड गयी दादाजी के लंड की सवारी करते हुए...
और अंत में दादाजी ने उसकी चूत में अपने लंड से होली खेलनी शुरू की तो उनकी पिचकारी से पानी ख़तम होने का नाम ही नहीं ले रहा था...सारा माल बहकर उनकी टांगो पर वापिस गिर रहा था..
और जब सोनी उनके ऊपर से उठी तो चद्दर के ऊपर का गीलापन देखकर वो भी शर्मा गयी की कितना बही है आज उसकी चूत... वो उठी और बाथरूम में जाकर साफ़ होने लगी, दादाजी भी साफ़ सुथरे होकर मेरे पास आकर बैठ गए, उसके बाद सोनी ने चद्दर को उतारा और ठीक किया और कपडे पहनकर वो वापिस बाहर चली गयी.
मैं और दादाजी गाँव जाने की योजना बनाने लगे..
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सोनी जब बाहर गयी तो उससे सही तरह से चला भी नहीं जा रहा था, उसकी टेढी चाल देखकर उसकी बहन अन्नू दौड़ कर उसके पास आई और उससे बोली "अरे सोनी, लगता है आज तेरी चूत अच्छी तरह से ली है दद्दू ने, बता न, कैसा लगा उनका लंड तेरी चूत में...बता ना..तेरी चीखों की आवाजें तो बाहर तक आ रही थी, लगता है आज उन्होंने तेरी अच्छी तरह से मारी है.."
सोनी (मंद मंद मुस्कुराते हुए) : "यार अन्नू, लंड से इतने मजे आते हैं, ये मुझे आज सही मायनो में पता चला, दद्दू तो कमाल के हैं, उनके लंड ने तो मेरी चूत के धागे खोल दिए,
पता है, आज मेरी चूत से फिर से खून निकला, मैंने तो सुना था की पहली बार में ही ऐसा होता है, पर दद्दू का लंड आज मेरी चूत की गुफा के उस कोने तक भी गया , जहाँ कोई और नहीं जा सका था अभी तक, शायद इसलिए वहां तक जाने में जो लंड ने जगह बनायीं थी, उसका ही खून था वो...पर मजा बहुत आया, मैं तो कहती हूँ की तू भी चुदवा ले दद्दू के लंड से.."
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