RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
गाँव में पहुँच कर मुझे एक अलग तरह की हवा की खुशबू आ रही थी, हो भी क्यों न, आस-पास के खेतो से आती मिटटी की खुशबू और पेड़ो और पोधो पर लगे फल-फुल तरह-२ की खुशबू बिखेरकर मौसम को बड़ा मजेदार बना रहे थे.
दादाजी का घर गाँव के बीचो-बीच था, और काफी बड़ा था, उनके बड़े से घर में 3 कमरे नीचे और दो ऊपर थे, घर के पीछे वाला हिस्सा गाये और मुर्गियों के लिए रखा हुआ था.
दरवाजा खडकाने के थोड़ी ही देर बाद एक चालीस साल की औरत ने दरवाजा खोला
दादाजी : "आओ बेटा...ये दुलारी है , घर और गायों की देखभाल के लिए.. और दुलारी ये है मेरा पोता और पोती..मेरे दिल्ली वाले बड़े बेटे के बच्चे.."
दुलारी : "हाय..दैया...कितने बड़े हो गए है...पांच साल पहले देखा था इन्हें...लालाजी तुम भी न, पहले बता तो देते की बच्चे भी आ रहे है, कमरा साफ़ करवा देती..अब कैसे करेंगे..कहाँ सोयेंगे ये दोनों..."
दादाजी : "अरी , तू फिकर मत मर, आज ये मेरे कमरे में सो जायेंगे, तो इनके कमरे सुबह साफ़ कर देना..चल अब खाना लगा , बड़ी भूख लगी है.."
हम सभी अन्दर आये, दादाजी का कमरा काफी बड़ा था, बीच में एक बड़ा सा लकड़ी का बेड था और कोने में काफी जगह थी, जहाँ आराम से सोया जा सकता था...
हमने खाना खाया.
दादाजी : "अरी दुलारी..रूपा कहा है..सो गयी क्या.."
दुलारी : " हा लालाजी..कहो तो उठा दू.."
दादाजी : "नहीं रहने दे..ये बच्चे मिलने को उतावले हो रहे थे बस.."
दादाजी मेरी तरफ देखकर मुस्कुरा दिए..
मैं भी दादाजी की बात सुनकर , ऋतू की तरफ देखकर, मुस्कुराने लगा.
मैंने नीचे बिस्तर लगा लिया, काफी थक गया था..ऋतू भी मेरे पास आकर सो गयी, पर थके होने की वजह से सिर्फ एक दो किस करी और लिपट कर सो गए.
*****
सुबह मेरी नींद 6 बजे खुल गयी..ऋतू मेरे पास नहीं थी..मैंने ऊपर पलंग पर देखा, वो दादाजी के साथ लिपट कर सो रही थी..और वो भी पूरी नंगी..
यानी रात को मेरे सोने के बाद उसकी चूत में खुजली हुई होगी..और वो दादाजी से चुदकर सो गयी होगी.
मेरी नींद तो खुल ही चुकी थी, मैंने सोचा की सुबह-२ गाँव की सेर करी जाए, और ये सोचकर मैं बाहर निकल गया.
हमारे दादाजी का काफी बड़ा आम का बगीचा है, और आम का सीजन अभी चल ही रहा है, इसलिए काफी ज्यादा आम लगे हुए थे.
मैं बगीचे में टहलने लगा.
मैंने देखा एक लड़की बगीचे के आम इकठ्ठा कर रही है..
मैं : "ऐ..क्या कर रही है तू.."
और जैसे ही वो मेरी तरफ पलती, मैं आँख झपकाना भूल गया..इतनी सुन्दर लड़की, हमारे गाँव में हो सकती है, मैंने कल्पना भी नहीं की थी..
मैं : "ऐ...आम चुरा रही है क्या.."
लड़की : "तू कोन होता है पूछने वाला.."
मैं : "मैं यहाँ के मालिक का पोता हु..अशोक नाम है मेरा."
लड़की (ख़ुशी से..) : अरे आशु साब...आप..मैंने तो आपको पहचाना ही नहीं...अम्मा ने बताया तो था सुबह की आप और ऋतू दीदी भी आये है, लालाजी के साथ, ...कैसे हो आप...मुझे भूल गए क्या..मैं रूपा..वो दुलारी काकी की बेटी..."
मैं : "अरे रूपा तू...कितनी सुन्दर हो गयी है तू अब..."
मेरी बात सुनकर वो शर्मा कर रह गयी.. और मैंने उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए उसके हुस्न का रसपान करना शुरू कर दिया.
उसने लाल रंग का घाघरा और सफ़ेद रंग का टॉप पहना हुआ था, कमर वाला हिस्सा अन्दर की और, बाकी ऊपर से छाती और नीचे से गांड दोनों बाहर की और निकले हुए थे.
उसके होंठो के ऊपर एक मोटा सा तिल था, जिसके बारे मैं ये सोचकर की इसे चूसने में कितना मजा आएगा, मेरा मुंह भर आया..
रूपा : "क्या देख रहे हो साब...मुझे माफ़ कर दो...मैंने आपको उल्टा सीधा बोल दिया...वैसे मैं ये आम इकठ्ठा कर रही थी.. रोज रात को जो आम नीचे गिरते हैं, वो वहां कोठरी में जमा कर देती हु, और शाम को मण्डी वाले आकर ले जाते हैं...लालाजी के पास सारा हिस्साब रोज पहुंचा देती हु मैं...आप पूछ लेना उनसे..
मैं : "अरे नहीं...मैं भी शायद तुम्हे गलत समझ बैठा था..वैसे तुमसे मिलकर अच्छा लगा."
रूपा : "चलो फिर इसी बात पर आम पार्टी हो जाए...आपको याद है न की हम पहले कितने आम खाया करते थे."
मैं याद करने लगा, रूपा और मैं, आम इकठ्ठा करके, उन्हें खाते थे और फिर पास के तालाब में जाकर नहाते थे..बड़े मजे के दिन थे वो भी.
मैं : "हाँ याद है रूपा...चल शुरू करते हैं.."
रूपा ने पास की चारपाई पर पके हुए आम का ढेर लगा दिया और हम दोनों पानी से धोकर, आम खाने लगे..जो जितने ज्यादा आम खायेगा, वही जीतेगा, यही होता था पहले तो..
मैं आम खाता जा रहा था और मेरी नजर रूपा के पके हुए आमो पर थी...यानी उसके मोटे-ताजे मुम्मो पर..जिन पर आम का रस गिरकर अपना गीलापन छोड़ रहा था..मन तो कर रहा था की इसी चारपाई पर उसे लिटा दू और उसके आम चूस लू..
पर वो अल्हड सी लड़की मेरी कामुक नजरो से बेखबर, आम चूसने में लगी हुई थी, मानो ये आम चुसो प्रतियोगता जीतकर वो गोल्ड मेडल लेना चाहती हो.. और आखिर में वो जीत ही गयी..
रूपा : "हुररेईsssssssssssssssss........................... मैं जीत गयी..."
मैं मुस्कुरा कर रह गया.
मेरी नजर अभी भी उसके आम रस से सने हुए टॉप पर थी..
उसने मेरी नजरो का पीछा किया और कपडे पर आम गिरा देखकर वो बोली : "हाय दैय्या...मर गयी...अम्मा मारेगी आज भी..कल भी डांट पड़ी थी, कह रही थी की इतनी बड़ी हो गयी है, पर आम खाने की अक्ल अभी तक नहीं आई."
मैं : "चलो फिर, तालाब में जाकर साफ़ कर लो इसे.."
रूपा : "हाँ चलो...जल्दी चलो."
वो उठ कर तालाब की तरफ भागने लगी.. मैं भी उसके पीछे की और चल दिया.
तालाब हमारे बगीचे के साथ ही है, उसके दूसरी तरफ घना जंगल शुरू हो जाता है.
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