RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
दयाचन्द ने जानबूझकर वाक्य अधूरा छोड़ दिया।
देशराज उसे घूरता हुआ गुर्राया—“या?”
“या मेरी मदद करें।”
“वो यूनियन लीडर को डकैती के इल्जाम में फंसाने जैसा मामूली मामला था—एक डकैत की चमड़ी उधेड़कर उससे कहलवा दिया कि डकैती में लीडर भी उसके साथ था—बस—काम बन गया। मगर ये मामला बड़ा है, हत्या का किस्सा है!”
“सोच लीजिए साहब, मैं मुंहमांगी फीस दे सकता हूं।”
गुर्राकर पूछा उसने—“क्या मदद चाहता है?”
“यह तो आप ही बेहतर समझ सकते हैं।”
“तुझे बुरे-बुरे ख्वाब चमकते हैं, मैं भला उन ख्वाबों को कैसे रोक सकता हूं?”
“असलम की हत्या के जुर्म में किसी और को फंसा दीजिए, मुझे ख्वाब चमकने बन्द हो जाएंगे।”
“किसे फंसा दूं, तेरी नजर में है कोई?”
सटपटा गया दयाचन्द, मामले पर इस नजरिये से विचार नहीं किया था उसने, बोला—“इस बारे में तो अभी कुछ सोचा नहीं साहब।”
“नहीं सोचा तो सोच, या रुक... मैं ही कुछ सोचता हूं।” कहने के बाद देशराज ने एक सिगरेट सुलगा ली और सचमुच सोच में डूब गया।
दयाचन्द खुश था।
इंस्पेक्टर ने वही रुख अपनाया था जो सोचकर वह वहां आया था—अब उसे जरा भी डर नहीं लग रहा था—समझ सकता था कि इंस्पेक्टर कोई-न-कोई रास्ता निकाल लेगा और उस वक्त तो उसकी आशायें हिलोरें लेने लगीं जब सोचते हुए इंस्पेक्टर की आंखें जुगनुओं की मानिन्द चमकते देखीं, प्रसन्न नजर आ रहा इंस्पेक्टर बोला—“काम हो गया!”
“हो गया?” दयाचन्द उछल पड़ा।
“चाकू कहां है?” देशराज ने पूछा।
“कौन-सा चाकू?”
“अबे वही, जिससे तूने असलम का क्रिया-कर्म किया था?”
दयाचन्द ने थोड़ा हिचकते हुए बताया—“म-मैंने अपनी कोठी के लॉन में दबा रखा है।”
“खून से सने कपड़े?”
“वे भी।”
“तेरा काम हो जायेगा दयाचन्द, फीस एक लाख!”
“ए-एक लाख?”
“बिच्छू के काटे की तरह मत उछल—आंय-बांय गाने की कोशिश की तो टेंटवा पकड़कर इसी वक्त हवालात में ठूंस दूंगा—भगवान भी नहीं बचा सकेगा तुझे, सीधा फांसी के तख्ते पर पहुंचेगा।”
“म-मुझे मंजूर है।”
“तो जा, एक लाख लेकर आ।”
“प-पचास लाता हूं, पचास काम होने के …।”
“जुबान को लगाम दे दयाचन्द।” देशराज उसकी बात काटकर गुर्राया—“मैं कोई गुण्डा नहीं हूं जो आधा काम होने से पहले और आधा काम होने के बाद वाली ‘पेटेन्ट’ शर्त पर काम करूं—मेरे द्वारा काम को हाथ में लिये जाने को ही लोग पूरा हुआ मान लेते हैं।”
“म-मैंने भी मान लिया साहब।” दयाचन्द जल्दी से बोला—“मैंने भी मान लिया।”
“हवलदार पांडुराम!”
“यस सर!” हवलदार सावधान की मुद्रा में खड़ा हो गया।
“उस दिन छमिया के बारे में क्या कह रहा था तू?”
“किस दिन साब?”
“जिस दिन असलम सेठ का मर्डर हुआ था और हम इन्वेस्टीगेशन के सिलसिले में उसकी कोठी पर गए थे।”
“ओह, आप उस नौकरानी की बात कर रहे हैं?”
“हां।”
“उसके बारे में न ही सोचें तो बेहतर होगा साब, मैंने उस दिन भी कहा था—आज फिर कहता हूं, या तो सतयुग में सावित्री हुई थी या कलयुग में छमिया हुई है—हद दर्जे की पतिव्रता है वह, हाथ फिरवाने की बात तो दूर, अपने पति के अलावा किसी की तरफ देखती तक नहीं।”
“तुझे कैसे मालूम?”
“मैं ट्राई मार चुका हूं साब, साली ने ऐसा झांपड़ मारा कि याद भी आ जाता है तो गाल झनझनाने लगता है।”
“क्या नाम है उसके आदमी का?”
“गोविन्दा।”
“तो चल, ड्राइवर से जीप निकलवा—ये साले ऊपर वाले बहुत कहते रहते हैं कि मैं कोई केस हल नहीं करता।” देशराज ने कहा—“आज हम असलम मर्डर केस को हल करने का कीर्तिमान स्थापित करेंगे।”
*,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,*
|