RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
और सचमुच!
सूरज डूबते-डूबते रंगनाथन के अड्डों पर मानो तूफान आ गया।
फोर्स को साथ लिए तेजस्वी उन अड्डों पर बाज की तरह झपटा था—भट्टियां केवल तोड़ ही नहीं दी गईं बल्कि तहस-नहस कर डाली गईं—अधखींची शराब के ड्रम उलट दिए गए—अवैध धंधे में लिप्त जो जहां मिला, गिरफ्तार कर लिया गया।
यानि वह हो गया जो रंगनाथन के मुताबिक दस साल में नहीं हुआ था।
खुद रंगनाथन को केवल गिरफ्तार ही नहीं कर लिया गया बल्कि हवालात में लाकर सीधा टॉर्चर चेयर पर बैठा दिया गया—इतने पर भी ‘बस’ हो जाती तो गनीमत होती—रंगनाथन के सारे भ्रम तो तब टूटे जब टॉर्चर चेयर पर बैठे-बैठे उसने तेजस्वी के सामने अपनी तरफ से बहुत ही आकर्षक रकम का प्रत्येक महीने का प्रस्ताव रखा और जवाब में रूल के अग्रिम सिरे पर लटकी चेन ने उसके जिस्म पर खून की लकीरें बनानी शुरू कर दीं।
जुनूनी अवस्था में रंगनाथन को मारता चला गया वह।
हवालात में ही नहीं, संपूर्ण थाने में रंगनाथन की मर्मान्तक चीखें गूंज रही थीं—उस पर पिला पड़ा तेजस्वी पसीने से लथपथ था कि पांडुराम ने आकर सूचना दी—“गंगाशरण जी आए हैं साब।”
“कौन गंगाशरण?” तेजस्वी उसकी तरफ पलटता हुआ गुर्राया।
“नेताजी हैं साब, प्रतापगढ़ के विधायक!”
“ओह!” तेजस्वी के चेहरे से मानो जलजला गुजर गया—“मगर तू उसे गंगाशरण ‘जी’ क्यों कह रहा है—याद रख पांडुराम! जो आज तक इस थाने में होता रहा है वह अब नहीं होगा—किसी नेता के नाम के आगे ‘जी’ नहीं लगाया जाएगा और विधायक … विधायक वह चार दिन पहले था—विधानसभा भंग हो चुकी है—राष्ट्रपति शासन लागू है और राष्ट्रपति शासन में कोई विधायक नहीं होता।”
“स-सॉरी सर!” पांडुराम हकला गया—“भ-भूतपूर्व विधायक!”
“क्या चाहता है?”
“इसी के बारे में आया होगा।” पांडुराम ने तुरन्त उसकी टोन से टोन मिलाते हुए कहा—“इससे गंगाशरण का पुराना टांका है, उसी की ‘शै’ पर धंधा चलता है इसका।”
“तो वह इसे छुड़ाने आया है?”
“जी।”
“चल!” तेजस्वी हवालात के दरवाजे की तरफ बढ़ा—“देखता हूं साले को!”
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“कहिए!” तेजस्वी ने एक सिगरेट सुलगाने के बाद पूछा—“कैसे आना हुआ?”
मेज के उस पार बैठे, सूअर की-सी थूथनी वाले गंगाशरण ने कहा—“तुम प्रतापगढ़ के थानेदार हो और हम विधायक..।”
“माफ कीजिए!” तेजस्वी ने उसकी बात काटी—“इस वक्त आप विधायक नहीं हैं।”
गंगाशरण हंसा, बोला—“चलो इस वक्त न सही मगर भूतपूर्व हैं और भविष्य में भी होंगे।”
“वह तो चुनाव बताएंगे।” तेजस्वी ने शुष्क स्वर में कहा।
“चलो तुम्हारी ये बात भी बड़ी करते हैं।” गंगाशरण मुस्कराता रहा—“फिर भी, एक-दूसरे से हमारा परिचय तो होना ही चाहिए था।”
“परिचय हो चुका है, अब आप जा सकते हैं।”
“बड़े बेरुखे इंस्पेक्टर हो यार, ये भी नहीं पूछा कि हम आए क्यों हैं?”
“बता दो।”
“रंगनाथन ने तुम्हें बताया नहीं कि वह क्या दे सकता है?”
तेजस्वी ने सिगरेट में जोरदार कश लगाया, बोला—“बता दिया।”
“लेकिन तुम्हें कुबूल नहीं?”
“न!”
“मैं रंगनाथन द्वारा बताई गई रकम को दुगनी कर सकता हूं।”
“मुझे वह भी कबूल नहीं।”
“क्यों?”
“मैं रिश्वत नहीं लेता।”
“मजाक मत करो इंस्पेक्टर, ऐसे कहीं इंस्पेक्टरी होती है?”
“मजाक तो आप कर रहे हैं मिस्टर गंगाशरण, ऐसे कहीं नेतागिरी होती है?”
“ओह!” गंगाशरण के होंठों पर से पहली बार मुस्कराहट लुप्त हुई—“तुम हमें नेतागिरी सिखाओगे?”
उसकी आंखों में झांकते हुए तेजस्वी ने उतने ही कठोर स्वर में कहा—“अगर आप मुझे इंस्पेक्टरी सिखा सकते हैं तो मैं निश्चित रूप से आपको नेतागिरी सिखा दूंगा।”
“जुबान को लगाम दो इंस्पेक्टर!” गंगाशरण गुर्रा उठा—“हम खुद चलकर तुमसे मिलने आए हैं, इससे यह भ्रम मत पालो कि तुम हमारे स्तर के हो गए—तुम जैसे पचासों इंस्पेक्टर हमारे दरवाजे पर एक टांग पर खड़े रहते हैं, किसी कमाऊ थाने पर नियुक्ति के लिए फरियाद करते रहते हैं वे।”
“बेवकूफ होंगे साले, अपनी ताकत का अंदाजा नहीं होगा उन्हें, मगर मुझे है।” दांतों पर दांत जमाए तेजस्वी कहता चला गया—“किसी व्यक्ति को नेता पुलिस बनाती है—अगर पुलिस ने महात्मा गांधी पर इतने जुल्म न किए होते तो आज महात्मा गांधी हिन्दुस्तान के राष्ट्रपिता न होते—अगर आज तक इस इलाके के नेता तुम हो तो कल पंडित शाहबुद्दीन चौधरी तुमसे ज्यादा लोकप्रिय नेता हो सकता है!”
“औकात में रहो इंस्पेक्टर!” गंगाशरण भड़क उठा—“त-तुम पंडित शाहबुद्दीन चौधरी को इस इलाके का हमसे ज्यादा लोकप्रिय नेता बनाओगे?”
उसके भड़कने पर तेजस्वी मुस्कराया, एक-एक शब्द को उसके जिस्म पर भाले की नोक की मानिंद चुभाता हुआ बोला—“जिस थाने पर मुझे नियुक्त कर दिया जाता है, उस थाना क्षेत्र में मैं ऐसे करिश्मे अक्सर दिखाता हूं!”
“त-तुम अभी जानते नहीं हो कि मेरे हाथ कितने लम्बे हैं।” गंगाशरण तिलमिला उठा—“मैं तुम जैसे बद्तमीज इंस्पेक्टर को एक क्षण के लिए भी इस इलाके के थाने पर बर्दाश्त नहीं कर सकता।”
तेजस्वी ने सिगरेट का अंतिम टुकड़ा फर्श पर डाला—जूते से मसला और मेज पर पड़ा चेनयुक्त अपना रूल उठाता हुआ बोला—“मेरी आदत ये है कि अगर एक बार तेरे जैसा घटिया नेता थाने में आ जाए तो मैं उसे अपने प्रिय हथियार का स्वाद चखे बगैर बाहर नहीं जाने देता।”
“क-क्या मतलब?” गंगाशरण उछलकर कुर्सी से खड़ा हो गया—“त-तू मुझे रोकेगा?”
“बेशक!”
“देखता हूं कैसे रोकता है।” कहने के साथ वह दरवाजे की तरफ मुड़ना ही चाहता था कि तेजस्वी के हलक से हिंसक गुर्राहट निकली—“एक कदम भी आगे बढ़ाया गंगाशरण तो …।”
“तो?” गंगाशरण दहाड़ा—“क्या करेगा तू?”
“मैं नहीं, जो करेगा … ये करेगा!” उसने रूल की तरफ इशारा किया—“मेरा प्रिय हथियार!”
“त-तू मुझे मारेगा?” गुस्से और हैरत के मिश्रण ने मानो उसे पागल कर दिया।
“मैं मारता नहीं हूं हरामजादे, चमड़ी उधेड़ डालता हूं!” कहने के साथ जो उसने हाथ घुमाया तो चेन की मार के परिणामस्वरूप वहां गंगाशरण की चीख गूंज गई—और एक क्या, अनेक चीखें उबलती चली गईं उसके मुंह से—तेजस्वी इस तरह पिल पड़ा जैसे भूसे की बोरी पर वार कर रहा हो।
पांडुराम के चेहरे पर आतंक कत्थक कर रहा था।
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