RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
“आप प्रदेश के सबसे योग्य शल्य चिकित्सक हैं डॉक्टर साहब।” देशराज ने सफेद बालों वाले अधेड़ व्यक्ति से कहा—“केवल इसलिए आपको कष्ट दिया।”
डॉक्टर शुक्ला अपनी नाक पर थोड़ा नीचे सरक आया मोटे लैंसों का चश्मा दुरुस्त करता हुआ बोला—“आपके तो अभी मैं नाम से भी परिचित नहीं हूं जनाब, कमिश्नर साहब ने अनुरोध किया और मुझे आना पड़ा।”
“इसका नाम देशराज है डॉक्टर साहब!” शांडियाल ने कहा—“इसे एक ऐसे मिशन पर जाना है जिसकी कामयाबी और नाकामयाबी हमारे मुल्क का भाग्य निर्धारित करेगी।”
“ये विषय आप पुलिस वालों के लिए है—मेरा काम है, इलाज करना—और यहां मुझे कोई मरीज नजर नहीं आ रहा।” डॉक्टर शुक्ला कहता चला गया—“आपने फोन पर कहा था मैं वे औजार लेता आऊं जो आमतौर पर ऑपरेशन में काम आते हैं—सोचा, शायद किसी वी.आई.पी. के ऑपरेशन का मामला है—आपके पुलिसियों द्वारा जिस ढंग से मुझे कोठी के इस बेसमेंट में मुझे पहुंचाया गया है वह इतना रहस्यमय था कि मैं ये सोचने पर विवश हो गया—आखिर मामला क्या है?”
“हम ज्यादा लोगों को यह पता नहीं लगने देना चाहते कि देशराज किसी मिशन पर रवाना होने वाला है …।” शांडियाल ने समझाया—“जिन पुलिस वालों ने आपको वहां पहुंचाया है, उन तक को यहां चल रहे चक्कर के बारे में कुछ मालूम नहीं है।”
“लेकिन इनकी अपनी उपयोगिता अभी तक मेरी समझ में नहीं आई।”
“बोलो देशराज, डॉक्टर साहब को बताओ, इन्हें क्या करना है?”
डॉक्टर शुक्ला ने देशराज की तरफ देखा।
देशराज ने जेब से एक लिफाफा निकाला—उसमें से बहुत सारे कलर्ड और ब्लैक एण्ड व्हाइट फोटो निकालकर मेज पर सजा दिए—वे सभी फोटो जुंगजू के थे, बोला—“क्या आप इसे पहचानते हैं?”
“नहीं।”
“यह देश का दुश्मन है और मुझे ‘यह’ बनकर इसके साथियों के बीच जाना है।”
“इसमें मैं क्या कर सकता हूं?”
“आपको मुझे ‘ये’ बनाना है।”
शुक्ला ने बहुत ध्यान से देशराज के चेहरे और फिर जुंगजू के फोटुओं को देखा—होंठों पर ऐसी मुस्कान उभरी—जैसे बुजुर्ग बच्चे की बचकानी बात सुनकर मुस्कराया हो, बोला—“क्या यहां किसी फिल्म की शूटिंग चल रही है?”
“मैं समझा नहीं डॉक्टर साहब …।”
“जो तुमने कहा वह केवल फिल्मों में मुमकिन है बरखुरदार।” कहने के बाद वह कमिश्नर से मुखातिब हुआ—“आपको मेरे टाइम की कीमत मालूम है शांडियाल साहब—मुझे उम्मीद नहीं थी आप उसे इस तरह जाया करेंगे।”
“मेरा कहना भी यही था बल्कि है कि जो देशराज चाहता है वह नहीं हो सकता—मगर यह माना नहीं, बराबर आपको बुलाने की जिद करता रहा।”
“अगर किसी के जिस्म के एक हिस्से का गोश्त गायब हो जाए, किसी की खाल जल जाए तो आप उसी के जिस्म के किसी अन्य भाग से गोश्त लेकर अथवा किसी अन्य के गोश्त से जख्म को ‘फुलअप’ कर देते हैं।” देशराज कहता चला गया—“लोगों का कहना है आपके द्वारा ऑपरेट जख्म के निशान तक कुछ दिन बाद नजर नहीं आते।”
“वो सब ठीक है बरखुरदार, लेकिन शल्य चिकित्सा की कुछ लिमिटेशन्स हैं—तुम्हें शांडियाल साहब या शांडियाल साहब को तुम नहीं बनाया जा सकता।”
“आज ही एक केस हुआ है—आपने सुना होगा, कमिश्नर साहब के भतीजे की हत्या के जुर्म में पुलिस को लुक्का नाम के बदमाश की तलाश थी लेकिन मिला उसका फेसमास्क—कहते हैं उस फेसमास्क के जरिए कोई अन्य व्यक्ति लुक्का बना हुआ था?”
“जरूर बना होगा—लेकिन वास्तव में उस शक्ल का दुनिया में कोई आदमी नहीं होगा।”
“मतलब?”
“फेसमास्क बनने संभव हैं लेकिन ऐसा फेसमास्क बनना संभव नहीं है जिसे धारण करके कोई ‘तुम’ बन जाए। फर्क समझो, ऐसे चेहरे का मास्क तैयार किया जा सकता है जो दुनिया में कहीं होगा ही नहीं, मगर हू-ब-हू नकल नहीं की जा सकती—किसी ने बहुत मेहनत करके नब्बे-पिच्चानवें परसैंट शक्ल मिला भी दी तो कारगर सिद्ध नहीं होगी क्योंकि तुम्हारे चेहरे पर पसीना आ सकता है, जबकि तुम्हारा फेसमास्क पहने व्यक्ति के चेहरे पर पसीना नहीं आएगा।”
“मैं आपसे जुंगजू के चेहरे का मास्क बनाने के लिए कब कह रहा हूं?”
“और क्या चाहते हो?”
“जुंगजू के फोटुओं को ध्यान से देखिए, चेहरा जला हुआ है।”
“देख चुका हूं बरखुरदार, तेजाब से जला हुआ चेहरा है ये।”
“मुझे अपने चेहरे पर ठीक वहां वैसा ही जख्म चाहिए जहां, जैसा जुंगजू के चेहरे पर है—जहां, जैसी जली हुई चुड़चुड़ी खाल की झुर्री है वहां, वैसी ही झुर्री चाहिए—क्या आप ये करिश्मा नहीं कर सकते?”
“कैसे हो जाएगा ये करिश्मा, ऐसा कौन सा औजार है जो तुम्हारे चेहरे की कसी हुई खाल में जख्म और झुर्रियां बना देगा?”
“अगर ये खाल इतनी कसी हुई न हो तो?”
“मतलब?”
“अगर खाल ऐसी पोजीशन में मिले जिसमें आप अपने औजारों की मदद से चाहे जहां, चाहे जैसा जख्म बना सकें और चाहें जहां जैसी चाहें झुर्री डाल सकें तो?”
“हम समझे नहीं बरखुरदार!”
“समझने की कोशिश बाद में कीजिएगा डॉक्टर साहब।” गम्भीर स्वर में देशराज कहता चला गया—“फिलहाल केवल मेरे सवाल का जवाब दीजिए, अगर खाल ऐसी पोजीशन में हो जिसके साथ आप बगैर किसी बाधा के छेड़खानी कर सकें तो मनचाहे स्थान पर जख्म और झुर्रियां बनाना मुमकिन है या नहीं?”
“मुमकिन है।”
“गुड!” कहने के साथ देशराज कुर्सी से खड़ा हो गया।
डॉक्टर शुक्ला ही नहीं, कमिश्नर शांडियाल भी उसे चकित दृष्टि से देखते रह गए—उसे, जो आंखों में दिव्य ज्योति लिए अलमारी की तरफ बढ़ा।
नजदीक पहुंचकर अलमारी खोली।
वहां रखा पांच लीटर का एक केन उठाया।
और उस वक्त वह उसका ढक्कन खोल रहा था जब एकाएक कमिश्नर के जहन में बिजली कौंधी, कुर्सी से उठने के साथ चिल्लाए वे—“न-हीं … नहीं देशराज … ये क्या बेवकूफी कर रहे हो तुम?”
मगर!
वे देर से एक्शन में आ पाए बल्कि यह कहा जाए तो ज्यादा मुनासिब होगा कि वे बहुत देर से देशराज के इरादे को समझ पाए—जब तक उसे रोकने के लिए लपकते तब तक देशराज वह कर चुका था जिसे उन्होंने ‘बेवकूफी’ कहा था—एक क्षण के लिए भी हिचके बगैर देशराज ने सारा केन अपने चेहरे पर उलट लिया।
तेजाब से जलने के कारण उसके हलक से चीखें निकलने लगीं।
वह चीखता रहा, चिल्लाता रहा।
“र-रुक जाओ … रुक जाओ देशराज।” शांडियाल पागलों की मानिन्द दहाड़ रहे थे—“ये क्या कर रहे हो बेटे?”
देशराज के हलक से मर्मान्तक चीखों के अलावा कुछ न निकल रहा था।
डॉक्टर शुक्ला अवाक्।
किंकर्त्तव्यविमूढ़ अवस्था में अपनी कुर्सी के नजदीक खड़े थे वह और जलते हुए देशराज को देखकर समझ नहीं पा रहे थे कि ये किस किस्म की दीवानगी थी?
शांडियाल देशराज को रोकना चाहते थे मगर न टाइम था न समझ पाए कि कैसे रोका जा सकता है?
चीखों के बीच देशराज ने अस्पष्ट शब्दों में कहा—“अ … ब …आप … मेरे चेहरे की खाल के साथ मनचाही छेड़छाड़ कर सकते हैं डॉक्टर साहब … मुझे जुंगजू बना दीजिए … मुझे जुंगजू …।” इन शब्दों के साथ वह बेसमेन्ट की एक दीवार से टकराया—धड़ाम से फर्श पर गिरा और वहीं पड़ा रह गया।
निश्चल था वह!
हलक से चीख तो क्या कराह तक न निकल रही थी।
शांडियाल दौड़कर नजदीक पहुंचे—खुद को तेजाब से बचाते हुए नब्ज टटोली, बोले—“चल रही है डॉक्टर, अभी ये जिंदा है—केवल बेहोश है।”
“मगर!” डॉक्टर शुक्ला हकला उठा—“ये क्या पागलपन था?”
“हां डॉक्टर … हां … हम भी इसकी इस हरकत को पागलपन के अलावा दूसरा कोई नाम नहीं दे सकते।” शांडियाल की आंखों में आंसू आ गए—“हमें बहुत पहले समझ जाना चाहिए था कि ये गधा क्या सोचे बैठा है—इसने कहा था, वह मेकअप ऐसा नहीं है कि आज किया जाए और कल मैं जुंगजू बन जाऊं—हमें तभी समझ जाना चाहिए था इसके इरादे कितने खतरनाक हैं … उफ्फ … हमारी चूक की वजह से यह सब हो गया …।”
“मैं कुछ समझा नहीं कमिश्नर साहब।”
“छोड़ो डॉक्टर, अब इसे जुंगजू बनाने की कोशिश करो।”
“इसे फौरन हॉस्पिटल ले जाना चाहिए, मेडिकल एड की जरूरत है इसे।”
“नहीं डॉक्टर, ऐसा नहीं किया जाएगा—ऐसा करना इसके साथ विश्वासघात होगा—अगर इसे हॉस्पिटल ले जाया गया तो तेजाब से इसके जलने की खबर आम हो जाएगी और ये उस मिशन पर रवाना नहीं हो सकेगा जिसकी खातिर इतना बड़ा पागलपन कर बैठा—अब मेरी समझ में आया, ये हरकत करने से पहले इसने आपको यहां क्यों बुला लिया था—ये चाहता था, जलने के तुरंत बाद आप इसका ऑपरेशन शुरू कर दें।”
“लेकिन और बहुत सी मेडिसिंस की जरूरत पड़ेगी कमिश्नर साहब—और वे इसे तुरंत न दी गईं तो यह मर भी सकता है।”
“जिस दवा की जरूरत हो आप लिख दीजिए—हम मंगा देते हैं लेकिन बेसमेन्ट से बाहर नहीं ले जाया जाएगा इसे।” शांडियाल भावुक हो उठे—“अब इसका वह इरादा परवान चढ़ना ही चाहिए जिसकी खातिर इसने वह कर डाला जिसकी हम कल्पना तक नहीं कर सकते थे …।”
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“अच्छी तरह रगड़-रगड़कर सफाई करो हरामजादों।” अपने ऑफिस में जिन्न की मानिन्द इधर-उधर टहल रहे तेजस्वी ने कहा—“सुई की नोक के बराबर भी खून का धब्बा लगा रह गया तो सारे थाने को फांसी के फंदे पर लटकवा देगा।”
सिपाहियों के हाथ पहले ही मुस्तैदी से अपने काम में जुटे हुए थे।
थाने का लगभग सारा स्टाफ उसके ऑफिस और हवालात की सफाई करने में मशगूल था—जो वहां नहीं था, उसे भी मालूम था कि अंदर क्या हो रहा है!
जैसे थाने के मुख्य द्वार पर तैनात संगीनधारी सिपाही।
उसे सख्त हिदायत थी—बगैर अंदर की इजाजत के किसी को थाने में प्रविष्ट नहीं होने देना है—हैड मुहर्रिर अपने ऑफिस में बैठा खिड़की के माध्यम से प्रांगण में नजर रखे हुए था।
सब-इंस्पेक्टर पांडुराम के साथ हवालात में था।
तेजस्वी दौड़-दौड़कर कभी हवालात में चल रहे काम का निरीक्षण कर रहा था तो कभी अपने ऑफिस का—उसने खून के नन्हें-नन्हें धब्बों को खोजने और उन पर पुलिसियों की तवज्जो आकर्षित करने का काम संभाला हुआ था।
सारा फर्श धो डाला गया और उस वक्त काफी बारीकी से निरीक्षण करने के बावजूद तेजस्वी को कहीं खून का धब्बा नजर नहीं आया जब हवालात से ऑफिस में कदम रखते पांडुराम ने बताया—“लाश तिरपाल के बोरे में पैक कर दी गई है साब।”
“तो मुझे क्या बताने आया है, उठवाकर जीप में डलवा।”
“सब-इंस्पेक्टर साहब ने पुछवाया है, लाश को डालकर कहां आना है?”
“उससे कह, ये हैडेक तेरी है—कहीं उल्टी-सीधी जगह डाल आए और बरामद हो गई तो वे गंजे पूरे थाने के सिर पर तबला बजा देंगे—बड़े हरामी हैं साले, एक-एक प्वाइंट पर ऐसी नजर रखते हैं जैसे बिल्ली चूहे के बिल पर नजर रखती है।”
“उनकी राय है, लाश को श्मशान में ले जाकर लावारिसों की तरह फूंक दिया जाए।”
“गुड, आइडिया अच्छा है पांडुराम—न बांस रहेगा, न साली बांसुरी से कोई धुन निकलेगी।” तेजस्वी कहता चला गया—“अपने सब-इंस्पेक्टर ने पहली बार मार्के की बात कही है—जा, उसे मेरी तरफ से बधाई दे और बोरे को उठवाकर जीप में डलवा—किस्सा जितनी जल्दी खत्म हो जाए अच्छा है, पता नहीं कब कौन साला टपक पड़े?”
पांडुराम हवालात की तरफ लपक लिया।
“मेरे ख्याल से सफाई मुकम्मल हो गई है साब।” ऑफिस की सफाई का चार्ज संभाले कांस्टेबल ने कहा—“अगर आप निरीक्षण कर लें तो बेहतर होगा।”
“ओ.के.!” कहने के साथ वह निरीक्षण करने में जुट गया—सिपाही हाथों में खून से सने गीले कपड़े लिए मजदूरों की भांति खड़े थे।
उधर—दो सिपाही, पांडुराम और सब-इंस्पेक्टर तिरपाल के बड़े से बोरे में बंद लाश को संभाले ऑफिस से गुजरकर प्रांगण में खड़ी जीप की तरफ बढ़ गए—ऑफिस की सफाई से संतुष्ट होने के बाद तेजस्वी सिपाहियों को अगला आदेश देने ही वाला था कि बुरी तरह हड़बड़ाया पांडुराम ऑफिस में दाखिल होता हुआ चीख पड़ा—“चारों गंजे आए हैं साब।”
“क-क्या?” तेजस्वी के हलक से चीख निकल गई—“क-कहां हैं?”
“ग-गेट पर सिपाही से उलझे हुए हैं, वह उन्हें अंदर नहीं आने दे रहा।”
“तेरे साथ गये सिपाही और सब-इंस्पेक्टर कहां हैं?”
“स-सिपाहियों के हाथ सने हुए थे—वे उन्हें धोने नल की तरफ दौड़ पड़े हैं जबकि सब-इंस्पेक्टर साब गेट की तरफ गए हैं, वहां गेट के सिपाही से गंजों की काफी गर्मा-गर्म तकरीर चल रही थी।”
“उन हरामियों ने तुम्हें जीप में बोरा रखते तो नहीं देख लिया?”
“नहीं देख पाए हैं।”
“अगर वे गेट तक आ गए हैं तो बगैर मुझसे मिले नहीं टलेंगे …।”
सिपाहियों के चेहरे पीले पड़ गये।
रंगे हाथों पकड़े जाने वाले मुजरिमों की-सी हालत हो गई उनकी, पांडुराम ने कहा—“सारा फर्श गीला पड़ा है साब, अगर वे यहां आ गए तो सैकड़ों सवाल करेंगे।”
एक सिपाही ने राय दी—“उन्हें प्रांगण में बैठा लिया जाए …।”
“प्रांगण में जीप खड़ी है बेवकूफ!” तेजस्वी ने दांत पीसे—“और उसमें लाश है।”
सारे हकबका गए—“त-तो?”
“त-तुम भागो।” तेजस्वी गर्जा—“हाथ साफ करो और ये कपड़े ठिकाने लगा देना।”
“म-मैं क्या करूं साब?” पांडुराम ने पूछा।
“जीप के इर्द-गिर्द टहल।” तेजस्वी ने ऑफिस से बाहर लपकते हुए निर्देश दिया—“कोई भी उसमें पड़े बोरे को न देख पाए—कुछ भी हो सकता है पांडुराम, हर मुसीबत से टकराने के लिए तैयार रहना।”
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