hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
12-31-2020, 12:24 PM,
#55
RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
“क्या हो रहा है भाई?” गेट की तरफ लपकते तेजस्वी ने पूछा—“क्यों झगड़ रहे हो तुम लोग?”
गेट पर खड़े सिपाही ने कहा—“य-ये जबरदस्ती घुसे चले आ रहे हैं साब।”
“तुमने यहां बड़े अहमक पुलिसिए को खड़ा कर रखा है इंस्पेक्टर।” नंबर फोर गुस्से में था—“न अंदर आने दे रहा है, न ही हमारा कार्ड तुम तक पहुंचाने को तैयार है।”
“सॉरी दोस्तो।” तेजस्वी ने हंसने का प्रयत्न किया—“ये तुम्हें पहचानता नहीं होगा।”
“इसका मतलब कोई तुमसे मिल नहीं सकता?” नंबर टू ने कहा।
“ऐसा कैसे हो जाएगा—इसने आप लोगों से कहा होगा, कोई पुलिस वाला आ जाए तो कार्ड मेरे पास भेज देगा।”
नंबर थ्री गुर्राया—“इसने इसके अलावा कुछ नहीं कहा कि साब बिजी हैं, इस वक्त किसी से नहीं मिलेंगे।”
“अगर ऐसा कहा तो गलत कहा।” कहने के बाद तेजस्वी ने सिपाही को डांटा—“आदमी को देखकर बात किया कर, साहब लोग स्पेशल केन्द्रीय कमांडो दस्ते के मैम्बर हैं।” कहने के साथ उसने नंबर वन को पटाने की खातिर बांहों में भर लिया, बोला—“इन लोगों की तरफ से मैं माफी मांगता हूं, आओ।”
तेजस्वी बड़ी आत्मीयता के साथ नंबर वन का हाथ पकड़े सब-इंस्पेक्टर के ऑफिस की तरफ बढ़ता हुआ बोला—“आने से पूर्व फोन कर देते तो ये अप्रिय घटना न होती।”
“हमें मालूम नहीं था थानेदार से मिलना इतना कठिन होता है।” व्यंग्यपूर्वक कहने के साथ नंबर वन ने उसकी जेब को थपथपाते हुए पूछा—“इसमें क्या है?”
तेजस्वी के जहन को झटका लगा—दरअसल जेब में नंबर फाइव का रिवॉल्वर था और इस एकमात्र विचार ने उसके छक्के छुड़ा दिए कि अगर रिवॉल्वर पर नजर पड़ गई तो ये लोग क्या-क्या समझ जाएंगे—वह नंबर वन के नजदीक से इस तरह छिटक कर दूर हट गया जैसे अचानक वह गर्म तवे में तब्दील हो गया हो।
खौफ एक ही था, कहीं नंबर वन सीधा जेब में हाथ न डाल दे।
“र-रिवॉल्वर!” चेहरे पर उड़ती हवाइयां लिए वह बड़ी मुश्किल से कह पाया—“रिवॉल्वर है।”
“लेकिन तुम्हारा सर्विस रिवॉल्वर तो होलेस्टर में रखा नजर आ रहा है?”
“हां, सो तो है!” तेजस्वी ने घबराहट पर काबू पाने का भरसक प्रयास किया—“द-दूसरा रिवॉल्वर है ये—रखना पड़ता है—ब्लैक फोर्स के लोग साले ए.के. सैंतालीस लेकर आते हैं, एक रिवॉल्वर से उनका मुकाबला नहीं किया जा सकता।”
“और दो से किया जा सकता है?” नंबर वन ने उसे घूरा।
“ए.के. सैंतालीस का मुकाबला तो खैर ए.के. सैंतालीस से ही किया जा सकता है—मगर वह सरकार हम लोगों को अब तक मुहैया नहीं करा पाई है।” तेजस्वी खुद को नियंत्रित रखने में काफी हद तक कामयाब था—“आप लोगों की तो सीधी एप्रोच है, सिफारिश कीजिए न?”
“ए.के. सैंतालीस तो अभी हम लोगों को भी हासिल नहीं है।”
“बैठिए।” तेजस्वी ने सब-इंस्पेक्टर के ऑफिस में पड़ी कुर्सियों की तरफ इशारा किया—मन-ही-मन अपनी इस कामयाबी पर खुश था कि वह उनका ध्यान अपनी जेब में पड़े रिवॉल्वर से हटाने में कामयाब था, सब-इंस्पेक्टर की कुर्सी पर बैठते हुए उसने पूछा—“कहिए, अचानक कैसे आना हुआ?”
“कुछ जल्दी में हो क्या?” बैठते हुए नंबर वन ने पूछा—“कहीं जाना है?”
“न-नहीं तो!”
“तो फिर इतनी जल्दी-जल्दी टॉपिक क्यों चेंज कर रहे हो? हमारे यहां आने का कारण जानने के लिए उतावले क्यों हो?”
तेजस्वी के मस्तिष्क को एक और झटका लगा—अहसास हुआ कि उसने कितना गलत सोचा था—ये गंजे उसकी बातों के चक्रव्यूह में फंसकर एक सेकेंड के लिए भी टॉपिक से भटकने वाले न थे, बोला—“आप लोगों से तो बात करना मुहाल है, क्या मैंने यहां आने का प्रयोजन पूछकर गलती की?”
“प्रयोजन पूछकर तो नहीं की मगर …।”
“मगर?”
“सोचने वाली बात है तुमने हमें सब-इंस्पेक्टर के ऑफिस में क्यों बैठाया है?”
“क-क्या मतलब?” तेजस्वी उछल पड़ा—“इसमें भला सोचने वाली क्या बात है?”
“तुमने हमें अपने खुद के ऑफिस में क्यों नहीं बैठाया?” नंबर फोर ने पूछा।
“मैं तो यहां इसलिए बैठ गया क्योंकि मेरी नजर में यहां बैठने या मेरे ऑफिस में बैठने में कोई फर्क नहीं है—अगर आप लोगों को फर्क नजर आता है तो आइए, आगे की बातें वहीं बैठकर करेंगे।”
“बैठो इंस्पेक्टर!” नंबर थ्री ने कहा—“आराम से बैठ जाओ, लगता है तुम्हें हमारी बात बुरी लग गई?”
“बुरी लगने वाली बात तो सभी को बुरी लगेगी।” तेजस्वी नागवारी-भरे अंदाज में बोला—“आखिर आप लोग चाहते क्या हैं?”
“अकेले में तुमसे कुछ बातें करना।” नंबर वन ने कहा।
तेजस्वी ने सीधे सब-इंस्पेक्टर से कहा—“तुम बाहर जाओ।”
सब-इंस्पेक्टर ने आदेश का पालन किया।
कुर्सी पर वापस बैठते तेजस्वी ने एक सिगरेट सुलगाई—वह खुद को इन काइयां गंजों का सामना करने के लिए मानसिक रूप से तैयार कर लेना चाहता था, इतना तो समझ ही रहा था कि इस वक्त वह किन्हीं कारणों से उनके शक के दायरे में है और अगर उन्हें ‘टैकिल’ करने में जरा भी चूक हो गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे, बोला—“अब मैं आप लोगों के सामने बिल्कुल अकेला हूं।”
“हम एक ऐसा रहस्य जान चुके हैं जिसने हमारे दिमाग में सैंकड़ों सवाल खड़े कर दिए हैं और उन सवालों के जवाब केवल तुम दे सकते हो।”
“कौन से सवाल हैं?” तेजस्वी सतर्क हो गया।
“हम जान चुके हैं, योगेश का मर्डर करने के बाद लुक्का तुमसे मिला था।”
“मुझसे?” तेजस्वी उछल पड़ा—“किस बेवकूफ ने कहा ये?”
“किसी ने भी कहा मगर हमें मालूम है।” नंबर वन ने अपने एक-एक शब्द पर जोर दिया।
“खाक मालूम है आपको!” तेजस्वी भड़क उठा—“अगर मुझे मिला होता तो मैं उसे गिरफ्तार क्यों नहीं कर लेता—क्यों बार-बार फोन पर कमिश्‍नर साहब की लताड़ सुनता?”
“यह तो तुम ही बेहतर जानते होगे कि तुमने उससे अपनी मुलाकात को गुप्त क्यों रखा?” उसकी आंखों में आंखें डाले नंबर वन कहता चला गया—“और वही जानने हम यहां आये हैं।”
जिस ढंग और कॉन्फिडेंस के साथ नंबर वन ने उपरोक्त वार्त्ता शुरू की थी, उसने न केवल तेजस्वी के दिलो-दिमाग के एक-एक पुर्जे को झनझनाकर रख दिया बल्कि रोयां-रोयां खड़ा हो गया उसका—लगा, किसी न किसी सूत्र से ये काइयां गंजे उसकी मुकम्मल करतूत से वाकिफ हो चुके हैं और अब उसके पास बचाव का कोई रास्ता नहीं है। अगर ये उसके बारे में सब कुछ जान ही चुके हैं और उसका खेल खत्म हो चुका है तो किया भी क्या जा सकता है—फिर भी, केवल ‘शह’ पर हार मान लेने वाला नहीं था वह—‘मात’ होने तक जूझता रहने वाला खिलाड़ी था तेजस्वी, शायद इसीलिए उसने अपने चेहरे पर घबराहट या बौखलाहट के एक भी जर्रे को काबिज न होने दिया और पूरी दृढ़ता के साथ गुर्राया—“अगर आप लोगों को लुक्का से हुई मेरी मुलाकात के बारे में मालूम है तो यह भी मालूम होगा कि मैं उससे हुई भेंट को गुप्त क्यों रखे हुए हूं—बराए मेहरबानी उसे भी आप ही फरमा दें।”
“हम सब कुछ जानते हैं, बेहतर होगा अपना गुनाह कुबूल कर लो।”
“ग-गुनाह?” तेजस्वी की हिम्मत टूटती जा रही थी—“क्या गुनाह किया है मैंने?”
नंबर थ्री ने कहा—“तुमने लुक्का की हत्या की है।”
तेजस्वी उछलकर कुर्सी से खड़ा हो गया—पसीने-पसीने हो चुका, उसका संपूर्ण जिस्म सूखे पत्ते की मानिन्द कांप रहा था, दहाड़ता चला गया वह—“म-मैं लुक्का को मारूंगा क्यों … लुक्का का कत्ल क्यों करूंगा मैं?”
“क्योंकि वह जान चुका था, तुम एक भ्रष्ट पुलिसिए हो।” नंबर टू ने कहा।
“खामोश!” तेजस्वी हलक फाड़ उठा, इसमें शक नहीं कि उसे अपना खेल खत्म होता साफ-साफ नजर आ गया था मगर अंतिम समय तक जूझता रहने में माहिर वह चीखता चला गया—“आप लोग अगर स्पेशल कमांडो दस्ते के मैम्बर हैं तो हुआ करें—मगर बगैर किसी आधार के किसी पर इतना ओछा आरोप लगाने का आपको कोई अधिकार नहीं है—मैं खुद पर इतना गंदा आरोप लगाने वाले को शूट तक कर सकता हूं—या ठहरिए … मैं अभी कमिश्‍नर साहब को बुलाता हूं … आप उनके सामने मुझे भ्रष्ट साबित कीजिएगा।”
उसकी एक-एक हरकत को बहुत ध्यान से वॉच कर रहे नंबर वन ने कहा—“यानि तुम हमारे द्वारा लगाए गए आरोप से इंकार करते हो?”
“मेरे इंकार या स्वीकार से क्या होने वाला है नंबर वन, सच तो वो होगा जो आप कहेंगे—मगर नहीं … मैं केवल आपके कहे को सच नहीं होने दूंगा—आप लोगों को साबित करना पड़ेगा कि मैं भ्रष्ट हूं, लुक्का का हत्यारा हूं—मैं उस वक्त तक आपका पीछा नहीं छोड़ूंगा जब तक आप मुझ पर लगाए गए घृणित आरोप साबित नहीं कर देंगे।”
नंबर वन को लगा, अंधेरे में चलाया गया उनका तीर गलत निशाने पर जा लगा है—एकाएक वह हौले से मुस्कुरा उठा और शांत स्वर में बोला—“अच्छा छोड़ो, हम अपने आरोप वापस लेते हैं।”
“क्या मतलब?” तेजस्वी चिहुंक उठा—“क्या आप लोग पीछे हट रहे हैं?”
“ऐसा ही समझो।”
“नहीं!” वह भड़क उठा—“मैं यह धींगामुश्ती नहीं चलने दूंगा—स्पेशल कमांडो दस्ते के मैम्बर होना क्या आपको यह अधिकार देता है कि चाहे जब, चाहे जिस पर, चाहे जितने भद्दे आरोप लगा दें और चाहे जब उन्हें वापस ले लें—मैं कमिश्‍नर साहब के, बल्कि आप लोगों के चीफ के सामने ये मुद्दा उठाऊंगा—उनसे पूछूंगा कि बिना किसी आधार और सूचना के किसी पर मनचाहे आरोप लगाने का अधिकार आपको किसने दे दिया?”
“उत्तेजना को अलविदा कहो इंस्पेक्टर और शांति के साथ बैठकर हमारी बातें सुनो—मुमकिन है, उन्हें सुनने के बाद तुम इस नतीजे पर पहुंचो कि जो कुछ हमने किया, वक्त पड़ने पर खुद तुम भी वैसा ही करते।”
“म-मैं?”
“तुम एक पुलिस इंस्पेक्टर हो—कभी-न-कभी, किसी-न-किसी केस के दरम्यान तुम्हारे सामने ऐसे हालात जरूर आए होंगे जब तुम्हें किसी व्यक्ति विशेष पर मुजरिम होने का शक हुआ हो मगर उसके खिलाफ सुबूत न जुटा पाए हों—ऐसी अवस्था में तुम्हारे सामने अपने शक की पुष्टि हेतु अंधेरे में तीर चलाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा होगा।”
“तो आप लोग अंधेरे में तीर चला रहे थे?”
“वक्त पड़ने पर प्रत्येक इन्वेस्टिगेटर को ये हथियार इस्तेमाल करना पड़ता है—जिस पर शक हो उस पर हमला कर दो—कहो कि तुम उसकी मुकम्मल करतूत जान गए हो और फिर ध्यान से अपने शब्दों की प्रतिक्रिया देखो—उसकी भाव-भंगिमाएं और हरकतें तुम्हें बता देंगी, शक सही था या गलत?”
“तो आपको ये शक था मैं भ्रष्ट हूं, लुक्का का हत्यारा हूं?”
“था।”
“आधार?”
“योजना के मुताबिक लुक्का को तुम्हारे पास आना था।”
“कैसी योजना, किसकी योजना … मैं कुछ समझा नहीं।”
“लुक्का हम ही में से एक था, स्पेशल कमांडो दस्ते का एजेंट नंबर फाइव।”
“क-क्या?” बुरी तरह चौंकने का शानदार अभिनय करते हुए तेजस्वी ने अपना भाड़-सा मुंह फाड़ दिया—जबकि असल में इस वक्त वह राहत की लंबी-लंबी सांसें ले रहा था—गंजों के शब्द बता रहे थे कि वह बाल-बाल बचा है।
“चीफ की तरफ से उसे कुछ काम सौंपे गए थे।” नंबर वन कहता चला गया—“पहला ट्रिपल जैड का वर्तमान पता-ठिकाना मालूम करना—दूसरा, तुम्हारी ईमानदारी को परखना—उसके पहले काम का माध्यम योगेश था क्योंकि योगेश को ट्रिपल जैड स्मैक मुहैया कराता था—हमने सोचा, शायद नंबर फाइव परखने की खातिर तुमसे मिला हो और उसका रहस्य जानने के बाद तुमने उसकी हत्या …।”
धांय …धांय …धांय!
एकाएक वातावरण गोलियों की आवाज से थर्रा उठा।
सभी इस तरह उछलकर खड़े हो गये जैसे एक स्विच को ऑन कर देने पर हरकत में आ जाने वाले पुतले हों, चेहरों पर हवाइयां काबिज हो गईं—अभी कोई कुछ समझ भी नहीं पाया था कि एक साथ चार ए.के. सैंतालीसधारी हवा के झोंके की मानिन्द ऑफिस में दाखिल हुए।
“हैन्ड्स अप! हैन्ड्स अप!” मात्र ये ही आवाजें गूंजीं।
और!
तेजस्वी के साथ चारों गंजों के हाथ भी ऊपर उठते चले गए।
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सब-इंस्पेक्टर के ऑफिस में ही क्या मुकम्मल थाने में किसी पुलिसिए को ब्लैक फोर्स के मरजीवड़ों से प्रतिरोध करने का अवसर न मिल पाया—आग उगलती ए.के. सैंतालीसों के साथ खुली छत वाला एक काले रंग का ट्रक अंधड़ की भांति थाने में दाखिल हुआ था।
द्वार पर खड़ा सिपाही लाश में तब्दील हो चुका था।
अन्य कई पुलिसिए मारे गए ।
ट्रक प्रांगण के बीचों-बीच रुका।
ए.के. सैंतालीसधारी ब्लैक फोर्स के मरजीवड़े कूद-कूदकर टिड्ढी दल की तरह चारों तरफ फैल गए और उस हमले का कमांडर अपने तीन साथियों के साथ इंस्पेक्टर के ऑफिस में खड़ा गंजों पर बरस रहा था—“कौन हो तुम लोग—और यहां क्या कर रहे हो?”
“हम पुलिसिए नहीं हैं जनाब।” नंबर वन ने कहा—“पब्लिक के आदमी हैं, रपट दर्ज कराने आए थे।”
“चारों एक जैसे कपड़ों में … और सिर क्यों मुंडवा रखे हैं?”
नंबर दो बोला—“हमारे बाप मर गए साब, उनका अंतिम संस्कार करके …।”
“चारों के बाप एक साथ कैसे मर सकते हैं?”
“उन्हें छोड़ो शुब्बाराव, मुझसे बात करो!” हाथ ऊपर उठाए तेजस्वी एक कदम आगे बढ़कर बोला—“क्या चाहता है ब्लैक स्टार, बार-बार एक ही शैली में थाने पर हमला करने का आखिर मतलब क्या है?”
“प्रतापगढ़ में चर्चा है इंस्पेक्टर कि तुमने थाने पर हुआ ब्लैक फोर्स का पहला हमला नाकाम कर दिया था और उससे भी ज्यादा गर्म चर्चा तुम्हारे काली बस्ती में जाकर मेजर को पीट आने की है।” शुब्बाराव हर शब्द दांतों से पीसता चला जा रहा था—“हमारा ये हमला न केवल प्रतापगढ़ में फैली इस गलतफहमी की धज्जियां उड़ा देगा कि तुम वे सब कारनामे केवल इसलिए कर सके क्योंकि कुछ देर के लिए ब्लैक स्टार तुम्हें श्रीगंगाई तेजस्वी मान बैठे थे।”
“औह … तो ब्लैक स्टार की आंखें खुल गई हैं?”
“तुम्हें हमारे साथ चलना होगा, ब्लैक स्टार तुम्हें अपने हाथों से सजा देने के ख्वाहिशमंद हैं—उनका कहना है, वैसा धोखा उन्होंने पहले कभी किसी से नहीं खाया जैसा तुमने उन्हें दिया—अतः तुम्हें सजा भी वही देंगे।”
तेजस्वी हौले से मुस्कराया—बड़ी ही कुटिल मुस्कान थी वह, बोला—“इसका मतलब तुम मुझे मार नहीं सकते?”
“क्या मतलब?”
“अगर तुम मार दोगे तो ब्लैक स्टार अपने हाथों से कैसे सजा देगा?” कहते वक्त उसकी मुस्कराहट अत्यंत गहरी हो गई थी, एकाएक वह गंजों की तरफ देखकर बोला—“क्यों भाइयो, मैंने गलत कहा क्या?”
कमांडोज में से कोई कुछ बोला नहीं मगर मन-ही-मन तेजस्वी के दिमाग की दाद दिए बगैर न रह पाये—निश्चित रूप से उसने शुब्बाराव के शब्दों में से एक बारीक प्वाइंट ‘कैच’ किया था, जबकि शुब्बाराव एक पल के लिए हड़बड़ाने के बाद गुर्राया—“इस भुलावे में रहा तो तड़पने का मौका दिए बगैर लाश में बदल दूंगा इंस्पेक्टर।”
“तू ऐसा नहीं कर सकता शुब्बाराव!” तेजस्वी ने आत्म-विश्वास के साथ कहा—“मुझे मालूम है बेटे, ब्लैक स्टार के शिकार को उसका तुझ जैसा कोई प्यादा मारने का दुःसाहस नहीं कर सकता—तूने मेरे हाथ ऊपर उठवा रखे हैं न, ये ले—मैं इन्हें नीचे कर लेता हूं, हिम्मत है तो गोली मारकर दिखा।” कहने के साथ उसने सचमुच अपने हाथ नीचे कर लिए।
शुब्बाराव सकपका गया—उसके पास केवल एक ही आदेश था, यह कि इंस्पेक्टर को पकड़कर काली बस्ती ले आए, अतः अपेक्षाकृत कमजोर स्वर में गुर्राया—“अब अगर तूने एक भी हरकत की तो गोलियों से भून दूंगा—मेजर साहब से मेरा इतना कहना काफी होगा कि तू मेरा हुक्म नहीं मान रहा था।”
“नहीं, मैं तुझे मजबूर नहीं करूंगा शुब्बाराव।”
“मतलब?”
“मैं खुद ब्लैक स्टार से मिलने का ख्वाहिशमंद हूं।”
“तो चल!” उसने अपनी गन से दरवाजे की तरफ इशारा किया।
तेजस्वी शरीफ बच्चे की तरह दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
“तुम भी चलो।” शुब्बाराव कमांडोज पर दहाड़ा।
“उन बेचारों को क्यों परेशान करता है?” तेजस्वी ने एक कुर्सी के नजदीक ठिठकते हुए कहा—“ये लोग तो यहां रपट लिखवाने आए थे—पब्लिक के आदमी हैं, इनसे क्या लेना है?”
“तू चुप रह!” उसे डांटने के बाद शुब्बाराव ने उन्हें हुक्म दिया—“बाहर निकलो और हाथ ऊपर उठाए रखना, जरा भी हरकत की तो भूनकर रख दिए जाओगे।”
इस बीच, तेजस्वी ने कमांडोज को आंख मारी—अभी उनमें से कोई उसकी हरकत का तात्पर्य ठीक से समझ भी नहीं पाया था कि बिजली-सी कौंधी—देखने वालों को केवल एक क्षण के सौवें हिस्से के लिए वह कुर्सी हवा में झन्नाती नजर आई जिसके नजदीक तेजस्वी ठिठका था।
अगले क्षण!
कमरा ए.के. सैंतालीसों की गर्जना से थर्रा उठा।
तीनों गनें तेजस्वी की तरफ जबड़ा फाड़कर दहाड़ी थीं परंतु तेजस्वी उनके आग उगलना शुरू करने से बहुत पहले खुद को ऑफिस के किवाड़ और दीवार के बीच ‘फिक्स’ कर चुका था।
और फिर!
एक गोली उसके सर्विस रिवॉल्वर ने उगली।
सीधे शुब्बाराव का भेजा उड़ाती निकल गई वह। उसके दोनों साथियों ने पलटकर उसकी तरफ देखा—कमांडोज के लिए इतना काफी था—उनके हाथ एक साथ न केवल नीचे आ गए बल्कि चार रिवॉल्वर एक साथ आग भी उगलने लगे।
शुब्बाराव के साथी भी शराबियों की मानिन्द लड़खड़ाए और इससे पूर्व कि वे फर्श पर गिरते तेजस्वी ने झपटकर ए.के. सैंतालीस संभाल ली, बोला—“मैं देखना चाहूंगा कि तुम लोग कैसे कमांडोज हो—इस वक्त मेरे हर मातहत की जान खतरे में है, उन्हें बचाना हमारा फर्ज है।”
नंबर टू और फोर एक-एक ए.के. सैंतालीस कब्जा चुके थे।
एक दृष्टि शुब्बाराव और उसके साथियों की लाशों पर डालते नंबर वन ने कहा—“तुमने जबरदस्त दुःसाहस का परिचय दिया है इंस्पेक्टर।”
“असली कामयाबी ये होगी कि हम ब्लैक फोर्स के एक भी मरजीवड़े को थाने से बाहर न जाने दें।” इन शब्दों के साथ उसने वापस दरवाजे की तरफ जम्प लगा दी थी।
कमांडोज भी लपके।
तेजस्वी के हाथों में दबी ए.के. सैंतालीस ने बगैर किसी चेतावनी के दहाड़कर बरामदे में मौजूद तीन मरजीवड़ों को चीखों के साथ धराशाई होने पर विवश कर दिया—साथ ही, कूदकर बरामदे में पहुंचा—खुद को एक गोल पिलर की आड़ में छुपाए चीखा—“शुब्बाराव मारा जा चुका है हरामजादो—अपने हथियार गिरा दो—वरना सबकी लाशें थाने के प्रांगण में पड़ी नजर आएंगी।”
उसके शब्दों ने जहां पुलिसियों के हौंसले बुलंद कर दिए वहीं ब्लैक फोर्स के मरजीवड़े उत्तेजित हो उठे।
वातावरण ए.के. सैंतालीसों की गर्जना से थर्रा उठा।
अब नंबर वन और थ्री के हाथों में भी ए.के. सैंतालीस थीं।
वे बरामदे में पड़ी मरजीवड़ों की तीन लाशों में से दो की थीं।
पांचों ने एक साथ प्रांगण से हुई फायरिंग के जवाब में अपनी-अपनी ए.के. सैंतालीसों के मुंह खोल दिए—जो मरजीवड़े गोलियों की रेंज में आए वे तो खैर चीख-चीखकर धराशाई हो ही गए, लेकिन जो बचे उन्होंने फुर्ती से पोजीशन ले ली।
अब, बाकायदा मोर्चाबंदी हो गई थी।
तेजस्वी और कमांडोज पर सबसे ज्यादा फायरिंग प्रांगण में खड़े ट्रक के पिछले हिस्से से हो रही थी—दोनों तरफ से रह-रहकर ए.के. सैंतालीसें गरज रही थीं—मगर किसी भी तरफ का नुकसान अब ज्यादा नहीं हो रहा था क्योंकि जो जहां था, खुद को किसी-न-किसी आड़ में ले चुका था।
करीब एक मिनट से छाई खामोशी को एकाएक तेजस्वी की आवाज ने झकझोरा—“चाहे जितनी गोलियां चला लो हरामजादों, मगर अब एक भी गोली हममें से किसी की जान नहीं ले सकती—खैरियत चाहते हो तो हथियार डाल दो।”
जवाब में जीप के पीछे से जबरदस्त फायरिंग की गई।
तेजस्वी और कमांडोज शांत रहे।
तभी जीप स्टार्ट हुई।
“वो आपकी जीप ले जा रहा है साब!” वातावरण में गूंजने वाली यह आवाज पांडुराम की थी—तेजस्वी समझ सकता था कि पांडुराम जीप को ब्लैक फोर्स के कब्जे में देखकर इतना बेचैन क्यों हो उठा है मगर तेजस्वी के अपने ख्याल से जो हो रहा था, ठीक हो रहा था—जीप में पड़ी लाश पर कमांडोज की नजर पड़ने का अर्थ उसके खेल का खात्मा कर सकता था—अतः बेहतर यही था कि जो जीप चला रहा था वह सुरक्षित फरार हो जाए।
कमांडोज ने जीप पर फायरिंग शुरू की।
तभी, ट्रक स्टार्ट हुआ।
तेजस्वी चीखा—“जीप में केवल एक है जबकि ट्रक में अनेक मरजीवड़े हैं—अब ये लोग भागने की कोशिश कर रहे हैं, ट्रक के टायर बर्स्ट कर दो—फायर!”
बात सबको जंची।
ट्रक के इस तरफ के सारे टायर बैठ गए मगर फर्राटे भरती जीप थाने से बाहर निकल गई थी—ट्रक में भरे और इधर-उधर पोजीशन लिए मरजीवड़ों में एकाएक भगदड़ मच गई—फायरिंग करते हुए वे थाने के गेट की तरफ लपके—इधर से उन पर गोलियां चलाई गईं ।
नतीजा, जिनकी मौत आई थी वे मारे गए।
जिनके एकाउंट में सांसें थीं, वे बचकर भाग जाने में कामयाब रहे।
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RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा - by desiaks - 12-31-2020, 12:24 PM

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