RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
अगले दिन सुबह कमिश्नर शांडियाल ने जीवट किस्म के पुलिसियों की जो टुकड़ी तेजस्वी के सुपुर्द की, उसके बूते पर उसने संपूर्ण प्रतापगढ़ में वह तूफान बरपाया कि जुर्म की दुनिया में तहलका मच गया।
जिस ब्लैक फोर्सिए ने टुकड़ी का मुकाबला करने की कोशिश की, मार डाला गया।
जिन्हें अवसर मिला, भूमिगत हो गए।
कुल मिलाकर अगर यह कहा जाए तो गलत न होगा कि ब्लैक फोर्स से संबद्ध लोगों में न केवल आतंक छा गया बल्कि भगदड़ मच गई—तेजस्वी के नेतृत्व में चलाए जा रहे इस अभियान को ‘ऑपरेशन सफाया’ नाम दिया गया था।
प्रतापगढ़ की आम पब्लिक बेहद खुश थी।
पच्चीस जीवट जवानों के अलावा ‘ऑपरेशन सफाए’ में तेजस्वी के थाने के हवलदार पांडुराम, सब-इंस्पेक्टर, अन्य पुलिसियों, डी.आई.जी. चिदम्बरम, एस.एस.पी. कुम्बारप्पा और एस.पी. सिटी भारद्वाज भी शामिल था।
सारे दिन और सारी रात यह टुकड़ी उन सभी ठिकानों को अपने कब्जे में लेने के अभियान में जुटी रही जिन पर ब्लैक फोर्स से सम्बद्ध होने का जरा भी शक था।
अगले दिन, दोपहर के करीब बारह बजे पुलिस मुख्यालय में कमिश्नर शांडियाल टुकड़ी की मीटिंग ले रहे थे, अब तक की संपूर्ण रिपोर्ट सुनने के बाद वे बोले—“प्रतापगढ़ को ब्लैक फोर्स के आतंक से मुक्त करने के लिए इंस्पेक्टर तेजस्वी ने एक हफ्ते का टाइम मांगा था—हमें खुशी है बल्कि गर्व है कि तेजस्वी ने हफ्ता गुजरने से पहले अपना काम कर दिखाया, आज पुलिस की कार्यवाही …।”
“सॉरी सर!” एकाएक तेजस्वी अपने स्थान से खड़ा होकर बोला—“मैं कुछ कहना चाहता हूं।”
“बोलो तेजस्वी।” शांडियाल खुश थे—“सब लोग तुम्हारे विचार सुनने के लिए आतुर हैं।”
“हालांकि अपने सहयोगियों की मदद से जितना मैं कर पाया उस हम पर संतोष व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन जब तक प्रतापगढ़ की सीमा में थारूपल्ला और काली बस्ती का अस्तित्व है, तब तक हम लोग चैन की सांस नहीं ले सकते।”
तेजस्वी के शब्दों ने मीटिंग में अजीब सनसनी फैला दी।
सब एक-दूसरे का मुंह देखने लगे।
लम्बे होते सन्नाटे को और लम्बा होने से रोकते हुए डी.आई.जी. चिदम्बरम ने कहा—“थारूपल्ला के अस्तित्व को मिटा डालने की बात तो समझ आती है इंस्पेक्टर, क्योंकि वह एक व्यक्ति है, मौत के साथ उसका अस्तित्व समाप्त माना जा सकता है, परंतु काली बस्ती एक व्यक्ति नहीं बल्कि ऐसे लोगों का समूह है जिसका बच्चा-बच्चा ब्लैक फोर्स की विचारधारा से जुड़ा है, हिंसक है—मरने-मारने को तत्पर रहता है—इतने बड़े समूह अर्थात मुकम्मल बस्ती को अस्तित्वविहीन करने का अर्थ है सबको मार डालना—और यह तो तुम समझते ही होगे कि ताकत होने के बावजूद कोई सरकार ऐसा नहीं कर सकती—इतने लोगों को इस तरह मार डालने का अर्थ होगा, सारे विश्व में त्राहि-त्राहि मच जाना—संसार का हर राष्ट्र हमारे खिलाफ खड़ा हो जाएगा।”
“मैंने उन सबको मार डालने की बात कब कही?”
“तो काली बस्ती कैसे अस्तित्वविहीन होगी?”
“सांप को मार दें या उसके जहरीले दांत तोड़ डालें—बात एक ही हुई, उद्देश्य होता है कि सांप हमें अपने जहर से नुकसान न पहुंचा सके।”
“गुड!” शांडियाल कह उठे—“लेकिन ये होगा कैसे?”
तेजस्वी ने कहा—“अगर विचार-विमर्श के जरिए हम लोग कोई रास्ता निकाल लें तो इस मीटिंग का होना सार्थक माना जाएगा।”
बात सबको जंची—हर व्यक्ति तेजस्वी से सहमत था मगर रास्ता किसी को नहीं सूझा शायद—इसलिए मीटिंग में पुनः सन्नाटा छा गया और इस बार जिस किस्म की आवाजों ने सन्नाटे को झकझोरा, वे इतनी भयावह थीं कि हर शख्स इस तरह उछल पड़ा जैसे सबकी कुर्सियां एक साथ गर्म तवों में तब्दील हो गई हों।
चेहरों पर हवाइयां काबिज हुईं, हाथ होलेस्टर्स की तरफ लपके।
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आवाजें हैण्ड ग्रेनेड्स के धमाकों की थीं।
इंसानी चीख-पुकार की थीं।
और पुलिस मुख्यालय के ऊपर मंडरा रहे उस हैलीकॉप्टर की थी जिसकी एक सीट पर बैठा मेजर थारूपल्ला शक्तिशाली ट्रांसमीटर के माइक पर लगातार निर्देश जारी किए जा रहा था।
ये निर्देश उसके लिए थे जिसके नेतृत्व में पुलिस मुख्यालय को चारों तरफ से घेर लिया गया था और जिसे मुख्यालय को मलबे के ढेर में बदल देने का काम सौंपा गया था—सिर पर लगे हैडफोन के जरिए थारूपल्ला के निर्देश उसके जहन तक पहुंच रहे थे।
ऐसी बात नहीं कि मुख्यालय की सुरक्षा-व्यवस्था में कोई ढील रही हो, बल्कि सभी अफसरों की मुख्यालय में गोपनीय मीटिंग चल रही होने के कारण सुरक्षा-प्रबन्ध सामान्य अवस्था से कड़े ही थे—शायद इसी कारण ब्लैक फोर्स के लोग अचानक हमला करने के बावजूद सुरक्षाकर्मियों पर हावी न हो सके।
दो सेनाओं के बीच छिड़े युद्ध जैसा दृश्य उपस्थित हो गया।
उधर, मीटिंग हॉल में कोई चीखा—“ब्लैक फोर्स ने मुख्यालय पर हमला कर दिया है।”
सभी ऑफिसर्स, जीवट पुलिसियों की टुकड़ी और पांडुराम तक के हाथ में हथियार नजर आने लगे।
जिसको जिधर जगह मिली लपका।
अंदर की तरफ से बंद हॉल के सभी दरवाजों को किसी-न-किसी ने खोल दिया था—हर शख्स को उस जगह की तलाश थी जहां से खुद को सुरक्षित रखकर ब्लैक फोर्स के आक्रमण का जवाब दे सके।
हाथ में रिवॉल्वर लिए तेजस्वी आंधी-तूफान की तरह एक गैलरी में दौड़ा जा रहा था।
द्रुतगति से भागा चला आ रहा भारद्वाज उससे टकराया।
“मुकम्मल गैलरी पर ब्लैक फोर्स का कब्जा है सर।” हांफते हुए तेजस्वी ने कहा—“इतने ए.के. सैंतालीसधारी तैनात हैं कि रिवॉल्वरों के बूते पर उनसे टकराना समझदारी नहीं …।”
मगर।
तेजस्वी का वाक्य अधूरा रह गया बल्कि उसके हलक से चीख निकल गई।
हाथ में दबा रिवॉल्वर छिटककर दूर जा गिरा।
यह एस.पी. सिटी भारद्वाज द्वारा बिजली की-सी गति के साथ की गई हरकत का परिणाम था—अपने हाथ में दबे रिवॉल्वर का प्रहार उसने इतनी जोर से तेजस्वी की कलाई पर किया था कि जब तक तेजस्वी समझ पाता तब तक देर हो चुकी थी, हैरत में डूबे उसके मुंह से ये शब्द निकले—“इ-इसका क्या मतलब सर?”
“हाथ ऊपर उठा लो तेजस्वी।” भारद्वाज गुर्राया।
तेजस्वी चीख पड़ा—“क्यों … ये सब क्या है?”
“घबराओ मत!” भारद्वाज के होंठों पर कुटिल मुस्कान उभर आई—“इस मोड़ के पार ब्लैक फोर्स के जो लोग खड़े हैं वे तुम्हें मारने के लिए नहीं, सुरक्षित निकाल ले जाने के अभियान पर हैं—ये मुख्यालय बहुत जल्द मेरे और तुम्हारे अलावा सभी पुलिस ऑफिसर्स की कब्रगाह बनने वाला है—सबकी लाशें मलबे के ढेर-तले दबी होंगी, मगर थारूपल्ला तुम्हें नहीं मार सकता—तुम्हें सुरक्षित निकाल ले जाने की ड्यूटी मेरे सुपुर्द की गई है।”
“य-यानि हमारे एस.पी. सिटी साहब ब्लैक फोर्स से पगार पाते हैं?” तेजस्वी दांत पीस उठा।
“जो नहीं पाते उनके रिश्तेदार इस हमले के बाद सारे जीवन रोते रहेंगे।” भारद्वाज के होंठों पर विजयी मुस्कान थी—“देर मत करो—इससे पहले कि कोई बम हमारे ऊपर मौजूद छत पर आ गिरे, यहां से निकलो।”
तेजस्वी हलक फाड़कर चिल्लाया—“मरने से तू डरता है कमीने, तेजस्वी नहीं डरता।”
“आगे बढ़ो।” भारद्वाज कठोर स्वर में गुर्राया।
“नहीं बढ़ा तो क्या करेगा तू?”
“मतलब?”
“मार तो तू मुझे सकता नहीं!” तेजस्वी ने एक-एक शब्द चबाया।
“मैं तेरी टांग तोड़ दूंगा।” भारद्वाज दहाड़ा।
“उससे पहले पीछे खड़े अपने बाप से तो मिल ले।”
भारद्वाज ने फिरकनी की तरह पलटकर पीछे देखा—पीछे तो खैर कोई था नहीं मगर जब तक वापस पलटता, तब तक तेजस्वी का जिस्म गुरिल्ले के जिस्म की तरह हवा में तैरकर उसके ऊपर आ गिरा।
एक-दूसरे से गुंथे दोनों गैलरी के फर्श पर दूर तक लुढ़कते चले गए।
तेजस्वी का हाथ भारद्वाज के हाथ में दबे रिवॉल्वर पर था—उसे यह भी मालूम था कि अगर कोई ए.के. सैंतालीसधारी मोड़ पार करके इधर आ गया तो बाजी उसके हाथ से निकल जाएगी अतः जल्द भारद्वाज से छुटकारा पा लेना चाहता था—इसी प्रयास में भारद्वाज की कलाई उमेठी।
हल्की कराह के साथ रिवॉल्वर भारद्वाज के हाथ से निकल गया।
रिवॉल्वर अपने हाथ में आते ही तेजस्वी छिटककर न केवल उसके जिस्म से अलग हुआ बल्कि उछलकर खड़ा हो गया—एक नजर मोड़ पर डाली, वहां कोई न था—ए.के. सैंतालीसधारियों को शायद सख्ती के साथ अपने स्थान पर खड़े रहने का हुक्म दिया गया था।
भारद्वाज तेजी से खड़ा होता हुआ चिल्लाया—“हैल्प!”
तेजस्वी ने फायर किया, गोली उसके सीने में जा लगी।
“हैल्प मी।” वह लड़खड़ाता हुआ दहाड़ा—“प्लीज … हैल्प मी।”
तेजस्वी समझ सकता था कि वह मोड़ के दूसरी तरफ खड़े ब्लैक फोर्स के लोगों को पुकार रहा है—मोड़ के उस तरफ पदचाप उभरी—तेजस्वी को समझते देर न लगी कि भारद्वाज की पुकार उन तक पहुंच चुकी है और अब वे इसकी मदद के लिए पहुंचने वाले हैं, अतः हिरन की तरह विपरीत दिशा में कुलांचें भरनी शुरू कर दीं।
बमों के धमाके, गोलियों की आवाजें और हैलीकॉप्टर की गड़गड़ाहट अभी तक जारी थी।
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कुम्बारप्पा ने एक खिड़की के पास मोर्चा संभाल रखा था।
उसके सामने, खिड़की के पार करीब पांच ए.के. सैंतालीसधारी थे—दो को वह अपने रिवॉल्वर का निशाना बना चुका था—शायद इसीलिए, उनके बाकी साथियों की मुकम्मल तवज्जो खिड़की पर थी।
उनकी ए.के. सैंतालीसों के मुंह कई बार खिड़की की तरफ खुल भी चुके थे मगर हर बार कुम्बारप्पा दीवार की आड़ में होकर खुद को बचा गया—खिड़की का सारा कांच चकनाचूर हो चुका था।
उसने फायर करने का प्रयास किया।
परंतु रिवॉल्वर से केवल ‘क्लिक’ की आवाज निकलकर रह गई।
उसने झुंझलाहट और निराशा भरे अंदाज में रिवॉल्वर की तरफ देखा।
तभी, भागते कदमों की आवाज उभरी।
तेजस्वी पर नजर पड़ते ही उसकी आंखें चमक उठीं, मुंह से निकला—“वैरी गुड इंस्पेक्टर! बहुत अच्छे समय पर पहुंचे तुम—एक ए.के. सैंतालीसधारी रेंगकर इस खिड़की के नजदीक आने की कोशिश कर रहा है।”
“तो?”
उसने अपने हाथ में मौजूद रिवॉल्वर की तरफ इशारा किया—“ये खाली हो चुका है।”
“मैं देखता हूं सर।” कहने के साथ तेजस्वी ने खिड़की के कोने से बाहर झांकने का प्रयास किया था कि तड़तड़ाहट की आवाज के साथ गोलियों की बाढ़ खिड़की पर झपटी—तेजस्वी ने यदि तुरंत चेहरा वापस न खींच लिया होता तो निश्चित रूप से गोलियों ने उसके चेहरे का भूगोल बदल दिया होता।
“सम्भलो इंस्पेक्टर!” ये शब्द एस.एस.पी. के हलक से स्वतः निकले—“वे अपने एक साथी को खिड़की के नीचे पहुंचाना चाहते हैं—योजना शायद ये है कि हमें उस पर फायर करने का अवसर न दिया जाए।”
“मैं समझ गया सर।” इस बार तेजस्वी ने पूरी सावधानी के साथ कोने की खिड़की से इस तरफ रेंग रहे ए.के. सैंतालीसधारी की पोजीशन ध्यान से देखी—उधर से तुरंत गोलियों की बाढ़ झपटी मगर तेजस्वी पुनः अपने चेहरे को वापस खींच चुका था—उधर से गोलियां चलनी बंद हुईं और इधर तेजस्वी ने अपना रिवॉल्वर वाला हाथ खिड़की में डालकर बगैर निशाना साधे एकमात्र फायर किया।
बाहर से चीख की आवाज उभरी।
“कमाल कर दिया तुमने।” एस.एस.पी. प्रशंसनीय स्वर में कह उठा—“बगैर निशाना साधे …।”
“पहले झटके में मैं उसकी पोजीशन देख चुका था।”
“फिर भी, इस तरह निशाना लगाना हैरतअंगेज है।”
“मैं अक्सर हैरतअंगेज काम कर दिखाता हूं सर—अगर मुझमें ऐसे काम करने की क्षमता न होती तो इतने बड़े प्रदेश में से ट्रिपल जैड ने मुझे ही न चुना होता।”
“क-क्या मतलब?”
तेजस्वी ने बड़ी जबरदस्त मुस्कान के साथ पूछा—“क्या आप ट्रिपल जैड को नहीं जानते?”
एस.एस.पी. महोदय हकबका गए—एकदम से सूझा नहीं, इंकार करें या स्वीकार, जबकि तेजस्वी अपनी मुस्कान को और ज्यादा गहरी करता बोला—“घबराइए नहीं सर, मैं भी उसी किश्ती पर सवार हूं जिस पर आप और डी.आई.जी. साहब हैं।”
कुम्बारप्पा के हाथों से मानो तोते उड़ गए—भाड़ सा मुंह फाड़े तेजस्वी की तरफ देखता रह गया वह—मगर फिर शीघ्र ही खुद को संभाला और बोला—“य-यानि तुम्हें सब मालूम है?”
“चोर-चोर मौसेरे भाई होते हैं सर।”
“हमारे चौंकने का कारण हमारे बारे में तुम्हारा जानना नहीं बल्कि ये है कि तुम भी उसी किश्ती के सवार हो—हम बेवकूफ हर मुलाकात पर ट्रिपल जैड को समझाते रहे, वह तुम्हें खरीदने की कोशिश न करे।”
“जो वो बरसाता है उसकी जरूरत किसे नहीं होती सर?”
“बिल्कुल ठीक कहा तुमने।” कुम्बारप्पा अब पूरी तरह सामान्य नजर आने लगा था—“खैर, हम और डी.आई.जी. साहब शुरू से यह जानने के लिए मरे जा रहे हैं कि आखिर वह काम क्या है जिसके लिए ट्रिपल जैड इतनी दौलत खर्च कर रहा है—बार-बार पूछने के बावजूद न केवल उसने बताने से इंकार कर दिया बल्कि चेतावनी भी दी कि अगर जानने की कोशिश की तो जान से हाथ धो बैठोगे।”
“ऐसा?”
“तुम्हें तो मालूम होगा?”
“क्या?”
“क्या काम है वह?”
“करने वाले को मालूम न होगा तो काम होगा कैसे?”
“तो बताओ, क्या कराना चाहता है वह?”
“आपने अभी-अभी बताया सर—उसने कहा था, मालूम करने की कोशिश करोगे तो जान से हाथ धोना पड़ेगा।”
“ये बात उसने कही थी।” एकाएक कुम्बारप्पा की आवाज में एस.एस.पी. वाला रुआब उभर आया—“हम तुमसे पूछ रहे हैं—तुम हमारे इंस्पेक्टर हो तेजस्वी, जवाब दो, क्या काम सौंपा है उसने?”
“हमाम में सब नंगे होते हैं एस.एस.पी. साहब, जब मेरे और आपके जिस्म पर कपड़े ही न रहे तो कौन एस.एस.पी., कौन इंस्पेक्टर?” तेजस्वी के दांत भिंचते चले गए—“आप और डी.आई.जी. साहब महामूर्ख हैं—जो होने वाला है उसे आप लोग पचा नहीं पाएंगे। फिर क्यों न असली काम करने से पहले आप दोनों को इस दुनिया से रुखसत कर दिया जाए?”
“य-ये क्या बक रहे हो तुम?” एस.एस.पी. महोदय हलक फाड़ उठे।
“और आपसे निजात पाने का इससे खूबसूरत मौका मेरे हाथ नहीं लगेगा।” इन शब्दों के साथ तेजस्वी कुम्बारप्पा पर झपट पड़ा और उसे घसीटकर खिड़की के ठीक सामने ले गया और बोला—“गुड बाय सर, गॉड आपकी आत्मा को शांति प्रदान करे।”
बाहर मौजूद ए.के. सैंतालीसें गरजीं।
असंख्य गोलियां एक साथ कुम्बारप्पा के जिस्म के परखच्चे उड़ा गईं ।
तेजस्वी का जिस्म उसके जिस्म के पीछे था—लाश लिए वह खिड़की के नजदीक से हटा—खुद को सुरक्षित करने के बाद लाश को खिड़की की तरफ धकेला और आगे बढ़ गया।
धूम-धड़ाका अब भी जारी था मगर तेजस्वी के चेहरे पर शिकन तक न थी—मुंह से किसी फिल्मी गाने की धुन को सीटी का स्वर दिए बढ़ा चला जा रहा था वह।
वह जिसे शतरंजी चालें चलने का एक्सपर्ट माना जाता था।
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