RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
ठक्कर को कक्ष से गए दो मिनट गुजरे थे कि तेजस्वी ने कहा—“ये आदमी हम पर जरा भी विश्वास करने को तैयार नहीं है सर—अपने सूत्र का अता-पता बताने को तैयार नहीं है—जैसे मैं या आप फौरन जाकर ब्लैक स्टार को बता देंगे।”
“हम ही कौन-सा उस पर विश्वास करते हैं।”
“जी?”
“हमने उससे पांडुराम का जिक्र तक नहीं किया।”
“पांडुराम?” तेजस्वी चौंका।
“ओह … हां, तुम्हीं से जिक्र कहां आया है—बड़ी दिलचस्प बात हुई है तेजस्वी, सुनोगे तो ब्लैक स्टार की बुद्धि पर तरस आएगा—बौखलाहट में कैसी-कैसी ओछी चालें चल रहा है वह!”
“मैं समझा नहीं सर!”
“ठक्कर से कुछ देर पूर्व यहां पांडुराम आया—बोला, तेजस्वी वैसा इंस्पेक्टर नहीं है साब, जैसा आप और दूसरे अफसर समझते हैं बल्कि देशराज जैसे इंस्पेक्टरों से भी कई गुना ज्यादा भ्रष्टाचारी है—मनचंदा जैसे लोगों से रिश्वत लेता है—अपने इलाके में होने वाले क्राइम्स की रपट दर्ज नहीं कराता—यहां तक कि लुक्का का खून भी थाने में उसी ने …।”
कमिश्नर साहब कहते चले जा रहे थे।
और तेजस्वी!
तेजस्वी अपने स्थान पर खड़ा-खड़ा पत्थर की शिला में तब्दील हो चुका था।
जिस्म के हर मसाम ने एक दूसरे से शर्त लगाकर पसीना उगल दिया—मस्तिष्क अंतरिक्ष में चकरा रहा था—नसों में दौड़ते खून ने मानो अचानक गर्दिश बंद कर दी।
दिलो-दिमाग और जिस्म तक सुन्न पड़ चुका था।
चौंका तब, जब कमिश्नर शांडियाल ने उसके दोनों कंधे पकड़कर झिंझोड़ते हुए पूछा—“क्या हुआ तेजस्वी, क्या हो गया है तुम्हें?”
“अ-आं!” मानो गहरी नींद से जागकर हड़बड़ाया हो—“क-कुछ नहीं सर … कुछ नहीं।”
“अचानक तुम्हारे चेहरे से पसीना क्यों बहने लगा?”
“ओह!” वह कुछ और बौखला उठा, जेब से रूमाल निकालकर चेहरे से पसीना पोंछा—इस बहाने वह कमिश्नर साहब से अपने चेहरे के उड़ गए रंग को छुपाने का प्रयास कर रहा था। खुद को बड़ी मुश्किल से नियंत्रित करता हुआ बोला—“य-ये सब झूठ है सर, पांडुराम का एक-एक लफ्ज झूठ है।”
“हमने सच कब माना—लेकिन तुम एकाएक इतने नर्वस क्यों हो रहे हो?”
“ये आप समझ सकते हैं सर कि पांडुराम के मुंह से यह सब कहलवाना ब्लैक स्टार की एक चाल है लेकिन कोई और नहीं समझ सकता—हर किसी के पास आप जैसी तीव्र बुद्धि नहीं है सर—ये पसीना, ये घबराहट और नर्वसनैस अचानक मेरे दिलो-दिमाग पर यह सोचकर हावी हो गई कि ये शब्द उसने आपके अलावा किसी अन्य से कह दिए होते तो क्या होता … या आप ही ने ठक्कर से जिक्र कर दिया होता तो कितनी विकट परिस्थितियों में फंस जाता मैं—वह तो वैसे ही किसी पर विश्वास करने को तैयार नहीं है—ये बातें सुनने के बाद तो मेरी गर्दन ही नाप देता।”
“तुम ठीक कह रहे हो।” शांडियाल गंभीर थे—“जिस ढंग से पांडुराम ने वे बातें कहीं, उनसे प्रभावित होकर एक बार को हम भी सोचने पर विवश हो गए—मगर भला हो देशराज के अंतिम शब्दों का—हमें ऐन वक्त पर उसके शब्द याद आ गए और दिमाग ने कहा—यह ब्लैक स्टार की तुम्हें संदेह के दायरे में फंसाने की चाल है—समझ सकते थे कि ठक्कर बेवकूफ है—ब्लैक स्टार की चाल की गहराई को समझने के स्थान पर उसमें फंस जाएगा और तुम्हें अपने संदेह के चश्मे से देखने लगेगा, इसलिए उससे जिक्र नहीं किया।”
“इस वक्त पांडुराम कहां है?” तेजस्वी आहिस्ता से मतलब की बात की तरफ रेंगा।
“एक कमरे में बंद कर रखा है हमने।”
“गुड!” तेजस्वी का शतरंजी दिमाग सक्रिय हो चुका था—“और क्या कह रहा था वह?”
“कहता था तुम ब्लैक स्टार द्वारा रचे गए चिरंजीव कुमार की हत्या के षड्यंत्र की अगवानी कर रहे हो और इस अभियान में तुम्हारा कोड ‘व्हाइट स्टार’ है।”
वास्तव में तेजस्वी की अंतरात्मा तक कांप उठी परंतु प्रत्यक्ष में जोरदार ठहाका लगाया उसने—असल में यह ठहाका वह इसलिए लगा सका क्योंकि समझ चुका था कमिश्नर ने पांडुराम की किसी बात पर विश्वास नहीं किया है, खुलकर ठहाका लगाने के बोला—“मैं व्हाइट स्टार … वाह … जोरदार मजाक है—मैं उससे मिलना चाहूंगा सर।”
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कमरे में तेजस्वी को दाखिल होता देखते ही पांडुराम उछल पड़ा—“त-तुम?”
“हां पांडुराम, मैं ही हूं—तुम्हारा साब।” तेजस्वी के होंठों पर जहरीली मुस्कान नाच रही थी।
“स-साब?” पांडुराम ने घृणा से मुंह सिकोड़ा—“ऐसे साब पर थूकना भी पसंद नहीं करूंगा मैं।”
तेजस्वी के चेहरे पर गुस्से का कोई भाव नहीं उभरा—बड़े आराम से एक सिगरेट सुलगाई उसने—जोरदार कश लिया और ढेर सारा धुआं सीधा पांडुराम के चेहरे पर उगलता हुआ बोला—“मुझसे एक भूल हो गई पांडुराम।”
“कैसी भूल?” लहजे में हिकारत थी।
“जिस क्षण तूने मुझे यह बताया था कि स्टार फोर्स ने तुझे, मुझे बेहोश करने का काम सौंपा है, मुझे उसी क्षण समझ जाना चाहिए था कि न तू अब मेरे काम का रह गया है, न ही विश्वसनीय—मेरे काम का तो तू तब था जब मैं प्रतापगढ़ थाने पर नियुक्त हुआ था—तब, जब तू ब्लैक फोर्स के लिए काम करता था—जिस क्षण तेरी देशभक्ति जागी, मुझे उसी क्षण समझ जाना चाहिए था तू भविष्य में मेरे लिए खतरनाक साबित हो सकता है।”
पांडुराम चुप रहा—कहने के लिए शायद कुछ सूझा नहीं—हां, गुस्से की ज्यादती के कारण कांप रहा था जबकि क्षणिक अंतराल के बाद तेजस्वी ने उससे सवाल किया—“मगर तू मेरे आभामंडल को कैसे भूल गया—मैंने समझाया था, तेरे जैसी बेवकूफी एक पुलिसिए ने पहले भी की थी—वह बेचारा आज तक जेल में पड़ा सड़ रहा है।”
“तुम्हें अपने आभामंडल पर बहुत गुमान है।” पांडुराम गुर्राया, वह तेजस्वी को न केवल ‘आप’ की जगह ‘तुम’ कह रहा था बल्कि लहजे में आदर का कोई भाव न था, गुर्राता चला गया वह—“मैं अभी भी कसम खाता हूं साब, तुम्हारे आभामंडल के परखच्चे उड़ाकर रख दूंगा।”
“काफी जोश में हो।” तेजस्वी हंसा।
“प्रतापगढ़ थाने पर नियुक्त होते ही तुमने वहां के गुण्डे बदमाश और दूसरे क्रिमिनल्स को हड़काया था—एक लाइन में खड़ा कर दिया था उन्हें और कहा था—जिस थाने पर मुझे नियुक्त कर दिया जाता है, मैं उस थाना-क्षेत्र का सबसे बड़ा गुण्डा होता हूं—उस क्षण मैंने सोचा था, तुम उनसे यह कहना चाहते हो कि अब प्रतापगढ़ में किसी की गुण्डागर्दी नहीं चलेगी, मगर आज … आज उससे आगे भी एक सैन्टेन्स सोचने पर विवश हूं—यह कि वास्तव में तुम उनसे यह कह रहे थे कि ‘अब प्रतापगढ़ में मेरी गुण्डागर्दी चलेगी’—सचमुच तुमने प्रतापगढ़ के हर गुण्डे को नेस्तनाबूद करके अपनी गुण्डागर्दी का राज्य कायम कर लिया।”
“कहना क्या चाहता है तू?”
“केवल इतना कि जो गुण्डागर्दी आपने कायम की है, मैं उसे नहीं चलने दूंगा।” अजीब जुनून में फंसा पांडुराम कहता चला गया—“गुण्डों की इस देश में कोई कमी नहीं है साब—हर गली, हर मौहल्ला गुण्डों से आबाद है—शायद ही देश का कोई ऐसा नुक्कड़ बचा हो जहां गुण्डों की हुकूमत न चलती हो लेकिन अगर किसी गुण्डे को पुलिस की वर्दी मिल जाए तो स्थिति कोढ़ में खाज जैसी हो जाएगी—साधारण गुण्डों के स्थान पर अगर गली-गली में तुम जैसे वर्दी वाले गुण्डे टहलने लगें तो ये देश नर्क से बद्तर बन जाएगा। लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगा, अगर ज्यादा कुछ न कर सका तो तुम्हें वर्दी वाले गुण्डे से साधारण गुण्डा तो मैं बना ही दूंगा।” पांडुराम ने एक-एक शब्द को चबाया—“निखालिस गुण्डा … वैसा ही, जैसा इस देश के हर नुक्कड़ पर खड़ा रहता है।”
“तू पहेलियां कब से बुझाने लगा पांडुराम?”
“मैं इस वर्दी को तुम्हारे शरीर से नोंच लूंगा और तब—तब तुम केवल एक गुण्डे होगे—साधारण गुण्डे—वैसे ही जैसे असंख्य गुण्डों को यह मुल्क झेल रहा है।”
“बड़ा खूबसूरत चैलेंज दे रहा है पांडुराम!” तेजस्वी के होंठों पर नाचने वाली मुस्कान गहरी हो गई—“यकीन मान, तेरा ये चैलेंज मुझे पसंद आया—मगर ये महान काम तू करेगा कैसे?”
“जिंदा रहा तो करके दिखाऊंगा साब।”
“जिंदा रहेगा तभी न!”
“मुझे व्यर्थ ही खौफजदा करने की चेष्टा मत करो साब।”
पांडुराम ने एक-एक शब्द चबाया—“तुम्हारा ये नाटक केवल तब तक चल रहा है जब तक कमिश्नर साहब की आंखों पर तुम्हारे प्रति विश्वास की पट्टी बंधी है, और अगर तुमने यहां मुझे किसी किस्म का नुकसान पहुंचाने की कोशिश की तो वह पट्टी खुद-ब-खुद खुल जाएगी—कमिश्नर साहब स्वतः समझ जाएंगे कि जो मैंने कहा वह सच ही होगा, तभी तो तुम्हें मेरा अस्तित्व समाप्त करने की जरूरत पड़ी।”
तेजस्वी के मस्तिष्क को झटका लगा।
पांडुराम ठीक कह रहा था।
इस वक्त वह उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता था जबकि पांडुराम की हर सांस उसकी गर्दन पर लटकी नंगी तलवार थी, मगर वह तेजस्वी ही क्या हुआ जो विवश होने के बावजूद खुद को विवश दर्शा दे—अपनी कमजोरियों को भी खूबी बनाकर दर्शाना उसे आता था—सिगरेट का अंतिम सिरा फर्श पर डाला, जूते से कुचला और प्यार से उसका गाल थपथपाता हुआ बोला—“मैं तुझे मारूंगा नहीं बच्चे!”
“तुम मुझे मार ही नहीं सकते साब।”
“दरअसल तेरा चैलेंज मुझे बहुत आकर्षक लगा—मैं तुझे इस जिस्म से वर्दी नोंचने का पूरा मौका देता हूं—एक शख्स इतना शानदार चैलेंज दे और सामने वाला उसे मौका दिए बगैर मौत के घाट उतार दे, तो ये कायरता होती है और तू जानता है, तेजस्वी कुछ भी हो सकता है मगर कायर नहीं हो सकता—तू ये भी जानता है पांडुराम कि शतरंज मेरा प्रिय खेल है और उस स्थिति में शतरंज के खिलाड़ी को चाल चलने में आत्मिक सुकून मिलता है जब सामने वाले के पास भी बेहतरीन चालें चलने के लिए मुकम्मल मोहरे हों—हमारे बीच खेल चालू हो चुका है—तेरा चैलेंज तो मैंने सुन भी लिया और कुबूल भी कर लिया, अब मेरी चुनौती सुन—तू जीवित रहेगा, न कभी मेरी गुण्डागर्दी रोक सकेगा और न वर्दी उतरवा सकेगा—मेरे कारनामों के बारे में केवल सुन सकेगा तू लेकिन कुछ कर नहीं पाएगा।”
“कुबूल है साब … मुझे तुम्हारी चुनौती कुबूल है।”
“तो सुन, तुझे इसी कमरे में पड़े-पड़े बहुत जल्द सूचना मिलेगी कि व्हाइट स्टार की प्लानिंग के मुताबिक चिरंजीव कुमार नाम की हस्ती इस दुनिया से रुखसत हो गई।” कहने के बाद तेजस्वी तेज कदमों के साथ दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
पांडुराम की जुबान को मानो लकवा मार चुका था—लाख दिमाग घुमाने के बावजूद उसकी समझ में यह नहीं आ रहा था कि जो अनर्थ होने जा रहा है, उसे वह कैसे रोक सकता है?
कमिश्नर साहब सोफे पर बैठे सिगार फूंक रहे थे, उसे आया देखते ही सवाल किया—“क्या कहा, कुछ बकता है या नहीं?”
“फिलहाल तो पट्ठा मेरे सामने भी बार-बार यही कहे जा रहा है कि उसने मुझे व्हाइट स्टार के रूप में ब्लैक स्टार से बातें करते सुना है, हकीकत उगलने को तैयार नहीं है।”
“हकीकत भी उगल देगा, हम अभी उसे टॉर्चर सैन्टर …”
“मेरे ख्याल से अभी ऐसा करना मुनासिब नहीं होगा।”
“क्यों?”
“ब्लैक स्टार को मालूम नहीं होना चाहिए कि इसके जरिए उसने जो चाल चली थी उसका अंजाम क्या हुआ?” तेजस्वी एक-एक शब्द को नाप-तौलकर बोल रहा था—“फिलहाल कम-से-कम तब तक इसे इसी ‘पोजीशन’ में रखना मुनासिब होगा जब तक चिरंजीव कुमार का दौरा कम्पलीट नहीं हो जाता।”
तेजस्वी के विश्वास में अंधे कमिश्नर ने कहा—“ओ.के.!”
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