hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
12-31-2020, 12:26 PM,
#73
RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
“देश का नेता कैसा हो … चिरंजीव कुमार जैसा हो!”
“चिरंजीव, तुम संघर्ष करो … देश तुम्हारे साथ है!!”
“चिरंजीव कुमार … जिन्दाबाद!!!”
“चिरंजीव कुमार … जिन्दाबाद!!!”
हर दिशा में ये गगनभेदी नारे गूंज रहे थे।
चारों तरफ अजीब हंगामा, अद्भुत जुनून था।
ढोल-नगाड़े बज रहे थे।
धूल उड़ रही थी।
लोग उस बगैर छत की एम्बेसडर के आगे-आगे आदिवासियों की तरह नाचते चल रहे थे जिसके बीचों-बीच स्पेशल गाड्र्स से घिरा खड़ा चिरंजीव कुमार हाथ हिला-हिलाकर भीड़ का अभिवादन कर रहा था।
केवल दस मिनट पहले अंतिम सभा समाप्त हुई थी—उसके बाद ये जुलूस चला।
मैदान से निकला। सड़क पर आया।
दृष्टि के अंतिम छोर तक भीड़-ही-भीड़ नजर आ रही थी।
पुलिस के चुनिंदा अफसरों, ठक्कर और उसके कमांडोज तथा स्पेशल गाडर्स को मालूम था कि फार्म हाउस की चारदीवारी के अंदर आज क्या होने वाला है, परंतु सारे दिन सुरक्षा-व्यवस्था में कोई ढील नहीं आने दी गई—यह सोचकर लापरवाह हो जाने का कोई सवाल ही न था कि हमला तो फार्म हाउस पर होना है—दुश्मन किसी भी समय अटैक कर सकता था और सुरक्षाकर्मियों का काम था किसी भी आकस्मिक खतरे से चिरंजीव कुमार को बचाना।
केवल सड़कें ही खचाखच नहीं भरी थीं बल्कि छतों और छज्जों तक पर औरतें-बच्चे खड़े नजर आ रहे थे—लड़के तो पेड़ों तक पर चढ़े हुए थे—लोग अपने छोटे बच्चों को कंधे पर चढ़ा-चढ़ाकर उसके दर्शन करा रहे थे।
चिरंजीव कुमार का दूध जैसा खादी का कुर्ता, पाजामा और जाकेट सारे दिन की भाग-दौड़ के बाद न केवल मैले हो गए थे बल्कि मुड़-तुड़ भी गए थे—इसके बावजूद दूधयुक्त रूह आफजा जैसे रंग वाला चिरंजीव कुमार इतना सुन्दर लग रहा था कि लोग सम्मोहित से उसे देख रहे थे।
चेहरे पर गजब की चमक थी।
चौड़े भाल पर लगा सुर्ख रोली का तिलक उसकी खूबसूरती में चार चांद लगाए हुए था।
मालाओं से लदा-फदा वह अपने गुलाबी होंठों पर मुस्कान बिखेरकर जिधर को हाथ हिला देता उधर सैंकड़ों हाथ हिलते नजर आने लगते—जिस दिशा में माला फेंक देता उधर एक-एक फूल को प्राप्त करने के लिए लोग यूं झपट पड़ते जैसे सोने की गिन्नियां फेंकी गई हों।
छज्जों-छतों पर मौजूद बच्चों और महिलाओं की तरफ मालाएं उछालना उसका प्रिय शौक मालूम पड़ता था।
मारे उन्माद के पागल से हुए लोग एम्बेसडर के बोनट तक पर चढ़ आते, परंतु सादे लिबास में मौजूद सुरक्षाकर्मी उन्हें दूर हटा देते—तीनों सुरक्षा घेरे बराबर वाहन के साथ चल रहे थे।
रास्ते में अनेक जगह स्वागत हुआ।
युवा महिलाओं ने बहन बनकर आरतियां उतारीं, तिलक किए।
मांओं ने दुलारा, छाती से लगाया और आशीर्वाद से नवाजा।
अपने चारों तरफ मौजूद लोगों के प्यार के समुद्र को जब वह ठाठें लगाते देखता तो खुशी से झूम उठता—आंखें रह-रहकर भर आतीं और भावविह्नल होकर एम्बेसडर से कूद जाता।
पब्लिक के बीच घुस जाता।
चकित लोग उसे इस तरह छू-छूकर देखते जैसे विश्वास न कर पा रहे हों कि वह भी उन्हीं की तरह हाड़-मांस का बना एक पुतला है—सुरक्षाकर्मियों के लिए वे क्षण सर्वाधिक संवेदनशील होते।
वे बाज की तरह अपने घेरे को तोड़कर निकल गए चिरंजीव कुमार की तरफ झपटते—पलक झपकते ही पुनः उसके चारों तरफ घेरा बना लेते, मौका लगते ही वापस एम्बेसडर में ले आते।
और उस वक्त जुलूस फार्म आउस से केवल एक किलोमीटर इधर था जब अचानक कई दिशाओं से पत्थर उछले।
एम्बेसडर में लगे, आस-पास गिरे और स्पेशल गाडर्स के जिस्मों से टकराए।
अफरा-तफरी मची!
लोग चारों तरफ को भागने लगे।
हवा में लहराते पत्थर जरूर नजर आ रहे थे परंतु उन्हें फेंकने वाले नजर नहीं आए।
पुलिस ने हल्का लाठी-चार्ज किया।
भगदड़ मच गई।
हालांकि एम्बेसडर के आगे मौजूद चिरंजीव कुमार के समर्थकों की भीड़ बाधक थी, फिर भी चालक जितनी स्पीड बढ़ा सकता था बढ़ा दी—स्पेशल गाड्र्स ने चिरंजीव कुमार को इस तरह ढक लिया जैसे सीप ने मोती छिपा लिया हो।
एम्बेसडर तेजी से पथराव वाला स्थान पार कर गई।
पथराव ज्यादा देर नहीं किया गया।
हल्का-सा नाटक था।
उद्देश्य में कामयाबी मिली अर्थात् चिरंजीव कुमार को हैलमेट पहना दिया गया।
उसके बाद फार्म हाउस तक कहीं कोई गड़बड़ नहीं हुई—जुलूस अपने स्वाभाविक जोश-खरोश के साथ वहां पहुंचा—सतर्क तो सुरक्षाकर्मी पहले ही से थे मगर वहां पहुंचने के बाद अत्यधिक सतर्क नजर आने लगे।
हर अफसर ने अपना-अपना मोर्चा संभाल लिया।
दिलों की धड़कनें यह सोच-सोचकर बढ़ने लगीं कि अब वे घटनाएं घटने वाली हैं जिनका उन्हें सुबह से इंतजार था।
एम्बेसडर लोहे वाला गेट पार करके चारदीवारी के अंदर दाखिल हुई।
स्पेशल गाडर्स के घेरे में चिरंजीव कुमार उतरा।
ज्ञापनदाताओं की भीड़ की ओर बढ़ा, एम्बेसडर इमारत के पीछे की तरफ चली गई।
गेट पर तलाशी का काम मुस्तैदी के साथ चल रहा था।
योजना के मुताबिक तेजस्वी चारदीवारी के बाहर ही रह गया—भीड़ काफी थी लेकिन उसे वह युवक नजर आ गया जिसने नीली शर्ट और काली जीन्स पहन रखी थी—उसे मालूम था, रिवॉल्वर यही युवक देगा—युवक कई बार उसके समीप से गुजरा किंतु तेजस्वी ने ऐसा अभिनय किया जैसे उसे जानता ही न हो।
अचानक युवक पुनः उसके नजदीक आया—धक्का-मुक्की का लाभ उठाकर उसके शरीर से सट गया और ठीक उसी समय तेजस्वी ने अपने पेट पर रिवॉल्वर की नाल की चुभन महसूस की, साथ ही युवक की फुसफुसाहट—“इसे संभालो, अगर जरा भी गड़बड़ करने की चेष्टा की तो अपने सारे परिवार से हाथ धो बैठोगे!”
तेजस्वी मन-ही-मन यह सोचकर उसकी हरकत पर मुस्कराया कि इस बेवकूफ युवक को स्वप्न तक में गुमान नहीं हो सकता कि जिसे वह धमका रहा है, वह यहां होने वाले बखेड़े का मुखिया है—प्रत्यक्ष में उसने खौफजदा होने के अभिनय के साथ रिवॉल्वर उसके हाथ से लेकर जेब में सरका लिया।
अगले पल, नीली शर्ट और काली जीन्स वाला युवक आसपास तो क्या दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा था।
भीड़ में छलावे की तरह गुम हो चुका था वह।
परंतु!
तेजस्वी जानता था, युवक उसे भले ही नजर न आ रहा हो, मगर ठक्कर के दो कमांडो साए की तरह उसके पीछे लग चुके होंगे, उन्हें सख्त हिदायत थी—रिवॉल्वर देने वाला एक सेकेंड के लिए भी उनकी आंखों से ओझल न हो पाए और किसी सूरत में यह न भांप पाए कि उस पर नजर रखी जा रही है या पीछा किया जा रहा है—डेढ़ बजे से पहले उसके साथ किसी किस्म की छेड़छाड़ करने का हुक्म तो बिल्कुल था ही नहीं—ठक्कर के मुताबिक वक्त से पूर्व हुई ऐसी कोई भी हरकत ब्लैक स्टार को चौकन्ना कर सकती थी—परिणामस्वरूप सारे किए-धरे पर पानी फिर सकता था।
जेब में रिवॉल्वर लिए तेजस्वी गेट की तरफ बढ़ा।
चारदीवारी के अंदर पहुंचा।
ठक्कर से नजरें मिलीं—आंखों ही आंखों में तेजस्वी ने बता दिया कि रिवॉल्वर उसकी जेब में है।
लॉन में वर्दी और बगैर वर्दीधारी सुरक्षाकर्मियों के अतिरिक्त करीब पांच सौ स्त्री-पुरुष थे—ज्ञापनदाताओं के अलावा वे नेता और सक्रिय कार्यकर्ता भी अभी तक वहीं थे जो हमेशा चिरंजीव कुमार के काफिले के साथ रहा करते थे।
चल रहे ड्रामे से पूरी तरह अनभिज्ञ चिरंजीव कुमार लोगों से ज्ञापन लेने में मशगूल था।
उसने कई बार हैलमेट उतारने की कोशिश की, मगर स्पेशल गाडर््स ने विनम्र अनुरोध के साथ ऐसा नहीं करने दिया।
हालांकि सुरक्षाकर्मियों की गिद्ध-दृष्टि हरेक शख्स को वॉच कर रही थी परंतु अभी तक ब्लैक स्टार, मरजीवड़ों या व्हाइट स्टार की पहचान नहीं हो पाई—होती भी कैसे … व्हाइट स्टार तो स्वयं तेजस्वी ही था।
योजना के मुताबिक तेजस्वी बाईं तरफ मौजूद गुलाब के पौधे की तरफ बढ़ा और निर्धारित पौधे की जड़ में ऐसे अभिनय के साथ रिवॉल्वर फेंक दिया जैसे अपनी इस हरकत पर किसी की नजर न पड़ने देता चाहता हो।
लगभग उसी समय एक जीप चारदीवारी के बाहर, गेट से थोड़ी दूर लेकिन ठीक सामने आकर खड़ी हो गई—चारदीवारी के अंदर परंतु गेट के ठीक सामने अपने मोर्चे पर तैनात कमिश्‍नर शांडियाल का दिल जीप पर नजर पड़ते ही जोर-जोर से धड़कने लगा।
उन्होंने ड्राइवर को जीप में मौजूद दो महिलाओं और एक अधेड़ से कुछ कहते देखा।
फिर ड्राइवर जीप से बाहर निकला। गेट की तरफ बढ़ा, तलाशी के बाद चारदीवारी के अंदर आ गया।
यहां मौजूद अन्य बहुत से लोगों की तरह उसने भी खादी का सफेद कुर्ता-पाजामा पहन रखा था।
शांडियाल की दृष्टि उसी पर केन्द्रित थी।
ठक्कर की सतर्क आंखें उस शख्स को खोज रही थीं जिसे किसी भी क्षण अपने कुर्ते का कॉलर उलटा मोड़ लेना था।
कमांडो नंबर वन और फोर ड्राइवर के दाएं-बाएं मोर्चा संभाल चुके थे, तेज कदमों के साथ चलता हुआ वह तेजस्वी के नजदीक से गुजरता हुआ बड़बड़ाया—“चैक कर सकते हो, परिवार आ चुका है।”
उसकी यह बड़बड़ाहट नंबर वन और फोर ने भी सुनी परंतु जाहिर कुछ नहीं किया।
तेजस्वी इस तरह गेट के सामने की तरफ सरक गया जैसे पुष्टि कर लेना चाहता हो कि उसका परिवार चारदीवारी के बाहर मौजूद है अथवा नहीं, मगर निगाह गुलाब के पौधे की जड़ में पड़े रिवॉल्वर पर ही थी—मानो, जब तक परिवार के पहुंचने की पुष्टि न हो जाए, तब तक किसी को रिवॉल्वर हासिल नहीं करने देगा।
उधर, ड्राइवर ने अपने कुर्ते का कॉलर उलट दिया।
ठक्कर उछल पड़ा।
ठक्कर ही क्यों, लगभग सभी ऑफिसर्स ने उसकी हरकत देख ली थी।
सुरक्षाकर्मियों में भूचाल-सा आ गया।
मगर ये भूचाल ऐसा था जिसने कोई विस्फोट नहीं किया—हल्की-सी गड़गड़ाहट तक नहीं हुई और आंखों के इशारों ही इशारों में ड्राइवर चारों तरफ से बुरी तरह सुरक्षाकर्मियों से घिर गया—अफसरों के विचारानुसार उसे अपने घिर जाने का गुमान तक नहीं था किंतु वास्तव में यह ऑफिसर्स का भ्रम था—उस शख्स को न केवल अपने घिर जाने की जानकारी थी बल्कि कॉलर उल्टा मोड़ने की हरकत उसने की ही घिर जाने के लिए थी—ये अलग बात है कि वह दर्शा यही रहा था कि उसे दूर-दूर तक अपने घिर जाने का इल्म नहीं है।
अगर सही शब्द इस्तेमाल किए जाएं तो यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि फार्म हाउस के लॉन में शतरंज बिछी हुई थी—सुरक्षाकर्मियों और ब्लैक फोर्स की तरफ से चालें चली जा रही थीं—सबसे ज्यादा मजे की बात ये थी कि दोनों तरफ से चालें चलने वाला खिलाड़ी एक ही था, उसका नाम था—तेजस्वी!
कमिश्‍नर और ठक्कर की आंखें मिलीं—ठक्कर ने उन्हें ‘एक्शन’ करने का संकेत दिया, कमिश्‍नर साहब धाड़-धाड़ करते, अपने दिल को संभाले गेट की तरफ बढ़ गए—योजना के मुताबिक टहलते से गेट पार करके जीप के नजदीक पहुंचे—एक निगाह चारों तरफ मौजूद भीड़ पर डाली—शायद उनका प्रयास ब्लैक फोर्स के लोगों की पहचान करना था, जिसमें वे एक परसैन्ट भी कामयाब न हो सके—कम-से-कम उन्होंने महसूस नहीं किया कि कोई जीप की निगरानी कर रहा है—फिर भी, योजना के मुताबिक ड्राइविंग डोर के नजदीक जाकर इस तरह पूछताछ शुरू की जैसे पुलिस किसी से भी सामान्य पूछताछ कर सकती है, उनका पहला सवाल अधेड़ से था—“आपका नाम?”
“अरविन्द कुमार।” अधेड़ ने जवाब दिया।
शांडियाल ने अधेड़ महिला से पूछा—“आपका?”
“नलिनी।” वे सहमे हुए नजर आ रहे थे।
उन्होंने चश्मे वाली युवा महिला से कहा—“तुम्हारा नाम शायद ‘शुभा’ है?”
“ज-जी, मगर …”
“घबराओ नहीं!” शांडियाल ने धीमे से कहा—“हम पुलिस कमिश्‍नर हैं और जानते हैं कि अब तक तुम लोग ब्लैक फोर्स की कैद में थे—तुम तेजस्वी के माता-पिता और पत्नी हो न?”
“हां-हां!” तीनों एक साथ कह उठे।
“धीमे स्वर में बात करो, तेजस्वी की बेटी कहां है?”
नलिनी रो देने वाले लहजे में कह उठी—“व-वो अभी तक उन्हीं के कब्जे में है साब!”
शांडियाल के पैरों-तले से जमीन खिसक गई।
दिमाग में दो शब्द गूंजे।
“धोखा … चालाकी!”
अगर योजना पर अमल किया गया तो तेजस्वी की बेटी मारी जाएगी।
क्या करें?
दुविधा में फंस गए वे!
परंतु केवल एक पल के लिए।
अगले पल निश्चय कर चुके थे।
ब्लैक स्टार लॉन में पहुंच चुका है और अब केवल तेजस्वी की बेटी की खातिर योजना पर अमल को नहीं रोका जा सकता—वह मरती है तो मर जाए या ब्लैक स्टार के उनके कब्जे में आने के बाद वे उसे इतनी आसानी से नहीं मार सकेंगे—कमिश्‍नर ने यह सोचकर फैसला कर डाला कि जो होगा देखा जाएगा—फिलहाल उनकी ड्यूटी इन लोगों को बचाना है, पूछा—“तेजस्वी की बेटी को क्यों रोक लिया उन्होंने?”
शुभा ने बताया—“कहते थे, अगर तेजस्वी ने कोई गड़बड़ नहीं की तो उसे भी छोड़ दिया जाएगा।”
“और अगर गड़बड़ की तो वे उसे मार डालेंगे।” अधेड़ की आवाज भर्रा गई।
“तेजस्वी की तरफ से कौन से काम में गड़बड़ की जाने का अंदेशा था उन्हें?”
“हमें नहीं मालूम।”
“खैर!” कमिश्‍नर का स्वर और धीमा हो गया—“सुनो, हम अचानक ड्राइविंग सीट पर बैठेंगे और आनन-फानन में जीप को उस लोहे वाले गेट के अंदर ले जाएंगे—तुम लोग घबराना नहीं, आराम से बैठे रहना।”
“य-ये कहां हैं?” शुभा ने पूछा।
“कौन?” कमिश्‍नर साहब ने खड़े-ही-खड़े ठक्कर की दी हुई ‘मास्टर की’ निकालकर इग्नीशन में फंसा दी—“तेजस्वी?”
“हां!”
“अंदर है!” उन्होंने चाभी घुमाकर देखी, चाभी फिट थी।
“उनसे कहो गड़बड़ न करें।” नलिनी ने कहा—“वे लोग अरुणा को …।”
मगर।
उसका वाक्य पूरा न हो सका।
स्टार्ट होने के साथ ही जीप ने एक तेज झटका खाया था—गजब की फुर्ती के साथ कमिश्‍नर साहब ड्राइविंग सीट पर बैठे—किसी भी तरफ से चलने वाली गोलियों की परवाह किए बगैर जीप को गियर में डालकर एक्सीलेटर दबा दिया।
जीप तोप से छूटे गोले की तरह गेट पार कर गई।
उम्मीद के विपरीत कहीं कोई फायर नहीं हुआ, कोई गोली नहीं चली।
जीप के गुजरते ही गेट बंद हो गया।
तेजस्वी के बेहद नजदीक पहुंचकर कमिश्‍नर साहब ने जोर से ब्रेक लगाए—टायरों की तीव्र चीख-चिल्लाहट के कारण चिरंजीव कुमार सहित सभी साधारण लोगों ने उस तरफ देखा।
लेकिन केवल साधारण लोगों ने।
ड्राइवर को घेरे खड़े सुरक्षा-अफसरों ने ठक्कर सहित उस पर जम्प लगा दीं।
अगर यह कहा जाए तो गलत न होगा कि वह चूहे की तरह उनके चंगुल में फंस गया—एक तरफ वह सब हो रहा था, दूसरी तरफ अरविन्द कुमार, नलिनी और शुभा तेजस्वी को बेहद नजदीक खड़ा देखकर जीप से कूदे, नलिनी ने चीखकर कहा उससे—“कोई गड़बड़ मत करना बेटे, वे हमारी अरुणा को मार डालेंगे।”
“आप इधर आइए मांजी!” कमिश्‍नर ने उन्हें पकड़ा।
अब तेजस्वी से वही गुहार अरविन्द कुमार करने लगा।
“व्हाइट स्टार भी यहीं कहीं होगा।” तेजस्वी चीखा—“तलाश करो उसे।”
इस अफरा-तफरी में शुभा की तरफ किसी ने ध्यान न दिया—वह तेज कदमों के साथ चिरंजीव कुमार की तरफ बढ़ी, एक स्पेशल गार्ड ने उसका रास्ता रोक लिया।
“मुझे उनके चरण-स्पर्श करने दो!” शुभा चीखी।
“नहीं …।”
गार्ड ने रोकना चाहा मगर खुद चिरंजीव कुमार ने कहा—“फिक्र मत करो, आने दो उन्हें।”
गार्ड को एक तरफ हटना पड़ा।
चिरंजीव कुमार ने आत्मीयता से भरपूर हाथ शुभा के कंधे पर रखा और अपनी चिरपरिचित मुस्कान के साथ मीठे स्वर में पूछा—“कहां से आई हो?”
शुभा जवाब दिए बगैर उसके चरणों में झुक गई।
ठक्कर को जाने क्या आभास हुआ कि जोर से चीखा—“रोको उसे …।”
धड़ाम!
भयंकर विस्फोट हो चुका था।
इंसानी खून और गोश्त के लोथड़े दूर-दूर तक बिखर गए।
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RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा - by desiaks - 12-31-2020, 12:26 PM

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