RE: Mastaram Stories पिशाच की वापसी
पिशाच की वापसी – 6
"उसे मैंने ही मना किया था, असल में आज हम बचे हैं तो उसकी वजह से ही, वीरा ही था जिसने उन लाशों को खोजा और फिर ……………"जावेद धीरे धीरे सारेी बात बताने लगता है.
"अच्छा हुआ, जो तुमने और वीरा ने सब संभाल लिया, जावेद इस बात को यहीं दफ़न कर दो, किसी को कभी भी कुछ पता नहीं चलना कहिए, पुलिस को में संभाल लूँगा"मुख्तार की चेहरे पे घबराहट दिखाई दे रही थी.
कुछ पल के लिए हॉल में शांति फैल गयी, फिर उसे शांति को जावेद ने खत्म किया
"एक चीज़ है जो मुझे बार बार मजबूर कर रहा है, इन सब बातों को मानने के लिए"
जावेद ने थोड़े कंपन के साथ कहा.
"क्या"
"यही जो मैंने दृश्य आज देखा, क्या वह सपना था, या फिर हकीकत"
उसने फिर सहमी आवाज़ में कहा
“ऐसा क्या देख लिया तुमने"
"वह निशान मुख्तार साहब, वह खून से बनते निशान, और उसे निशान में कुछ ऐसे शब्द, जो शायद किसी तूफान की तरफ दर्शा रहे हैं"
इस बार जावेद ने आने वाले खतरे को भाँपते हुए कहा.
"कैसे शब्द"
"वह तो एक अंत था, इस नयी दर्दनाक शुरूवात का"
जावेद ने इतना कहा, और दोनों एक दूसरे को घूरने लगे.
"कैसे मिली तुम्हें वह लाशें"?
"आप वीरा को तो जानते ही हैं"
“हाँ, जो इन सब का लीडर है, हाँ वैसे वह नहीं आया आज"
"उसे मैंने ही मना किया था, असल में आज हम बचे हैं तो उसकी वजह से ही, वीरा ही था जिसने उन लाशों को खोजा ……………"
जावेद ने अपनी बात कहनी शुरू कर दी......
जावेद कमरे में बैठा, कुछ देख रहा था, बड़े बड़े चार्ट्स उसके सामने रखे थे, उसेमें डिज़ाइन बनने हुए थे, की तभी उसके घर के दरवाजे पे दस्तक हुई,
"कौन है"?
जावेद चीलाया.
"साहब में हूँ, वीरा, जल्दी खोलिए बहुत जरूरी काम है आपसे"
बाहर से आवाज़ आई.
"ये यहाँ अचानक से कैसे आ गया"?
जावेद ने अपने आप से कहा और उन बड़े बड़े चार्ट्स को फोल्ड कर के रखने लगा.
“साहब खोलिए"
बाहर से फिर आवाज़ आई.
"हाँ हाँ आया"
जावेद ने उन चार्ट्स को एक अलमारी में डाल के लॉक किया और बाहर पहुंच के दरवाजा खोला.
सामने वीरा खड़ा था, उसके चेहरे पे एक अजीब सी शिकन दिखाई दे रही थी,
"अरे वीरा तू, कैसे आना हुआ, और क्या बात है जो तू इतनी जल्दी क्यों मचा रहा है"?
जावेद ने उसे अंदर बुलाया और दरवाजा बूंद कर दिया.
"क्या करूँ साहब, आप अगर मेरे आने का मतलब जानेंगे तब आपको पता चलेगा"
वीरा ने थोड़ी दबी आवाज़ में कहा.
"क्या हुआ, तेरी शकल देख के ऐसा लग रहा है कोई परेशानी की बात है, क्या हुआ है"?
जावेद ने भी थोड़ा परेशान होते हुए कहा.
"साहब आपको पता है, कल कल्लू गायब हो गया"?
"क्या"?
जावेद ने चौंकते हुए कहा.
"हाँ साहब, उसके साथ दो मजदूर और भी गायब हुए हैं, यही सब देख के सारे मजदूर आज बड़े मालिक के पास जाने का सोच रहे हैं, उन्होंने काम करने से मना कर दिया है, मैंने बहुत समझाया लेकिन वह सब नहीं मानने.”
“कैसे गायब हुए सब, कल तक तो सब कुछ ठीक था, कल क्यों किसी ने नहीं बताया की कालू गायब हुआ है”
"कल तक किसी को नहीं पता था साहब, वह तो आज रघु ने आकर बताया, उसके चेहरे का भी बहुत बुरा हाल है, उसके बाद जब सभी मजदूरों को इकट्ठा किया तो पाया की 2 और मजदूर गायब है”
"क्या कालू और बाकी सब अभी तक मिले नहीं"?
जावेद ने चिंता दिखाते हुए पूछा.
"मिल गये साहब पर"!
वीरा कहते हुए रुक गया,
"पर, पर क्या वीरा, कहाँ है तीनों"?
"जंगल में"
वीरा ने धीमी आवाज़ में कहा और जावेद की आँखों में देखने लगा, दोनों की नज़रे मिली और जावेद को समझते देर ना लगी की कोई बहुत बड़ी गड़बड़ हुई है.
दोनों जंगल की तरफ बढ़ रहे थे, जावेद के चेहरे पे गहरी चिंता छायी हुई थी, वहां का वातावरण बिलकुल शांत था, मानो खाने को दौड़ रहा हो, हवा में जबरदस्त ठंड थी, कोहरा इतना घना था मानो आसमान से बादल उतर के नीचे आ गये हो.
"और कितनी दूर है"?
जावेद ने आगे चल रहे वीरा से पूछा.
"बस साहब, पहुंच ही गये, लेकिन एक बार मेरी बात फिर से मान लीजिए, आप उन लाशों को नहीं देख पायेंगे"
वीरा ने जावेद की तरफ देखते हुए कहा, लेकिन जावेद ने सिर्फ़ उसे आगे बढ़ने का इशारा किया.
कुछ ही मिनट और चले थे दोनों, की तभी वीरा चलते चलते रुक गया, सामने इतना घना कोहरा था की सामने सिर्फ़ वह सफेद रोशनी दिख रही थी उसके अलावा और कुछ नहीं.
“क्या हम पहुंच गये"?
जावेद ने धीमी आवाज़ में पूछा, बदले में वीरा ने सिर्फ़ हाँ में गर्दन हिलाई.
"पर यहाँ तो मुझे कुछ नहीं दिखाई दे रहा, कुछ"
जावेद वीरा की तरफ देखते हुए बस इतना ही कह पाया क्यों की जब उसकी नज़र सामने पड़ा तब …
अपने आप सामने से वह सफेद चादर हटने लगी, वह घना कोहरा छटने लगा, धीरे धीरे सामने का नज़ारा दिखने लगा, जैसे ही जावेद ने सामने का नज़ारा देखा उसके कुछ कदम पीछे की तरफ हो गये.
सामने का नज़ारा सच में बहुत ही खौफनाक नज़ारा था, ये वह पल था जो एक आम इंसान शायद ही भुला पाए, सामने पेड़ पे लटकती वह तीन लाशें, शरीर से वह टपकता खून, पर दिल दहला देने वाली चीज़ थी उनके शरीर की वह हालत जो उसे वक्त उन दोनों के सामने थी.
एक के उपर एक लाश दो पेड़ से जुड़ के लटकी हुई थी, मानो दो पेड़ को जोड़ने के लिए एक रास्ता बनाया गया हो तीनो लाश एक के उपर एक थी, तीनो लाशों के बीच एक समान गैप था पर दिल दहला देने वाली बात उनके शरीर पे वह घाव थे जिसे देख के कोई भी इंसान सहम जाए.
तीनो के शरीर पे करीब, गोल गोल 2 इंच के होल थे, हर एक के शरीर पे, पर सिर्फ़ एक, दो या तीन नहीं, बल्कि ऐसे एक के बाद होल बनने हुए थी, चेहरे का तो बहुत बुरा हाल था, आंखे तो थी ही नहीं बल्कि उसकी जगह होल था, उपर वाली लाश के होल से टपकता खून, नीचे वाले के होल में से गिरता हुआ, उसके नीचे वाले के होल में से होता हुआ ज़मीन पे गिर रहा था, और यही चीज़ हर एक होल में हो रही थी, खून बूंद बूंद टपक रहा था, ये एक ऐसा दृश्य था जो शायद एक आम इंसान की जिंदगी में शायद हे कभी आए.
"ये, ये, कैसे सब"?
जावेद की जबान बोलते हुए लड़खड़ा रही थी.
"ये तो में भी नहीं जानता साहब, पर ये मौत देख रहे हैं आप, कैसे बुरी तरह तीनों के लाश में ये छेद किए हैं, ऐसा लगता है बिलकुल नाप तोल के किए गये हो, बहुत ही दर्दनाक मौत मिली है तीनों को"
“किसी जानवर का काम"
जावेद ने अपनी शंका जाहिर की.
"मुश्किल लगता है साहब, कोई जानवर ऐसे इतनी बुरी तरह से कैसे मार सकता है, इनके शरीर में कुछ बचा ही नहीं है, हर जगह छेद ही छेद दिखाई दे रहे हैं, और"
बोलते बोलते वीरा रुक गया, जावेद ने वीरा की तरफ देखा जो एक टक नीचे ज़मीन पे देख रहा था.
“क्या हुआ"?
जावेद ने वीरा से पूछा, बदले में वीरा ने सामने की तरफ उंगली कर दी, जावेद ने सामने की तरफ देखा तो एक पल के लिए उसकी धड़कने तेज हो गयी, उसकी रूह कांप उठी, शरीर से टपकता खून नीचे ज़मीन पे गिर रहा था, पर वह एक जगह इकट्ठा नहीं हो रहा था, बल्कि खून से कुछ बनता दिखाई दे रहा था.
धीरे धीरे टपक टपक कर खून ने ज़मीन पे अपनी कलाकारी बनानी शुरू करी,
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