RE: Mastaram Stories पिशाच की वापसी
पिशाच की वापसी – 13
"हम दोनों ध्यान रखेंगे सबका, में और नहीं सहन कर सकती ये तन्हाई, मेरा दिल बिखरता जा रहा है अंशिका में क्या करूँ, में क्या करूँ"
नीलू ने बोलते हुए आँखें बंद कर ली, आँखों से उन कीमती यादों को बाहर निकालने में उसे बेहद तकलीफ हो रही थी.
"हम है तुम्हारे साथ, प्लीज़ अपने आप को संभालो, सब ठीक हो जाएगा"
अंशिका का गला भारी हो गया था, उसकी प्यारी सी आँखें असीम दुख को बाहर निकाल रही थी, कुछ देर वह बस ऐसे ही नीलू के माथे को सहलाती रही, कमरे में सिर्फ़ उन मशीनो की आवाज़ आ रही थी जो लगी हुई थी, पर तभी नीलू ने आंखें खोली.
"मुझसे वादा कर अंशिका, प्रॉमिस कर, उसे कभी पता नहीं चलना कहिए की क्या हुआ हमारे साथ, उसपर कभी उसका असर नहीं पड़ने देगी, उसे कभी नहीं पता चलने देगी की वह कौन है, में कौन हूँ, उसको इस जगह से इतनी दूर ले जाना की कभी इस जगह का जिक्र ना हो, मुझे प्रॉमिस कर अंशिका, प्लीज़, प्लीज़.."
बोलते हुए नीलू का गला भारी होने लगा.
"नहीं नीलू, में नहीं कर सकती, प्लीज़, मेरे पास इतनी ताक़त नहीं है"
अंशिका ने अपनी गर्दन ना में हिलाते हुए कहा,
"तुम्हें कुछ नहीं होगा, यू हॅव टू लाइव, तुम ऐसा नहीं कर सकती"
अंशिका ने नीलू को देखते हुए कहा.
"तुम्हें मुझसे ये प्रॉमिस करना होगा, उसके लिए अंशिका, उसके लिए, जिसने तुम्हें अपनी जिंदगी बनाया, उसके लिए, जिसे तुम प्यार करती थी, प्रॉमिस करो मुझसे"
नीलू ने अंशिका की तरफ अपना दूसरा हाथ आगे बढ़ाया, अंशिका उसे देखते रोती रही, कुछ कह नहीं पाई, बस उसने भी अपना हाथ आगे बढ़ाया और नीलू के हाथ के उपर रख दिया, एक ऐसा वादा ले लिया जिसे अब उसे निभाना था, दोस्ती के लिए, प्यार के लिए, खुशी और जिंदगी के लिए.
"में प्रॉमिस करती हूँ नीलू, में प्रॉमिस करती हूँ, कभी कुछ नहीं पता चलेगा, कभी कुछ नहीं"
बोलते हुए अंशिका आगे बड़ी और उसने नीलू के माथे पे अपने होंठ सजा दिए, शायद आखिरी कुछ पल बेहद प्यारे होते हैं किसी अपने के साथ के, अंशिका जानती थी की आने वाले कुछ ही पलों में क्या होगा.
नीलू ने अपनी आँखें बंद कर ली,
"में आ रही हूँ ‘हर्ष’, आ रही हूँ में तेरे पास हमेशा के लिए, आ रही हूँ आअ"
एक लंबी सांस भरते हुए नीलू ने अपनी आँखें नहीं खोली.
"नीलुऊऊ……."
रोते हुए अंशिका ज़ोर से चिल्लाई, नीलू को हिलाने लगी, लेकिन उसे पता था इस प्यार के आगे जिंदगी नहीं रही.
"अंशिका"कमरे के डोर पे खड़े होकर उसने आवाज़ लगाई, अंशिका फौरन पीछे मुड़ी और उसे देखकर भागते हुए उसके गले जा लगी.
"सीड, नीलू आह… नीलू"
अंशिका इतना ही कह पाई और फिर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी.
सीड भी सामने देख रहा था, जहाँ नीलू निढाल पडी थी, आँखें बंद कर के एक बहुत गहरी नींदमें, एक ऐसी नींद जहाँ से कोई उठ के वापिस नहीं आता, सीड की आँखों से भी आँसू छलक आए और उसने अंशिका को और कस के अपने में समेट लिया.
“चाहती बहुत हूँ तुझे इसलिए ये जिंदगी भी बेकार लग रही है, प्यार को मिलने में आ रही हूँ, जिंदगी को छोड के"
नीलू की डायरी में आखिरी लाइन लिखी हुई थी जो साइड में रखी टेबल पे खुली हुई थी.
2 साल बाद ………….. साल 2010
सुबह हो चुकी थी, बिती रात जो भी हुआ, उसके बारे में शायद ये कुदरत ही जानती थी, उसके अलावा कोई नहीं, वक्त ने माहौल अभी भी वैसा ही बना रखा था, बिलकुल खामोश, जैसे कुछ ना हुआ हो, ऐसी खामोशी बहुत बड़ी तबाई को दस्तक देती है.
मौसम खामोश था और वहां खड़े लोग भी खामोश थे, मुख्तार खड़ा था हाथ में हाथ बांधे चेहरे पे उसके टेन्शन थी, उसके सामने कुछ मजदूर खड़े थे, कुछ इंजीनियर खड़े थे.
"क्या करना है साहब"
उनमें से एक ने कहा.
"देखो, काम तो बंद नहीं होगा, तुम नहीं करोगे कोई और करेगा, पर में तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ की घबराने वाली बात नहीं है, किसी भी मजदूर को कुछ नहीं होगा, यहाँ कोई आत्मा वातमा नहीं है, सुना तुम सब ने, यहाँ कुछ नहीं है"
मुख्तार चील्लाते हुए बोला, उसकी आवाज़ पूरी जगह पे गूंजने लगी.
उसके इतना कहते ही, अचानक से हवा चलने लगी, पेड़ हिलने लगे और उसे हवा में कुछ अजीब सी आवाज़ थी, मानो कुछ कहना चाहती हो.
"सुना साहब अपने, सुना, ये आवाज़ हवा में कुछ कहना चाहती है, मेरी बात मानिए साहब यहाँ....”
"चुप रहो तुम"
मुख्तार गुस्से में बोला,
"कुछ नहीं है ऐसा यहाँ, हवा में कुछ है क्या है इस हवा में, ब्लडी ईडियट्स..!"
गुस्से में मुख्तार चिल्लाया.
"अगर कुछ नहीं है तो फिर रघु और जावेद साहब कहाँ गायब है, क्यों नहीं आए वह दोनों"
उनमें से एक ने कहा.
"जावेद को जरूरी काम से शहर जाना पड़ा, रही बात तुम्हारे रघु की तो वह भघोड़ा निकला भाग गया कल रात ही, ये शहर छोड के"
मुख्तार ने भड़कते हुए एक बार फिर कहा.
“देखिए आप सब, यहाँ डरने की जरूरत नहीं है, आप सब अपने अपने काम पे लग जाए, हमें ये काम वक्त पे पूरा करना है “
वहां खड़े एक इंजीनियर ने सबको समझाया.
"ये आप बहुत गलत कर रहे हैं मालिक, यहाँ कोई पिशाच बस्ती है, ये आप अच्छी तरह जानते है, अगर अभी भी काम नहीं रुका तो ना जाने कितना खून बहेगा, फिर उस खून का हिसाब कोई नहीं रख पायेगा आप भी नहीं, क्यों की शायद आप भी ना बचे"
उनमें से एक मजदूर ने गुर्राते हुए कहा.
मुख्तार कुछ नहीं बोला बस उसे देखता रहा और फिर अपनी गाड़ी में बैठ के वहां से निकल गया.
"देखो मुझे हर बात की खबर चाहिए, कौन क्या कर रहा है, कैसे कर रहा है, हर एक डिटेल मुझे चाहिए समझ रहे हो ना तुम सब"
मुख्तार अपने सामने खड़े कुछ आदमियो से बातें कर रहा था.
"जी सर, आप बेफिक्र रहिए"
"एक बात और जो सबसे ज्यादा जरूरी है, कोई भी घटना घटती है, या कोई भी मौत होती है तो उसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं चलना चाहिए, कुछ भी नहीं"
मुख्तार ने गंभरी चेहरा बनाते हुए कहा.
"जी सर, किसी को कुछ पता नहीं चलेगा"
इंसान जितनी चाहे कोशिश कर ले बचने की, वक्त हर मुसीबत का सामना करा ही देता है, पर शायद वक्त ने एक बदलाव ले लिया था, कुछ दिन काम बिना किसी रुकावट के बढ़ता जा रहा था, पर एक दिन का काम तीन दिन में पूरा हो रहा था, उसके पीछे कुछ वजह थी, पहली वजह ये की काम का समय सिर्फ़ 12 से 4 बजे तक हो पा रहा था, क्यों की उसके बाद ठंड उस जगह पे ऐसे पड़ती थी की वहां खड़ा होना लगभग नामुमकिन सा होने लगा था, उसके अलावा एक बहुत ही अजीब से हादसे हो रहे थे, जिसका कोई इंसानी तालूक़ तो नहीं था, पर इसे कोई दूसरा नाम भी नहीं दे सकते थे, हादसों में कई बार कोई मजदूर अपनी शकल का दूसरा आदमी देख लेता जो उसके साथ ही कम कर रहा होता था, किसी भी इंसान के लिए ये एक बेहद डरावनी बात होती है जब वह खुद पहले से डरा हुआ हो, कभी कभी काम करते करते मजदूर ज़मीन पे गिर जाता और अजीब अजीब सी आवाज़ निकालने लगता अपने आप को नोचने लगते, इसमें कुछ मजदूर घायल भी हुए, पर मुख्तार ने बात को हमेशा दूसरी तरफ मोड़ के उसे खत्म कर दिया, पर एक दिन....
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