RE: Kamukta Story प्यास बुझाई नौकर से
अभी एक घंटे पहले की तो बात है। रूबी करवटें ले रही थी। लेटे-लेटे अपने और लखविंदर के उन प्यार भरे लम्हों को याद कर रही थी। और करती भी क्या? याद ही तो कर सकती थी। उसे भोगने वाला तो था ही नहीं उसके पास। इतनी ठंड में उन लम्हों को याद करते-करते कम्बल में रूबी को गर्मी आ गई थी और गला सूखने लगा था। रूबी ने सोचा थोड़ा पानी पी लेती हैं, और अपने कमरे से बाहर निकलकर किचेन में चली गई। अपने कमरे का दरवाजा खोलने और किचेन तक जाने का काम उसने धीरे-धीरे किया ताकी कोई घर में डिस्टर्ब ना हो।
पानी पीने के बाद अब वो कमरे क पास आई तो उसे सिसकियां सनाई दी। वो आ रही थी, वहीं खड़ी हो गई। उसे लगा सिसकियां ननद के कमरे से आ रही थी, रूबी ने सोचा। आधी रात हो गई थी और वो अभी तक सोई नहीं थी। रूबी का तो समझ में आता है इतनी रात तक करवटें लेना पर प्रीति? रूबी के दिल में आया की पास जाकर देखा जाए। इधर रूबी लाबी में थी और वहां पे व लाइट आफ थी और अंधेरा था। कोई अपने कमरे के बाहर आकर टकटकी लगाकर देखता उसकी तरफ, तभी पता चल सकता था की वहां पे कोई है। रूबी ने प्रीति के कमरे के दरवाजे पे कान लगाया और सिसकियां सुनने लगी।
प्रीति-अहह... अहह... उम्म्म्म
... अभी कितना बाकी है।
हरजीत- अरे बेबी आधा ही अंदर किया है अभी तो।
प्रीति- तो डाल दो पूरा। क्यों तड़पते हो?
हरजीत- क्योंकी मैं अपनी बीवी को अच्छे से भोगना चाहता हूँ। मेरा तो दिल करता है की सारी उमर तुम्हें ऐसे ही चोदता रहूं।
प्रीति- तो और क्या करते आए हो अभी तक? हफ्ते में एक आध दिन ही होता है जब आपका मन नहीं करता, नहीं तो यह तो आपका डेली का कम है।
हरजीत- बेबी तुम हो ही इतनी खूबसूरत। क्या करें रहा नहीं जाता। क्या तुम्हें मजा नहीं आता?
प्रीति- नहीं बाबा... आपको ऐसा क्यों लगता है? आप जैसा पति पाकर कौन औरत खुश नहीं होगी।
रूबी ना जाने क्यों वहां से हिल नहीं पाई और उसका मन किया की थोड़ी देर और रुक जाए। रूबी ने कभी किसी की चुदाई नहीं देखी थी। वो चुपचाप दरवाजे के साथ कान लगाए कमरे की आवाजें सुनने लगी। प्रीति की सिसकियां रूबी पे सीने को तीर बनकर लग रही थी। उसने आँखें बंद कर ली और अंदर के नजारे को इमेजिन करने लगी। धीरे-धीरे रूबी गरम होने लगी। इस ठंडी रात में वो सिर्फ अपनी नाइटी में लाबी में खड़ी थी, पर उसे गर्मी का एहसास हो रहा था।
उधर प्रीति और हरजीत प्यार के आगोश में खोए हए और इस बात से अंजान थे की रूबी दरवाजे के पास कान लगाए सब कुछ सुन रही थी। उनकी आवाजें सुनते-सुनते रूबी का एक हाथ उसके दायें वाले मुम्मे को दबाने लगा। करती भी क्या? खुद को ही करना पड़ा, कोई और तो था नहीं। रूबी उत्तेजना से भरती जा रही थी। उसके लिए वहां पे खड़े होना भी मुश्किल हो रहा था।
उधर हरजीत ने प्रीति के मम्मे पे काट लिया और प्रीति की हल्की सी चीख निकल गई। इस चीख से रूबी अपने होशो हवाश में आई। वि पशीने से तरबतर थी।
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