RE: Kamukta Story प्यास बुझाई नौकर से
अगले दिन रूबी सुबह उठी और ब्रश वगेरा करने के बाद सलवार सूट में आ गई, और फिर अपने कमरे से बाहर आ गई, तो देखा मम्मीजी किचेन में थे। रूबी ने उनके पैर छुए और उनका हाथ बंटाने लगी।
ससुर अभी टहलने गये थे। कुछ देर बाद वापिस आ गये और फिर तीनों ने बैठकर चाय पी और बातें करने लगे। सुबह का अखबार भी आ चुका था। तीनों ने अलग-अलग पेज लेकर पढ़ना शुरू कर दिया। बातें करते-करते 8:00 बज गये थे।
रामू ने बाहर खड़े होकर मालिक को आवाज लगाई। हरदयाल बाहर गया और दोनों के बीच कुछ बात होने लगी।
रामू- बाबूजी काफी टाइम हो गया है घर गये। कुछ दिन की छुट्टी डेडा घर वालों से मिल आएं।
हरदयाल- अरे राम तुम्हें पता है ना काम कितना है खेतों का? अगर तुम मिलने गये तो जल्दी वापिस नहीं वाले हो, और मैं अकेला कैसे सारा काम देखूगा। पहले भी तुम दो हफ्तो का कहकर जब भी जाते हो और महीने से ज्यादा लगाके आते हो।
राम- बाबूजी क्या करें? घर पे कोई ना कोई काम पड़ जाता है और टाइम ज्यादा लग जाता है।
हरदयाल- चल देखता हूँ कुछ दिनों तक। अगर कुछ हो सका तो चले जाना।
राम- "ठीक है बाबू जी। और बाबू जी अगर पगार थोड़ी सी बढ़ा देते तो घर का गुजारा थोड़ा सा अच्छे से चल जाता। पिछले साल से पगार नहीं बढ़ी है और खर्चे बढ़ गये हैं।
हरदयाल- हाँ हाँ, देखता हूँ इसके बारे में भी। तुम्हारी छुट्टी खतम होने के बाद जब तुम वापिस आओगे तो बढ़ा दूंगा पगार।
रामू- ठीक है बाबूजी।
हरदयाल- ठीक है। भैसों को नहला दो और बाद में खेतों में खाद डालने चलना है।
रामू- ठीक है बाबू जी।
हरदयाल वापिस आकर अखबार पढ़ने लगता है। रूबी और कमलजीत वापिस किचेन में आ गये थे, और खाने की तैयारी कर रहे थे।
कमलजीत- क्या कह रहा था रामू?
हरदयाल- कुछ नहीं वही छुट्टी का रोना और पगार बढ़ाने का बोल रहा था।
कमलजीत- इन लोगों का यही इश्यू होता है। छुट्टी दे दो घर जाना है। पगार बढ़ा दो।
हरदयाल- हाँ, वो तो है। पर इतना है की रामू काफी टाइम से काम कर रहा है और सबसे बड़ी बात ईमानदार भी
कमलजीत- हाँ जी यह तो है।
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