RE: Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग
नेहा, समर और प्रीति ने नाश्ता किया। समर और नेहा अभी भी आपस में ज्यादा नहीं बोल रहे थे।
नाश्ता करने के बाद प्रीति तैयार होकर आई।
प्रीति बोली- “अच्छा सुनो तुम दोनों, मैं जरा मिसेज गुप्ता के यहां जा रही हूँ। किटी पार्टी है। शाम 4-5 बजे तक आऊँगी। नेहा, अपने और अपने भाई के लिए लंच बना लेना। ओके..."
आज हम दोनों फिर से अकेले होंगे। ये सुनकर दोनों भाई बहन के कान खड़े हो गये। दोनों के दिमाग में एक ही चीज दौड़ रही थी। वो रात... जब वो दोनों अकेले थे।
नेहा- “हाँ... माँ, मैं बना दूँगी लंच...” नेहा ने जवाब दिया।
प्रीति- “गुड... चलो मैं चलती हूँ, दोनों ध्यान से रहना। बाइ..” प्रीति बोली और घर से बाहर चली गई।
जैसे ही प्रीति बाहर गई, नेहा और समर ने एक दूसरे की आँखों में देखा। जैसे दोनों दूसरे की आँखों में कुछ ढूंढ रहे हों। जैसे अंदाजा लगा रहे हों की दूसरे के मन में क्या चल रहा है? मगर ये घूरना बस चन्द सेकण्ड का था।
नेहा ने अपनी चाल चल दी थी। ये कहकर की अब उसके और समर के बीच कुछ गलत नहीं होगा, उसने समर को परेशानी में डाल दिया था। अब नेहा को बस समर के कदम का इंतेजार करना था।
नेहा- “मैं ऊपर अपने कमरे में जा रही हूँ। कुछ काम हुआ तो बता दियो..." नेहा ने समर से कहा और अपने कमरे की ओर चल दी। जाते-जाते उसने एक जोर की अंगड़ाई ली, जिससे उसका टाप ऊपर उठ गया और उसकी पतली गोरी कमर दिखने लगी।
समर ये देखकर उत्तेजित हो गया। साथ-साथ वो अपनी दीदी की मटकती हई गाण्ड को भी ऊपर जाते देख रहा था। नेहा को ये पता था, और वो जानबूझ के अपनी गाण्ड ज्यादा हिला रही थी। गाण्ड हिलाते-हिलाते वो अपने कमरे में चली गई।
समर अब नीचे हाल में एकदम अकेला था। मगर उसके दिमाग में विचारों की भीड़ लगी हुई थी। उसने ये तो सोच लिया था की वो इस मौके को जाने नहीं दे सकता, मगर अपनी बहन से ये बोलने की हिम्मत जुटा नहीं पा रहा था। उसने अपना हाथ अंदर डाला और अपने लण्ड को पकड़ लिया। वो एकदम तना हुआ था। ये तीन चार दिन उसके लण्ड के लिए सबसे सुहाने दिन थे। और इसका एक मात्र कारण उसकी दीदी और उसके साथ बिताई वो रात थी। मगर उसकी दीदी ने कहा था की अब ऐसा कुछ नहीं होगा। नहीं... मुझे ऐसा मौका जिंदगी में कभी नहीं मिलेगा। हाँ वो मेरी दीदी हैं, मगर है तो एक लड़की ही। वो भी इतनी ज्यादा सुंदर, इतनी ज्यादा सेक्सी लड़की। नहीं... मुझे दीदी से बात करनी ही होगी। समर मन ही मन सोच रहा था। समर को पता था की अभी उसके पास अच्छा मौका है दीदी से बात करने का। घर पे और कोई नहीं है। वो बहुत ज्यादा नर्वस था। उसे समझ में नहीं आ रहा था की वो क्या कहे दीदी से। घहबराहट, डर, शर्म सबने उसे घेरा हुआ था। मगर उसकी हवस, उसकी ठरक और उसका लण्ड उसे आगे बढ़ने को कह रहे थे।
ऊपर अपने कमरे में बैठी नेहा भी यही उम्मीद कर रही थी की समर ऊपर आए और उससे बोले की वो भी वो सब चाहता है। नेहा को थोड़ा डर था की कहीं समर उसकी कही बात को सीरियसली लेकर शांत ना हो जाय। पर उसे अपने कातिलाना शरीर पे भी भरोसा था, और एक गहरी उम्मीद थी की समर खुद चलकर उसके पास आयेगा।
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