RE: Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग
प्रीति- “तो मैं क्या करूँ? हफ्ते हो गये हैं। तुमने हाथ तक नहीं लगाया मुझे। तुम समझते क्यों नहीं हो की मेरी भी कुछ जरूरतें हैं?” प्रीति बोली।
नेहा दरवाजे पे कान लगाये सुन रही थी। ऐसी बातें जो किसी की संतान को अपने पेरेंट्स के मुँह से नहीं सुननी चाहिये। मेरी माँ सेक्स के लिए पापा से लड़ रही है। वाउ... नेहा के मन में अजीब सी उत्तेजना जगी।
यतीन- “तो, तुझसे कहा तो था की सनडे को तेरी सारी डिमांड पूरी कर दूंगा। कल सनडे है। एक दिन रुक जा। आज थका हुआ हूँ...” यतीन की आवाज आई।
नेहा बहुत इंटेरस्ट से सुन रही थी ये वार्तालाप।
प्रीति- “कल तक मैं इंतेजार नहीं कर सकती। मुझे तुम्हारा लण्ड चाहिये, अपने मुँह में। चूसने दो ना मुझे। तुम लेटे रहो..”
नेहा ने जब अपनी माँ की ये बात सुनी तो उसकी 20 साल पुरानी इमेज अपनी माँ की, एक पल में नष्ट हो गई। और पता नहीं क्यों. उसकी चत मचलने लगी। मेरी माँ पापा के लण्ड के लिए भीख माँग रही है।
यतीन तो अभी-अभी अपनी सेक्रेटरी को चोदकर आया था। उसे पता था की अपनी पत्नी के लिए उसका लण्ड शायद अभी खड़ा नहीं होगा। तभी वो अपना लण्ड बाहर निकालने से बच रहा था।
यतीन- “अरें प्रीति, मैंने प्रामिस किया है ना तुझसे। कल जो करना है कर लियो। कल रात बच्चों के सो जाने के बाद, तुझे पूरी रात जगा के रखूगा..” यतीन ने कहा।
नेहा को बुरा लगा। क्योंकी उसका दिमाग चाहता था की उसकी माँ, पापा का लण्ड चूसे, और वो ये सुने। अपने ख्यालों पर नेहा को शर्म आ रही थी।
प्रीति- “ठीक है... कल का इंतेजार करती हूँ मैं। मगर अगर अपना वादा तोड़ा तो देखना मैं क्या करती हूँ?” प्रीति की आवाज आई और उनके कमरे की लाइट आफ हो गई।
नेहा समझ गई की वो अब सो रहे हैं। वो भी ऊपर अपने कमरे की ओर बढ़ गई। उसके दिमाग में जैसे हंगामा हो रहा था। जो उसने सुना था, वो बहुत ज्यादा इंटिमेट डीटेल थी। उसको एहसास हुआ की उसके पेरेंट्स की सेक्स लाइफ ठीक नहीं चल रही है। मगर ये सारी बातों ने उसकी चूत में तो आग लगा दी थी। मेरी माँ, पापा का लण्ड चूसने के लिए ऐसे मर रही थी, जैसे कोई भिखारी पैसों के लिए मरता है। कैसा होगा पापा का लण्ड? समर के लण्ड से तो बड़ा ही होगा।
कल वो दोनों सेक्स करेंगे- “तुझे पूरी रात जगा के रखूगा...” पापा की ये बात बेटी के दिमाग से नहीं हट रही थी। उसके बदन में एक ठंडी लहर दौड़ गई। वो अपने दरवाजे के पास पहँच गई। मगर उसका मन अब सोने का नहीं कर रहा था। वो कुछ और करना चाहती थी।
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