RE: Bhai Bahan Sex Kahani भाई-बहन वाली कहानियाँ
ताऊ की लड़की को बायोलॉजी पढ़ाया-1
ये बात तब की है, जब मैं अपने एम बी बी एस के दूसरे साल में था. मैं अपनी फैमिली के साथ रहता था मेरी फैमिली में मेरे पापा-मम्मी और मेरे ताऊ जी रहते थे. मेरे ताऊ की लड़की, जिसका नाम मनीषा है. मनीषा भी हमउम्र होने के कारण मुझको मेरे नाम से ही बुलाती थी.
हमारे घर 3 मंजिल का है. ग्राउंड फ्लोर पर ताऊ जी रहते हैं, दूसरे फ्लोर पर मेरे माँ डैड और लास्ट फ्लोर पर दो रूम थे, जिसमें एक में मैं और दूसरे में मनीषा रहती थी.
वो 12 वीं क्लास में थी. उसने भी विज्ञान विषय ले रखा था और वो भी मेरी तरह डॉक्टर बनना चाहती थी.
चूंकि मैं पढ़ाई में बहुत अच्छा था और मैंने 12 वीं क्लास में भी 87% स्कोर किया था, तो मेरे ताऊ जी ने कहा था कि मनीषा पर ध्यान देते रहना. मैं उस टाइम एम बी बी एस की पढ़ाई भी कर रहा था और घर पर ही 11 वीं और 12 वीं क्लास के स्टूडेंट्स को टयूशन भी देता था.
यह बात जनवरी 2012 की है. मैं और मनीषा दोनों देर रात तक संग ही पढ़ते थे और पढ़ाई खत्म होने के बाद अपने अपने रूम में चले जाते थे.
मैं कॉलेज से आकर करीब शाम 5 बजे से टयूशन पढ़ाता था और मनीषा भी उसी टाइम मेरे से ही टयूशन पढ़ती थी. उसके साथ उसकी कुछ सहेलियां भी पढ़ती थीं. चूंकि वो सारे मेरे ही हमउम्र थे, तो हंसी मजाक में वक़्त यूं ही कट जाता था. धीरे धीरे हम लोगों में फ्रेंड्स जैसा माहौल बन गया. कभी कभी वो लोग मुझसे मेरी गर्लफ्रेंड के बारे में पूछते थे.
मैं भी उनको बहुत एन्जॉय करता था.
पढ़ाई में मैं उन सभी को सिर्फ बायोलॉजी और फिजिक्स ही पढ़ाया करता था. एक दिन जब उनका बायोलॉजी का टर्न आया तो मैं रोज की तरह उनको पढ़ाने के लिए अपने रूम में आया, तो सारी लड़कियां धीरे धीरे हंस रही थीं. मैं समझ नहीं पाया कि क्यों हंस रही हैं.
मुझे देख कर मनीषा भी हंस रही थी. मैंने उससे पूछा कि मनीषा क्या हुआ.. ये लोग इतना क्यों हंस रहे हैं?
तो उसने भी हंस कर कहा- आज आपके बायोलॉजी का टर्न है ना!
मैंने कहा- तो इसमें हंसने की क्या बात है.. बायोलॉजी पढ़ने का सब्जेक्ट नहीं है क्या?
फिर मैंने और थोड़ा कड़क होते हुए कहा- चलो चलो.. सब अपनी अपनी बुक निकालो और बताओ कि आज कौन सा चैप्टर पढ़ना है?
मनीषा मेरे पास तीसरा चैप्टर ले कर आ गई और बोली- पंकज, आज आपको ये पढ़ाना है.
वो चैप्टर देखकर में भी थोड़ा झिझक गया. चैप्टर था ‘ह्यूमन रिप्रोडक्शन’ का. (मानव प्रजनन)
थोड़ी देर तो मैं कुछ नहीं बोला, लेकिन मैं उस टाइम थोड़ा असहज हो रहा था, मैं बोला- आज नहीं पढ़ा सकता.. ये किसी और दिन पढ़ाऊंगा.
और उस दिन मैंने उनको दूसरा चैप्टर ‘इवोल्यूशन’ का पढ़ाया.
अब तक उनके सारे चैप्टर खत्म हो चुके थे, तो उन्होंने मुझसे वही छूटा हुआ तीसरा प्रजनन वाला चैप्टर पढ़ने की जिद की. अब मैं उन सबको रोज रोज तो टाल नहीं सकता था. तो मैंने उनको पढ़ाना चालू किया.
दोस्तो, सच बताऊं तो सबसे ज्यादा एन्जॉय हम लोगों ने उसी चैप्टर को पढ़ने में किया. शुरू में तो वो सब भी कुछ पूछने से कतरा रही थीं और मैं भी कुछ बताने से कतरा रहा था. मैंने नोटिस किया कि वो लड़कियां मेरे खड़े लंड को घूर रही थीं. पढ़ाई के बाद मैंने उस दिन दो बार मुठ मारी.
उस समय जनवरी 2013 का महीना चल रहा था, उसी टाइम मतलब फरवरी 2013 में हमारे छोटे चाचा की शादी भी पक्की हो गई. शादी गाँव से होकर थी. कुछ दिन बाद मेरे घर वाले शादी की तैयारी में लग गए. हमारा होम टाउन कानपुर पड़ता है, तो माँ पापा और ताऊ जी सब जाने की तैयारी में लग गए.
मेरा और मनीषा का भी जाने का मन था लेकिन मनीषा के बोर्ड के एग्जाम की वजह से मुझे भी नहीं जाने दिया गया. थोड़ा दुःख तो हुआ लेकिन मुझे स्कोर अच्छा करना था, तो मैंने अपना सारा ध्यान पढ़ाई पे ही लगा दिया.
वो भी दिन आ गया, जिस दिन मेरे पेरेंट्स और ताऊ जी सब गांव चले गए. अब पूरे घर में सिर्फ मैं और मनीषा ही रह गए थे.
उस दिन के बाद सिर्फ हमने टयूशन में सिर्फ ह्यूमन प्रोडक्शन का ही चैप्टर्स पढ़ाई की थी. उस दिन रात में मैं और मनीषा दोनों जब पढ़ाई कर रहे थे, तब मैंने नोटिस किया कि मनीषा वो चैप्टर पूरे ध्यान से पढ़ रही है. मैंने उसको वो चैप्टर पढ़ते देखा, तो मेरा लंड मानो आसमान छूने लगा. उस वक्त मैंने ट्राउजर पहना था, फिर भी मेरा लंड पजामा फाड़ के बाहर आने को तैयार था.
मैंने मनीषा के बारे में ऐसा पहले कभी नहीं सोचा नहीं था, लेकिन ना जाने क्यों उस दिन के बाद मैं हर समय मनीषा के बारे में सोचने लगा.
उस रात पढ़ने के बाद मैं अपने रूम में आ गया और मानो मेरे दिल दिमाग पर सिर्फ मनीषा ही मनीषा दिखाई दे रही थी. मैंने अपना कमरा बंद किया और पूरा नंगा हो गया. उस रात सर्दी बहुत थी, लेकिन फिर भी मानो मुझे गर्मी लग रही थी.
पूरी रात रजाई के अन्दर नंगा लेट कर टीवी पे ब्लू फिल्म देखता रहा. सुबह मेरी आंखें तब खुलीं, जब मनीषा ने गेट खटखटाया.. मैं जल्दी से उठा. थैंक्स गॉड कि मैंने गेट बंद कर रखा था. मैंने जल्दी से कपड़े पहने और बिस्तर सही किया. तकिये की तो बुरी हालत हो चुकी थी. मैंने जल्दी से तकिये का कवर निकाल दिया और फिर कपड़े पहन कर रूम खोला.
रूम खुलते ही चारों तरफ जेस्मिन की खुशबू ही खुशबू थी.
मनीषा ने अपने रूम के अन्दर से ही आवाज लगाई- पंकज मैंने नहा लिया है.. तू भी तैयार हो जा, कॉलेज नहीं जाना क्या?
“हां मनीषा, मैं भी तैयार होने जा रहा हूँ.” यह कहते हुए मैं भी बाथरूम में चला गया.
मैं बाथरूम के अन्दर ब्रश कर ही रहा था कि अचानक मेरी नज़र मनीषा की पेंटी पर पड़ी.
उसकी पिंक कलर की ब्रा और पेंटी देखी तो मुझे मस्त चढ़ गई. मैंने बिना सोचे समझे उन दोनों को हैंगर से उतार लिया. मनीषा की पेंटी अभी मेरे हाथों में ही थी और मेरा लंड मानो फिर से सलामी देने लगा.
उसकी पेंटी में से भी गुलाब और जैस्मिन जैसी खुशबू आ रही थी. मैं पागलों की तरह उसकी पेंटी को सूंघे और चाटे जा रहा था. उसकी पेंटी की वो जैस्मिन और गुलाब की सुगंध के साथ हल्की नमकीन वाली मादक खुशबू मानो मुझ पर ऐसा जुल्म ढहा रही थी कि मेरे लंड की सारी नसें फट कर बाहर आ जाएंगी.
जब मैं उसके पेंटी का चुत वाला हिस्सा चाट रहा था तो मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे मैं उसकी चुत को चाट रहा हूँ.
दोस्तो, मैं बता नहीं सकता कि उस टाइम मुझे कितना मजा आ रहा था. फिर मैंने उसकी पेंटी से ही मुठ मारी और सारा माल उसकी पेंटी में ही छोड़ दिया. इसके बाद उसकी पेंटी वहीं हैंगर पर टांग दी.
उसके बाद मैं नहा धोकर बाथरूम के बाहर आ गया.
मनीषा ने कहा- नाश्ता तैयार है, खा लो.
मैं टीवी देखते देखते ब्रेकफास्ट करने लगा. थोड़ी देर में मनीषा रूम में आई और पूछने लगी- कुछ और चाहिए?
मैं टीवी देखने में मशगूल था, मैंने ना में सर हिला दिया. उसने फिर पूछा, मैंने फिर से बिना उसे देखे ना में सर हिला दिया.
लेकिन फिर उसने तीसरी बार फिर पूछा इस बार मुझे थोड़ा ग़ुस्सा आया और मैंने ये कहते हुए पीछे मुड़ा. उसको देखते ही मानो मेरी ऊपर की सांस ऊपर.. और नीचे की सांस नीचे रह गई.
उसने अपने हाथों में वही गुलाबी पेंटी और ब्रा पकड़ रखी थी. मैं उसको देख के कुछ बोल नहीं सका. फिर वो मुस्कुरा कर जाते हुए बोली- कुछ चाहिए हो तो मुझे बता देना.
मुझे अचानक ही याद आया कि मैंने जो अपना माल उसकी पेंटी में निकाला था, वो मैंने धोया नहीं था. अब मुझे अंदाज़ा हो गया था कि मनीषा ने वो मेरा माल देख लिया होगा. पर बावजूद इसके उसने मुझसे कुछ नहीं कहा. मनीषा की ये बात मैं समझ नहीं पाया.
मेरा उस दिन कॉलेज में मन नहीं लगा. मैं मनीषा के बारे में ही पूरे दिन सोचता रहा. उस दिन में कॉलेज से घर भी जल्दी आ गया, फिर तैयार होकर मैंने सबको टयूशन पढ़ाई. मैं और मनीषा उस दिन एक दूसरे से नज़रें नहीं मिला पा रहे थे. पर चोरी चोरी कनखी निगाहों से एक दूसरे को कभी कभी देख लेते थे.
मेरे उस दिन पढ़ाने का भी मन नहीं कर रहा था, पर मैंने हालात को ठीक से हैंडल किया. मैंने मनीषा से उसके होम वर्क और कुछ इस तरह की बातें की ताकि वो मुझसे बात कर सके. उसने भी मुझसे सही तरह से बात करना शुरू किया.
कुछ देर बाद हम दोनों थोड़ा हंसने बोलने लगे. ऐसा लग रहा था जैसे गाड़ी फिर से पटरी पर आ रही हो.
शाम को मैंने सिचुयेशन को और ठीक करने के लिए कुछ नया प्लान किया. मैंने आज रात का डिनर बाहर से ऑर्डर कर लिया और मनीषा से बोला- आज डिनर मत बनाना.
तो उसने भी उत्सुकतापूर्वक पूछा- क्यों नहीं बनाना है?
तो मैंने कहा- आज मैंने डिनर बाहर से ऑर्डर कर दिया है, चल जब तक खाना नहीं आता, कुछ पढ़ लेते हैं.
शाम के करीब 7:30 हो रहे होंगे, चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा था.
हम दोनों वहीं बेड पर बैठे पढ़ रहे थे. मैंने जानबूझकर उस दिन हाफ पैन्ट पहना हुआ था. मैं आराम से मनीषा के बदन को घूर रहा था. आज मानो मैंने पहली बार उसके बदन को सही तरीके से देखा था.
मनीषा का वो गेहुंआ रंग और हाइट 5 फुट 3 इंच.. बाल घने और लंबे.. और पूरा बदन एकदम भरा हुआ था. उसके लिप्स पे लगी हल्की लिपस्टिक मानो मुझसे कह रही थी कि आ जाओ और होंठों के पूरे रस पी लो.
मैं अपनी बहन की नंगी पीठ और ढकी जाँघों को देखे जा रहा था. उसने सफेद रंग का सूट पहन रखा था, इसमें वो बहुत ही सेक्सी लग रही थी, उसे देख कर ऐसा लग रहा था, जैसे स्वर्ग से कोई अप्सरा उतर कर आ गई हो.
मेरी नज़र कभी उसके मम्मों पर तो कभी उसकी पेंटी पर जाती. उसके सफ़ेद झीने से सूट में से झलकती ब्लैक पेंटी और ब्रा की हल्की झलक मैं साफ़ देख सकता था. उसके कूल्हे के बगल से जाती वो पेंटी की रबर और उसकी पीठ पर बँधी उसकी ब्रा की पट्टी और उसका हुक मैं साफ़ देख सकता था.
वो मेरी नज़रों को भांप चुकी थी, तभी नज़र से नज़र नहीं मिला रही थी. उसके मम्मों को देख कर मानो मेरे पूरा मुँह पानी से भर गया. मेरा लंड तो हाफ पेंट के अन्दर से बाहर आने को बेताब था. मैं पढ़ते हुए हल्के हल्के अपने लंड को कभी कभी सहला लेता.
मैंने नोटिस किया कि मनीषा भी मेरे लंड को कनखी निगाहों से देख रही है. मैंने उसको भी अपने लंड की हल्की झलक दिखाने में पूरा सहयोग किया. मैंने बैठे-बैठे अपनी एक टाँग को उठा सा लिया और एक घुटने पर बैठ गया. अब मेरा लंड हल्का बाहर आ रहा था. मैंने मनीषा को भी कनखी नगाहों से देखा, वो मेरे लंड को पूरा देखने की कोशिश कर रही थी. उस दिन मैंने जानबूझ कर अंडरवियर भी नहीं पहना था. तनिक खुल जाने से हवा मेरी हाफ पेंट के अन्दर जाने लगी थी और मैं अपने लंड पर हल्की ठंडक महसूस करने लगा था. मेरा लंड अब पूरी तरह खड़ा हो चुका था. लेकिन मैंने जानबूझकर पूरा लंड बाहर नहीं निकाला.
मैंने नोटिस किया कि मनीषा मेरा पूरा लंड देखने के लिए जैसे पागल से हो रही थी.
इससे पहले कि मैं कुछ करता, डोर बेल की आवाज़ ने हम दोनों की मशगूलता में जैसे पूरी तरह खलल डाल दी.
मनीषा ने कहा- पंकज, तू हाथ मुँह धोकर तैयार हो जा. मैं डिनर लगा देती हूँ.
इस टाइम करीब रात के 9:00 बज चुके थे. मैं वॉशरूम में हाथ मुँह धोने के लिए चला गया. जब मैं फ्रेश होकर वापस डिनर टेबल पर आया.. तो देखा कि मनीषा डिनर लेकर लगा रही थी. इस वक्त वो एक नई नाइटी में थी. उसकी नाइटी देख कर मैं दंग रह गया. क्या लग रही थी दोस्तो.. मानो सच में कोई अप्सरा आ गई हो.. जन्नत की हूर धरती पर आ गई हो.
हम दोनों डिनर टेबल पर बैठे, मैं उसको पागलों की तरह घूर रहा था. अचानक उसने मुझे टोका और पूछा- पंकज, खाना कैसा है.
खाना तो वास्तव में टेस्टी था, खाने में जीरा राइस, शाही पनीर और नान के साथ रायता और राजमा भी मँगवाया था.
हम दोनों संग में डिनर कर रहे थे.
मैं हल्के से फुसफुसाया- मनीषा तुम आज बहुत खूबसूरत लग रही हो.
मनीषा ने पूछा- क्या बोला, कुछ कहा क्या तुमने?
‘नन..नहीं..’ मैंने हड़बड़ाते हुए कहा.
वो भी हल्के से मुस्कुराने लगी. फिर मैंने अपना डर निकालते हुए कहा- मनीषा यू आर लुकिंग सो ब्यूटिफुल.
उसने कुछ नहीं कहा और हल्के से मुस्कुराते हुए थैंक्स बोला.
रात को हम दोनों डिनर करके अपने अपने रूम में चले गये.
मैंने अपना रूम बंद किया और फिर से ब्लू फिल्म चालू कर दी. मैं पूरा न्यूड होकर मनीषा के ख्यालों में खोकर रज़ाई में सोते सोते मुठ मार रहा था.
अब करीब रात के 10:30 हो रहे होंगे, मैंने लाइट बंद की और सो गया. थोड़ी देर में मैं वॉशरूम जाने के लिए उठा. इस वक्त घड़ी में रात के करीब 1:20 हो रहे थे. मैंने अपना रूम खोला और वॉशरूम चला गया. वॉशरूम से बाहर आने के बाद मेरी नज़र मनीषा के रूम पर गई, उसके रूम के अन्दर की लाइट अभी भी जल रही थी. मेरे दिल की धड़कन अचानक बढ़ गई और में दबे पांव मनीषा के रूम की तरफ जाने लगा. मैं उसके की-होल से झांक कर अन्दर की तरफ देखने लगा.
अन्दर का नज़ारा देख कर मानो मेरी पूरी नींद गायब हो गई. मैं पूरे तरीके से तो नहीं देख पा रहा था, लेकिन मनीषा अन्दर पूरी नंगी बिस्तर पर पड़ी थी. मैं उसकी टांगें थोड़ी बहुत देख सकता था. उसकी पूरी नंगी टांगें और हिलते कूल्हे देख कर ऐसा लग रहा था वो अपनी चुत में कुछ डाल रही थी.
मैं बदहवाश सा उस डोर के की-होल से जितना हो सकता था, देखने की कोशिश कर रहा था. थोड़ी देर देखने के बाद उसका हिलना बंद हो गया, उसने अपने बेड के पास ही रखे डस्ट बिन में कुछ डाला और फिर लाइट बंद कर दी. मैं भी अपने रूम में वापस आकर सो गया.
अगले दिन सुबह मैं जल्दी ही उठ गया लेकिन कमरे से बाहर नहीं आया. मेरे अन्दर इस बात को जानने की उत्सुकता थी कि मनीषा ने डस्ट बिन में क्या डाला. थोड़ी देर बाद मनीषा बाथरूम में चली गई. मैंने हल्के से अपने रूम का डोर खोला और दबे पांव मनीषा के रूम में चला गया. मैंने डस्ट बिन उठा कर देखा उसमें एक 6-7 इंच का लंबा बैंगन पड़ा था. मैंने उस बैंगन को उठाया और उसको सूंघने लगा. दोस्तो उस बैंगन से मादक नमकीन सी खुशबू आ रही थी उस डस्ट बिन में विश्पर के भी पैकेट पड़े थे. मैंने उनको भी उठा कर देखा हल्के से खूने के दाग से भरे वो विश्पर उसी में पड़े थे.
मैं फटाफट उसके रूम से निकल आया. मनीषा अभी भी बाथरूम में थी. गिरते पानी की आवाज़ से पता चल रहा था कि शायद वो नहा रही होगी.
मैं बाथरूम के दरवाजे के छोटे होल से उसको देखने लगा. अन्दर हल्का सा अंधेरा था, उसने लाइट नहीं ऑन की थी, लेकिन उस डोर से उसकी वही पुरानी जेस्मीन और गुलाब की मिक्स खुशबू आ रही थी.
थोड़ी देर में उसने उसने अपना शावर बंद किया, पानी गिरना बंद हुआ तो मैं झट से अपने कमरे में आ गया. मैंने अपना रूम हल्के से फिर से बंद कर लिया.
वही कल की तरह उसने दुबारा आवाज़ लगाई- पंकज उठ जा, सुबह हो गई.
मैंने भी आवाज़ लगा कर कहा- हां मनीषा बस अभी उठा.
फिर मैंने अपना रूम खोला और बाथरूम में गया. बाथरूम में घुसते ही मेरी नजर हैंगर पर गई, आज भी वहां काले पेंटी लटकी हुई थी. मैंने झट से उसको उठा लिया और पागलों की तरह उसको सूंघने लगा.
दोस्तो, मैं बता नहीं सकता कि कितना मजा आ रहा था. मैं बाथरूम में पूरा नंगा था और शावर चला रखा था, लेकिन मैं नहा नहीं रहा था. बस मिरर के सामने खड़े होकर उसकी पेंटी और ब्रा को पागलों की तरह सूँघे जा रहा था.
अचानक मैंने बाथरूम के दरवाजे के नीचे एक परछाई को नोटिस किया कि मनीषा मुझे डोर के छेद से देख रही थी.
मैंने अपने आप को जल्दी ही संभाला लेकिन मैंने ऐसा बिहेव किया कि उसे शक ना हो कि मैंने उसको देख लिया है. मैं जानबूझ कर डोर के पास आ गया और मैंने बाथरूम की लाइट भी ऑन कर दी ताकि मनीषा मेरे लंड के दर्शन जी भर के कर सके. मेरा लम्बा लंड फड़फड़ाता हुआ डोर के छेद को ही देख रहा था. मैं अपने लंड पर शैम्पू लगा कर धीरे धीरे मुठ मार रहा था और उसकी पेंटी को चाट रहा था. मनीषा इस सब को देख रही थी.
फिर मैंने अपना लंड धोया और सारा शैम्पू साफ़ किया. अब मानो मेरे लंड की सारी नसें फटने सी हो गई थीं. तभी लंड ने उल्टी कर दी और मैंने अपना लंड उसकी ही पेंटी से साफ़ किया. फिर लंड पर थोड़ा तेल लगाया और एक बाक़ी की बची फुहार से मैंने अपना सारा माल उसकी पैंटी में डाल दिया.
ये सब मनीषा डोर के छेद से देख रही थी. अब मैं नहाने लगा, शावर चालू किया और नहाना चालू कर दिया.
मैंने नीचे देखा तो समझ गया कि मनीषा अब जा चुकी थी. थोड़ी देर में मैं नहा धोकर बाहर आया.
फिर मनीषा ने कहा- नाश्ता लगा लिया है.. खा लेना.
मैंने नोटिस किया कि मनीषा पहले की तरह मुझसे बात करने में शर्मा नहीं रही थी, वो मुझसे पहले की तरह खुल कर बातें कर रही थी.
फिर मैं नाश्ता की प्लेट लेकर अपने रूम में चला गया और ब्रेकफास्ट करने लगा. तभी मैंने देखा कि मनीषा बाथरूम में जा रही है.. और मुझे उसके बाथरूम के दरवाजे बंद करने की आवाज़ सुनाई दी.
मैंने तुरत नाश्ता करना छोड़ा और बाथरूम की तरफ दबे पांव आ गया. मैंने छेद से देखा कि मनीषा उसी ब्लैक पेंटी पे लगा मेरा माल चाट रही थी. उसके कंठ से हल्की मादक सिसकारियों की आवाज़ बाहर तक आसानी से सुनाई दे रही थी. तभी मनीषा ने भी बाथरूम की लाइट ऑन कर दी. अब मैं मनीषा को पूरी नंगी देख सकता था. मुझे अहसास हुआ कि मनीषा ने भी मुझे देख लिया है था, पर मैं फिर भी दरवाजे से हटा नहीं.
मनीषा भी मेरी तरह की दरवाजे के पास आ गई और उसने अपने सारे कपड़े उतार दिए. उसकी चुत पर हल्के हल्के बाल थे.
दोस्तो क्या बताऊं.. कितना मज़ा आ रहा था. वो डोर के छेद के पास ही अपनी टांग उठा कर अपनी उंगली अपने चुत में डाल रही थी और कामुक सिसकारियां निकाल रही थी. साथ ही अपनी ही पेंटी को चाटे जा रही थी. मुझे याद था कि मैंने अपना सारा माल उसी पेंटी में छोड़ा था. थोड़ी देर बाद मनीषा शांत हो गई.
फिर जैसे ही उसने लाइट को ऑफ किया, मैं भी अपने रूम में आ गया.
उसने फिर मुझसे पूछा कि और कुछ चाहिए क्या?
मैंने उसके तरफ अपनी गर्दन घुमाई वो मुझे देख कर हल्का मुस्कुरा कर पूछ रही थी- कुछ चाहिए क्या?
इस वक्त उसके हाथों में वही ब्लैक पेंटी थी. मैंने भी मुस्कुराते हुए बोला- और कुछ नहीं चाहिए.
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