RE: XXX Sex Stories डॉक्टर का फूल पारीवारिक धमाका
चलो एक काम तो अच्छा बना की इतने दिनों के बाद मैंने अपनी पहली इम्प्रैशन उस आंटी के मन से निकल तो दी. अब वो मुझे अच्छा लड़का मानती हे, तो इसका मतलब मुझे अब थोड़ा ध्यान रखना पडेगा. मैंने फिर दो दिन तक आंटी की डेली रूटीन एक्टिविटी के बारे में पता लगाया. वो सुबह सात बाजे दूध लेने जाती हे, फिर १० बजे बालकनी में कपडे सूखाने आती हे, फिर १० से १२ सब घरेलु काम, और फिर १२ से ३ का पता नहीं चला, क्यूँकि वो घर में ही रहती हे, पर कुछ ध्यान में आये ऐसा नहीं करती, शायद सो जाती होगी. फिर ३ से ५ या ६ बजे तक किटी पार्टी या फिर अपनी सहेलियों से मिलने या फिर शॉपिंग प्लान करती हे, मतलब घर के बाहर ही रहती हे. फिर डिनर प्रिपरेशन और फिर नाईट ड्यूटी हस्बैंड के साथ. आम तौर पे सब के घर में शायद यही रूटीन होता हे सब का, साला किस टाइम पे क्या करना हे, जिससे वो सिड्यूस भी हो जाये, और अब तो उसे बुरा भी नहीं लगना चाहिये. मेजर प्रॉब्लम था की में थोड़ा सा रिज़र्व टाइप का हू, बड़ी चाची कोमल दीदि, छोटी चाची या फिर माँ इन सब को में बचपन से जानता हू, पर ये आंटी अन्जान हे, और किस टाइम पे क्या रियेक्ट करेगि, ये कहा नहीं जा सकता था
दो दिन तक मैंने इन सब के बारे में पता लगाया, फिर नेक्स्ट डे में अज यूज्यूअल ८.३० और ९ के करीब उठा और फ्रेश हो के अपने कमरे में बैठा था की आंटी अपनी बालकनी में आई और मैंने उन्हें देखा, तो में एक चेयर ले के आंटी के सामने बैठ गया और हाथ में किताब भी ले ली. आंटी मस्त लग रही थी, उन्होंने ग्रीन कलर की साड़ी और मैचिंग ब्लाउज पहना था आंटी की साड़ी घरेलु थी पर आंटी मस्त लग रही थी, आंटी ने पहले एक बाल्टी जिसमे कपडे सूखने को थे, उसे निचे रक्खा और फिर अपने पल्लू को कंधे से मोड़ के निचे ले के आई और अपनी बेल्ली के पास नैवेल के करीब उसे ठूँस दिया. आंटी और मेरे बालकनी के करीब कुछ ज्यादा नहीं बस १० फीट की ही दूरी होगी, पर सुबह में जब सूरज उगता हे तो सीधे उसकी किरणे मेरे कमरे में आती हे, तो वो ध्यान से देखे तभी उन्हें में नज़र आ सकता था मुझे आंटी साफ़ मस्त दिखाई दे रही थी, आंटी ने फिर एक एक करके कपडे निकाले और फिर उन्हें झटक के रस्सी पे लगाने लगी, रस्सी उन्होंने बालकनी के परेल्लल बांधी थी, तो उन्हें झुकना पडता था तो उनका थोड़ा सा क्लीवेज भी देखा जा सकता था बाल उनके साँवरे नहीं थे,
पर फिर भी मस्त लग रहे थे, चेहरे पे कोई मेक अप नहीं पर फिर भी थकन से भरा चेहरा भी अदाओ वाला था कपडे झटकते टाइम उनके फेस के बिगडते एक्सप्रेस्सिओन, पाणी की हलकी हलकी सी बूँदे, और उन बूंदो से भीगता उनका चेहरा, आंटी ने दो तीन कपडे ठीक से रससि पे डाले, और इतने में मेरे फ़ोन की घंटी बजी और ज्यादा दूरी न होने से उन्होंने भी सुना और मेरी विंडो में देखा तो उन्होंने मुझे देख लिया, अब इतना भी में दूरी पे नहीं था की वो देख न सके, बस उनके ध्यान से देखने की जरूरत थी और उन्होंने मुझे पकड़ लिया. फिर संभल कर उन्होंने मेरी और देखा, फिर अपनी और देखा और अपने पल्लू जो की ठीक था उसे फिर से ठीक किया, और अपने कपडे सूखाने लगी, पर हर एक कपडा उठाते टाइम मेरी और देख लेती की कहीं में उन्हें झुकते टाइम देख तो नहीं रहा, और में भी बिन्दास बन के उन्हें देख रहा था इसमें तो कुछ गलत नहीं था आंटी ने दो तीन कपडे सूखाये होंगे की मेरा नसीब जोर कर गया और उनका पल्लो नैवल के वहा से निकल गया, लेकिन अब एक दो ही कपडे बाकि थे तो उन्होंने फिर उसे नैवल के पास नहीं लगाया और कपडे ले ने के लिए झुकि की उन्हें खाली बाल्टी में कपडा लेने के लिए और झुकना पड़ा और उसमे उनका पल्लू खिसक गया और उठते टाइम पल्लू उनके हाथ में आ गया, और मुझे मस्त क्लीवेज दिखाई दिया. मैं तो खुश हो गया की बॉस आज तो मस्त शुरुआत हुई हे, दो दिन के बाद. लेकिन इस बार आंटी ने मेरी और नहीं देखा, अपना पल्लू ठीक किया और कपडा सूखा के चल दी. मज़ा आ गया था जाते टाइम भी क्या गांड झटक रही थी. एक बार मिल जाये तो मारने का मज़ा आ जाये.
पूरे दिन में कॉलेज में में आंटी के बारे में सोचता रहा, शाम को में घर आया, अपने रूम में गया और बालकनी में देखा, आंटी की बालकनी जो थी वो उनका यूजलेस रूम था तो वो वहॉ बस सुबह ही आती थी, बाकि कोई भी उधर आता जाता नहीं था कभी कभी आंटी कुछ स्टोर रूम में रक्खा हो तो लेने के लिए आती थी, और उसी में उन्होंने मुझे पहले मूठ मारते देख लिया था.
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