RE: Indian XXX नेहा बह के कारनामे
तभी रूपचंद का लण्ड उसकी गाण्ड के छेद में आधा घुसा और वो कसमसाते हुये चिल्लाई- “उफफ्फ़... ओहह... माई गोड.. इस्स्स्स ... दो-दो एक साथ नहीं बाबा। मैं नहीं झेल पाऊँगी। निकालो उसे नहींन्न्न्न्...”
मगर रूपचंद ने उसकी गाण्ड को चोदना शुरू कर दिया था और उसका लण्ड अंदर-बाहर होने लगा था तब तक। फिर एक पल बाद नेहा की आवाज ऐसी आई- हाँ, हाँ, धीरे-धीरे, इस्स्स्स ... हाँ हाँ आराम से डालो... उफफ्फ़... उईई माँ..." और नेहा झड़ गई दो-दो लण्ड अपने अंदर एक साथ लेते हुए।
प्रवींद्र की खशी की कोई सीमा न थी उस पल, वो सब देखते हए। नेहा ने अपनी टाँगों को पूरी तरह से फैला । दिया था, जैसे दोनों टाँगों को फाड़ दिया हो। और दोनों मर्दो के लण्ड को अपने अंदर दर्द और मजे के साथ लिए
जा रही थी। तड़प भी रही थी, और खशी भी महसूस कर रही थी एक साथ। उसको जो फीलिंग्स हो रही थी बयान करना मुश्किल है। वोही समझ सकती थी कि उस पल क्या महसूस हो रहा था उसे, चूत के अंदर एक मोटा, बड़ा सा लण्ड अंदर-बाहर हो रहा था और गाण्ड के अंदर दूसरा लण्ड आ जा था, खुद बेकाबू होती जा रही थी हॉफते हुए।
कभी-कभी नेहा का दम घुटने लगता था तो वो गहरी साँसें ले रही थी, गुर्रा भी रही थी, अपने जबड़े को जोर से दबाकर कभी-कभी दाँत पीस रही थी तो कभी सिसकारियां ले रही थी। नेहा के नीचे से शीक अपने लण्ड को उसकी चूत में लूंसे जा रहा था और ऊपर से रूपचंद गाण्ड में घुसा रहा था। नेहा उन दो बूढों के बीच में थी जो दो नौजवानों की तरह उसको बड़े मजे से चोद रहे थे।
फिर कुछ देर बाद शीक नेहा की गाण्ड मारना चाह रहा था, तो उसने रूपचंद को नीचे आने को कहा, पोजीशन बदलने को कहा। रूपचंद मान गया। मगर नेहा ने एतराज किया ये कहकर कि फिर से पीछे में अंदर डालने से
दर्द होगी। तो दोनों मर्द नेहा को फुसलाने लगे, उसको सहलाते हुए चूमने लगे। प्रवींद्र भी आया नेहा को सहलाने मनाने के लिए।
प्रवींद्र ने कहा- “देखो ना सब कितना ठीक चल रहा था, बस अदला-बदली से क्या फरक पड़ेगा? करने दो ना इसको भी पीछे से अब..."
नेहा उन मर्दो की ठरकपन को आगे बढ़ने के लिए मान गई। फिर रूपचंद अपनी पीठ पर लेटा और अपने लण्ड को नेहा की चूत में डाला, और ऊपर से अब शीक ने अपने लण्ड को नेहा की गाण्ड के छेद में घुसेड़ने की कोशिश की। शीक ने अपने लण्ड और नेहा की गाण्ड को थूक से भिगोया और लण्ड ट्रंसने लगा।
नेहा चिल्लाई- “नहीं... रुको, आपका बहुत ज्यादा मोटा है, नहीं घुसेगा, मुझे बहुत दर्द होगी मत डालो अंदर आप, आपका इतना मोटा लौडा मेरे अंदर पीछे में नहीं जाएगा..."
मगर शीक को नेहा का चिल्लाना और शिकायत करना और भी पसंद आ रहा था और उसका मन उसकी गाण्ड मारने का और भी ज्यादा कर रहा था, वो रुकने वाला कहाँ था। उसने नेहा को बड़ी होशियारी से फुसलाते हुए अपने लण्ड को उसकी गाण्ड के छेद में घुसेड़ ही दिया। सिर्फ एक हिस्सा अंदर घुसा तो नेहा चिल्लाई और उसके आँसू निकल पड़े। फिर शीक ने अपने लण्ड को थोड़ा सा और अंदर पेला तो नेहा रोने लगी। शीक ने फिर और ठूसा तो नेहा सिसक गई और आखिर में शीक का लण्ड भी घुस गया नेहा के अंदर... फिर से दो लण्ड उसकी गहराई में थी और दोनों अंदर-बाहर धक्का देने लगे।
नेहा जोर से चिल्लाती रही- “आआहह.. इस्स्स्स ... मुझको फाड़ डालोगे तुम दोनों... फाड़ डाला मेरी गाण्ड को... उईईई माँ... इतना मोटा लण्ड, मैं कैसे झेल पाऊँगी? बस करो ना दर्द हो रहा है, अंदर जलन सी हो रही है, रुको ना प्लीज..."
मगर कौन रुकने वाला था उस वक्त। दोनों मस्त चुदाई कर रहे थे मजा लेते हुए। जितना नेहा चिल्ला रही थी उतना दोनों मर्दो को ज्यादा मजा आ रहा था। शीक को नेहा की गाण्ड बहत ही टाइट लग रही थी और उसको बेहद मजा आ रहा था, खासकर नेहा जब चिल्ला रही थी तब। वो उसकी गाण्ड में धक्का देता गया और नीचे से रूपचंद अपने लण्ड को उसकी चूत में अंदर-बाहर करता गया।
नेहा की साँसें फूल रहे थे, वो सिसक रही थी, लंबी-लंबी साँसें लेते हुए तड़पती जा रही थी दोनों मर्दो के बीच। नेहा ऐंठ रही थी, कभी पीछे मुड़कर शीक को देख रही थी, कभी प्रवींद्र को देख रही थी, और जब मुड़कर शीक को देखी तो शीक ने उसके मुंह को अपने मुँह में ले लिया। फिर नेहा ने भूखी शेरनी की तरह शीक की जीभ को मुँह में लेकर चूसा, फिर नेहा ने शीक के कंधे पर अपना दाँत गड़ाई, जिससे शीक के कंधे पर नेहा की दाँतों के निशान बन गये। नेहा पर जैसे एक जुनून सवार हो गई थी उस पल, झूमने लगी थी, उछलने लगी थी, तड़प भी रही थी, नशे की हालत में दिखने लगी थी, उसकी आवाज बदली सी लगने लगी थी।
नेहा झड़ने वाली थी। उसकी चूत पानी छोड़ चुकी थी और रूपचंद का लण्ड बहुत आसानी से अंदर-बाहर होने लगा थे। जबकि शीक का लण्ड बहुत टाइट अंदर बाहर हो रहा था, उसकी गाण्ड के अंदर। फिर रूपचंद ने गुर्राते हए अपने लण्ड को बाहर निकाला और अपने वीर्य की पिचकारी छोड़ा, जो नेहा के पेट पर पड़ी और वापस रूपचंद के पेट पर गिरी।
नेहा झड़ चुकी थी और जोरों से हाँफ रही थी उस पल जब रूपचंद ने अपना वीर्य छोड़ा।
मगर शीक के लण्ड का तब भी उसकी गाण्ड में आना जाना जारी था। उसने नेहा की कमर को जोर से अपने पंजों में जकड़ा हुआ था और जबरदस्त चोद रहा था, नेहा की गाण्ड मार रहा था और आखिर में वो भी गुर्राया “आगघह... इस्स्स्स ... व्-व-वाहह.." और उसको लण्ड बाहर नहीं निकालना पड़ा, क्योंकी उसने अपने वीर्य को नेहा की गाण्ड की गहराई में ही छोड़ा पूरा के पूरा।
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