RE: Indian XXX नेहा बह के कारनामे
नेहा ने प्रवींद्र को ससुर से प्रेग्नेन्सी के बारे में बताया
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नेहा ने बात शुरू किया, उसने कहा- “मैं प्रेग्नेंट हूँ.."
प्रवींद्र की समझ में नहीं आया कि वो क्या कहे? वो निशब्द नेहा के चेहरे में देखने लगा। एक गहरी साँस लेने के बाद उसने थोड़ा हकलाते हुए पूछा- “तुम प्र...प्रेग्नेंट हो? सीसी... कैसे? कब से?"
उसकी वो हालत देखकर नेहा ने पूछा- “क्यों तुमको फिकर हो रही है? कोई भी प्राब्लम नहीं है, यह तो नार्मल बात है। मैंने पंडितजी को बता दिया और उसने कहा कि फिकर की कोई बात नहीं है सब ठीक हो जाएगा। क्योंकी वो समझता है कि ये मेरे पति का बच्चा है और दुनियां वालों को भी यही लगना चाहिए अब, तो फिकर की क्या बात है?"
तब प्रवींद्र को कुछ आराम महसूस हुआ और पूछा- “तो तुम क्या चाहती हो? बच्चे को रखना है या गर्भपात करोगी..."
नेहा ने गंभीरता से प्रवींद्र के चेहरे में देखते हुए कहा- “क्या तुम चाहते हो कि मैं गर्भपात करूँ..."
प्रवींद्र ने कहा- “नहीं, अगर तुम माँ बनना चाहती हो तो मुझे कोई प्राब्लम नहीं है मगर बाप कौन है? मैं या..”
फिर नेहा ने मुश्कुराते हुए कहा- “जानते हो शुरू से जब तुम्हारे बड़े भाई कुछ नहीं कर पा रहे थे तो पिताजी बहुत ही चिंतित हुआ करते थे और मुझसे कहा करते थे कि उनको अपने वंश को आगे बढ़ाना है उनको अपने चौथे बच्चों को देखना है, अपने खून को और बढ़ते हुए देखना है, वो हमेशा कहा करता थे कि अपनी जायदाद के लिए उनको बहुत सारे पोते पोतियां चाहिए। वारिस चाहिए उससे। मगर उनको खुद नहीं पता था कि उन्होंने मेरे पेट के अंदर अपने बीज को बो दिया था..."
यह सुनकर प्रवींद्र को झटका लगा या खुशी हुई? वो उठ खड़ा हुआ यह कहते- “क्या, पिताजी ने तुमको प्रेग्नेंट किया? मारने से पहले एक औलाद और छोड़ गया, मेरा छोटा भाई.. बड़ा मर गया तो छोटा आ गया। अरे वाह
आई आम वेरी हैपी। मुझको एक छोटा भाई या बहन मिलेगा..."
नेहा ने कहा- “हेलो मिस्टर, तुम उसके भाई और बाप भी बनागे। दुनियां के लिए वो तुम्हारा भतीजा होगा, असलियत में तुम्हारा भाई और मुझसे शादी करने के बाद वो तुम्हारा बेटा होगा.."
यह सुनकर प्रवींद्र हँस पड़ा और कहा- “एक साथ इतने सारे रिश्ते एक बच्चे के साथ... कमाल है मैं बाप, चाचा
और भाई एक साथ बनूंगा कितनी अजीब और कमाल की बात है ना?"
प्रवींद्र खुश था कि वो उसके बाप की औलाद था जो नेहा के पेट में पल रहा था। और वो सभी जिम्मेदारी उठाने
के लिए तैयार था उस बच्चे की। फिर भी उसने नेहा से पूछा- “यह सब कब हुआ? कब उसने कन्सीव किया?
और उसको कब पता चला कि वो प्रेग्नेंट है?"
नेहा ने उसको बताया- "ठीक जब उसकी माँ बीमार थी और वो अपने गाँव जा रही थी तभी वो एक महीने लेट थी अपनी मासिक के लिए। और आखिरी मर्द जिसने उसके अंदर वीर्य छोड़ा था, वो था प्रवींद्र का पिता, और एक महीने से पहले कई बार उसने अंदर वीर्य छोड़ा था, तभी से उसको मासिक नहीं हई थी, तो वो अपने पिता के यहाँ गई थी तो आलरेडी प्रेग्नेंट थी..." नेहा ने बताया की उन दिनों खुद प्रवींद्र और उसके चाचा भी उससे सेक्स कर रहे थे इसलिए नेहा अपनी पीरियड्स को बहुत सावधानी से फालो कर रही थी और उसके चाचा और उसने तो वीर्य बिल्कुल अंदर नहीं छोड़ा था, सिर्फ उसके पिता ने छोड़ा था तो उसके पिता के इलावा और किसी ने उसको प्रेग्नेंट नहीं किया है।
प्रवींद्र ने कहा- “हाँ बिल्कुल सही है, उन दिनों तुम मुझको बिल्कुल अंदर नहीं झड़ने देती थी, मतलब तुम छुपी रुस्तम निकली, तुमको पता था कि तुम क्या कर रही थी हम्म्म.."
नेहा ने कहा- “हाँ मुझे पता था कि पिताजी ने अंदर छोड़ा है तो मैं देखना चाहती थी कि रहेगा या नहीं इसीलिए उसके इलावा किसी को अंदर नहीं डालने देती थी, जब तक मेरी पीरियड लेट नहीं हुई थी, और दो दिन अपने गाँव जाने से पहले मुझको पाता चल गया था कि मैं प्रेग्नेंट थी...”
प्रवींद्र ने कहा- “मेरी कोई बहन नहीं है। मुझे खुशी होगी अगर यह एक लड़की हुई तो?"
नेहा बोली- “और अफीसियली वो तुम्हारी बेटी होगी हीहीही.."
प्रवींद्र मुश्कुराया और प्रवींद्र की खुशी देखकर नेहा भी खुश हुई और उसकी परेशानी दूर हुई और एक बोझ उतर गया उसके सीने से। क्योंकी नेहा ने सोचा था कि प्रवींद्र यह सब जानकार चिंतित होगा और उसको गर्भपात करने को कहेगा। मगर वो बहुत खुश थी कि प्रवींद्र भी खुश था यह जानकर कि उसके पिता ने एक औलाद दे दिया था उनके जाने से पहले।
फिर दोनों ने अपनी शादी के बारे में बातें की। प्रवींद्र ने कहा- “उसके पिता के 40वें दिन वाली पूजा के रोज सभी परिवार, दोस्त, जान पहचान वालों को और पड़ोस के गाँव के सभी लोगों को इन्वाइट करना पड़ेगा फ्यूनरल सेरेमनी के रोज। तो क्यों ना उसी रोज सभी लोगों की प्रेजेन्स में ही दोनों शादी भी कर लें..."
नेहा को आइडिया अच्छा लगा और उसने कहा- “कल वो पंडितजी से इस बारे में बात करेगी...” और पंडितजी का नाम लेते ही नेहा का जिश्म सिहर सा गया। पल भर के लिए नेहा ने पंडितजी से किए सेक्सुअल एनकाउंटर्स को याद किया और उसके जिश्म में एक मस्ती पैदा हो गई।
प्रवींद्र से दिन भर में यह चौथी बार थी कि नेहा ने सेक्स किया, सुबह से पंडितजी से करने के बाद। तो नेहा ने पंडितजी से, सुभाष से, ज्ञान से और प्रवींद्र से सेक्स किया, कोई 12 घंटों के बीच। फिर भी अभी भी पंडितजी को सोचकर उसको और करने का मन किया। तो सुबह को अगर पंडितजी से फिर सेक्स किया नेहा ने तो वो पाँचवी बार होगी 24 घंटों के बीच नेहा ने सोचा।
दोनों को नींद आने लगी, तो एक साथ बेड पर लेटे रहे दोनों और नेहा खुद को एक नशे की हालत में महसूस करने लगी और उसको चुदने का फिर से मन किया। मगर प्रवींद्र को नींद आ गई और खर्राटे मारने लगा। पर नेहा शीक और रूपचंद को अचानक सोचने लगी। उस दिन उसने बहुत एंजाय किया था, खासकर और एंजाय किया था जब शीक ने उसे दूसरी बार चोदा था, जब प्रवींद्र बाहर गया था रूपचंद के साथ। तब नेहा ने उस होटेल के बारे में सोचा जहाँ उसके दो भाई उसको लेकर गये थे, उस अटेंडेंट को सोचा नेहा ने जो उसको अपने ग्राहकों के लिए चाहता था।
कुछ देर बाद नेहा का हाथ उसकी चूत तक गया और खुद को उंगली करने लगी वो सब सोचते हुए। पहले कभी भी नेहा ने उंगली से काम नहीं चलाई थी। वो उंगली को अपनी चूत पर रगड़ते वक्त खुद को बहत सारे मर्दो के बीच कल्पना की। उसने अपने पिता, अपने भाइयों को याद किया, शीक, रूपचंद, ज्ञान, सुभाष, पंडितजी और अपने ससर को भी सोचा नेहा ने अपनी गीली चूत में अपनी दो उंगलियों को घुसेड़ते हए। बहत गरम हो गई वो और मुड़कर प्रवींद्र की तरफ देखा पर वो खर्राटे जोरों से मार रहा था। तो नेहा ने अपनी टाँगों को फैलाकर अपनी उंगलियों को गोल-गोल घुमाया चूत के थोड़ा ऊपर और फिर से उंगलियों को अंदर डाला। उसको फिर से एक लण्ड की जरूरत महसूस होने लगी।
खुद को संतुष्ट नहीं कर पाई अपनी उंगलियों से तो नेहा उठकर किचेन में गई, वहाँ कुछ ढूँढने लगी जिससे खुद को खुश कर सके। उसकी नजर एक बैगन पर पड़ी, वो एक लण्ड से कुछ और मोटा लग रहा था। नेहा नीचे जमीन पर बैठी, टाँगों को फैलाया और उस बैगन को अपने अंदर डाला। गीली चूत के अंदर बैगन आसानी से घुसा नेहा की सिसकती आहह... के बीच। नेहा ने फिर बैगान को बाहर निकाला और दोबारा अपनी चूत की गहराई में ठूसा। एकाध बार वैसा करने के बाद नेहा उसको तेजी से अंदर-बाहर करने की कोशिश की मगर उसकी नाजुक कलाई दुखने लगी।
"एक लण्ड आखिर लण्ड होता है..." नेहा ने खुद से कहा। फिर भी इतना चुदने की चाह थी उसे कि वो उस वेजिटेबल को अपने अंदर लिए पेट के बल लेट गई फर्श पर और अपनी कमर को चुदाई की तरह हिलाने लगी बैगन को चूत के अंदर लिए हए।
देखने से लग रहा था कि कोई मर्द नेहा के नीचे है और वो एक लण्ड पर बैठी हुई है। और पल भर में नेहा की तड़पती सिसकती आवाज निकली वैसे कमर हिलाते हुए। जमीन पर नेहा रेंगने लगी एक साँप की तरह और वो झड़ने लगी। नेहा एक जगह से दूसरी जगह पहुँच गई फर्श पर खुद के जिश्म को रेंगते हुए चूत में बैगन को लिए। आगजम हुई और हाँफते हुए नेहा उस ठंडी संग-ए-मरमर की फर्श पर पड़ी रही और कुछ पशीने की बूंदें गिरी संग-ए-मरमर पर।
नेहा अपने होंठों को दाँतों में दबाते हुए खुद पर हँसी और काहा- “एक मर्द के बिना भी आज मैं झड़ गई, वाह..."
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