XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
03-20-2021, 11:40 AM,
RE: XXX Sex महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़
घुटन बढ़ने लगी। *

“तीन मशालें बंद कर दो।” जगमोहन बोला“मशालों का धुआं, सांस लेने में परेशानी पैदा कर रहा है।”

फौरन तीन मशालें बुझा दी गईं।

अब वे एक मशाल की रोशनी में आगे बढ़ रहे थे, जो कि सबसे आगे के आदमी ने थाम रखी थी। तंग होती वो सुरंग जैसी जगह, अब ऐसी हो गई कि सिर्फ एक ही आदमी आगे बढ़ सकता था।

वे एक-एक करके आगे बढ़ने लगे।

“आगे क्या है?” जगमोहन ने पूछा।

कुछ देर बाद देख लेना।” सरदार बोला। इसी प्रकार थोड़ा-सा रास्ता और तय किया गया।

फिर उन सबने खुद को पहाड़ी के खोखले हिस्से में पाया, जो कि एक बड़े कमरे जैसा था। बेढंगी-सी छत थी उस जगह की। दीवारें पहाड़ की थीं। फर्श दीवारों की अपेक्षा समतल था, परंतु उबड़-खाबड़ था। उसी पहाड़ी दीवार पर एक तरफ किसी खेल जैसा बोर्ड लगा हुआ था। उस पर गोटियां लटक रही थीं वा में।

जगमोहन ने सब तरफ नजरें घुमाईं। अजीब सी जगह थी ये। समझ में नहीं आया कुछ तो उसने सरदार को देखा।
यहां रास्ता किधर है?”

सोबरा ने मुझे बताया था कि जब बाहरी आदमी यहां आएगा तो वो इन लटकती गोटियों को ठीक नम्बरों पर लगा देगा, जिससे कि यहां की एक तरफ की दीवार सरक जाएगी और बाहर निकलने का रास्ता बन जाएगा।”

“तुमने गोटियों को ठीक से खानों में लगाने की चेष्टा की होगी?” जगमोहन ने पूछा।

“मैं तो कब से कर रहा हूं कोशिश, परंतु कभी सफल नहीं हो सका।”

जगमोहन उन गोटियों के पास जा पहुंचा।

धागे में बंधी वो हवा में लटक रही थीं। दीवार पर जो खेल जैसा बोर्ड लगा था, वहां हर खाने में एक छेद था गोटी के साइज़ का। गोटियों को पकड़कर उन छेदों में फिट करना था।

सद्दार पास आ गया। सिर्फ एक ही बात परेशान करती है।” सरदार बोला।

क्या?"

“एक गोटी कम है। एक छेद हुमेशा खाली रह जाता है।” सरदार ने बताया।

“तो वहां पर गोटी के साइज का कोई पत्थर रख दो।” जगमोहन बोला।

कर चुका हूं ऐसा। परंतु कोई फायदा नहीं हुआ।” ।

“मैं देखता हूं।” कहने के साथ ही जगमोहन गोटियों को, उस खेल जैसे बोर्ड पर लगाने लगा।

बाकी सब भी पास आ गए थे।

सब गोटियों को खाने में फिट किया गया। परंतु एक खाना खाली रह गया। उसमें फंसाने को कोई गोटी नहीं बची थी। जगमोहन ने गोटी के साइज़ का पत्थर ढूंढा और उस खाली जगह में फिट कर दिया।
परंतु जवाब में कुछ भी नहीं हुआ।

जगमोहन ने गोटियों को निकाला और उन्हें पुनः फिट करने लगा।

“ये सब करते-करते मेरी जिंदगी बीत गई।” सरदार बोला-“अब तो तंग आ गया हूँ इस काम से ।”

लेकिन जगमोहन लगा रहा अपने काम में ।

एक घंटे में उसने कई बार गोटियां अलग-अलग ख़ानों में फिट कीं और ख़ाली बचे खाने में पत्थर फंसाया, लेकिन नतीजा जीरो ही रहा। मशाल धीमी पड़ने लगी।

“हमें चलना चाहिए।” सरदार बोला–“मैं तुम्हें कल फिर यहां ले आऊंगा।”

“अगर तुम्हें सोबरा ने कहा कि बाहरी आदमी ये सब करके रास्ता बनाएगा, तो अब तक रास्ता बन जाना चाहिए था।

” जगमोहन ने कहा-“हो सकता है तुमने सोबरा की बात गलत सुनी हो। उसका मतलब कुछ और हो।”

“मैंने ठीक सुना था।” सरदार बोला–“सोबरा ने ये बात मुझे तीन बार बताई थी।” ।

“तब तुमने सोवरा से नहीं पूछा कि एक गोटी क्यों कम है। क्यों एक खाना ज्यादा है।”

“कैसे पूछता। उस वक्त मुझे नहीं पता था कि एक गोटी कम है।” सदार ने बताया।

चलो वापस चलते हैं।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा। सब वापस चल पड़े।

रास्ते में नदी आई तो जगमोहन ने नहाना पसंद किया। कपड़े उतारकर वो नदी में उतर गया। सरदार और उसके साथी बाहर खड़े रहे। अंधेरे का मौका देखकर, कोमा कपड़े उतारकर नदी में उतर गई।

जगमोहन के पास पहुंची कोमा।

तुम।” उसे देखते ही जगमोहन बोला—“तुम क्यों आ गईं। तुम्हारे कपड़े भीग जाएंगे।”

“उतार आई हूं उन्हें ।”

कपड़ों को?” जगमोहन सकपकाया।

“हाँ।” जगमोहन ने उसी पल पलटकर किनारे की तरफ बढ़ना चाहा। कोमा ने फुर्ती से उसका हाथ थाम लिया। “तुम मुझसे दूर क्यों भागते हो जग्गू?”

हाथ छोड़ो। मैं नहीं भागता।” जगमोहन ने अपना हाथ छुड़ाया।

मैं तुम्हारा हाथ पकड़ लूंगी तो क्या हो जाएगा। तुम्हारा नुकसान होगा?”

“नहीं।”

“तो मुझे हाथ पकड़ने दो।” कोमा ने फौरन उसका हाथ थाम लिया। वो कुछ करीब आई–“क्या तुम कुंआरे हो?”

“कुंआरा–हां मैंने शादी नहीं की।”

वो कुंआरा नहीं, दूसरा कुंआरा, क्या कभी लड़की को नहीं छुआ?”

“छू...छुआ है।” जगमोहन फंसे स्वर में कह उठा।

तो फिर मुझे क्यों नहीं छूते।” ।

समझा करो।” जगमोहन सकपकाया।

क्या समझें ।”

सरदार और उसके आदमी आंखें फाड़े हमें ही देख रहे हैं। सबके सामने अच्छा नहीं लगता।”

समझ गई। रात को करेंगे। अकेले में...।” जगमोहन ने बिजली की तेजी से अपना हाथ खींचा।

क्या हुआ?”

“तुम मेरे हाथ को कहां ले जा रही थीं?” जगमोहन की हालत बुरी-सी होने लगी थी।

जहां तुम्हारा हाथ ले जा रही थी। वो बुरी जगह तो नहीं है।” कोमा चंचल स्वर में कह उठी।।

जगमोहन से कुछ कहते न बना।

हाथ दो न अपना।” कोमा की आवाज में आग्रह था।

नहीं। वो सरदार...सदार देख रहा है।”

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