05-25-2021, 09:06 PM,
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deeppreeti
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RE: महाकवि कालिदास द्वारा रचा गया महाकाव्य अभिज्ञानशाकुन्तल - हिंदी में
अभिज्ञान शाकुन्तला नाटक
अपडेट 03
प्रथम अंक
प्रस्तावना
परदे के पीछे से आवाज आती है
शीघ्रता करो
फिर आशीर्बादपूर्वक मंगलाचरण कहा गया ।
मंगलाचरण पाठ की समाप्ति के बाद परदे के पीछे से नान्दी की आवाज आती है - नान्दी- नाटक की निर्विघ्न समाप्ति के लिये नाटक के प्रारम्भ नान्दी रूप मङ्गलाचरण किया जाता है
सूत्रधार - ( रंगमंच पर प्रवेश कर) नेपथ्य (रंग–मंच के पर्दे के पीछे की जगह) की ओर देखकर आर्ये (आर्या- सूत्रधार की पत्नी ), यदि नेपथ्य-कार्य (अभिनेताओं का वेशविन्यास धारण आदि कार्य) पूर्णं हो गया हो, तो इधर आओ ।
नटी[b] [/b](प्रवेश करते हुए) -- आर्यपुत्र, मै उपस्थित हूँ ।
सूत्रधार-- आर्या , आज ये सभा अधिक विद्वानों से भरी हुई हे। आज हमे कालिदास के द्वारा विरचित कथा-वस्तु वाले अभिज्ञानशाकुन्तल नामक नवीन नाटक के साथ उपस्थित होना हे । (अर्थात् हमे अभिज्ञानशाकुन्तल नामक नये नाटक का, अभिनय करना हँ) अतः (नाटक के) प्रत्येक पात्र के अभिनय पर विशेष ध्यान देना आवश्यक हे । ( क्योकि उसकी छोटी सी भी त्रुटि विद्वान लोग पकड़ लेंगे और हमारा मजाक उड़ेगा )
नटी--आपके सुव्यवस्थित अभिनय निर्देशन के कारण कोई न्यूनता (कमी) नहीं रहेगी तो कोई क्यों हसेगा ।
सूत्रधार--आर्या , मेँ तुमसे यथार्थ (सच) कह रहा हूं । यद्यपि हम अभिनय-कला में कुशल है तथा प्रस्तुत नाटक के अभिनय की यथेष्ट तैयारी भी कर की है तथापि मेरा चित्त सफलता के विषय में संदेहयुक्त हे । जब तक विद्रज्जन उसकी अभिनयकला से सन्तुष्ट न हो जायं, तब तक मैं अपने अभिनय कला-कोौशल को सफल नहीं मानता । क्योकि अत्यधिक शिक्षित लोगों का मन भी सफलता मिलने तक अपने विषय मे अविश्वस्त ही रहता हे ।
नटी[b] [/b]- आर्य! आप का कथन ठीक हे अब आप इसके बाद के हमे क्या करना है इस बारे में मे आदेश दीजिये ।
सूत्रधारः--इस सभा के सदस्यो के कानों को प्रसन्न करने के अतिरिक्त ओर क्या करना है ? इसलिये शीघ्र ही आरम्भ करते हुए इस ग्रीष्म ऋतु के विषय में ही गाओ । ग्रीष्म ऋतु के दिनों मे शीतल जल से स्नान, सुगन्धित-वायु, घनी छाया में नीद ओर सायंकाल की रमणीयता विशेष आनन्दप्रद होती है अर्थात परिणाम रमणीय होता है ।
नटी- जैसा आप कह रहे है वैसा ही करती हूं और गाना गाने लगती है । (जिसका अर्थ है )
सुन्दर युवतिया मतवाली (सौन्दर्य आदि के कारण मत्त) होने पर भी युवतिया भौंरों के द्वारा थोड़े-थोडे चूमे गये कोमल केसर-शिखा से युक्त शिरीष-पुष्पो को सावधानी के साथ तोड़कर उन्हे अपना कर्णाभूषण (कान के फूल ) बना रही है ।
सूत्रधार- आर्या तुमने बहुत अच्छा गाया । वाह अच्छे सुर और ताल के इस गीत को सुनने के द्वारा आकृष्ट अन्तः करण वाले दर्शक स्थिर (चित्रलिखित) लग रहे हैं । तो अब किस नाटक का अभिनय करके दर्शको की इस सभा को सन्तुष्ट (प्रसन्न) किया जाय ।
नटी--अरे पृज्य, आपके द्रारा पहले ही आदेश दिया गया था कि आज अभिज्ञानशाकुन्तल नामक अपूर्व अनुपम नाटक का अभिनय (प्रयोग) किया जाय ।
सूत्रधार- आर्या , तुमने ठीक स्मरण कराया है। इस समय मेँ यह भूल ही गया था । क्योकि--
आपके दवरा गाये गए इस मनेहरगीत से मैं वैसे ही में हार गया ठीक वैसे ही जैसे राजा
दुष्यंत उस हिरण के पीछा करते हुए उसकी गति से हार गया
ये कह कर दोनो सूत्रधार एवं नटी मञ्च से चले जाते है
यहां पर प्रस्तावना समाप्त होती हे
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[b]टिप्पणी[/b]
(1) सूत्रधार--रङ्गशाला (नाटक के स्थान) की व्यवस्था करने वाले प्रधान नट को सूत्रधार कहा जाता है । इसके अधिकार में नाटक के सभी उपकरण होते है । वह रंगमंच का प्रबन्ध करता हे । साथ ही अभिनेताओं को निर्देश भी देता है । ( आप इसे डायरेक्टर प्रोडूसर भी कह सकते हैं )
(२) आर्ये (आर्या) - सूत्रधार की पत्नी
(३) आर्यपुत्र - पत्नी द्वारा पति को आर्यपुत्र कह कर सम्बोधित किया जाता है
(४) मेरे अभिनय-कौशल' की परीक्षा कर सकते है- इसमें अर्थान्तरन्यास और पर्यायोक्त अलङ्कार है
(५) परिणाम-रमणीया के द्वारा यह सूचित किया है कि नाटक का अन्त सुखद होगा
(६) शिरीष के फूल को कोमल माना जाता है। कालिदास ने लिखा है कि शिरीष के फूल केवल भौंरों के पैरों का दबाव सहन कर सकते हैं, पक्षियों के पैरों का नहीं।
(7) इस प्रस्तावना में निहित छुपा हुआ है - की जिस समय का नाटक खेला जा रहा है उस समय की परिस्थिति क्या है - ( नाटक के बैक ग्राउंड का परिदृश्य दर्शाने की कोशिस की गयी है ) ग्रीष्म का समय है , घने बन में शीतल हवा चल रही है , सुन्दर युवतिया कोमल केसर-शिखा से युक्त शिरीष-पुष्पो को सावधानी के साथ तोड़कर उन्हे अपना कर्णाभूषण (कनफूल) बना रही है और राजा दुष्यंत हिरन का पीछा कर रहा है .
इस प्रस्तावना में बैकग्राउंड को कितना अद्भुत कर डाला है कालिदास ने मुझे भी अब समझ में आया है जब ये विचार किया की कालिदास जैसे लेखक और रचनाकार ने इन प्रसंगो को क्यों लिखा है .. अद्भुत लेखन है कालिदास का - अद्भुत
शिरीष के फूल
जारी रहेगी
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