RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
"हां।” सहगल आराम से बोला “जानकी लाल जैसे पापी इंसान के दुश्मनों की इस शहर में कोई कमी नहीं है। बहुत पाप किए हैं उसने अपनी जिंदगी में। उसके इन्हीं पापों का नतीजा है कि कदम-कदम पर उसके दुश्मन कुकुरमुत्तों की तरह उगे पड़े हैं। वह दोनों भी उसके इन्हीं पापों के बीज से उपजी फसल हैं, जिसने तुमसे पहले उसकी जान लेने का प्रयास किया।"
"हैरानी की बात है कि तुम बीते सात सालों से जेल में थे।" “तुम हाल में खुद को जेल से छूटकर आया बताते हो और इतने कम वक्त में इतना ज्यादा जान लेना सचमुच हैरानी की बात है। बहरहाल कौन हैं वह दोनों?"
“बहुत जल्द तुम्हारे सामने होंगे।"
"अच्छा।” कोमल मुग्ध भाव से बोली थी।
"बहुत सख्तजान और मुकद्दर का सिकंदर है जानकी लाल सेठ। इतनी आसानी से वह किसी के काबू में नहीं आने वाला। अगर मर सकता तो कब का मर चुका होता। इसीलिए मैंने उसके उन तमाम दुश्मनों को इकट्ठा करने का फैसला किया है और उन सबको एक छत के नीचे लाने का अहद लिया
"उससे भी क्या होगा?"
"कुछ तो होगा। सुना है संगठन में बहुत बड़ी ताकत होती है, हुकूमत का भी तख्ता पलट देती है। जबकि यहां तो केवल एक इकलौता ही इंसान है।"
"तुमने बिल्कुल ठीक सुना है।” कोमल एकाएक मुक्त कंठ से बोली “और तुम्हारा इरादा भी बुरा नहीं है।”
“और इस इरादे की शुरूआत तुमसे कर रहा हूं। क्या तुम्हें मेरे इस छोटे से संगठन में शामिल होना मंजूर है?"
कोमल तुरंत कोई जवाब न दे सकी थी। वह सोच में नजर आने लगी। “इंकार की कोई वजह तो नहीं है।” फिर उसने ठंडी सांस भरते हुए कहा।
“यानि कि तुम्हें मंजूर है।”
“जब इंकार की कोई वजह ही नहीं है जो जाहिर सी बात है कि मंजूर ही है।"
“गुड। तो फिर...।” उसने गिलास को आजाद करके अपना हाथ आमंत्रण की मुद्रा में कोमल के सामने ऊपर उठाया।
कोमल के होठों पर एकाएक मोहक मुस्कान उभरी। उसने अपनी गोरी कलाई आगे बढ़ाकर सहगल का हवा में उठा हाथ गर्म जोशी से थाम लिया।
सहगल की आंखें तत्काल कंचों की मानिंद चमक उठीं। होठों की कुटिल मुस्कान गहराना आरम्भ हो गयी। जानकी लाल के पहले जानी दश्मन को अपने साथ मिलाने में वह परी तरह से कामयाब हो गया था।
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आने वाला इंस्पेक्टर मदारी था। उसका पूरा नाम योगेश मदारी था। उसकी उम्र पचास साल से ऊपर थी और उसकी शक्ल बालीवुड फिल्मों के खलनायक और चरित्र अभिनेता मोहन जोशी से काफी हद तक मिलती थी। अपना हेयर स्टाइल और यूं भी वह मोहन जोशी की तरह रखता था और नियमित उन पर हेयर डाई किया करता था। वह दिल्ली पुलिस की विशेष अपराध शाखा का तीन सितारों वाला इंस्पेक्टर था,जो किसी खास मिशन अथवा पुलिस के खुफिया आपरेशन के वक्त ही हरकत में आता था। लेकिन जब ऐसा कोई आपरेशन नहीं होता था तो वह हैडक्वार्टर में ही मौजूद रहता था और तब एकाएक पेश आने वाले जटिल केसों में उसकी शिरकत हो जाया करती थी।
वह क्योंकि पुलिस की स्पेशल क्राइम ब्रांच से ताल्लुक रखता था, लिहाजा उसके लिए ड्यूटी के वक्त अपनी पुलिस इंस्पेक्टर की तीन सितारों वाली वर्दी पहनना जरूरी नहीं होता था। वैसे तो वह अपने बेशुमार अजीबो-गरीब शौक व आदतों के लिए जाना जाता था। यह भी उसका एक अजीब शौक था कि वह सिविल ड्रेस में भी अपना पुलिसिया रूल हर वक्त अपने हाथ में रखता था। उस रूल के अग्रभाग पर रबर के तीन छोटे गोले छोटी सी रबर डोरियों से बंधे होते थे। जब मदारी रूल को अपने हाथों में लेकर एक खास अंदाज में हिलाता था तो उससे एकदम डमरू जैसी आवाज निकलने लगती थी ठीक वैसे डमरू की आवाज जैसे कि फुटपाथ पर तमाशा दिखाते वक्त कोई मदारी बजाया करता था।
वही इंस्पेक्टर मदारी उस वक्त जानकी लाल के वार्ड में पहुंचा था। उस वक्त उसने एकदम नया सिलवाया कीमती थ्री पीस सूट पहन रखा था, जिसमें कि वह खूब-खूब जंच रहा था और अपने पसंदीदा अभिनेता मोहन जोशी का डबल लग रहा था।
अकेले जानकी लाल ही नहीं अजय भी उसे बखूबी पहचानता था। उसके ऊपर होने वाले पिछले दिनों जानलेवा हमलों के दौरान भी इन्वेस्टीगेशन के लिए आखिर वही तो आया था और मामले की तफ्तीश तब भी उसी के हाथ में थी। जिसमें कि अभी तक उसे कोई कामयाबी हासिल नहीं हुई थी और जानकी लाल पर फिर से अगला जानलेवा हमला हो गया था।
“जय भोलेनाथ की।” आते ही उसने एक नारा बुलंद किया। नारा बुलंद करने का उसका अंदाज ऐसा था जैसे कि वह पुलिस इंस्पेक्टर न होकर फुटपाथ का कोई भिखारी था और इस वक्त भीख मांगने के लिए किसी घर के दरवाजे पर पहुंचा था। डमरू की आवाज सुनाई देना अब बंद हो गई थी।
जानकी लाल के होंठों से बेसाख्ता ठंडी सांस निकल गई थी। “यह कमबख्त कहां से आ गया।" वह होठों में बुदबुदाया उसके चेहरे पर सहसा वितष्णा के भाव आ गए थे “कमीना हमेशा गलत वक्त पर आता है।
अजय ने सकुचाते हुए संजीदगी से उसके अनुमोदन में सहमति से सिर हिलाया।
“अ...आओ इंस्पेक्टर।” अपने मनोभावों को दबाता प्रत्यक्षतः जानकी लाल सहज भाव से बोला “तुम एकदम सही वक्त आए हो। तशरीफ रखो।"
“थैक्यू जजमान।” मदारी ने बड़ी अदा से सिर नवाकर उसका आभार जताया फिर बोला “वह क्या है कि ड्यूटी के दरम्यान मैं तशरीफ नहीं रखता। खड़े होकर पूरी मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी बजाता हूं और सरकार से हासिल होने वाली तनख्वाह का एक-एक रुपया हलाल करता हूं।"
“जानकर खुशी हुई।” जानकी लाल ने मुंह बिसूरा “वैसे यह तो मैं देख रहा हूं, इंस्पेक्टर कि तुम कितनी मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी निभाते हो। कभी-कभी मुझे हैरानी होती है कि पुलिस का महकमा बना ही क्यों है। इस मुल्क में पहले ही क्या अराजक तत्वों की कमी थी जो हर दस कदम पर पुलिस स्टेशन के तौर पर उसकी एक-एक मंडी खोल दी गई?"
“अ...अरे क्या गजब कर रहे हो श्रीमान।” मदारी हड़बड़ाया था “पुलिस के महकमे को अराजकता की मंडी कह रहे हो?"
“खैर मनाओ कि इससे ज्यादा कड़वा कोई दूसरा लफ्ज पुलिस के लिए फिलहाल मुझे नहीं सूझ रहा।"
“म..मुझे मालूम है जजमान, पुलिस के बारे में आम आदमी के ख्यालात ज्यादा अच्छे नहीं हैं।"
“खास आदमियों के भी अच्छे नही हैं। और मैं खास आदमी ही हूं।”
“अब आप तो खैर आप ही हैं श्रीमान, मैं आपकी तारीफ में क्या कहूं?"
"कुछ मत कहो। केवल यह बताओ कि यहां क्यों आए हो?"
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