RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
"बहुत खूब।” जानकी लाल गहरे व्यंग से बोला “इसका मतलब तो यह हुआ कि बीते दिनों यह जो मुझ पर ताजा हमला हुआ, वह भी मेरा ही करवाया हुआ था। जिसकी वजह से मैं इस वक्त यहां अस्पताल में जख्मी हुआ पड़ा हूं।"
“इसमें क्या शक है?" मदारी ने लापरवाही से कंधे झटके।
“तब तो उस हमलावर की जान भी मैंने जान-बूझकर ली होगी, जिससे बकौल तुम्हारे मैंने खुद पर हमला करवाया है
और वह मारा गया?"
“ठीक कहा श्रीमान। मगर यह जरूरी था, वरना यह यकीन कैसे पुख्ता होता कि कोई सचमुच आपकी जान लेने पर आमादा है आपको कत्ल करने का इतनी शिद्दत से तमन्नाई
"चलो एक मिनट के लिए मैं तुम्हारी बात मान लेता हूं इंस्पेक्टर और कबूल कर लेता हूं कि अपने आप पर बार-बार जानलेवा हमला मैं ही करवा रहा हूं, लेकिन दिखावा करके यह ड्रामा करके मुझे आखिर क्या हासिल होने वाला है?"
“जवाब भी वही है कीर्तिमान, आपकी माया अपरम्पार है। इस सवाल का जवाब आपको ही बेहतर मालूम होगा कि आपको
क्या हासिल होने वाला है?"
"हूं।” जानकी लाल के होंठ भिंच गए अपने आप पर जज्ब करने में उसे कई पल लग गए थे। आखिरकार वह बोला “तो यह थ्योरी है पुलिस की मुझे लेकर। और मानना पड़ेगा, क्या खूब थ्योरी है।"
"देख लीजिए जनाब।” मदारी फूलकर कुप्पा होता हुआ बोला “फिर भी लोग पुलिस के महकमे को निकम्मा कहते हैं हम जैसे टेलेन्टिड पुलिस इंस्पेक्टर को नकारा और रिश्वतखोर कहते हैं।"
“लोग सरासर गलत कहते हैं।"
“वही तो। आप खुद ही देख लीजिए।” उसने अपना सीना चौड़ाया।
“असल में तुम उससे कहीं ज्यादा घटिया हो इंस्पेक्टर, जितना लोग तुम्हें समझते हैं।"
“आं।” मदारी बुरी तरह से हड़बड़ाया था। फिर वह खुद को संयत करके अविश्वास से बोला “य...यह आपने मेरे लिए कहा है?"
“हां। और अब जबकि...।" जानकी लाल, जबड़े भींचकर बोला “मेरे बारे में पुलिस के इतने नेक ख्यालात मुझे मालूम हो ही गए हैं तो फिर अब पुलिस की मदद की मुझे कोई जरूरत नहीं है। अब इस बारे में जो कुछ भी करना होगा खुद मुझे ही करना होगा। और मुझे जो करना है वह मैं कर लूंगा।"
"करेक्शन श्रीमान।"
“मतलब?"
“आपको जो करना है, वह तो आप कर ही रहे हैं। गुस्ताखी की माफी के साथ अर्ज कर रहा हूं कि अब आइंदा वह करने से बाज आ जाएं तो यह आपके साथ-साथ और भी कई लोगों की सेहत के लिए अच्छा होगा।"
"क्या करने से बाज आ जाऊं?"
"वही जो कर रहे हैं।"
“और मैं क्या कर रहा हूं?"
"जो करने से बाज आने का अभी मैंने आप को मशविरा दिया है।”
“तुम शायद मुझसे मसखरी कर रहे हो इंस्पेक्टर।"
“जी नहीं श्रीमान। मैं तो मुस्तैदी से आपके सवालों का जवाब दे रहा हूं जो कि मैं आमतौर पर आम या खास आदमियों को नहीं दिया करता। केवल सरकार के सवालों का ही दिया करता हूं, जिसकी मैं तनख्वाह पाता हूं और...।"
"इंस्पेक्टर!" तब जैसे जानकी लाल के सब्र का बांध एकाएक टूट गया था। वह एकाएक अपना आपा खोकर कर्कश स्वर में बोला “यहां से फौरन दफा हो जाओ। मैं तुम्हारे जैसे जाहिल और नाकारा पुलिस वाले की सूरत भी नहीं देखना चाहता।"
"मेरी सूरत में तो खैर कोई नुक्स नहीं है जजमान।” उसने अपने चेहरे पर हाथ फिराया और बड़े अरमान से बोला "अलबत्ता आपकी पसंद ज्यादा हाई प्रोफाइल हो तो बात जुदा है। अब क्योंकि आपका हुक्म है तो जाना तो पड़ेगा ही मगर जाने से पहले एक दरख्वास्त करना चाहता हूं।"
“तुम यहां से जाते हो इंस्पेक्टर या मैं तुम्हें धक्के मारकर यहां से बाहर फिंकवा दूं।” जानकी लाल तमतमाकर बोला।
"आपके इस खेल में अब दरअसल खून का रंग शामिल हो गया है।” मदारी ने उसकी धमकी पर कान तक नहीं दिया था। वह अपनी ही धुन में अपने ही अंदाज में बोला, उसके स्वर में साफ चेतावनी का पट आ गया था “भले ही मरने वाला आपका कथित हमलावर था और आपराधिक रिकार्ड वाला आदमी था, जिसे आत्म रक्षा में आपके अंगरक्षकों ने मार गिराया, और जिसके लिए मैं चाहकर भी आपके खिलाफ कोई ऐक्शन नहीं ले सकता, न ही आपके उन अंगरक्षकों को दोषी ठहरा सकता हूं, जिन्होंने उस नन्ही सी जान पर ताबड़तोड़ गोलियां दाग दीं। फिर भी ताकीद कर रहा हूं श्रीमान, कोशिश करना कि यह पहली और आखिरी लाश ही साबित हो इसके बाद आइंदा कोई दूसरी लाश न गिरे। अगर गिरी तो विश्वास रखिए, मुझे बहुत अफसोस होगा।"
“क..क्या अफसोस होगा?" जानकी लाल ने होंठ भींचकर उससे पूछा।
“मेरा मतलब है कि आप जैसे महापुरुष के नाजुक हाथों में लोहे के कंगन पहनाते हुए मुझे बहुत अफसोस होगा। इतना ज्यादा कि आप सोच भी नहीं सकते।"
“गेट आउट।” जानकी लाल अब हत्थे से उखड़ गया था, वह बिफरकर बोला “आई से गेट आउट इंस्पेक्टर, अब अगर तुमने अपने मुंह से एक लफ्ज भी निकाला तो तुम्हें पछताना पड़ेगा। तुम उस घड़ी को कोसने पर मजबूर हो जाओगे जबकि तुमने यहां आने का इरादा किया था।"
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