RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“अच्छा जजमान, अब आप इतनी दरयाफ्त कर रहे हैं तो चला जाता हूं। टेक केयर...।” वह कुछ क्षणों के लिए ठिठका फिर धीरे से उसने आगे जोड़ दिया “दिस इज माई एडवाइज। जय भोलेनाथ की।” फिर एक पल के लिए भी वह वहां नहीं रुका। वह मुड़ा और लम्बे डग भरता वहां से बाहर निकल गया।
जाते समय इस बार उसने अपना डमरू नहीं बजाया था।
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छुट्टी वाले रोज संजना सुबह देर से सोकर उठती थी। उस रोज इतवार था इसलिए संजना गहरी नींद सोई हुई थी, जबकि एकाएक उसके फ्लैट की कॉलबेल बजी।
कॉलबेल की आवाज काफी तीखी थी।
फिर भी संजना केवल कुनमुना कर रह गई।
कॉलबेल पुनः बजी।
संजना घोर अनिच्छा के साथ उठकर बैठ गई।
अपनी आंखें मलते हुए उसने अलसाये भाव से वॉल क्लॉक पर निगाह डाली। नौ बजने वाले थे। उसके जेहन को तत्काल झटका सा लगा। वह बिस्तर से उतर गई।
इस बीच कॉलबेल एक बार फिर बज चुकी थी। आने वाला काफी उतावला मालूम होता था। संजना ने अपना नाइट गाउन दुरुस्त किया और जाकर दरवाजा खोला। सामने जतिन खड़ा था।
जतिन मस्के सत्ताइस साल का एक आकर्षक युवक था। उसने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। उस वक्त वह एक रियल स्टेट कंपनी में बतौर चीफ इंजीनियर तैनात था और दिल्ली के करीब स्थित गुड़गांव के हाई टेक सिटी से जुड़ी वर्किंग साइट पर प्रोजेक्ट मैनेजर (पीएम) के रूप में काम कर रहा था। वहां वह एक बेहद ऊंची इमारत बना रहा था। मगर उसका आशियाना दिल्ली में ही था। उसके हाथ में एक ताजा गुलाब का फूल था।
सुबह-सुबह जतिन को अपने फ्लैट पर आया देख संजना चौंकी। दूसरे ही पल उसके खूबसूरत अलसाये चेहरे पर रौनक फैल गई। “ज..जतिन...।" वह बेअख्तियार खुशी से बोली “जतिन तुम।”
“हैप्पी वेलेन्टाइन डे।” जतिन रोमांटिक स्वर में बोला और अपने हाथ में मौजूद गुलाब का फूल उसने संजना की तरफ बढ़ा दिया। संजना के जेहन को झटका लगा था। तत्क्षण उसे याद आया कि आज चौदह फरवरी का दिन था, जो कि सारी दुनिया के प्रेमियों में प्रेमदिवस के रूप में मनाया जाता था और सोने पे सुहागा यह कि आज चौदह फरवरी को अवकाश भी पड़ रहा था।
इतनी अहम बात वह भूल गई थी। जबकि उसका दिलबर जतिन नहीं भूला था।
"हल्लो।” उसे खामोश देख जतिन ने उसे टहोका “कहां खो गई जानेतमन्ना?"
“खोई नहीं अपने ऊपर खीझ रही थी।” वह संभलकर झेंपती हुई बोली “इतनी अहम बात मैं कैसे भूल गई?"
"होता है।” जतिन बड़ी खुश मिजाजी से बोला “चलता है। बहुत नाजुक दौर होता है यह, जिससे हम गुजर रहे हैं। इस उम्र में अक्सर ऐसा हो जाता है।"
"अच्छा। संजना हंसी तो उसके सच्चे मोतियों जैसे दांत चमक उठे। हवा के एक हल्के से झोंके से माथे पर लहराती जुल्फ पीछे उड़ गई।
“और यह लो, अब तुम दूसरी बात भी भूल रही हो?" जतिन बोला।
“दू...दूसरी बात?” उसके गोरे मुखड़े पर सवालिया चिन्ह उभरे।
जतिन ने अपना गुलाब वाला हाथ ऊपर उठाकर उसे याद दिलाया। “यह कब से इंतजार कर रहा है।” वह बोला।
“ओह।” संजना हड़बड़ाई, फिर उसने जतिन के हाथ से गुलाब लेकर उसकी कोमल पंखुड़ियों को प्यार से चूम लिया और झूमकर बोली “सो क्यूट। थॅंक यू... थॅंक यू सो मच जतिन।"
“वह तो ठीक है स्वीट हार्ट पर कुछ अच्छा नहीं लग रहा।"
“क...क्या ?” संजना ने चौंककर चेहरा उठाया और जतिन को देखते हुए उसने उलझकर पूछा “क्या नहीं अच्छा लग रहा
जतिन?"
“एक गुलाब को दूसरा गुलाब भेंट करते?"
"क्या?" वह अचकचाकर हंसी थी।
"देखा नहीं कैसे फीका हो गया यह तुम्हारे हाथ में पहुंचते ही। पर मैं भी क्या करूं, आज के दिन अपने इस गुलाब के लिए...।" उसका इशारा संजना की ओर था “इससे बेहतर कोई दूसरा तोहफा मुझे सूझा ही नहीं।"
“अब मुझे मस्का ही लगाते रहोगे या अंदर भी आओगे।" संजना खिलखिलाकर उन्मुक्त भाव से हंसी, फिर बोली।
“वह भी आऊंगा।"
"तो फिर आते क्यों नहीं?"
"लेडीज फर्स्ट।"
“ओह।” वह पुनः खिलखिलाकर हंसी। फिर दोनों अंदर पहुंचे। संजना ने उसे एक सोफे पर ढकेल दिया।
“क्या पेश करूं?" उसने इठलाकर पूछा।
“वही, जो आज के दिन एक दिलरुबा अपने दिलबर को पेश करती है।"
“क...क्या ?"
“तुम्हें नहीं मालूम?”
“कहां मालूम है। मालूम होता तो क्या पूछती।"
“मेरी संजना को पेश करो।"
“वह तो तुम्हारे सामने है।"
“सामने रखने में और पेश करने में फर्क होता है मेमसाहब। तुमने संजना को मुझे पेश कहां किया है।"
“जतिन।” संजना फिर इठलाई “तुम आज कुछ ज्यादा ही रोमांटिक नहीं हो रहे?"
“तुम बात को घुमा रही हो।”
“ओके। तो फिर तुम्हीं बता दो, मैं तुम्हारी संजना को तुम्हें कैसे पेश करूं?”
“ईजी।” उसने उसकी बांह पकड़कर उसे अपनी ओर खींच लिया और बोला “ऐसे।”
संजना हड़बड़ाकर उसकी गोद में जा गिरी। उसकी उस अप्रत्याशित हरकत पर संजना के मुंह से चीख निकल गई थी।
“चुप करो।” जतिन जल्दी से बोली “वह आ जाएंगे?"
“क..कौन आ जाएंगे?” संजना सकपकाई।
“प्यार के दुश्मन।”
जतिन ने वह इस ढंग से कहा कि न चाहते हुए भी संजना एक बार फिर खिलखिलाकर हंस पड़ी।
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