RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
"और क्या?” उसने एकदम से कराटे का एक्शन बनाया था “अकेले कराटे की क्यों बात करते हो, मैंने तो जूडो भी सीख रखा है। कूगफूं और मास्टर आर्ट में भी माहिर हूं। ब्लैक बेल्ट तो बस...।”उसने एकाएक ठंडी सांस छोड़ी थी “जीतते-जीतते रह गई थी।"
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"अरे बाप रे।"
“इसीलिए तो पहले ही वॉर्न कर रही हूं, होश में रहना अपने जज्बातों को कंट्रोल में रखना। तुम तो खैर अकेले हो, मैं तो दो-चार के भी काबू में नहीं आने वाली और उन्हें यूं...।" उसने अंगुली और अंगूठे से मजबूत चुटकी बजाकर दिखाई “चुटकी बजाकर हवा में उड़ा सकती हूं।”
तभी वातावरण में किसी वाहन की हैडलाइट चमकी। दोनों की नजरें फौरन दिशा में उठ गईं। वह एक कार थी जो बेहद तेजी से उधर ही आ रही थी।
उस चंचल तितली आलोका से उसकी वह तीसरी मुलाकात थी। उससे पहली-दूसरी मुलाकात तो कहीं और ही हुई थी और वह भीइ कोई कम रोचक नहीं थी। एक बार उसका जेहन अतीत के आइने में अटका तो फिर भटकता ही चला गया।
मूसलाधार बारिश पूरे वेग से उसके जिस्म को भिगोती जा रही थी। लेकिन वह उससे पूरी तरह बेखबर था और अपने ख्यालात के बादलों में रूई की तरह उड़ता जा रहा था उड़ता जा रहा था।
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संदीप महाजन क्लब से बाहर निकला तो वह हल्के नशे में था और उसके कदमों में हल्की लड़खड़ाहट भी साफ नजर आ रही थी। वह उस वक्त अकेला था। अस्पताल में उसके ससुर जानकी लाल ने जिस तरह उसे मुहब्बत और नफासत से जलील किया था, वह वो भूला नहीं था। और अकेले अस्पताल ही क्यों, उसका वह फादर इन लॉ उसे जलील करने का कोई भी मौका कहां छोड़ता था। और बात जब अकेले की होती थी, जबकि उसकी बीबी और जानकी लाल की बेटी उसके साथ नहीं होती थी तो तब तो फिर वह जंगल का शेर हो जाता था। फिर बस यही गनीमत रहती थी कि जानकी लाल उसे कच्चा चबाकर हज्म नहीं कर जाता था।
वह केवल रीनी ही थी जो कि उसके फॉदर इन लॉ के खिलाफ उसका सबसे बड़ा हथियार थी, और यही वह इकलौता हथियार था जो दुनिया के उस सबसे शातिर इंसान जानकी लाल को बेबस कर देता था।
संदीप ने पार्किंग में पहुंचकर अपनी कार का दरवाजा खोला और ड्राइविंग डोर बंद करके इग्नीशन में चाबी घुमाई। कार स्टार्ट न हुई। उसका इंजन दो तीन बार घुर्र-घुर्र करके शांत हो गया। उसने फिर कोशिश की। कोई नतीजा न निकला। उसकी अंगुलियां एक बार फिर से चाबी पर कसीं, तभी एकाएक उसका मोबाइल बजने लगा।
संदीप ठिठक गया।
उसने चाबी को छोड़कर डेशबोर्ड पर रखा अपना मोबाइल उठाया और उस पर फ्लैश होता नम्बर देखा। नम्बर सरासर अजनबी था। उसने असमंजस भरे भाव से काल रिसीव किया और मोबाइल अपने कान से लगाकर बोला "हल्लो।"
"कोई फायदा नहीं महाजन साहब।" दूसरी तरफ से एक नितांत अजनबी स्वर ने कहा “इस वक्त आपकी कार हड़ताल पर है, स्टार्ट नहीं होगी।"
“क...कौन बोल रहा है?" वह चिहुंककर बोला।
“घबराओ मत। मैं तुम्हारा दुश्मन नहीं दोस्त हूं बहुत ही करीबी दोस्त।”
“म...मगर तुम हो कौन?"
“तुम मुझे अच्छी तरह से जानते हो।”
“मगर तुम चाहते क्या हो?”
“फोन पर नहीं बता सकता। यह रूबरू बैठकर बताने वाली बात है। मैं बहुत बेसब्री से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं।"
“क...कहां इंतजार कर रहे हो?"
"मुड़कर पीछे देखो। तुम्हारी कार के ठीक पीछे दूसरी लेन में एक सफारी खड़ी है। उसका रंग गहरा बादामी है।"
संदीप की गरदन मशीनी अंदाज में पीछे घूमी। बताई गई जगह पर सचमुच गहरे बादामी रंग की एक सफारी खड़ी थी।
"गुड।" फोन पर कहा गया “मैं उसी सफारी के अंदर हूं। लेकिन तुम मुझे नहीं देख सकते क्योंकि शीशों पर सफेद परदे पड़े हैं। उसकी बीच वाली पैसेंजर सीट पर बैठा मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं।"
“म...मगर तुम आखिर हो कौन?" संदीप ने सशंक भाव से पूछा। वह जबरदस्त असमंजस में नजर आने लगा था।
“कहा न, तुम मुझे अच्छी तरह से जानते हो। तुम्हारे लिए मैं न तो अजनबी हूं, न ही तुम्हारा दुश्मन हूं।"
"लेकिन..."
“हुज्जत के लिए तुम आजाद हो खुशी से जा सकते हो। नमस्ते।” फोन डिस्कनेक्ट हो गया।
संदीप कसमसाया।
उसने मोबाइल कान से हटा लिया। उसे समझते देर न लगी कि कार के इंजन के साथ छेड़खानी की गई थी और यह निश्चित रूप से उसी अजीबोगरीब आदमी का काम था, जो कि पीछे सफारी में मौजूद था और उसे अपने पास बुला रहा था। नामालूम वह रहस्यमय शख्स कौन था और उसे क्यों बुलाना चाहता था?
वह खुद को दोस्त बताता था लेकिन उसका कोई दुश्मन भी हो सकता था। जिज्ञासा ने उसे विवश कर दिया। वह हल्के सुरूर के हवाले था। वह सुरूर गायब हो चुका था। वह कार से नीचे उतरा और प्रत्याशा के हवाले से डूबता-उतराता सफारी के करीब पहुंचा।
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