RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
तभी सफारी का पिछला दरवाजा खुला।
“वैलकम।" कोई बोला। वह स्वर अंदर से आया था और वह वही स्वर था जो उसने मोबाइल पर सुना था।
संदीप ने सावधान मुद्रा में खुले दरवाजे से झांककर अंदर देखा और अंदर मौजूद शख्स को देखते ही उसके जेहन को तेज झटका लगा था। वह सचमुच उसके लिए अजनबी नहीं था और यह भी सच है कि वह उसे अच्छी तरह से पहचानता था। उसे पहचानते ही उसका सारा संशय दूर हो गया। वह कोई और नहीं, सुमेश सहगल था। संदीप निःसंकोच सफारी के खुले दरवाजे में समा गया।
सफारी का दरवाजा भड़ाक से वापस बंद हो गया।
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अजय की उस ग्लैमरस गुड़िया से पहली मुलाकात कनाट प्लेस में हई थी। उस वाक्ये को आज पांच साल से ऊपर हो गए थे। वह अपनी कम्पनी के किसी काम से कनॉट प्लेस गया था, जहां की एक मल्टीस्टोरी इमारत के बीसवें फ्लोर पर उस कंपनी का ऑफिस था। वहां का काम निबटाकर वह वापस लौट रहा था। लिफ्ट में उसके साथ केवल दो लोग ही और मौजूद थे जो कि नीचे के अगले फ्लोर पर उतर गए थे, जबकि अजय को ग्राउंड फ्लोर पर जाना था। सोहलवें फ्लोर पर जैसे ही वह दोनों उतरे और लिफ्ट का दरवाजा वापस बंद होने को हुआ, तभी एक लड़की तेजी से भागती हुई वहां पहुंची और लिफ्ट के तब तक आधे से ज्यादा बंद हो चुके दरवाजे की झिरी में उसने अपना पर्स फंसा दिया। बंद होता दरवाजा बीच में अवरोध आ जाने के कारण जहां का तहां रुक गया और वापस खुल गया।
अगले पल वह हवा के स्वच्छंद झोंके की तरह अंदर दाखिल हुई तो न चाहते हुए भी अजय की निगाह उसकी ओर उठ गई और फिर उस पर ही चिपक कर रह गई ठीक वैसे ही जैसे कि शक्तिशाली चुम्बक लोहे को खींचकर अपने साथ चिपका लेता है।
अजय की इसमें कोई गलती नहीं थी। वह दिलफरेब हुस्न की मल्लिका थी ही ऐसी कि उससे नजर हटा पाना मुमकिन नहीं था। उसकी उम्र बमुश्किल बीस साल होगी। सुलगता-सुलगता सा ऐसा किताबी चेहरा जो केवल ख्वाबों में ही नजर आता था और ख्वाब टूटते ही गायब हो जाता था और फिर खुद को यकीन दिला पाना संभव नहीं होता था कि कोई ऐसी कयामत दुनिया में मौजूद हो सकती थी। मगर वह साक्षात दुनिया में मौजूद थी और अजय के सामने खड़ी थी।
उसने येलो शेड का बड़े छापों वाला कालरदार सूट पहन रखा था और खिलती रंगत वाली लैंगिंग, जो चूड़ीदार सलवार की तरह ही उसकी टांगों से चिपकी हुई थी और जिसमें उसकी शानदार फिगर बड़े दिलकश अंदाज में नुमायां हो रही थी। उसके चेहरे से कहीं ज्यादा शानदार उसकी फिगर थी। पैरों में वी शेप की साधारण चप्पल, बेतहाशा लम्बे और घने बालों को उसने रबर बैंड से पीठ पीछे बांध रखा था। हाथों में साधारण सा लेकिन आंखों को भाने वाला वैनिटी बैग, चेहरे पर मेकअप का नामोनिशान तक नहीं था। सच तो यह था कि उसका कयामत ढाता नैसर्गिक सौंदर्य किसी मेकअप का मोहताज था भी नहीं। वह तो खूबसूरती की जीती-जागती तस्वीर थी। मगर सबसे ज्यादा कशिश, उसकी आमंत्रण देती आंखों में थी, जिनमें अंदर गहराई तक शोखियों और अंदाजों का समुंदर नजर आता था। रसीले, गुलाबी होठों पर शरारत और जिंदादिली में डूबी निश्छल मुस्कान छिपी हुई।
भागकर आने के कारण उसकी सांसें फूल गई थी। जिसके साथ ही उसके उन्नत उभार बार-बार ऊपर उठ-गिर रहे थे। एक मकसद के पीछे बेतहाशा भागते अजय के जीवन का वह पहला क्षण था, जबकि उसने नजर भरकर किसी लड़की को देखा था और जिसे देखने के बाद उसके दिल में गुदगुदी सी मचने लगी थी, अरमान मचलने लगे थे, हसरतें उभरने लगी थीं। सच तो यह था कि वह पहली ही नजर में सीधे अजय के दिल में उतरती चली गई थी।
उस कयामत की नजर अजय पर पड़ी, जो अपलक उसे ही देखे जा रहा था एकदम नदीदों की तरह। लिफ्ट का दरवाजा बंद हो चुका था। उसके बाद कोई अन्य लिफ्ट में नहीं आया था और अकेले उन दोनों को लेकर ही लिफ्ट पुनः नीचे चल पड़ी थी।
अजय को यूं नदीदों की तरह आंखें फाड़े खुद को देखते ही हुस्नपरी की भृकुटि तन गई थी। उसने अजय का ध्यान बंटाने के लिए खंखारकर अपना गला साफ किया और उसकी आंखों के सामने ले जाकर अंगुली व अंगूठे से चुटकी बजाई तो अजय की तंद्रा भंग हुई और वस्तुस्थिति का अहसास होते ही वह हड़बड़ाया और बुरी तरह झेंप गया।
"हल्लो।" वह खनकते स्वर में बोली। उसके लहजे में शैशवावस्था का अल्हड़पन और किसी अबोध बच्चे जैसी मिठास थी “आर यू ओके मिस्टर?"
“ज...जी...हां ।” अजय तनिक हड़बड़ाकर बोला “ऑय एम ऑलराइट।"
"क्या आलराइट। पहले कभी कोई लड़की नहीं देखी क्या?"
“बहुत देखी हैं।” अजय अब किसी हद तक सहज हो चुका था और उससे बातें करने का उसे बेहतर मौका भी हासिल हो गया था। वह जानबूझकर शरारत से बोला “लेकिन आप जैसी एक भी नहीं देखी।"
“इसीलिए मुझे नजर लगाने पर आमादा हो।”
“मैं तो केवल आपको देख रहा था।” वह शाइस्तगी से बोला “और नजर लगाने लायक तो सचमुच ही आप हैं।"
“बातचीत से तो कोई शरीफ मालूम पड़ते हो।” वह तनिक नर्म हुई थी या शायद अपनी संजीदा तारीफ से खुश हुई थी "लेकिन असल में हो नहीं।"
“यह आप कैसे कह सकती हैं?"
“एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी, तुम्हें मुझसे सॉरी बोलना चाहिए था।"
“सॉरी किसलिए।”
“मुझे इस तरह घूर-घूरकर देखने के लिए।”
“किसी को घूरकर देखने पर सॉरी बोलना पड़ता है?"
“किसी और के बारे में तो मुझे पता नहीं, क्यों कि मैंने आज तक किसी को घूरकर नहीं देखा। लेकिन मुझे देखने पर बोलना पड़ता है।”
"अच्छा ।"
“हां।” उसने अपनी सुराहीदार गरदन ऊपर-नीचे हिलाई।
“और फिर अगर मैं सॉरी न बोलूं तो?" अजय ने उसे फिर जानबूझकर छेड़ा। उससे बातें करके उसे मजा आ रहा था।
"तो मुझे विश्वास हो जाएगा कि तुम कोई शरीफ आदमी नहीं हो। यू आर नॉट ए जेंटलमैन।”
“ओह नो। फिर तो मैं फौरन सॉरी बोलता हूं।” वह बौखलाया और जल्दी से बोला “ऑय एम सॉरी।"
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