RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
अपने बारे में उसने अजय को एक लफ्ज भी नहीं बताया था। फिर भी न जाने क्यों अजय को लगा, उस हुस्नपरी से उसकी वह मुलाकात महज इत्तेफाक नहीं था और यदि वह इत्तेफाक नहीं था तो जाहिर सी बात थी कि उसमें कोई कहानी छुपी हुई थी कोई अंजानी कहानी यानि कि वह चंचल तितली उसे दोबारा फिर मिलने वाली थी और जरूर मिलने वाली थी।
अजय का दिल एक अंजाने उल्लास से भरकर धड़क उठा। मगर साथ ही उसे आशंकाएं भी सताने लगी थीं। कहीं उस ख्यालों की हसीना के दिल का कोना भर तो नहीं चुका था। जो कोमल भावनाएं वह उसके लिए अपने दिल में संजोये बैठा था, कहीं वह किसी और के लिए तो संजोये नहीं बैठी थी।
मगर ऐसा कुछ भी नहीं निकला था। वहां तो सचमुच एक कहानी लिखी थी। और क्योंकि कहानी लिखी थी लिहाजा उस हुस्नपरी से उसकी अगली मुलाकात भी बहुत जल्द हुई।
उससे उसकी वह अगली मुलाकात एक पीवीआर शापिंग मॉल में हुई थी।
वह नया बना शॉपिंग मॉल था, जो बीते माह ही चालू हुआ था। वह तब भी कम्पलीट नहीं हुआ था। उसकी ऊपर की मंजिलों पर काम चल रहा था। वह शॉपिंग माल का टेंडर दरअसल में जानकी लाल की ब्लूलाइन कंस्ट क्शन के पास था और अजय का दौरा अक्सर वहां होता रहता था।
उस रोज भी वहां उसका आफिशियल दौरा था और अपनी टीम के साथ वह वहां पहुंचा था। उसका काम शाम तक खत्म होने वाला था। वह दोपहर के लंच का वक्त था। उसका और उसकी टीम का लंच का इंतजाम करीब ही स्थित एक स्टार सुविधाओं वाले रेस्टोरेंट में था। लेकिन उस रोज उसका नाश्ता जरा हैवी हो गया था इसलिए उसे खाने की कतई इच्छा नहीं थी। बस एक कप कॉफी और टोस्ट से ही उसका काम चल जाने वाला था जो कि नीचे माल में ही उपलब्ध था।
वह सीढ़ियों से उतरकर नीचे पहुंचा। कॉफी शाप से पहले ही एक लेडीज गारमेंट्स का शोरूम था। वह उसे पार करके आगे बढ़ने ही लगा था कि तभी एकाएक उस शानदार शोरूम का एक्जिट वाला पारदर्शी ग्लास डोर खुला। अगले पल उस खुले ग्लासडोर से एक लड़की तेजी से लपकती हुई निकली और सीधी अजय की छाती से टकरा गई।
अजय के शरीर को तेज धक्का लगा। वह बौखला उठा।
हालांकि इसमें अजय की कोई गलती नहीं थी। सारी गलती तो आने वाली हसीना की थी, जो बेहद जल्दबाजी में मालूम पड़ती थी और उस भीड़ की जगह पर वह इतनी फास्ट तथा लापरवाह मूव कर रही थी।
टकराने के बाद वह भी लगभग फौरन ही संभल गई थी।
फिर जैसे ही अजय की उस पर निगाह पड़ी, वह बुरी तरह चौंक पड़ा।
“अ...आप...।” उसके मुंह से बेसाख्ता निकला और वह मुंह बाए अपलक उसे देखने लगा। वह हसीना कोई और नहीं, उसके ख्वाबों की वही मलिका थी, जो उसके ख्वाबों से निकलकर एकाएक धरती पर आ गई थी। उस वक्त उसकी वह मुलाकात अप्रत्याशित थी, जिसने उसे भी चौंका दिया था।
“अ...अरे तुम...।" वह जरा चकित हुई थी। मगर इस बार अजय के लिए उसके लहजे और नजरों में अजनबीपन नहीं था, जिसने अजय को बहुत सुकून पहुंचाया था। वह सोच भी नहीं सकती थी कि उसे यूं फिर से अपने सामने पाकर अजय के दिल में खुशियों के कितने अनार फूट पड़े थे। एक अजीब सी हर्षभरी उत्तेजना उस पर छा गई थी, जैसे कि कोई खोया खजाना वापस मिल गया हो।
"हूं तो मैं ही मोहतरमा।” अपने जज्बातों को छुपाता अजय उसके सिंदूरी मुखड़े को देखता हुआ बोला “लेकिन बराये मेहरबानी, पहले एक बात बताइए।"
“तो, मिलते ही सवाल-जवाब शुरू कर दिया?" वह तमककर बोली।
“तो फिर मुझे और क्या करना चाहिए था?"
“मुझे सॉरी बोलना चाहिए था।"
“स...सॉरी किसलिए?"
"अरे हद करते हो। तुमने मुझे टक्कर मारी, मैं नीचे गिरते-गिरते बची हूं।”
“मैं संभाल लेता।”
"व्हॉट?"
“मैं हरगिज भी आपको नीचे गिरने नहीं देता। फौरन संभाल लेता।”
“तब तो हिन्दी फिल्मों वाला एक अच्छा-खासा स्क्रीन प्ले हो जाता, जिसमें फिल्म का हीरो अपनी हीरोइन की मुलाकात पर उसे ऐसे ही नीचे गिरने से संभाल लेता है।"
“मैं फिल्में नहीं देखता।” अजय मुस्कराया था। उसकी वही वाचाल अदा तो न चाहते हुए भी अजय को गुदगुदा जाती थी।
“लिहाजा सॉरी बोलना कैंसल ?” उसने नथुने फुलाए।
“सॉरी तो आपको बोलना चाहिए, क्योंकि टक्कर आपने मुझे मारी है। मेरे समझ में नहीं आता कि आप हमेशा इतनी जल्दी में क्यों होती हो, जैसे कि आपकी ट्रेन छूटने वाली हो। उस दिन लिफ्ट में भी आपने ऐसे ही तूफानी अंदाज में ऐंट्री की थी।"
“यही पूछना चाहते थे मुझसे?”
“हां। क्या नहीं पूछना चाहिए?"
"इस बारे में ब...बाद में फैसला करेंगे।” एकाएक उसका लहजा धीमा हो गया था “उसके लिए यह वक्त मुफीद नहीं
“अरे, मगर क्यों?”
"आस-पास के लोग जमा हो गए हैं।” वह सकुचाती सी बोली और उसने एक दबी निगाह अपने आस-पास घुमाई “और ह...हमें ही देख रहे हैं, वह देखो। एक सिक्योरिटी गार्ड भी इधर ही चला आ रहा है।"
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