RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“ल...लेकिन मैं इस वक्त किसी से भी मिलना नहीं चाहती।" “मैंने कहा न मेम, वह बिना मिले नहीं जाने वाला। मैं उसे हरगिज भी मना नहीं कर सकती।"
“अ..अगर...।" वह प्राची को घूरकर बोली “अगर मना किया तो वह क्या करेगा? तुम्हें गिरफ्तार कर लेगा।"
“जी नहीं मैम। वह डमरू बजा-बजाकर मुझे बहरा कर देगा।"
“ओह।” उसने एक क्षण सोचा, फिर जैसे उसने आइंदा पेश आने वाले हालात के लिए खुद को तैयार कर लिया था। वह अपने आपको सहज बनाये रखने का भरसक प्रयास करती हुई बोली “ठीक है, उसे आने दो।”
प्राची ने तत्क्षण सहमति में सिर हिलाया, फिर वह दरवाजा खोलकर बाहर निकल गई।
दूसरे पल दरवाजा खुलने के साथ डमरू के बजने की आवाज नैना के कानों में पड़ी। फिर इंस्पेक्टर मदारी ने अंदर कदम रखा।
“जय भोलेनाथ की।” उसने आते ही डमरू के सुर-ताल के साथ नैना का अभिवादन किया और गौर से उसके सौम्य मुखड़े को देखता बोला “जी आया नूं।"
“क...क्या आया?" नैना ने चिहुंककर पूछा।
“चैन आया।” उसने स्पष्ट किया “देख नहीं रहीं बाहर कितनी गरमी है आग बरस रही है। मगर यहां कितना ठंडा-ठंडा कूल-कूल है।" वह चुप हुआ, फिर नैना के चेहरे पर अपनी निगाह गड़ाकर बोला “है न मनोरमा जी?"
“म...मेरा नाम मनोरमा नहीं, नैना है।” नैना ने उसे याद दिलाया “नैना चौधरी।"
"मुझे मालूम है चौधराइन जी। लेकिन मैं क्या करूं, मुझे मनोरमा जी ज्यादा अच्छा लगता है। आपको मेरे मनोरमा कहने से कोई ऐतराज है?"
"नहीं है। पर पहले तुम यह डमरू बजाना बंद करो।"
“अच्छा।” उसका चेहरा उतर गया, स्वर मलिन हो गया, जैसे कि नैना ने उसका रिजाइन मांग लिया हो। वह अपने हाथ
को रोकता हुआ बोला “लो, अब आप इतना जोर देकर कह रही हैं तो मैंने बंद कर दिया।"
“य...यहां क्यों आए हो इंस्पेक्टर?" नैना ने उससे पूछा।
“सामने से गुजर रहा था।" वह खुद को दीन-हीन बनाकर बोला “अचानक आपकी याद आ गई तो चरण रज लेने चला आया। मिल जाती मनोरमा जी तो धन्य हो जाता कुत्ते जैसी दुर-दुर करती इस पुलिस की नौकरी से मुक्ति मिल जाती।"
“इंट्रेस्टिंग।” नैना की भवें उठीं। क्या मजाल जो वह तनिक भी प्रभावित हुई हो “मुझे तुम्हारी इस आदत के बारे में मालूम है इंस्पेक्टर। बात को जलेबी की तरह घुमाना तो कोई तुमसे सीखे। बहरहाल, अगर तुमने चरण रज ले ली हो तो जा सकते हो।"
“बस थोड़ी सी कसर रह गई है।"
“जल्दी वह भी पूरी करो।"
"नीचे अभी मैंने दूरबीन लगाकर हर कोने-खुदरे का मुआयना किया, लेकिन वह नजर नहीं आई, जिसकी मुझे तलाश थी।"
“कि..किसकी बात कर रहे हो तुम इंस्पेक्टर किसकी तलाश है तुम्हें ?
“आपकी दुलारी कार की?"
“ओह।” नैना के जेहन में खतरे की घंटी घनघनाने लगी थी। वह संभलकर कुर्सी पर बैठ गई “तो तुम मेरी कार को तलाश करते यहां आए हो।"
"दूरबीन के साथ आया था, मगर सारी मेहनत जाया गई। आपकी कार का यहां पहिया भी नजर नहीं आया।"
"तुम्हें मेरी कौन सी कार की तलाश है?"
"ज..जी?"
“जी क्या? कोई एक कार तो है नहीं मेरे पास लगभग आधा दर्जन कारें हैं। और सबसे बड़ी बात, क्यों तलाश कर रहे हो तुम मेरी कार को दूरबीन लेकर?"
“सब कुछ मेरी जुबान से ही उगलवाएंगी मनोरमा जी अपने दिमाग ए शरीफ को कोई तकल्लुफ नहीं देंगी?"
“मुझे बात को घुमा-फिराकर सुनने की आदत नहीं है इंस्पेक्टर । तुम्हें जो कुछ भी कहना है साफ-साफ कहो।” नैना
का लहजा शुष्क हो गया था।
“वही तो कह रहा हूं, मगर आप समझ ही नहीं रहीं।"
"क्या कहा है तुमने अभी?"
“आपके धुर प्रतिद्वंद्वी श्री-श्री एक हजार आठ सौ पचपन जानकी लाल अब दुनिया में नहीं रहे। इस बार उनके मुकद्दर ने उनका साथ छोड़ दिया और उन्होंने 'खुदा विहार' के लिए मैराथन दौड़ लगा दी।”
“ज...जानकी लाल की मौत की खबर मुझे लग चुकी है।” वह सावधानी से अपने लफ्जों को तौलती हुई बोली। उसे अहसास हो गया था कि झूठ बोलने का अब कोई फायदा नहीं था। वह काइयां इंस्पेक्टर यूं ही वहां तक नहीं आ पहुंचा था। उसके खिलाफ जरूर कोई क्लू पुलिस के हाथ लग गया था, जिसने उस इंस्पेक्टर को वहां तक पहुंचा दिया था।
|