RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“बिल्कुल देखा होगा।” नैना निःसंकोच बोली।
“मगर मुझे तो एक भी भद्रपुरुष ऐसा नहीं मिला, जिसने वह सब देखा होने का इतना मजबूत दावा किया हो? मजबूत क्या, दावा ही किया हो।"
"इसमें मैं क्या कर सकती हूं। यह तो आपका नकारापन है।"
“जहेनसीब! काफी क्रांतिकारी ख्यालात हैं, पुलिस के बारे में आम आदमी के। खैर.. अब एक बात और बताइए?"
"जरूर।"
“आप सारा इल्जाम काली स्कार्पियो पर थोपना चाहती हैं?"
“चाहती क्या हूं, सारा इल्जाम ही उस पर आना चाहिए।"
“क्या आपने स्कार्पियो का नम्बर नोट किया था?"
“उसमें जब कोई नम्बर ही नहीं था फिर नोट कहां से करती।”
“आपका मतलब है कि स्कार्पियो में कोई नम्बर प्लेट नहीं थी?"
"और क्या? वह एकदम नई थी, जैसे कि सीधी शोरूम से निकल कर आई हो।”
“इसीलिए उसमें नम्बर प्लेट नहीं लगी थी?"
“जी हां। उसकी नम्बर प्लेट वाली जगह पर एक कागज चिपका था। जिस पर कोई नम्बर लिखा था, जो कि मुझे याद नहीं।"
“क्यों याद नहीं?"
"क्योंकि वह नम्बर बहुत छोटे अंकों में लिखा था, जहां पर मेरी केवल एक नजर ही पड़ी थी। जब तक उस पर संदेह जाता, वह तूफान की तरह वहां से जा चुकी थी और दिखाई देना बंद हो गई थी।"
“वह टेम्परेरली रजिस्ट्रेशन नम्बर होता है, जो शोरूम से निकली नई कारों को दिया जाता है। शायद किसी की उस पर तवज्जो गई हो और उसने उस नम्बर को नोट कर लिया हो?"
"ऑफकोर्स। तुम्हें उस आदमी को खोजना चाहिए उसका पता लगाना चाहिए।"
“अगर ऐसा कोई भद्रपुरुष होगा तो खातिरजमा रखिए मनोरमा जी, वह मुझसे छुपा नहीं रह पाएगा। लेकिन आप शायद यह भूल रही हैं कि अगर गुनाहगार स्कार्पियो वाला नहीं है, तो क्या आपको यह बताने की जरूरत है कि फिर गुनाहगार कौन होगा?"
“नहीं।" वह दो टूक बोली “तब तो निश्चित रूप से गुनाहगार केवल मैं ही साबित होने वाली हूं।"
“बजा फरमाया, मनोरमा जी। वैसे देखा जाए तो कितनी अजीब बात है! इस मामले में आपके साथ इत्तेफाक का कितना बड़ा दखल है।”
“क्या मतलब है तुम्हारा इंस्पेक्टर?"
“अपने सबसे करीबी दुश्मन के घातक एक्सीडेंट के वक्त आप उसकी कार के ठीक पीछे मौजूद थीं। यह भी कुछ कम इत्तेफाक नहीं है कि यदि आपकी कार ने ऐसे नाजुक लम्हें में जरा धैर्य से काम लिया होता और अपना वह उम्दा शाट न दिखाया होता तो निश्चित रूप से श्री-श्री की मौत की घड़ी टल जाती। स्कार्पियो वाले भद्रमानव की इतनी खतरनाक ज्यादती के बावजूद श्री-श्री की मौत टल जाती। आपको नहीं लगता?"
“शायद तुम ठीक कह रहे हो इंस्पेक्टर।” नैना ने बड़ी शराफत से स्वीकार किया।
मदारी ने हैरानी से उसे देखा।
"ऐसे मुझे क्या देख रहे हो इंस्पेक्टर।” उसे इस तरह अपनी ओर देखता पाकर नैना ने कहा “यही सच है। बहरहाल, भले ही जानकी लाल से कट्टर प्रतिद्वंद्विता थी, लेकिन जी चाहे तो यकीन कर लो, हम केवल आपस में कम्पटीटर ही थे। अपनी इस सोच को बदलो कि हम एक-दूसरे के दुश्मन थे। उसकी मौत का मुझे सख्त अफसोस है?"
"मुझे भी सख्त अफसोस है।”
नैना के चेहरे पर उलझन के भाव आए। उसने अपलक मदारी को देखा।
"बात को समझिए मन को हरने वाली अर्थात् मनोहरा जी।" उसने स्पष्ट किया “मेरा मतलब केवल इतना ही है कि श्री-श्री की मौत पर अफसोस करने वाले कम जश्न मनाने वाले ज्यादा हैं।”
“म..मैं कुछ समझी नहीं।”
“समझ जाएंगी, बस आगे का खेल जरा समझकर खेलिएगा। क्योंकि इस खेल में अब दिल्ली पुलिस के इस मनहूस इंस्पेक्टर का दखल हो गया है, जो सरकार से हासिल होने वाली तनख्वाह की पाई-पाई हलाल करने में यकीन रखता है।” वह ठिठका, फिर नैना को देखकर एकाएक उसने अपने दोनों हाथ जोड़ दिये थे और जबरदस्ती दांत निकालता हुआ बोला “बुरा मत मानिएगा मनोरमा जी, अब मैं इजाजत चाहता वह एकाएक खामोश हो गया।
अचानक ही उसका मोबाइल बजने लगा था।
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