RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“और क्या? आखिर वह तुम्हीं तो हो, जिसकी वजह से मैं बच गया। अगर तुम आज भी पहले की तरह जल्दबाजी में होती तो..."
"वह तो ठीक है जेंटलमैन।" वह अजय की बात बीच में काटती हुई बोली “मगर एक्सीडेंट के केस में फांसी की सजा कहां मिलती है?"
"नहीं मिलती, मुझे मालूम है। लेकिन वह सजा कानून मुझे थोड़े ही न देता।"
“तो फिर?" वह असमंजस में पड़ती हुई बोली।
"वह सजा तो मैं खुद अपने आपको देने वाला था।” अजय हिचकिचाया, फिर धीरे से बोला “सजा-ए-मौत।"
"स...सजा-ए-मौत?"
"हां।"
“मगर क्यों?"
“जान चली जाने के बाद भला कोई कैसे जिंदा रह सकता है? अपनी जिंदगी खुद अपने हाथों से खत्म करने के बाद भला मैं कैसे जिंदा रह सकता था।” अजय ने बड़ी खूबसूरती से अपना दिल उस पर खोल दिया था।
एक पल के लिए तो उसकी समझ में ही न आया कि अजय क्या कह गया था। जब आया तो वह चौंकी और बुरी तरह हकबकाकर अजय को देखने लगी थी।
उसके चेहरे पर कितने ही रंग आकर चले गए थे।
"हे भगवान...।” फिर सहसा उसके होठों से निकला था। उसका स्वर लरज गया था। वह एकटक अजय को देखने लगी थी और जो उसने महसूस किया, उसने उसे अंदर तक हिला दिया था “यह मैं क्या देख रही हूं। कितना आगे निकल गए हो तुम मुझे लेकर जेंटलमैन?"
“तुम्हारी उम्मीद से बहुत ज्यादा?"
“जबकि अभी तक तुम मेरे बारे में कुछ भी तो नहीं जानते ? मेरा नाम तक नहीं मालूम तुम्हें ?"
“मुझे तुम्हारे नाम ने नहीं, तुम्हारी पहचान ने नहीं, बस तुमने दीवाना बनाया है। तुम जो भी हो बस इतना जान लो, तुम केवल मेरे लिए ही दुनिया में आई हो। ताकीद कर रहा हूं, मेरी चाहत का इम्तहान मत लेना, वरना तुम्हें पछताना पड़ेगा।"
“य...य...यह तो दीवानगी है जेंटलमैन ?" उसका स्वर एकाएक लरज गया था।
“यह दीवानगी ही तो है।” अजय ने कहा।
“मैं...मैं किसी और की अमानत भी हो सकती हूं? मेरे दिल में कोई और बसा हो सकता है?"
“अगर ऐसा हुआ तो खातिरजमा रखो, मैं आइंदा कभी तुम्हें अपनी सूरत भी नहीं दिखाऊंगा तुम्हारी यादों का आखिरी कतरा भी अपने दिल से खुरचकर निकाल दूंगा।"
“इ...इतना विश्वास है तुम्हें अपनी चाहत पर?"
“वह चाहत ही क्या जिसमें हिमालय को हिला देने वाला चट्टानी विश्वास न हो।”
“ह...हो सकता है मैं तुम्हारी इस चाहत के लायक ही न होऊं? यह भी हो सकता है कि मेरा यह जिस्म तुम्हारे लायक ही न हो? कोई दाग लगा हो सकता है इसमें?"
“मैंने पहले ही ताकीद किया था, मेरी चाहत का इम्तहान मत लेना। तुम्हें पछताना पड़ेगा। फिर भी तुम्हारे सवाल का माकूल जवाब यह है मेरी जिंदगी, कुदरत के चांद में दाग हो सकता है पर मेरा यह चांद बेदाग है। इसका रोम-रोम उतना ही पाक-पवित्र है जैसा कुदरत ने उसे बनाकर भेजा था।"
“तुम...तुम सचमुच दीवाने हो जेटलमैन?"
“हो सकता है। लेकिन इंकार करने के तमाम हक तो तुम खुद ही खो चुकी हो। खुद तुमने ही तो कहा था, हर दो अजनबी के बीच एक कहानी लिखी होती है। अगर हमारे बीच भी कोई कहानी लिखी है तो हम फिर मिलेंगे और उस कहानी के किरदार बनकर सिलसिला शुरू करेंगे। और जब ऐसा होगा तो मुझे उससे कोई ऐतराज नहीं होगा। वह सिलसिला तो शुरू हो चुका है, फिर ऐतराज का क्या मतलब है?"
उससे इस बार फिर जवाब देते न बना था। उसके चेहरे पर अंदरूनी कशमकश के भाव आ गये थे और वह व्याकुल भाव से पहलू बदलने लगी थी।
कार तब तक दिल्ली की सीमा में दाखिल हो चुकी थी। पता ही नहीं चला उसके साथ कब वक्त गुजर गया था।
“जवाब दो।” अजय ने उसे कुरेदा और अपने अल्फाजों पर जोर देता हुआ बोला “अब ऐतराज क्यों?"
“म..मेरी शरारतें अचानक ही इस तरह मुझे जिंदगी के दोराहे पर लाकर खड़ा कर देंगी, मैंने कभी सोचा तक नहीं था।” वह कम्पित स्वर में बोली “म..मैं एक धर्मसंकट में फंस गई हूं जेंटलमैन।”
“इसमें मेरा कोई कसूर नहीं।"
“तुम एक सच्चे इंसान हो। तुम्हारा किरदार भी मुझे पूरा यकीन है कि तुम्हारे जैसा ही सच्चा होगा। तुम्हारा घराना भी बहुत ऊंचा लगता है। जबकि मैं तो बहुत साधारण सी लड़की हूं, जो तुम्हारे लायक हरगिज भी नहीं हूं। क्या मुझे माफी नहीं मिल सकती?"
“यानि कि अपने ही वचन से मुकरना चाहती हो?"
“कहां मुकरना चाहती हूं। मुकरना न पड़े, इसीलिए तो माफी मांग रही हूं।"
“और अगर मैंने तुम्हें माफ न किया तो...।” अजय के होठों पर एकाएक मुस्कराहट उभरी, वह क्षणभर के लिए उस पर निगाह डालता हुआ शरारत से बोला “तो तुम मुकर नहीं पाओगी। राइट।"
"ओह नो जेंटलमैन।"
“और अभी तक तुमने मुझे अपना नाम भी नहीं बताया?"
"तुमने पूछा ही कब था। वैसे मेरा नाम आलोका है।"
“आ...आलोका!"
"हां।"
"इतना प्यारा नाम अब तक मुझसे छुपाकर रखा।"
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