Thriller Sex Kahani - कांटा
05-31-2021, 12:10 PM,
#72
RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“ऊपर से इस मिनी पिस्टल में साइलेंसर नहीं लगा है। जबकि जिस रिवॉल्वर से घातक गोली चली है, उस पर निश्चित रूप से साइलेंसर लगा था।" मदारी ने कहा “अगर नहीं लगा होता तो गोली के धमाके की आवाज यहां आस-पास जरूर गूंजी होती। जबकि मैं दावे से कह सकता हूं यहां कोई धमाका नहीं गूंजा। फिर भी तुम चाहो तो जाकर आजू-बाजू तस्दीक कर सकते हो।"

“उसकी ज...जरूरत नहीं है सर।” शर्मा सहमति में सिर हिलाता हुआ बोला “मुझे आपके टेलेंट और तजुर्बे पर पूरा विश्वास है। लेकिन..अगर यह मर्डर वैपन नहीं है तो फिर यह पिस्टल किसकी है? यह यहां आखिर क्यों पड़ी है और...और
मर्डर वैपन आखिर कहां है?"

"जाहिर सी बात है जजमान कि वह मर्डर करने वाले के पास ही होगा।"

“वह तो सामने खड़ा है।” शर्मा पुनः जतिन की ओर घूमा और उसे आग्नेय नेत्रों से घूरता हुआ बोला।

“म...मैंने कहा न कि मैंने कल नहीं किया है?” जतिन ने फिर प्रतिरोध किया।

"फिर झूठ बोला।” शर्मा ने बिफरकर उसे देखा “खाल खींच लूंगा।"

"शांत जजमान शांत।" मदारी ने उसे शांत रहने का इशारा किया “मैं उसकी तलाशी ले चुका हूं। अगर वह वैपन इसके पास होता तो बरामद हो गया होता। इसमें सचमुच कुछ भेद मालूम होता है। यह सच बोलता हो सकता है। तुम जरा मुझे इससे बातें करने दो।”

शर्मा कसमसाया। उसके चेहरे पर गहन अप्रसन्नता के भाव आए, जैसे कि जतिन का मुजरिम न निकलना उसे हरगिज भी गंवारा नहीं था। और अगर ऐसा हो जाता तो उसे गहरा सदमा पहुंचने वाला था।

“जय भोलेनाथ ।” मदारी जतिन के करीब पहुंचा और उसकी आंखों में देखता हुआ नारा लगाकर बोला “तो श्रीमान अब आपका क्या इरादा है?"

“इ...इरादा से तुम्हारा क्या मतलब है इंस्पेक्टर?” जतिन ने आशंकित भाव से उसे देखा।

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“मैं कैसे विश्वास करूं कि तुम निर्दोष हो तुमने इस हसीन गुड़िया का कत्ल नहीं किया?"

“ज...जी। वह...।"

“कौन है ये हसीन गुड़िया? तुमसे इसका कौन सा भौतिक या रासायनिक संबंध है? वारदात के वक्त तुम यहां इसके बियावान फ्लैट पर क्या कर रहे थे? अगर अपने आपसे जरा सी भी हमदर्दी रखते हो तो कामा-विराम का ख्याल किए। बिना सब कुछ सच-सच बताते चले जाओ?”

मदारी जो कुछ भी पूछ रहा था, उसे बताने में जतिन को कोई ऐतराज नहीं था। सच तो यह था कि उसे अभी तक अपनी सफाई में बोलने का मौका ही नहीं दिया गया था। उसे तो पकड़ते ही बस संजना का कातिल ठहरा दिया गया था।

उसके हौसले को बल मिला। उसने अपने शुष्क होंठों पर जुबान फिराई, फिर उसने ईमानदारी से मदारी को सबकुछ सच-सच बता दिया।
वह जानता था कि पुलिस बाल में खाल निकालने में माहिर होती थी। लिहाजा ऐसे मामलों में उससे कुछ भी छुपाना अपना नुकसान करना ही होता था। इसलिए उसने कुछ भी नहीं छुपाया। अपने और संजना के नाजुक रिश्ते की शुरूआत से लेकर, संजना के किरदार पर शक होने से शुरू होकर उसकी जासूसी और फिर स्पाई कैमरे द्वारा उस तमाम नजारे की रिकार्डिंग, जो कुछ संजना तथा सहगल के बीच थोड़ी देर पहले उस कमरे में हुआ था, उसने मदारी को सबकुछ सच-सच बता दिया।

उसने यह तक मदारी से नहीं छुपाया कि संजना का नंगा सच उजागर हो जाने के बाद वह किस कदर जुनूनी हो गया था और उसने सचमच संजना को खत्म कर डालने का इरादा बना लिया था। इसीलिए उस वक्त उसके फ्लैट पर वहां पहुंचा था। केवल इतना ही नहीं, उसने संजना का गला घोंट डालना भी चाहा था। लेकिन फिर किस तरह संजना ने पासा पलट दिया था और वह उल्टा उसकी जान लेने पर आमादा हो गई थी उस मिनी पिस्टल से, जिसे कि वह कमबख्त शर्मा संजना का मर्डर वैपन साबित करने पर तुला था।

कुछ भी तो नहीं छुपाया था जतिन ने मदारी से। वह खामोश हुआ तो मदारी हक्का-बक्का सा होकर उसका मुंह देखने लगा।

शर्मा की हालत भी उससे जुदा नहीं थी।

“मेरा विश्वास करो इंस्पेक्टर ।” जतिन ने बारी-बारी से दोनों के चेहरों पर निगाह डाली, फिर अंत में वह बोला “मैं निर्दोष हूं। यह सच है कि इस जलील औरत की बेवफाई और इसके ऐसे वहशी सच को मैं बर्दाश्त नहीं कर सका था, और आवेग के हवाले हुआ मैं इसकी जान लेने यहां तक आ पहुंचा था। लेकिन मैं अपने उस इरादे में कामयाब नहीं हो सका था। उल्टा मेरी अपनी जान पर आ बनी थी। अगर ठीक उसी । वक्त वह बेआवाज गोली आकर संजना को न लगीं होती तो इस..." उसने बिस्तर पर पडी संजना की लाश को देखा और नफरत से बोला “जलील औरत ने मुझे ही खत्म कर दिया होता।"

मदारी और शर्मा की निगाहें आपस में मिलीं।

“जय भोलेनाथ ।” फिर मदारी ने अपने डमरू को हिलाया, तो वातावरण में एक बार फिर नगाड़े की आवाज जोर से बुलंद हुई। फिर वह अपना डमरू वाला हाथ नीचे करता हुआ जतिन से बोला “यह तो सचमुच किसी मिस्ट्री फिल्म की कहानी मालूम होती है जजमान। आपकी आंखों के सामने ही श्रीमती की छाती में सुराख बनाया गया और आप दावा कर रहे हैं कि आपने सुराख बनाने वाले नेकबख्त को नहीं देखा।"

“यह सच है इंस्पेक्टर। उस वक्त मेरी उस तरफ पीठ थी, जिधर से गोली चली थी। जबकि संजना का उधर मुंह था।"

"तब तो उसके लिए आपको शूट करना ज्यादा आसान था। फिर भी उसने आसान काम न किया और आपकी जगह पर
श्रीमती को शूट करने का कठिन काम करने का जोखिम उठाया। क्या आप बता सकते हैं श्रीमान कि उसने ऐसा क्यों किया?"

“म..मैं इस बात पर खुद हैरान हूं इंस्पेक्टर?"

“लेकिन मैं बिल्कुल भी हैरान नहीं हूं। वह नेकबख जरूर आपका कोई भयंकर शुभचिंतक होगा, जबकि श्रीमती का घोर शत्रु।" उसने शर्मा की ओर देखा फिर बोला “एम आई राइट शर्मा जजमान?"
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