RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“मुझे दोबारा फोन मत लगाना क्योंकि मैं अपना मोबाइल ऑफ करने जा रहा हूं। पुलिस ने मेरे मोबाइल को सर्विलांस पर लगाया हो सकता है।"
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“त...तो फिर तुमसे कांटेक्ट कैसे करूंगा?"
“मैं खुद तुमसे कांटेक्ट करूंगा।"
“ओह।”
फोन डिस्कनेक्ट हो गया।
संदीप के होंठ एकाएक सख्ती से भिंच गए। चेहरे पर बेहद कठोर भाव आ गए थे। संजना की मौत का खौफ फिलहाल उसके दिलोदिमाग से बिल्कुल निकल गया था और उसके दिलोदिमाग में रह-रहकर सहगल का नाम टकराने लगा था। इसके साथ ही एक बेहद कठोर इरादा उसके अंदर घर करने लगा था।
उसने जतिन को फोन लगाया।
दूसरी तरफ से फौरन कॉल रिसीव हुई और जतिन का सशंक स्वर उसके कानों में पड़ा “हल्लो।"
“हल्लो जतिन ।” वह मोबाइल पर बोला “मैं संदीप, पहचाना?"
“पहचाना।” जतिन का शुष्क स्वर उसके कानों में पड़ा “बोलो क्या बात है?"
"मैं अभी इसी वक्त तुमसे मिलना चाहता हूं।"
"मुलाकात की वजह अगर संजना है तो उसके लिए मिलने की जरूरत नहीं है। फोन पर भी संवेदना प्रकट की जा सकती
“इतनी रुखाई क्यों दिखा रहे हो दोस्त। तुम्हारा दुश्मन मैं नहीं सहगल है।"
“हर वह इंसान मेरा दुश्मन है जो सहगल और उसकी टीम से जुड़ा है।"
“वह टीम केवल एक मकसद के लिए बनाई गई थी, जो कि पूरा हो चुका है। फिलहाल बस इतना ही जान लो कि इस वक्त सहगल अकेले तुम्हारा नहीं, मेरा भी दुश्मन है। वह हम सबका दुश्मन है। दुश्मन भी ऐसा खतरनाक है, जो हम सबको साथ लेकर डूबने पर आमादा है।"
"वक्त की मांग यह है कि हम सबको एक बार फिर इकट्ठा होना होगा, और एक बार फिर एक मिशन को अंजाम देना होगा।"
“अपने दुश्मनों के लिए मैं अकेला ही काफी हूं। उसके लिए मुझे अब किसी टीम की जरूरत नहीं है।"
“म..मैं तुम्हारे दिल की हालत समझ सकता हूं। लेकिन मैं फिर कहता हूं, मैं तुम्हारा दुश्मन नहीं हूं। वैसे भी सहगल एक
खतरनाक आदमी है।"
“मुझे मालूम है। अगर कहने के लिए तुम्हारे पास कुछ और न हो तो मैं फोन रख रहा हूं।"
"अपने फैसले पर एक बार फिर सोच लो जतिन। शायद तुम्हारा इरादा बदल जाए।"
प्रत्युत्तर में जतिन ने फोन डिस्कनेक्ट कर लिया।
संदीप ने असहाय भाव से सिर हिलाया, फिर उसने अजय को फोन लगाया। आखिर अजय भी जतिन, संजना और कोमल की तरह ही सहगल की टीम का एक हिस्सा था। अजय ने भी लगभग फौरन ही फोन उठाया।
"हल्लो अजय, मैं संदीप।” संदीप मोबाइल पर बोला।
“पहचान लिया।” अजय का सहज स्वर उसके कान में पड़ा “अगर संजना के बारे में बताने के लिए फोन किया है तो मुझे मालूम है। और हमारे सेनापति सहगल की वार्निंग भी मुझ तक पहुंच चुकी है।”
“सहगल की वजह से ही फोन किया है।" वह जल्दी ही बोला
“उसे लेकर तुमने क्या फैसला किया है?"
"कोई फैसला तो करना ही पड़ेगा। वरना वह सचमुच अकेला नहीं डूबेगा, अपने साथ हम सबको भी ले डूबेगा।"
“यही बात मैंने जतिन को समझाने की कोशिश की थी, मगर..।”
“जतिन इस वक्त कुछ भी समझने की हालत में नहीं है। वह नफरत से भरा हुआ है।"
"इसका मतलब तुमने भी उसे फोन किया था?"
"हां। मैंने उसे फोन किया था। सहगल इस वक्त उसका जानी दुश्मन है। हम सबसे कहीं बढ़कर वह सहगल की मौत
का तमन्नाई है।"
“फिर भी हमारे साथ आने से इंकार कर रहा है?"
"हां। क्योंकि टीम में काम करने का नतीजा हम सबके सामने है। माना कि टीम की ताकत जुदा होती है, मगर उसके नुकसान भी कम नहीं हैं। इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि सहगल की मौत के साथ ही यह खूनी सिलसिला बंद हो जाएगा। हो सकता है कि सहगल के बाद एक बार फिर हालत पलटा खा जाएं और हमें फिर खुद को बचाने के लिए एक और सहगल को ठिकाने लगाना पड़े। जतिन भी तो यही कह रहा था।"
"और तुम क्या कह रहे हो?"
“मैं जतिन से पूरी तरह सहमत हूं।"
"ओह।” संदीप का चेहरा बुझ गया।
"गुड बॉय संदीप। दोबारा मुझे फोन मत करना।"
अजय ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।
संदीप ने इस बार कोमल को फोन लगाया और धड़कते दिल से उसके फोन उठाये जाने का इंतजार करने लगा। दो-तीन बार बेल बजने के बाद कोमल ने कॉल रिसीव किया और वह पहली शख्स थी, जिसने संदीप का आवाज सुनकर नापसंदगी नहीं जाहिर की थी, न ही वह उसके साथ रुखाई से पेश आई थी। उसके विपरीत उसकी खुशी से चहकती आवाज संदीप के कानों में पड़ी थी “हाय संदीप। हाऊ आर यू।"
“फाइन।" संदीप के दिल की धड़कनों में इजाफा हो गया था। उसके दिल में एक लहर सी आकर चली गई थी। वह धीरे से बोला "तुम कैसी हो?"
“वैसी ही हूं जैसे तुम छोड़कर गए थे।” कोमल बोली “तुम्हारे जिस्म और दिल पर तो डाका पड़ चुका है, लेकिन जी चाहे तो यकीन कर लो, मेरा हसीन जिस्म और दिल पूरी तरह पवित्र है। उस पर मैंने कभी किसी का साया तक नहीं पड़ने दिया।"
"शिकायत कर रही हो?"
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