RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“उसके बाद ही आपके सब्र का प्याला छलका था और...।" प्रत्यक्षतः मदारी सुसंयत स्वर में बोला “आप रिवॉल्वर लेकर इस पर चढ़ दौड़ी थीं।"
“और क्या? वह सब अपने कानों से सुनने और देखने के बाद भला कौन लड़की होगी तो अपने आप पर कंट्रोल रख पाएगी।"
“यह रिवॉल्वर जो आपके मरहूम श्रीमान के पास पड़ा है, यही आपका रिवॉल्वर है न?"
“हां। इस शैतान ने उसे मुझसे जबरदस्ती हथिया लिया था।" “यह रिवॉल्वर आपके पास कहां से आया?"
“यह मेरे पापा का लाइसेंसी रिवॉल्वर है, जो मैं जानती थी कि हमेशा उनके सोने के कमरे में मौजूद रहता था और जिसे वह हमेशा लोड करके रखते थे। मैं यहां से उल्टे पांव पापा के कमरे में गई थी और यह रिवॉल्वर लेकर वापस लौटी थी। उस वक्त गुस्से की ज्यादती के कारण मेरा बुरा हाल था। इंस्पेक्टर और यह सच है कि मैं इस जलील आदमी को कत्ल कर देने का पूरा इरादा रखती थी। लेकिन...।"
“लेकिन इस जलील श्रीमान ने पासा पलट दिया था और...।" मदारी ने उसकी बात पूरी की “खुद आपकी जान पर बन
आयी थी।"
“ह...हां।” रीनी के शरीर ने जोर की झुरझुरी ली, जैसे कि वह दृश्य उसके दिलोदिमाग पर घूम गया हो “मगर उसके बाद अचानक जो हुआ उसकी तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी।"
“क्या सबूत है कि आपने जो कहा, सच कहा है? बहुत मुमकिन है कि आपने ही इसका फातिहा पढ़ा हो।” मदारी ने शंका जताई “और फिर रिवॉल्वर इसके पास फेंक दिया हो।"
“सारे सबूत यहीं मौके पर ही मौजूद हैं इंस्पेक्टर।” रीनी बड़े आत्मविश्वास से बोली “मेरे पापा का रिवॉल्वर सामने ही पड़ा है। तुम तस्दीक कर सकते हो कि उससे कोई गोली नहीं चली। वह गोली तो हरगिज भी नहीं चली जिससे कि संदीप की मौत हुई। इसका यह सेलफोन भी यहीं मौजूद है। उसकी कॉल डिटेल तुम्हें बता देंगी कि इस घटना से पहले यह कोमल से बातें कर रहा था। उससे पहले भी अगर इसने किसी और से बात की होगी तो वह भी तुम्हें मालूम हो जाएगा।"
"हूं।” मदारी ने संजीदगी से हुंकार भरी। फिर सहमति में सिर हिलाता हुआ बोला “क्या इसने कोमल से पहले भी किसी
और से बात की थी?"
"मुझे नहीं पता। मैं जब यहां आयी थी तो यह कोमल से ही बात कर रहा था और काफी घुट-घुटकर बोल रहा था, जैसे कि अपनी आवाज को दबाना चाहता हो। इसी बात से मुझे शक हुआ और मैं छुपकर इसकी बातें सुनने लगी थी। उसके बाद जो मैंने सुना तो म..मेरे पैरों तले जमीन ही खिसक गई। एक पल के लिए मेरा दिमाग जैसे सुन्न हो गया।"
“उसके बाद आप वापस लौट गईं और सीधे श्री-श्री के कमरे में पहुंची, जहां कि हमेशा रिवॉल्वर मौजूद रहता था? उसके बाद आपने..."
-
-
"हां इंस्पेक्टर हां।” रीनी उसकी बात बीच में काटकर जबड़े भींचती हुई बोली। उसके गोरे चेहरे की नसों में फिर तनाव
आ गया था “उसके बाद जो हुआ, वह मैं तुम्हारे इस सब-इंस्पेक्टर को बता ही चुकी हूं।"
“जय भोलेनाथ की।” मदारी ने फिर नारा लगाया, उसके पश्चात् बोला “मुझे याद है आपने शर्मा जजमान को क्या बताया था। फिर भी अगर आप एक आखिरी सवाल का जवाब और दे दें तो यह आपका मेरे वीआरएस पर भारी अहसान होगा। जिस पर कि इस वक्त आप नहीं जानती कितना भयानक खतरा मंडरा रहा है।"
रीनी के चेहरे पर उलझन के भाव आए।
"वह किस्सा फिर कभी।” मदारी उसके चेहरे के भावों को पढ़ता हुआ बोला “क्या आपको अपने पतिदेव श्रीमान मरहूम
की मौत का अफसोस है?"
"बहुत सख्त अफसोस है।” रीनी तमककर अपने होंठ भींचती हुई बोली “और मुझे यह अफसोस हमेशा रहेगा कि यह हरामजादा मेरे अपने हाथों से नहीं मरा।"
मदारी हड़बड़ाया। शर्मा भी हैरानी से रीनी को देखने लगा था। “क्या पता यह आपके ही कर कमलों से मरा हो?" मदारी ने कहा “और आप पुलिस को गुमराह करने के लिए झूठ बोल रही हो?"
“अगर ऐसा है तो फिर तुम मुझे गिरफ्तार करके फांसी पर चढ़ा दो, अब तो मुझे वैसे भी जीने की चाह नहीं है।” उसके लहजे में करुणा फूट पड़ी थी “जिसे मैंने अपना सब कुछ माना, जिसके लिए मैं अपने डियर डैडी से भी बगावत करने में नहीं हिचकी, वह इतना बड़ा शैतान निकला। उसने पहले मेरे पापा का कत्ल करवाया, उसके बाद मुझे भी ठिकाने लगाने का प्लान बनाए बैठा था।"
“अगर ऐसा है तब तो आपकी यह मुराद वैसे ही पूरी हो जाने वाली है श्रीमती।"
"क...क्या मतलब?"
“अगर आपने सही कहा है तो इसका मतलब यह हुआ कि आपके कत्ल की भी सुपारी दी जा चुकी है और जिस खतरनाक किलर ने, श्री-श्री का फातिहा पढ़ा, अब वह आपका भी फातिहा पढ़ने की कोशिश करेगा और उस गोपालम् को मैं अच्छी तरह जानता हूं। उसके नाकाम होने के चांस बहुत कम हैं।"
“म...मैंने कहा न इंस्पेक्टर, मुझे अब जीने की कोई चाहत नहीं है, क्योंकि मेरे जीने का अब कोई मकसद नहीं है और बिना मकसद की जिंदगी के कोई मायने नहीं होते।" ‘
“यह तो खैर आपने ठीक कहा श्रीमती। लेकिन मकसद मिल सकता है।"
“क...क्या कहा तुमने?" ‘
‘
"बस भोलेनाथ के नाम पर एक सवाल और...?"
"वह भी पू..पूछ लो।" ‘
“अभी आपने फरमाया कि मरहूम जजमान श्री-श्री के कत्ल के षड्यंत्र में शरीक था।”
"ह...हां । मैंने यह कहा था।"
"तो मेरा सवाल यह है कि श्रीमती कि वह षड्यंत्र किसने रचा था? मरहूम संदीप जजमान के अलावा उस षड्यंत्र में
और कौन लोग शामिल थे?"
“मुझे नहीं पता इंस्पेक्टर। फोन पर इस शैतान की बातें सुनकर मैंने जो नतीजा निकाला था, वह यही था। इसने पापा के षड्यंत्र में शामिल अपने साथियों का नाम नहीं लिया था।"
“यह भी ठीक है। लेकिन श्री-श्री के कत्ल से आपके मरहूम जजमान को आखिर क्या हासिल होने वाला था? बात अगर खाली दौलत की थी तो वह तो वैसे ही उसे हासिल हो चुकी थी। आप आखिर श्री-श्री की इकलौती लाड़ली थीं और जो कुछ उनका था आखिरकार तो वह आप दोनों का ही हो जाने वाला था?"
“पापा संदीप को बिल्कुल भी पसंद नहीं करते थे। हमारी शादी केवल मेरी जिद का नतीजा थी। और संदीप को हमेशा यह खौफ सताता रहता था कि अगर पापा जिंदा रहते तो वह यकीनन हम दोनों का तलाक करा देने वाले थे। और पापा
का जो मिजाज था, उसके मद्देनजर वह सचमुच हमारा तलाक करा देते तो कोई बड़ी बात नहीं थी।"
“क्या श्री-श्री सचमुच आप दोनों का तलाक करा देने वाले थे?” “मैंने कहा न, पापा का जो मिजाज था, उसके जेरेसाया वह ऐसा कर सकते थे।"
"आप तलाक के लिए राजी हो जाती?"
"इसका यह चेहरा पहले मेरे सामने आ जाता तो मेरे इंकार की कहां गुंजाइश थी।"
|