RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
सौगत!
जो अगर उसके साथ न होता तो शायद वह शातिर इंसान कुछ भी नहीं कर पाता। लेकिन सांप का स्वभाव ही ऐसा होता है जो उसे दूध पिलाता है, उसे भी डंसने से नहीं चूकता। फिर आखिर सौगत कैसे बच सकता था।
उसे भी तो उसने डंस लिया था।
कितना खून बहाया था उस हत्यारे ने महज प्रबीरदास की दौलत को हासिल करने के लिए!
कितनी लाशों के अंबार लगाए थे!
लाशों की उसी बारात में एक लाश निमेष की भी शामिल थी। उसके अपने पिता की, जिन्होंने उसे गोद लिया था। जिस फरिश्ताजात इंसान ने उसे कूड़े के ढेर से उठाकर अपनी पलकों पर बैठाया था, उसे दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार दिया था।
मगर फिर अपने उसी पिता की धधकती चिता को उसने अपनी आंखों से देखा था। वह दिन था और आज का दिन था, वह चिता आज भी उसकी आंखों में धधक रही थी और अजय से अपने साथ हुई नाइंसाफी का जैसे हिसाब मांग रही थी। और अजय पागलों की तरह दुनिया की भीड़ में उस इंसान को ढूंढता फिर रहा था।
“त...तुमने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया जेंटलमैन।” तभी आलोका की आवाज उसके कानों से टकराई, जो अजय के बोलने का इंतजार कर रही थी और टुकुर-टुकुर उसे ही देख रही थी।
“और वह शातिर इंसान कौन है जिसने वह खून का खेल खेला था?” आलोका ने आगे पूछा “क्या तुम उसे जानते हो? उसका क्या नाम है?"
अजय ने जवाब देने के लिए अभी मुंह खोला ही था अचानक वातावरण में कॉलबेल की आवाज गूंज उठी।
अजय की तंद्रा भंग हो गई। वह बेसाख्ता चौंक पड़ा। अभी तक उसकी आंखों के सामने लहराता आलोका और अतीत का चेहरा धुंधलाता चला गया। पांच बरस पुरानी वह अतीत की यादें आंखों के सामने से हट गईं और वह अपने वर्तमान में वापस लौट आया था।
और उसने अपने आपको उसी फ्लैट के टैरेस पर मौजूद पाया था, जहां पड़ी ईजीचेयर से उसे सामने सड़क के पार स्थित वह बुलंद इमारत साफ नजर आती थी और जिस इमारत से उसका पुराना रिश्ता था। और जिसे देखकर वह अक्सर पुरानी यादों में खो जाता था।
तभी कॉलबेल दोबारा बजी।
अजय एक गहरी सांस भरकर ईजीचेयर से उठ गया।
उसने जाकर प्रवेशद्वार खोला। फिर आगंतुक को देखते ही न चाहते हुए भी चौंक पड़ा। उसके मस्तक पर अनायास ही बल पड़ गए।
हाथ में कीमती सूटकेस लटकाये सुमेश सहगल कनॉट प्लेस के एक थ्री स्टार होटल से बाहर निकला।
मार्किट में ही उसके लिए एक इंडिका बैंज टैक्सी खड़ी थी। जिसके ड्राइवर ने उसे देखते ही लपककर पीछे का पैसेंजर डोर खोल दिया।
सहगल के टैक्सी में सवार होते ही ड्राइवर ने टैक्सी आगे बढ़ा दी। “किधर चलना है पापा जी।” टैक्सी ड्राइवर ने उससे पूछा जो कि खुद एक सिख था।
“एयरपोर्ट ।” सहगल ने संक्षिप्त सा जवाब दिया।
ड्राइवर की गरदन फौरन सहमति में हिली और उसने टैक्सी को मुख्य सड़क की तरफ दौड़ा दिया।
सहगल का हुलिया उस वक्त पूरी तरह बदला था। उसने एक सरदार का बहरूप धारण कर रखा था। वह एक कीमती सूट पहने था। चेहरे पर बढ़ी हुई खिचड़ी दाढ़ी तथा मूंछ, जिसने उसके चेहरे को पूरी तरह ढक रखा था। सिर पर सरदारों वाली बड़ी सी पगड़ी, पैरों पर चमचमाते बूट, हाथ में सूटकेस । उस हुलिए में वह किसी भी बड़ी कम्पनी का कोई एक्जीक्यटिव लग रहा था और उसे देखकर कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि वह कोई सरदार नहीं बल्कि सुमेश सहगल था, जिसकी दिल्ली पुलिस को सरगर्मी से तलाश थी। अकेले दिल्ली पुलिस ही क्यों, कोई और भी था जो उसे बड़ी सरगर्मी से ढूंढ रहा था और जिसकी अदालत में उसके लिए मौत के अलावा दूसरी कोई सजा नहीं थी।
और इन हालात को फेस करना सहगल के लिए नामुमकिन था। पुलिस के पास उसके खिलाफ पुख्ता सबूत थे, जो उसे सीधे-सीधे कत्ल का मुजरिम ठहराते थे। जबकि उस दूसरे शख्स को किसी सबूत की दरकार नहीं थी। उस शख्स को पेश चलाने की हालांकि उसने एक कोशिश तो बराबर की थी
और संजना के जरिये उस कांट्रेक्ट किलर गोपाल को शीशे में उतरवाने का इरादा किया था। लेकिन उसके लिए संजना जीवित नहीं बची थी। मौजूदा सूरते हाल में अपनी जान बचाने का उसके पास केवल एक ही तरीका था यही कि वह फौरन राजधानी दिल्ली को छोड़ देता और आइंदा उसे इस मुल्क को भी अलविदा कहना पड़ सकता था, जिसके लिए सहगल ने खुद को पूरी तरह तैयार कर लिया था और अपने सारे परिवार को आनन-फानन दिल्ली से बाहर गुमनाम जगह भेज दिया था। और बीते दिनों में उसने दिल्ली की सारी अचल सम्पत्ति को कैश में तब्दील करके वहां से हस्तांतरित कर दिया था, फिर दिल्ली की बैंकों और दूसरे तमाम जगहों से सारा इन्वेस्टमेंट एक्वायर ऑफ करके उस रकम को भी उसने ठिकाने लगा दिया था। और यूं एक बहुत विपुल धनराशि उसके पास इकट्ठा हो चुकी थी। उसने अपने तथा परिवार के पासपोर्ट और वीजा का भी इंतजाम कर लिया था, जिसके जरिये वह बड़े आराम से विदेश में सैटल हो सकता था।
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