महारानी और टार्ज़न - SexBaba
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महारानी और टार्ज़न

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महारानी और टार्ज़न

by Sujitha

This story is developed by sujitha and had problems in posting with pics so was posted by arorasumit  on her behalf

महारानी और टार्ज़न


यह कहानी सुजिता द्वारा विकसित की गई है और उन्हें तस्वीरें पोस्ट करने में कुछ समस्याएँ थीं इसलिए उनकी ओर से arorasumit19 द्वारा अन्य किसी फोरम पर पोस्ट किया गया था उसे मैं इस फोरम पर पोस्ट कर रहा हूँ . आनद लीजिये इस कहानी का।

परिचय और मुख्य पात्र

स्वर्णपुर राज्य - यह कई हज़ारों साल पहले की बात है। भारत तब एक विशाल संगठित राष्ट्र था और भारत की सीमायें बहुत दूर तक फैली हुईं थी। उन दिनों भारत के ही उत्तर पूर्व भाग में समुद्री तट के कुछ ही दूर एक बेहद विशाल और समृद्ध राज्य था जिसका नाम था स्वर्णपुर।

राजा विक्रम प्रताप सिंह- स्वर्णपुर के राजा थे राजा विक्रम प्रताप सिंह अपने ऐशो आराम और अपने भोग विलास को वह बहुत महत्व देते थे। उनकी पत्नी और महारानी जो की एक चीनी मूल से थीं ,का निधन कुछ साल पूर्व हो चुका था।





राजा विक्रम प्रताप सिंह




राजकुमारी अजंता- राजमहल की असली शोभा थी- राजकुमारी अजंता अभी 18 साल की ही हुई थी। राजकुमारी अजंता बहुत ही सुन्दर बहुत ही प्यारी और कई गुणों से संपन्न थी। राजकुमारी अजंता राजा विक्रम प्रताप की इकलौती संतान थी और सिंहासन की वारिस भी थी । वह अच्छी शिक्षा ले रही थी ।





राजकुमारी अजंता

टार्जन -जंगल का टार्जन



टार्जन

शेष पात्रो का परिचय कहानी के आगे बढ़ने के साथ मिलता रहेगा



INDEX


भाग 01 - परिचय
भाग 02 - मुख्य पात्र
भाग 03- राजकुमारी
 
महारानी और टार्ज़न

भाग 02 - मुख्य पात्र

स्वर्णपुर राज्य

यह कई हज़ारों साल पहले की बात है. भारत तब एक विशाल संगठित राष्ट्र था और उसकी सीमायें बहुत दूर तक फैली हुईं थी. उन दिनों भारत के ही उत्तर पूर्व भाग में समुद्री तट के कुछ ही दूर एक बेहद विशाल और समृद्ध राज्य था जिसका नाम था स्वर्णपुर. यह राज्य अपनी उन्नति, खुशहाली और धन धIन्य के लिए प्रसिद्द था. स्वर्णपुर का नाम भी वास्तव में इस लिए ऐसा पड़ा था क्योंकि यहाँ पर लगभग सब घरों के बाहर सोने की की कारीगरी थी. यहाँ पर लोग काफी मेहनती और खुश हाल थे. यहाँ पर घरों के बाहर सोने के गुम्बद और पूरे राज्य में कई जगहों पर निर्माण के हेतु सजावट में सोने का उपयोग किया गया था.और तो और स्वर्णपुर का राजमहल दुनिया के किसी अजूबे से कम नहीं था. एक दम आलिशान, भव्य, और उसकी एक एक बनावट में अमीरी और धनाढ्यता साफ़ तौर पर दिखती थी.





स्वर्णपुर



स्वर्णपुर


स्वर्णपुर




स्वर्णपुर



राजा विक्रम प्रताप सिंह

स्वर्णपुर के राजा थे राजा विक्रम प्रताप सिंह. राजा विक्रम प्रताप एक ठीक ठाक राजा थे जिन्हे को यह राज्य अपने पिता से विरासत में मिला था. एक राजा के रूप में वह कोई बुरे नहीं थे लेकिन कोई बहुत अत्यधिक वीर या अतयंत कुशल भी नहीं। बस अपने पिता की विरासत को चल रहे थे। अपने ऐशो आराम और अपने भोग विलास को वह बहुत महत्व देते थे ।



राजा विक्रम प्रताप सिंह

उनकी पत्नी और महारानी जो की एक चीनी मूल से थीं ,का निधन कुछ साल पूर्व हो चुका था ।



राजा विक्रम प्रताप सिंह की स्वर्गवासी महारानी

राजकुमारी अजंता

राजमहल की असली शोभा थी- राजकुमारी अजंता



राजकुमारी अजंता

राजकुमारी अजंता

राजकुमारी अजंता अभी 18 साल की ही हुई थी बहुत ही सुन्दर बहुत ही प्यारी और कई गुणों से संपन्न थी अजंता - वह राजा विक्रम प्रताप की इकलौती संतान थी और सिंहासन की वारिस भी.वह अच्छी शिक्षा ले रही थी और 18 साल की कम उम्र में भी राजकुमारी अजंता ने किताबों के अलावा तलवारबाजी, घुड़सवारी, युद्ध कला में प्रशिक्षण लिया था और वह अपनी कलाओं में वृद्धि कर रही थी. इसके अतिरिक्त वह कई यज्ञों द्वारा कुछ शक्तियां भी हासिल कर चुकी थी. राजकुमारी अजंता 18 साल के उम्र में बहुत सुन्दर निकल आयी थी

जारी रहेगी
 
महारानी और टार्ज़न

भाग 03 - राजकुमारी

चाँद सा मासूम चेहरा, भरा हुआ खिलता यौवन जिसको अलंकृत करते थे अजंता के उभरते हुए दोनो उरोज जो अभी भी कम से कम 34 इंच के हो चुके थे. उसका कद भी औसतन अपनी उम्र की लड़कियों के हिसाब से अधिक था और वह अभी भी ५ फुट 6 इंच से कम न थी. राजकुमारी अजंता का गदराया,शरीर उसके खिले हुए गोरे रंग जिसमे मIनो किसी ने केसर मिला दिया हो से और अधिक सुन्दर हो जाता था और उसकी चोली और लहंगे के मध्य उसकी कमर भी अब बल खाने लग गयी थी.



राजकुमारी यों दिल की अच्छी और काफी प्रगतिशील विचारधारा की थी परन्तु एक बात थी की उसमे कुछ सीमा तक गुरूर भी था. सर्वगुण होने के साथ साथ राजकुमारी होने का एहसास अजंता में कुछ सीमा तक अहंकार की भावना भी जागृत कर दी थी. इकलौती और इतनी प्यारी बेटी होने के बावजूद राजा विक्रम प्रताप के सम्बन्ध अपनी पुत्री से कोई बहुत अधिक मधुर या प्रेमपूर्ण नहीं थे. वह अपने कार्यों और गतिविधियों में व्यस्त रहते और पुत्री से भेंट कम ही हो पाती थी. पर राजकुमारी अजंता अपने में स्वतंत्र रहने वाली लड़की थी और अपनी होशियारी एवं चातुर्य से उसने अपना विकास किया.राजकुमारी होने के कारण उसे सब सुविधाएँ उपलब्ध थीं. एक यह भी कारण था की राजकुमारी अजंता को कुछ सीमा तक स्वयं को अहंकारी क्यों दिखाना पड़ता था।





विभिन प्रकार के लहंगे और चोली पहनना और इनको संगठित करने का भी राजकुमारी अजंता को बेहद शौक था, उन्हें बेशकीमती आभूषण भी बहुत प्रिय थे.



इसके अलावा राजकुमारी अजंता को एक अन्य बहुत प्रिय शौक था, जंगल में घूमना, जंगली जानवरो से खेलना और वहां की प्राकृतिक सुंदरता का पूरी तरह आनंद लेना. वह कई बार अवकाश में एक दो दिन ऐसे ही जंगल घूमने जाती थी अपनी चुनिंदा सखियों के साथ और पूरी सैनिक सुरक्षा में रहते हुए. यद्यपि उसके पिता को जंगल और यहाँ तक के आदिवासी भी पसंद नहीं थे परन्तु पुत्री के हठ के आगे उनकी एक न चलती- आवश्यकता पड़ने पर भी राजकुमारी अजंता अपने पिता से झगड़ने से पीछे न हटती थी.






स्वर्णपुर के आस पास कुछ जंगल भी थे. यद्यपि उनपर मुख्यत आदिवासी रहते थे फिर भी जंगल की कुछ सम्पदा से भी राज्य को लाभ होता था. परन्तु वहां के आदिवासियों के साथ स्वर्णपुर के बहुत अच्छे सम्बन्ध नहीं थे इस वजह से स्वर्णपुर के सैनिक राज्य के सुरक्षा हेतु हमेशा जंगल की सीमा के पास तैनात रहते थे.






इसके अतिरिक्त स्वर्णपुर के प्रधान मंत्री थे धर्मदेव सिंह जो के अपने कर्त्तव्य के बेहद पक्के और ईमानदार. वरिष्ठ, ज्ञानी और समझदार होने की वजह से वह राज काज के कार्यों में राजा को पूर्ण सहयोग देते और हमेशा सबका सम्मान करते थे तथा सबसे सम्मान पाते भी थे.

पर स्वर्णपुर में ही राज दरबार में एक प्रमुख व्यक्ति और भी था जो की वहां का राज्य मंत्री था- शैतान सिंह- यह कोई बहुत अच्छा आदमी नहीं था और हमेशा विक्रम प्रताप की चाटुकारिता में लगा रहता था- राज्य और प्रजा के हित के लिए काम कम और अपने हित की ज्यादा सोचता था. वह कई मामलों में राजा विक्रम प्रताप को गलत राय देने में भी लगा रहता था. उसी एक पुत्र था सुसीम सिंह जो के पिता की भाँती ही बड़ा बदमाश और आवारा था. पर राज्य मंत्री का पुत्र होने के कारण उसे बहुत से सुविधाएँ थीं जिनका वह दुरपयोग करता था. वह राजकुमारी अजंता से ५ साल बड़ा था. जैसे जैसे राजकुमारी अजंता जवान हो रही थी शैतान सिंह के मन में उसे सुसीम की रानी बनाने और आगे चल कर राजा बनने की इच्छा बलवती हो रही थी.


सुसीम भी राजकुमारी अजंता पर नज़र रखने लगा और कभी कभी उससे छेड़ भी देता पर अजंता या तो उसपर क्रुद्ध हो जाती या फिर उसका जम कर उपहास करती थी







वह जितना राजकुमारी पर नज़र रखता, राजकुमारी उतनी ही घृणा करती थी सुसीम से और सदा या तो उस पर गुस्सा करती या फिर इतना उपहास करती की वह अंदर से जल भून जाता था


जारी रहेगी
 
 
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भाग 04 - वीर सिंह


इसके अलावा राज्य के सेनापति थे वीर सिंह



वीर सिंह

वीर सिंह बेहद कर्त्तव्य परायण और वीर थे और स्वर्णपुर की विशाल सेना का कुशलता पूर्वक सञ्चालन करते थे. स्वर्णपुर को चलने में प्रधान
मंत्री धर्मदेव और सेनापति वीर सिंह का बहुमूल्य योगदान था. स्वर्णपुर का राज परिवार और वहां के लोग जय महाकाल को पूजते थे और वह उनका इष्ट देवता थे. जब भी कभी राज्य में कोई उत्सव होता तो राज दरबार की प्रमुख पुजारी भ्रम देवजी हर पूजा का संयोजन करते थे और सब लोग बड़ी श्रद्धा से जय महाकाल की पूजा करते.

स्वर्णपुर का एक पड़ोसी राज्य भी था- रुद्रपुर जिसका राजा था क्रूर सिंह-




क्रूर सिंह

क्रूर सिंह अपने नाम के अनुरूप ही बेहद क्रूर, ऐयाश और कमीना इंसान.प्रजा उसे से बेहद नाखुश थी और वह प्रजा में कुत्ते के नाम से प्रसिद्द था. क्रूर सिंह की हर वक़्त यह मंशा रहती की स्वर्णपुर के राज्य को हानि पहुंचे जाये और अपना लाभ हो परन्तु उसकी इतनी शक्ति एवं परिस्थिति नहीं थी की किसी भी प्रकार से वह या उसका राज्य स्वर्णपुर के आगे टिक सके. हाँ परन्तु कुछ भूगोलिक लाभ एवं रुद्रपुर के राजा क्रूर सिंह को मिले वरदान के कारण उसे मारना एवं पराजित करना सरल कार्य नहीं था और उसमे स्वर्णपुर को भी हानि हो सकती थी।

स्वर्णपुर और रुद्रपुर की सीमा पर एक गांव पड़ता था माधोपुर. इस गांव का सबस बड़ा दुर्भाग्य यही था की वह दोनों राज्यों की सीमा पर था- इसी कारण यह इन दोनों राज्यों के बीच विवाद का कारण था. इसे राजा विक्रम प्रताप का आलस्य ही कहना चाहिए के एक बड़े राज्य के राजा होकर भी उन्होंने इस विवाद को सुलझाने का यत्न नहीं किया. इस वजह से माधोपुर के लोग भी बहुत दुखी रहते थे क्यंकि दोनों राज्य अपना अपना स्वामित्व और अधिकार इस पर जमाते थे और परिणाम स्वरुप दोनों की सेनाओं में हमेशा तना तनी रहती थी जिसका प्रभाव आम लोगों के जीवन पर पड़ता था.




माधोपुर

यह उस दिन की बात है जब राजकुमारी अजंता कुछ दिन अवकाश पर थी सावन का महीना था . मौसम भी खिला हुआ था. महाराज विक्रम प्रताप उन दिनों राज्य के बाहर किसी दौरे पर थे और वह कल शाम को लौटने वाले थे . राजकुमारी ने कई दिनों से सोच रखा था की वह जंगल के आस पास दौरा करेगी और साथ ही माधोपुर गांव के भी दर्शन करेगी. उसने यह बात अपने पिता के आगे प्रगट नहीं की.

रजकुमारी अजंता ने सेनापति से कुछ विचार किया और कुछ चुनिंदा २० सैनकों और अपनी एक दासी के साथ रथ पर सवार होकर जंगल की सीमा पर चलने की तयारी करने लगी. तभी एक गुप्तचर ने आकर सुचना दी के रुद्रपुर के सैनिक आज माधोपुर में कुछ गड़बड़ करने की योजना बना रहे हैं और वहां के निवासियों को इसका भय सत्ता रहा हैं. ये एक संयोग था की राजकुमारी अजंता उस गुप्तचर को जानती थी और महाराज क्योंकि महल में नहीं थे उसने उस गुप्तचर को पूछ लिया नहीं तो वह गुप्तचर महाराज के अलावा सीधा सेनापति से ही बात करता .






राजकुमारी अपने अंगरक्षकों के साथ सेनापति के कार्यालय में पहुंची जो की महल एक गुप्त कोने में था.

राजकुमारी को देखते ही सेनापति वीरसिंह आदर पूर्वक खड़े हो गए- राजकुमारीजी आप? आपने मुझे बुला लिया होता !.

केशों को सुव्यवस्थित रूप सेसुसज्जित कर स्वर्णभूषण धारण किए हुए चेहरे पर कुछ कठोरता लिए हुए सुतवा नासिका,सुराही दार गर्दन और बेहद सुन्दर राजकुमारी अजंता उनके सम्मुख खड़ी थी.





राजकुमारी ने अपने अंगरक्षकों से बाहर रुकने को कहा और वह अंदर चली गयीं .

राजकुमारी- सेनापति जी हमे अभी माधोपुर चलना होगा अपनी विशेष सैनिक टुकड़ी के साथ और उसने गुप्तचर वाली बात बता दी

वीरसिंह- पर राजकुमारी माधोपुर में इस प्रकार की किस्से होने आम बात है और हम लोग जब तक की उनके सैनिक हमारे राज्य में नहीं प्रवेश न करें हमे अपना समय _ __

राजकुमारी ने उनकी बात बीच में काट दी- यह नक्शा देखें सेनापति जी- हमे आश्चर्य है की आप यह बात बोल रहे हैं- माधोपुर का अधिकांश भाग हमरे राज्य में ही है.





वीर सिंह- हाँ राजकुमारी परन्तु महाराज ने कभी इस विषय में _ _ _ _


जारी रहेगी
 
महारानी और टार्ज़न

भाग 05 - माधोपुर


राजकुमारी- सेनापति जी यह मेरा आदेश है की आप इस समय मेरे साथ माधोपुर चलें- महाराज को उत्तर देने का दायित्व मेरा होगा- आप पर कोई आंच नहीं आएगी .

वीरसिंह- पर राजकुमारी आप स्वयं क्यों जाएँगी हम खुद सैनिको के साथ_ _ _

राजकुमारी- वीर सिंह जी में आपके साथ जाउंगी अर्थात जाउंगी- शीघ्र प्रस्थान करना होगा.





उधर माधोपुर में-

एक ग्रामीण- अरे यह रुद्रपुर के सैनिक फिर से आ गए हमे सताने- इनका कर भरते भरते हमारे तो घर ही खाली हो जायेंगे .

दूसरा- अरे आहिस्ता बोल भाई- किसी सैनिक ने सुन लिया तो _ _

और वाकई एक सैनिक ने सुन लिया और उन दोनों को घसीटता हुआ उपसेनापति जलाल सिंह के पास ले गया- रुद्रपुर का उप सेनापति जलाल सिंह आज टुकड़ी के साथ था- अपने राजा की तरह वह भी एक दम धूर्त ऐयाश और कमीना इंसान था.

जलाल सिंह- तुम्हारा सIहस कैसे हुआ हमारे विरोध में कुछ भी कहने का- सैनिको- इन दोनों को दस दस कोड़े लगाए जाएं .
.
जैसे ही दो सैनिक कोड़े लेकर आगे आये एक तीर कही से तेज़ी आया और उनके आगे आकर धरती में धंस गया .

गांव वासियों ने देखा और सैनिकों ने भी जब उस दिशा में देखा तो चकित रह गए- माधोपुर गांव की एक लड़की जिसका नाम धर्मा था और उम्र यही कोई 19-20 साल एक छोटे से धनुष हाथ में लिए थी और उसपर दूसरा तीर चढ़ा रही थी-



धर्मा
धर्मा को देखते ही जलाल सिंह चकित रह गया- धर्मI एक गौर वर्ण की सुन्दर और बेहद गदराये शरीर की स्वामिनी थी- उसने लाल और हरे रंग से मिश्रित एक चोली पहनी थी और
उसी रंग का एक घाघरा जिसे थोड़ा सा मोड़कर उसने धोती की आकIर में किया था. उसकी लम्बी कमर नंगी थी और उसकी गोल बड़ी सी नाभि भली भाति उसके घाघरे के काम से काम तीन इंच ऊपर दृष्टिगोचर थी- इस समय धर्मा के चेहरे पर गुस्सा था-

रुद्रपुर के सैनिको- बहुत अत्याचार सहन कर लिया हमने- अब और नहीं- कह कर उसने दूसरा तीर छोड़ा जिससे की एक सैनिक घायल हो गया.


पर तभी जलाल सिंह ने कटार फेंकी और धर्मा का धनुष टूट कर गिर गया- अब जलाल सिंह अपना घोडा धर्मा क आसपास घूमने लगा- उसे देखते ही उसकी शैतान आँखों में वासना उतरा आयी- उसने अश्लीलता से आँख मारी- वIह माधोपुर वासियो वIह- यह इतना गदरा माल कहाँ छुपा रखा है- वैसे तो तुम सब लोग गरीबी का रोना रट हो पर यह तो- है कई कातिल जवानी- क्योंकि मेरी जान- आजा मेरे पास और मेरे लंड पे सवार हो जा- तेरी चूत ऐसे गरम करूंगा की उम्र भर मेरा लंड चुसना मांगेगी .





धर्मा का गुस्सा चर्म सीमा पर था- कमीने बदज़ुबान तेरा सIहस कैसे हुआ.


ओह्ह- हां हआ- जलाल सिंह ज़ोर से हंसा और उसने तलवार की नोक से धर्मा की चोली का बन्धन खोल दिया- फलस्वरूप उसकी चोली उसके वक्षों पर ढीली पढ़ गयी- धर्मा ने तुरंत अपने दोनों हाथों से अपना सीना धाप लिया और अब उसके चेहरे से बेबसी टपकने लगी- वह याचना के स्वर में चिल्लाई- क्या माधोपुर में कोई पुरुष नहीं है जो स्त्री की लाज बचा सके.

जलाल सिंह और उसके सैनिक ज़ोर से हसे- तुझे आज सबके सामने रंडी बनाकर छोड़ेंगे और फिर देखेंगे माधोपुर में किसका इतना सiहस है की- _ _ _ _


और तभी दो तीर सनसनाते हुए आये और जलाल सिंह के दो सैनिको को चीरते हुए निकल गए.

जब सबने विपरीत दिशा में देखा तो सब चकित हो गए- स्वर्णपुर की राजकुमारी अजंता के हाथ में धनुष था और यह उसी के निशाने का कमाल था .

धर्मा भी चकित हो गयी- सबसे पहले उसने अपनी चोली ठीक की .

वह हैरत से उस 18 साल की लड़की जो की राजकुमारी अजंता के अतरिक्त कोई और ना थी और जिसके मासूम और अत्यधिक सुन्दर चेहरे से बहुत ही भोलापन टपकता था, पर इस समाया एक रणचंडी से काम नज़र न आ रही थी .

वह दो तीर चला चुकी थी और तीसरा तीर छोड़ने की तैयारी में थी-

कुछ देर बाद रुद्रपुर और माधोपुर के सैनिक एक दूसरे के आस पास थे .

जैसे ही उसने स्वर्णपुर के सैनिक और राजकुमारी को देखा उसके चेहरे पर हैवानियत दिखने लगी-

वीरसिंह आज फिर स्वर्णपुर की सेना हमारे कार्य में विघ्न डालने आ गयी_ __

इस से पहले की वह बात पूरी करता राजकुमारी अजंता अपने पूरे वेग से चिल्लाईं- जलाल सिंह-

वह ज़ोर से चीखी- इतने ज़ोर से की गांव वाले विस्मित हो गए- यहाँ तक की स्वर्णपुर के सैनिक भी- अच्छा होगा अगर अपनी इस टुकड़ी को यहाँ से ले जाओ और आईन्दा माधोपुर की और मत देखना- वरना जो हश्र होगा तुम्हारा, तुम्हारे राजा भी कांप उठेंगे .


जलाल सिंह पहले तो चकित होकर राजकुमारी अजंता को देखता रहा- उसके पश्चात उसने राजकुमारी की सर से पांव तक निहारा- राजकुमारी अजंता ने इस समय एक सुनहरी चोली और एक लाल रंग का बेशकीमती लेहेंगा जिसमे सोने और हीरे जेवरात की कढ़ाई हुई थी, पहना था. इसके मध्य में राजकुमारी नंगी कमर थी और बीच में एक गोल प्यारी नाभि- राजकुमारी इतनी सुन्दर थी की कोई भी उसे देखता तो बस-

उसे इस प्रकार न उत्तर देते देख राजकुमारी ने फिर अपनी चेतवानी दोहराई-

अब जलाल सिंह बोल पड़ा- राजकुमारी अजंता - स्वर्णपुर एक बड़ा और समृद्ध राज्य है. शायद इस कारण तुम अपना अधिकार दिखने यहाँ आयी हो. वरना महाराज विक्रम प्रताप हमारे कार्यों में अधिक नहीं बोलते- उन्हें ज्ञात है की रुद्रपुर से युद्ध में जीतना संभव नहीं !

अब ज़ोर से हंसने की बारी राजकुमारी अजंता और स्वर्णपुर के सैनिको की थी- दिन में भी स्वपन देख रहे हो जलाल सिंह- सेनापति वीर सिंह ने कहा .




सेनापति वीर सिंह
जलाल सिंह जिसके मन में राजकुमारी को देखते ही शैतान घर कर गया था अब बोल पड़ा- आपकी राजकुमारी बहुत बोल रही हैं- इनसे कहो जाएँ और जIकर अपनी सखियों के साथ खिलोनो से खेले और बड़ो के कामों में हस्तक्षेप न करें अन्यथा इसका परिणाम_ _ _

राजकुमारी अजंता क्रुद्ध हो गयीं-जलाल सिंह– तुम ने राजकुमारी अजंता का उपहास किया है- इसका परिणाम जानते हो? - अजंता का मासूम और सुन्दर चेहरा गुस्से से लाल हो गया-

जलाल सिंह- हमे आँखे मत दिखाओ राजकुमारी- जलाल सिंह से टकराने का अंजाम तुमने अभी देखा नहीं है.

राजकुमारी अजंता ने धनुष रथ में छोड़ा और म्यान से तलवार निकाल ली- जलाल सिंह- हो जाये युद्ध- मैं तुम्हे ललकारती हूँ .


ह ह ह- जलाल सिंह ज़ोर से हंसा- जाओ जाओ राजकुमारी- तुम मुझसे युद्ध करोगी- खुद लहँगा उठाकर पेशाब करना तो अभी-२ सीखा है- जाओ जाओ- दो पल में ही तुम्हारी कच्छी इन माधोपुर की लोगों के आगे उतार दूंगा- कल की लड़की- माधोपुर के सैनिक अश्लीलता से हसे और स्वर्णपुर के सैनिकों ने क्रुद्ध होकर तलवारें लहरायीं-

वीर सिंह गुस्से से बोले- जलाल सिंह तुम्हारा यह दुस्साहस की तुम हमiरी राजकुमारी के बारे में अश्लील शब्द _ _ _

राजकुमारी- वीर सिंह जी बस- आप चिंता न करें- ज़रा में भी देखूं की इस शैतान की संतान में कितना दम है .

और राजकुमारी अजंता हाथ में तलवार लहराती हुई रथ से नीचे कूद पड़ीं.- जलाल सिंह आ तुझे बताती हूँ की लहँगा उठाकर कैसे पेशाब किया जाता है- तू आज के बाद अपना नाडा बंद करने की हालत में नहीं होगा.- कमीने घटिया इंसान- मैं आज प्रमाणित कर दूँगी की तू एक नामर्द है .

देख नहीं रहा- रुद्रपुर के रथ घोड़े चलता हैं पर स्वर्णपुर के रथ शेर चलाया करते हैं- स्वर्णपुर में शेर गलियों में घूमते हैं कम्बख्त जलाल सिंह के क्रोध की सीमा न थी- वह भी तलवार लेकर घोड़े से कूद पड़ा- स्वर्णपुर के सैनिक जैसे ही अपनी राजकुमारी की रक्षा हेतु आगे आने को हुए, अजंता ने उन्हें इशारे से रोक लिया- कोई बीच में नहीं आएगा- यह हमारा आदेश है .




और तभी दोनों की तलवारें एक दुसरे से टकराने लगी दोनों में युद्ध होने लगा .





तभी जलालसिंह ने एक दांव खेल और तलवार झुका कर राजकुमारी पर नीचे से वार करने की सोची- परन्तु राजकुमारी ने फुर्ती का प्रदर्शन करतेहुए एक छलांग लगाई और जलाल सिंह पर वार करके उसकी पगड़ी उछाल दी.

राजकुमारी का लहँगा कुछ ऊपर उठा पर उसने इसके परवाह न की युद्ध जारी था. तभी लड़ते लड़ते दोनों एक ढलान के पास आ गए और नीचे की और कूद गए- अब आस पास केवल कुछ बड़े बड़े पत्थर थे और ढलान के नीचे होने के कारण उन्हें कोई नहीं देख पा रहा था- बस सनसनाती तलवारों की आवाज़ आ रही थी.

जारी रहेगी
 
महारानी और टार्ज़न

भाग 06 - जलालसिंह से युद्ध



अचानक राजकुमारी ने जलालसिंह पर ज़ोर से वार किया- जलालसिंह ने भी प्रतियुत्तर में ज़ोर से तलवार घुमाई और दोनों के हाथ से तलवारें छूट कर दूर जा गिरीं .




एक पल दोनों ने एक दुसरे को देखा- राजकुमारी जैसे ही तलवार लेने को लपकीं, जलालसिंह ने उसका रास्ता रोक लिया- राजकुमारी अजंता - तुमने मुझे नामरद बनाने की बात की- देख आज में तेरा क्या हश्र करता हूँ- और उसने राजकुमारी को धक्का दिया- राजकुमारी पीठ के बल गिरीं और सँभालने के प्रयास में राजकुमारी की टांगें ऊपर उठ गयीं, जिससे उनका लहँगा काफी हद तक घुटने के ऊपर सरका गया- राजकुमारी की सूंदर, गोरी, मुलायम और स्वस्थ टांगें देख कर जलाल सिंह जैसा शैतान तो बेकाबू हो गया उसके पIयजामे में हलचल होने लगी और उसने अपना लंड थाम लिया.



कुत्ते की तरह उसकी जीभ लपलपा गयी- वIह अद्भुत. अपने नाम के अनुरूप अजंता ही हो। और वासना से वशीभूत होकर वह राजकुमारी पर टूट पड़ा और इससे पहले की वह संभालती उसने राजकुमारी के दोनों कोमल गुदगुदे हाथ अपने सख्त और खुरदरे हाथों से दबा दिए और शरीर के आर पार ले आया .






राजकुमारी के कंठ से हलकी सी चीख निकली.

वह बोलीं- छोडो मुझे जलाल सिंह !

जलाल सिंह- हूँ- बच्ची हो- पर अच्छी हो-यह कह कर वह राजकुमारी पर झुक और उसे चूमने लग गया


राजकुमारी अपना चेहरा इधर उधर करने लगीं पर कोई लाभ न हुआ उसने अजंता के मुख पर चुंबनों की भीषण वर्षा कर दी और उसका निचला अंग एक विकराल रूप धारण करने लगा .

राजकुमारी के शरीर ने हरकत की और वह कुछ घूमीं- जलाल सिंह ने अवसर का लाभ उठाया और राजकुमारी की चोली की डोर खोल दी. अब केवल एक छोटा सा सुनहरी फीता था जो की उनकी चोली को उनके शरीर पैर रोके हुए था.







जलाल सिंह ने वह फीता खिसकाया और राजकुमारी की चोली उतार कर फेंक दी.

अब अजंता का सीना नंगा हो गया और उसकी उभरती हुई छातियां एक दम बाहर आ गयी. जलाल सिंह उसके गुलाबी स्तनाग्रों से खेलने लगा और उसके उरोज मसल दिए.

वह राजकुमारी अजंता की ठुण्डी (नाभि) में ज़ोर से उँगलियाँ घूमने लगा जिससे अजंता को दर्द हुआ और वह हलके से चीखी- क्यों राजकुमारी अभी से यह संतरे बन गए हैं आगे चल कर तो बड़े बड़े खरबूजे खाने को मिलेंगे- और उसने राजकुमारी के वक्ष दबाने शुर कर दिए -हाय अजंता! तेरे यह दुधु!

राजकुमारी अजंता के गोल उरोज किसी पके हुए संतरे के भाँति पुष्ट थे. अजंता ऊपरी भाग से निर्वस्त्र थी धीरे धीरे उसका एक हाथ राजकुमारी की कमर पर खिसकने लगा . इस बीच वह अपना पजामा खोल चूका था और उसका तना हुआ लंड बाहर की और निकल गया. मैं इससे तेरी कुंवारी चूत फाड़ दूंगा राजकुमारी- तो कई दिन पेशाब करते हुए रोयेगी . उसके बाद उसने अपने दोनों हाथ उसकी कमर के इर्द गिर्द डाल कर अपने मुँह से उसकी नाभि को चबाना शुरू कर दिया .






चूमते हुए जलाल सिंह के होंठ नीचे के ओर गए और उसने लहंगे के ऊपर पेट और नाभि के बीच के हिस्से को चबाना शुरू कर दिया. राजकुमारी और चीखी, पर जलाल सिंह ने एक बात नहीं गौर की- राजकुमारी अजंता उसका अत्यधिक विरोध नहीं कर रही थी.

वह बेखबर उसे चूमते रहा और अपना एक हाथ राजकुमारी के उठे हुए लहंगे में डाल डाल दिया .


जलाल सिंह की उँगलियाँ राजकुमारी अजंता की लाल रंग की कच्छी के ऊपर घूमने लगी .

राजकुमारी अजंता को अपने जनांग में कुछ हरकत महसूस हुई. - फिर उसने कुछ गौर किया और सहसा उसकी टाँगे तेज़ी से मुड़ी. जलाल सिंह कुछ समझता इस से पहले उसकी सुनहरी चप्पल का वार जलाल सिंह के चेहरे पर ज़ोर से पड़ा . राजकुमारी की चप्पलों में जो की सुनहरी थीं, कोने पर कुछ नुकीले कील जैसे हिस्से थे जो जलाल सिंह के चेहरे को छलनी कर गए.






राजकुमारी ने फिर से वार किया और वह बिलबिला गया. राजकुमारी अजंता फुर्ती से उठी और अपनी तलवार उठाकर जलाल सिंह के गुप्त अंग पर वार किया- आआआआआहहआआह्ह्ह!

एक खून का फव्वारा छूटा और जलाल सिंह दर्द से चीख उठा .

राजकुमारी अजंता मुस्कुरा उठी- उसने सबसे पहले अपनी चोली उठायी और पहन ली. अभी पीठ के पीछे हाथ डालने से वह बहुत कस कर अपनी चोली न पहन सकी पर फिर भी, उसने किसी तरीके उसका पयजामा उसके जलाल सिंह के खून से लथ पथ अंग पर लपेटा और उसे खींचती हुई ऊपर ले आयी- रुद्रपुर के सैनिको- सम्भालो अपने इस उपसेनापति को- मुझे पेशाब करना सीखाने चला था- अब यह उम्र भर पेशाब करते हुए मुझे याद करेगा .





जलाल सिंह दर्द से चीख रहा था .

रुद्रपुर के सैनिक रोष से भर गए और तलवारें तान ली पर तभी राजकुमारी ने आदेश भरे स्वर में कहा- अगर रुद्रपुर के सैनिको ने कोई भी हरकत की तो ध्यान रहे- मेरे सैनिक तैयार हैं. और राजकुमारी अजंता ने ज़ोरदार आवाज़ में आदेश दिया– आक्रमण!





स्वर्णपुर के सैनिक तीर और तलवारों से रुद्रपुर की सेना पर टूट पड़े और कुछ ही पल में रुद्रपुर के सैनिक हथियार डाल कर भागते नज़र आये.

स्वर्णपुर के सैनिकों ने अपने कुछ रथ में लगे शेरो का भी उपयोग किया फलस्वरूप रुद्रपुर की सेना की टुकड़ी उनके आगे न टिक सकी.

रुद्रपुर के सैनिकों को भागते देख कर माधोपुर के लोगों में प्रसन्नता के भाव नज़र आये और उन्होंने राजकुमारी की जय जयकार की .


जारी रहेगी

आपका आमिर
 
महारानी और टार्ज़न

भाग 07 - माधोपुर के लोगों की समस्या





परन्तु राजकुमारी अजंता ने एक बात गौर की, की माधोपुर के लोगों में वह ख़ुशी और उल्लास नहीं था जिसकी उसने आशा की थी.

सब लोग चकित होकर इस 18 साल की लड़की जिस पर यौवन खिलना शुरू हुआ था और जिसके चेहरे पर बाला की खूबसूरती थी- इस प्रकार एक भीमकाय दिखने वाले शैतान को कैसे पराजित कर दिया. राजकुमारी की कम उम्र के साथ साथ उनका चेहरा इतना भोला था की उनसे इतना अधिक क्रोध और इतनी वीरता एवं युद्ध कौशल की भी अपेक्षा नहीं की जा सकती थी.


इसके बाद राजकुमारी अजंता लौट कर अपने रथ पर चढ़ने लगीं तो उनको एक आवाज़ आयी- ठहरिये राजकुमारीजी!





अजंता ने जैसे ही पलट कर देखा, तो पाया की और कोई नहीं धर्मा ही उन्हें आवाज़ दे रही थी

अजंता - अरे धर्मा तुम. राजकुमारी के मासूम चेहरे पर मुस्कान खिल उठी.


धर्मा- अच्छा है आपने मुझे पहचान लिया. मैं आजकल यहीं माधोपुर में रह रही हूँ.

अजंता - मैंने भी ऐसा ही सुना था धर्मा - फिर आस पास के लोगों की और देखते हुए- शायद इस गांव में कोई भी पुरुष नहीं बस्ता- पर तुम एक साहसी लड़की हो
धर्मा- राजकुमारीजी शायद आप सच कह रही हैं (उसने भी लोगों के झुके हुए सर देख कर कहा). -परन्तु क्या राजमहल ने कभी आज तक माधोपुर जैसे गांव जो की वास्तव में स्वर्णपुर का ही हिस्सा मन जाये, समस्याओं पर ध्यान दिया? और साथ ही उसने राजा विक्रम प्रताप की इस गांव के प्रति उदासीनता का बखान करना शुरू कर दिया.




अजंता (कुछ क्रुद्ध स्वर में) - धर्मा _ _ _ मत भूलो की तुम इस राज्य के महाराज विक्रमप्रताप सिंह जो की हमारे पिता हैं उनके बारे में बोल रही हो. तुम मेरी पुरानी सखी
हो इसका तात्पर्य यह नहीं की _ _

धर्मा- राजकुमारीजी वही तो मैं कह रही हूँ- अगर राजा विक्रम प्रताप हमारे राजा है, तो हमIरी समस्याओं को ध्यान क्यों नहीं दिया जाता- आजा हम रुद्रपुर के सैनिको के अत्याचार
का आये दिन शिकार होते हैं.

जब कर वसूलने का समय होता है तो आपके अधिकारी यहाँ आते हैं और पूरा कर वसूलते हैं- पर हमारी लूटी हुई फसलों, घर और जान माल की सुरक्षा का कोई नहीं सोचता सिर्फ इस लिए क्योंकि हम स्वर्णपुर की सीमा से कुछ हट कर हैं.

राजकुमारी अजंता कुछ प्रभावित हुईं- ठीक है धर्मा हम महाराज से इस विषय पर अवश्य चर्चा करेंगे. तुम चिंता न करो और हाँ ज़रा कुछ पल के लिए हमारे साथ आओ
और वह धर्मा को रथ के पीछे ले गयी .

धर्मा- क्या बात है राजकुमारी आप मुझे यहाँ क्यों ले आयीं.

अजंता - धर्मा- २ आवश्यक कार्य हैं. सर्वप्रथम मेरी चोली पीछे से ढीली है इसे कस कर बाँधा दो,

और वह अपनी गोरी और चमकदार पीठ धर्मा की और कर के खड़ी हो गयी










धर्मा ने मुस्कुराते हुए चोली राजकुमारी की चोली ठीक कर दी-

क्या बात है राजकुमारी जी यह चोली _ _

अजंता - हाँ उस जलाल सिंह से द्विंद्व युद्ध हो गया था- बहुत प्रयत्न करने के बाद सिर्फ हमारी चोली ही उतार सका–

धर्मा- तो क्या उसने आपके साथ-

अजंता - उसे मेरे संतरे बहुत पसंद आ गए थे- इसी लिए अपना केला बदले में भेंट करने चला था





धर्मा हंस पड़ी- आप बहुत ही नटखट हैं राजकुमारी जी- पर अब तो वह बेचारा जलाल सिंह पेशाब करते समय आपको याद करेगा.

जारी रहेगी
 
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