hotaks444
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सभी दोस्तों को मेरा सादर प्रणाम और प्यारी भाभियों और कुंवारी !! चूत वालियों को मेरे लंड का प्रणाम. मैं आपको अपने जीवन की रास लीला सुनाने जा रहा हूँ । दोस्तों मैं देव इंडिया के दिल मध्य प्रदेश के सागर का रहने वाला हूँ. मेरी उमर ३८ साल रंग गोरा मजबूत कद-काठी और ६"४" लम्बा हूँ. मुझे मजलूम की मदद करने मैं बड़ी राहत मिलती है और नर्म दिल हूँ।
जैसा की अक्सर कहानियो में होता है कि कहानी का कैरेक्टर के ऑफिस की दोस्त या पड़ोसन या रिश्तेदार वाली कोई बुर (जिसको मैं प्यार से मुनिया कहता हूँ ) मिल जाती है उसे तुरन्त चोदने लगता है, पर हकीकत इससे कही अधिक जुदा और कड़वी होती है एक चूत चोदने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है ऐसी एक कोशिश की यह कहानी है।
हमारा शहर सागर प्राकृतिक सुन्दरता और हिल्स से घिरा हुआ है। यह एक बहुत ही सुंदर लैक है और यहां के लोग बहुत ही संतुष्ट और सीधे सादे हैं। पर यहां की महिलायें बहुत चुदक्कड़ है यह मैंने बहुत बाद में जाना। मैं क्रिकेट और फुटबॉल का नेशनल प्लेयर रहा हूँ इस कारण से अपने एरिया में बहुत मशहूर था और सुंदर कद काठी और रूप रंग गोरा होने के कारण हैंडसम भी दीखता था. लेकिन मुझे अपने लन्ड की प्यास किसी न किसी के बारे मैं सोच कर और अपनी मुट्ठ मार कर या अपना तकिये को चोदकर बुझानी पड़ती थी मैं अपनी हेल्पिंग हब्बिट्स के कारण भी बहुत मशहूर था और सभी मुझे प्यार भी इसीलिए बहुत करते थे।
मेरे घर के सामने ग्राउंड है जहा मैं खेलते हुए बड़ा हुआ और अपने सभी सपने सन्जोए। एक दिन हम कुछ दोस्त मोर्निंग एक्सर्साईज करके आ रहे थे तभी सामने से आती हुई ३ लड़कियों पर नज़र पड़ी। उनमे से दो को मैं चेहरे से तो जानता था कि वो मेरे घर के आस पास रहती है। तीसरी से बिल्कुल अनजान था और वो कोई ख़ास भी नहीं थी. हम दोस्त अपनी बातों में मस्त दौड़ लगाते हुए जैसे ही उनके पास पहुचे तो बीच वाली लड़की मेरे को बहुत पसंद आई. मै सिर्फ़ बनियान और नेक्कर मैं था तो मेरे सारे मस्सल्स दिखाई दे रहे थे जिससे शायद वो थोडी इम्प्रेस हुई उसने भी मुझे भरपूर नज़र देखा. मेरा ध्यान उस लड़की पर लगा होने से मैं नीचे पत्थर नही देख पाया और ठोकर खाकर गिर पड़ा वो तीनो लड़कियां बहुत जोरों से हंस पड़ी और भाग गई. मुझे घुटनों और सर में बहुत चोट लगी थी काफ़ी खून बहा था इस कारण मै कुछ दिन अपनी मोर्निंग एक्सर्साईज के लिए दोस्तों के पास नही जा पाया.
ठंडों का मौसम चल रहा था हमारे मोहल्ले मैं एक शादी थी. मेरी हर किसी से अच्छी पटती थी इसलिए मेरे बहुत सारे दोस्त हुआ करते थे. उस शादी में मैं अपने ऊपर एक जिम्मेदार पड़ोसी की भूमिका निभाते हुए बहुत काम कर रहा था. और मै जयादातर महिलाओं के आस पास मंडराता कि शायद कोई पट जाए या कोई लिंक मिल जाए मुनिया रानी को चोदने या दर्शन करने के। पर किस्मत ख़राब. कोई नही मिली. मुझ से किसी खनकती आवाज ने कहा " सुनिए आप तो बहुत अच्छे लग रहे है आप और बहुत मेहनत भी कर रहे है यहां "
मैंने जैसे ही मुड़कर देखा तो वो ही बीच वाली लड़की जिसको देखकर मै गिरा था और जिसके कारण मेरे सर पर अभी भी पट्टी बंधी हुई थी जिसमे ३ टाँके लगे हुए थे और घुटने का भी हाल कुछ अच्छा नही था... मैंने देखा वो खड़ी मुस्कुरा रही थी. मैंने कहा "आ आप ..... आपने मेरे से कुछ कहा"
" नही यहां ऐसे बहुत सारे लोग है जो मेरे को देख कर रोड पर गिरकर अपना सर फ़ुड़वा बैठे" वो अपनी सहेलियों से घिरी चहकती हुई बोली।
" आप लोग तो हंस कर भाग गई.... मेरे सर और पैर दोनों मैं बहुत चोट लगी थी" मैंने कहा
मेरे ही मोहल्ले की एक लड़की ज्योति जिसे मै पहले पटाने की कोशि्श कर चुका था पर वो पटी नहीं थी बल्कि मेरी उससे लडाई हो गई थी. ज्योति ने मेरे से मुह चिड़ाते हुए कहा इनको " च्च्च च्च छक ... अरे!! अरे!! बेचारा..... देव भैया अभी तक कोई मिली नही तो अब लड़कियों को देख कर सड़कों पर गिरने लगे " और खिल खिला कर हंस दी .....
(11-08-2010 08:49 PM) Hotfile 0
मैंने ज्योति के कई सपने देखे मै ज्योति को अपनी गाड़ी पर बिठाकर कही ले जा रहा हूँ उसके दूध मेरी पीठ से छु रहे है वो मेरे लंड को पकड़ कर मोटरसाईकिल पर पीछे बैठी है उसके बूब्स टच होने से मेरा लंड खड़ा हो जाता है तो मै धामोनी रोड के जंगल मै गाड़ी ले जाता हूँ जहा उसको गाड़ी से उतार कर अपने गले से लिपटा लेता हूँ उसके लिप्स, गर्दन बूब्स पर किस कर रहा हूँ और उसके मम्मे दबा रहा हूँ साथ ही साथ उसकी मुनिया(बुर) को भी मसल रहा हूँ वो पहले तो न नुकर करती है लेकिन जब मै उसकी मुनिया और बूब्स उसके कपडों के ऊपर से किस करता हूँ और उसकी सलवार खोल कर उसकी पैंटी के ऊपर से ही उसकी पेशाब को चाटने लगा ज्योति भी सीई हीई येः क्या कर रहे हो........ मैं जल रही हूँ मुझे कुछ हो रहा है ....... कह रही है और मै ज्योति को वहीं झाडियों मैं जमीन पर लिटाकर चोदने लगता हूं। पहले ज्योति का पानी छूटता है फिर मेरा.. जब ख्वाब पूरा हुआ तो देखा लंड मेरा मेरे हाथ मैं झड़ चुका है और मुट्ठी मारने से लंड लाल हो गया है
मुझे बहुत बुरा लगा ज्योति के तानों से मेरी बे-इज्ज़ती हुई थी वहां से मैंने इन दोनों को सबक सिखाने का ठान लिया. मैंने गुलाब जामुन का शीरा उसकी बैठने वाली सीट पर लगा दिया जिससे उसकी सफ़ेद ड्रेस ख़राब हो गई और वो ऐन मौके पर गन्दी ड्रेस पहने यहां वहां घूमती रही और लोग उसे कुछ न कुछ कहते रहे . पर उसका चेहरा ज्यों का त्यों था .. मैंने ज्योति को उसके हाल पर छोड़ कर अपने टारगेट पर कन्स्न्ट्रेट करनाउचित समझा
मै उससे जान पहचान करना चाहता था जब से उसको देखा था उसके भी नाम की कई मूठ मारी जा चुकी थी और तकिये का कोना चोदा जा चुका था.. मेरा तकिये के कोने मेरे स्पेर्म्स के कारण कड़क होना शुरू हो गई थे. पर कोई लड़की अभीतक पटी नहीं थी.
इसबार मैंने हिम्मत करके उसका नाम पूछ लिया. जहा वो खाना खा रही थी वहीं चला गया और पूछा "आप क्या लेंगी और..... कुछ लाऊँ स्वीट्स या स्पेशल आइटम आपके लिए...
भीड़ बहुत थी उस शादी मैं वो मेरे पास आ गई और चुपचाप खड़ी होकर खाना खाने लगी. मैंने उसको पूछा "आप इस ड्रेस मैं बहुत सुंदर लग रही है.. मेरा नाम देव है आपका नाम जान सकता हूँ..." फिर भी चुप रही वो और एक बार बड़े तीखे नैन करके देखा. हलके से मुस्कुराते हुए बोली" अभी नही सिर्फ़ हाल चाल जानना था सो जान लिया"
मैंने उसका नाम वहीँ उसकी सहेलियों से पता कर लिया और उसका एड्रेस भी पता कर लिया था. उसका नाम मीनू था. वो मेरे घर के ही पास रहती थी. पंजाबी फॅमिली की लड़की थी. सिंपल सोबर छरहरी दिखती थी. उसकी लम्बाई मेरे लायक फिट थी उसके बूब्स थोड़े छोटे ३२ के करीब होंगे और पतला छरहरा बदन तीखे नैन-नक्श थे उसके. वो मेरे मन को बहुत भा गई थी. शादी से लौट के मैंने उस रात मीनू के नाम के कई बार मुट्ठ मारी. मै उसको पटाने का बहुत अवसर खोजा करता था वो मेरे घर के सामने से रोज निकलती थी पर हम बात नही कर पाते थे. ऐसा होते होते करीबन १ साल बीत गया.
एक बार मै दिल्ली जा रहा था गोंडवाना एक्सप्रेस से. स्टेशन पर गाड़ी आने मैं कुछ देर बाकी थी शादियों का सीज़न चल रहा था काफ़ी भीड़ थी. मेरा रिज़र्वेशन स्लीपर में था. तभी मुझे मीनू दिखी, साथ में उसका भाई और सभी फॅमिली मेम्बेर्स भी थे। उसके भाई से मेरी जान पहचान थी सो हम दोनों बात करने लगे. मैंने पूछा "कहा जा रहे हो" तो बोले "मौसी के यहां शादी है दिल्ली मैं वहीँ जा रहे है".
मुझ से पूछा " देव जी आप कहा जा रहे हो"
मैंने कहा " दिल्ली जा रहा हूँ थोड़ा काम है और एक दोस्त की शादी भी अटेण्ड करनी है"
इतने में ट्रेन आने का अनौंसमेंट हो चुका था। उनके साथ बहुत सामान था, मेरे साथ सिर्फ़ एक एयर बैग था उन्होंने मेरे से सामान गाड़ी में चढाने की रेकुएस्ट करी गाड़ी प्लेटफोर्म पर आ चुकी थी यात्री इधर उधर अपनी सीट तलाशने के लिए बेतहाशा भाग रहे थे बहुत भीड़ थी. मीनू के भाई ने बताया की इसी कोच में चढना है तो हम फटाफट उनका सामान चढाने मैं बीजी हो गए. उनका सामान गाड़ी के अंदर करके उनकी सीट्स पर सामान एडजस्ट करने लगा मैंने अपना बैग भी उन्ही की सीट पर रख दिया था मुझे अपनी सीट पर जाने की कोई हड़बड़ी नही थी क्योंकि बीना जंक्शन तक तो गोंडवाना एक्सप्रेस मैं अपनी सीट का रिज़र्वेशन तो भूल जाना ही बेहतर होता है. क्योंकि डेली पैसेन्जर्स भी बहुत ट्रेवल करते है इस ट्रेन से सो मै उनका सामान एडजस्ट करता रहा.
गाड़ी सागर स्टेशन से रवाना हो चुकी थी. मै पसीने मैं तरबतर हो गया था. अब तक गाड़ी ने अच्छी खासी स्पीड पकड़ ली थी. मीनू की पूरी फॅमिली सेट हो चुकी थी और उनका सामान भी. गाड़ी बीना 9 बजे रात को पहुचती थी और फिर वहा से दूसरी गोंडवाना मैं जुड़ कर दिल्ली जाती थी. इसलिए बीना मैं भीड़ कम हो जाती है. मै सबका सामान सेट करके थोड़ा चैन की साँस लेने कम्पार्ट्मेन्ट के गेट पर आ गया फिर साथ खड़े एक मुसाफिर से पूछा "यह कौन सा कोच है " उसने घमंडी सा रिप्लाई करते हुए कहा एस ४.... तुम्हें कौन सो छाने ( आपको कौन सा कोच चाहिए)" "अरे गुरु जोई चाने थो .... जौन मैं हम ठाडे है ..... (बुन्देलखंडी) (यही चाहिए था जिसमे हम खड़े है)"
मैंने अपनी टिकेट पर सीट नम्बर और कोच देखा तो यही कोच था जिसमे मीनू थी बस मेरी बर्थ गेट के बगल वाली सबसे ऊपर की बर्थ थी. बीना मैं मैंने हल्का सा नाश्ता किया और घूमने फिरने लगा. मुझे अपने बैग का बिल्कुल भी ख्याल नही था. बिना से गाड़ी चली तो ठण्ड थोडी बढ गई थी मुझे अपने बैग का ख्याल आया. मै उनकी सीट के पास गया तो मैंने "पूछा मेरा बैग कहा रख दिया." मीनू की कजिन बोली " आप यहां कोई बैग नही छोड़ गए आप तो हमारा सामान चढवा रहे थे उस समय आपके पास कोई बैग नही था" जबकि मुझे ख्याल था की मैंने बैग मीनू की सीट पर रखा था. वो लोग बोली की आपका बैग सागर मैं ही छूट गया लगता है.
मैंने कहा कोई बात नही. उन्होंने पूछा कि आपकी कौन सी बर्थ है मैंने कहा इसी कोच मैं लास्ट वाली. मीनू की मम्मी बोली "बेटा अब जो हो गया तो हो गया जाने दो ठण्ड बहुत हो रही है ऐसा करो मेरे पास एक कम्बल एक्स्ट्रा है वो तुम ले लो"
मैंने कहा "जी कोई बात नहीं मै मैनेज कर लूँगा"
" ऐसे कैसे मनेज कर लोगे यहां कोई मार्केट या घर थोड़े ही किसी का जो तुमको मिल जाएगा ठण्ड बहुत है ले लो" मीनू की मम्मी ने कहा.
"मुझे नींद वैसे भी नहीं आना है रात तो ऐसे ही आंखों मैं ही कट जायेगी.." मैंने मीनू की ऑर देखते हुए कहा. मीनू बुरा सा मुह बनके दूसरे तरफ़ देखने लगी.
(11-08-2010 08:51 PM) Hotfile 0
ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार पर दौडी जा रही थी. मुझे ठण्ड भी लग रही थी तभी मीनू की मम्मी ने कम्बल निकालना शुरू किया तो मीनू ने पहली बार बोला. रुको मम्मी मै अपना कम्बल दे देती हूँ और मै वो वाला ओढ लूंगी. मीनू ने अपना कम्बल और बिछा हुआ चादर दोनों दे दी..... मुझे बिन मांगे मुराद मिल गई क्योंकि मीनू के शरीर की खुशबू उस कम्बल और चादर मैं समां चुकी थी. मै फटाफट वो कम्बल लेकर अपनी सीट पर आ गया
... मुझे नींद तो आने वाली नहीं थी आँखों मैं मीनू की मुनिया और उसका चेहरा घूम रहा था. मै मीनू के कम्बल और चादर को सूंघ रहा था उसमे से काफी अच्छी सुंगंध आ रही थी. मैं मीनू का बदन अपने शरीर से लिपटा हुआ महसूस करने लगा और उसकी कल्पनों मैं खोने लगा.. मीनू और मै एक ही कम्बल मै नंगे लेटे हुए है मै मीनू के बूब्स चूस रहा हूँ और वो मेरे मस्त लौडे को खिला रही है. मेरा लंड मै जवानी आने लगी थी जिसको मै अपने हाथ से सहलाते हुए आँखे बंद किए गोंडवाना एक्सप्रेस की सीट पर लेटा हुआ मीनू के शरीर को महसूस कर रहा था.
जैसे जैसे मेरे लंड मै उत्तेजना बढती जा रही थी वैसे वैसे मै मीनू के शरीर को अपने कम्बल मैं अपने साथ महसूस कर रहा था. इधर ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार पर थी मै मीनू के बूब्स प्रेस करते हुए उसके क्लिटोरिस( चूत के दाने) को मसल रहा था और उसके लिप्स और गर्दन पर लिक करता हुआ मीनू के एक-एक निप्प्ल को बारी बारी चूस रहा था.. इधर मीनू भी कह रही थी अह्ह्ह हह सीईईई ओम्म्म मम् बहु्त अच्छा लग रहा है मै बहुत दिन से तुमको चाहती हूँ देव ....... जबसे तुमको देखा है मै रोज तुम्हारे नाम से अपनी चूत को ऊँगली या मोमबत्ती से ...... चोदती हूं ...उम् म ..... आ अ अ अ .... तुम्हारा लंड तुम्हारे जैसा मस्त है उम् म म म बिल्कुल लम्बा चोडा देव .... उम् म म आ अअ अआ जल्दी से मेरी चूत में अपना लन्ड घुसा दो अब सहन नही हो रहा उ मम म आया अ अ अ और मै एक झटके में मीनू की बुर मैं लंड पेल कर धक्के मारने लगा ट्रेन की रफ्तार की तरह के धक्के ... फटाफट जैसे मीनू झड़ रही हो उम् मम् देव ......मेरी बुर र ... सी पेशाब.... निकलने वाली ही तुम्हारे लंड ने मुझे मूता दिया मेरी पहली चुदाई बड़ी जबरदस्त हुई उम् म आ अ अ जैसे ही मीनू झडी मैं भी झड़ने लगा मै भूल गया की मै ट्रेन मै हूँ और सपने मै मीनू को चौद्ते हुए मुट्ठ मार रहा हूँ और मैं भी आ आया.... हा ह मीनू... ऊऊ मजा आ गया मै कब से तुमको चोदना चाहता था कहते हुई झड़ने लगा और बहुत सारा पानी अपने रुमाल मैं निकाल कुछ मीनू के चादर मैं भी गिर गया.
जब मै शांत हुआ तो मेरे होश वापिस आए और मैंने देखा कि मै तो अकेला ट्रेन मै सफर कर रहा हूँ.. शुक्र है सभी साथी यात्री अपनी अपनी बेर्थ्स पर कम्बल ओढ कर सो रहे थी. ठण्ड बहुत तेज़ थी उस पर गेट के पास की बर्थ बहुत ठंडी लगती है अब मुझे पेशाब जाने के लिए उठाना था मै हाफ पेंट में सफर करता हूँ तो मुझे ज्यादा दिक्कत नही हुई.. अब तक रात के १.३० बज चुके थे मै जैसे ही नीचे उतरा तो मुझे लगा जैसे मीनू की सीट से किसी ने मुझे रुकने का संकेत किया हो मीनू की सीट के पास कोच के सभी यात्री गहरी नींद मै सो रहे थे और ट्रेन अभी १ घंटे कही रुकने वाली नही थी. मैंने देखा मीनू हाथ मै कुछ लिए आ रही है.. मेरे पास आकर बोली "बुधू तुम अपना बैग नहीं देख सके मुझे क्या संभालोगे" ठंड मैं ठिठुरते हो ..."
मैंने उसकी बात पर ध्यान नही दिया उसने क्या मेसेज दे दिया मै रिप्लाई दिया " मैं तुम्हारे कम्बल मै तुम्हारी खुशबू लेकर मस्त हो रहा था" मै अपने लंड के पानी से भरा रुमाल अपने हाथ मै लिए था. जिसको देख कर वो बोली "यह क्या है" मैंने कहा " रुमाल है".
"यह गीला क्यों है" मीनू ने पूछा " ऐसे ही... तुम्हारे कारण ... कह कर मैंने टाल दिया.....
मीनू ने पूछा "मेरे कारण कैसे......" फिर मुझे ध्यान आया की अभी अभी मीनू ने मुझे कुछ मेसेज दिया है....
मैंने मीनू को गेट के पास सटाया और उसकी आंखों मै देखते हुए उसको कहा मीनू आई लव यू और उसके लिप्स अपने लिप्स मैं भर लिए उसके मम्मे पर और गांड पर हाथ फेरने लगा. मीनू भी मेरा किस का जवाब दे रही थी.....
मै मीनू के दूधों की दरार मै चूसने लगा था और बूब्स को दबा रहा था... मेरा लंड जो आधा बैठा था फ़िर से ताकत भरने लगा और उसके पेट से टकराने लगा.. मीनू मेरे से बोली आई लव यू टू.. इधर कोई देख लेगा जल्दी से इंटर कनेक्ट कोच की और इशारा कर के कहने लगी उस कोच के टॉयलेट मैं चलो .....
हम दोनों टॉयलेट में घुस गए.... टॉयलेट को लाक करते ही मै उसको अपने से लिपटा लिया और पागलों की भाति चूमने लगा.. मीनू मै तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और तुमको दिलो जान से चाहता हूँ......
हां! मेरे राजा देव मै भी तुम्हारे बिना पागल हो रही थी..... जानते हो यह प्रोग्राम कैसे बना दिल्ली जाने का .....मेरे आने का मै तुम्हारे घर आई थी मम्मी के साथ तुम्हारी मम्मी और मेरी मम्मी संकट मोचन मन्दिर पर रामायण मंडल की मेंबर है.. तो उन्होंने बताया की देव को परसों दिल्ली जाना ही तो वो नही जा सकती उनके साथ. तब मैंने भी मम्मी को प्रोग्राम बनने को कह दिया मैंने कहा यह कहानी छोड़ो अभी तो मजा लो
मैंने उसको कमोड शीट पर बिठा दिया और उसके पैर से लेकर सर तक कपडों के ऊपर से ही चूसने चूमने लगा..... मैंने उसकी चूत पर हाथ रखा वो "सी ई ईई आई वहां नही वहां कुछ कुछ होता है जब भी तुमको देखती हु मेरी अंदर से पेशाब निकल जाती है वहां नही" ऐसा कहने लगी
मैंने कहा "मुझे विश्वास नही होता मुझे दिखाओ " ऐसा कहकर मै सलवार के ऊपर से उसकी अंदरूनी जांघ और बूब्स पर हाथ से मालिश करने लगा
" हट बेशरम कभी देखते है लड़कियों की ऐसे वो शादी के बाद होता है " मीनू बोली
मैंने मीनू के बूब्स को सहलाते हुई और उसकी अंदरूनी जांघ पर चूमते हुए उसकी चूत की तरफ़ बदने लगा और कहा " ठीक है जैसा तुम कहो पर मै कपड़े के ऊपर से तो चेक कर लूंगा"'' मीनू भी अब गरमाने लगी थी उसकी चूत भी काफ़ी गर्म और गीली होने लगी थी. वो अपने दोनों पैरो को सिकोड़ कर मेरे को चूत तक पहुचने से रोक रही थी... " प्लीज़ वहां नही मैं कंट्रोल नहीं कर पाऊँगी अपने आप, को कुछ हो जायेगा .... मेरी कजिन के भरोसे आई हूं उसको पटा रखा है मैंने। यदि कोई जाग गया तो उसकी भी मुसीबत हो जायेगी प्लीज़ मुझे जाने दो अब..."
मैंने मीनू के दोनों पैर अपनी ताकत से फैलाये और उसकी सलवार की सिलाई को फाड़कर उसकी पिंक पैंटी जो की उसके चूत के रस मैं सराबोर थी अपने मुह में ले लिया... उसकी पैंटी से पेशाब की मिलीजुली स्मेल के साथ उसके पानी का भी स्वाद मिल रहा था.....
मैंने पैंटी के ऊपर से ही उसकी चूत को जोरो से चूसना चालू कर दिया.. मीनू कहे जा रही थी" प्लीज़ नो ! मुझे जाने दो उई मा मैं कंट्रोल खो रही हूं उम् मम मम् मुझे जाने दो.... और.. जोर से चाटो मेरी पेशाब में कुछ हो रहा है बहुत अच्छा लग रहा है मेरे पेट में गुदगुदी हो रही है मीनू के निप्पल भी खड़े हो गए थी क्योंकि उसकी कुर्ती मै हाथ डाल कर उसके मम्मे मसल रहा था मीनू मेरे सर को अपनी चूत पर दबाये जा रही थी ... उम्म मै मीनू की पैन्टी को चूत से साइड में खिसका के उसकी चूत को चूत की लम्बाई में चूस रहा था।
मीनू अपने दोनों पैर टॉयलेट के विण्डो पर टिकाये मुझसे अपनी चूत चटवा रही थी मीनू की बुर बिल्कुल कुंवारी थी मैंने अपनी ऊँगली उसकी बुर मैं घुसेदी बुर बहुत टाइट और गीली थी मीनू हलके हलके से करह रही थी " उम्म्म आआ मर गई" मैं मीनू की बुर को ऊँगली से चोद रहा था और चूत के दाने को चाट और चूस रहा था.. सलवार पहने होने के कारण चूत चाटने मैं बहुत दिक्कत हो रही थी.
जैसा की अक्सर कहानियो में होता है कि कहानी का कैरेक्टर के ऑफिस की दोस्त या पड़ोसन या रिश्तेदार वाली कोई बुर (जिसको मैं प्यार से मुनिया कहता हूँ ) मिल जाती है उसे तुरन्त चोदने लगता है, पर हकीकत इससे कही अधिक जुदा और कड़वी होती है एक चूत चोदने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है ऐसी एक कोशिश की यह कहानी है।
हमारा शहर सागर प्राकृतिक सुन्दरता और हिल्स से घिरा हुआ है। यह एक बहुत ही सुंदर लैक है और यहां के लोग बहुत ही संतुष्ट और सीधे सादे हैं। पर यहां की महिलायें बहुत चुदक्कड़ है यह मैंने बहुत बाद में जाना। मैं क्रिकेट और फुटबॉल का नेशनल प्लेयर रहा हूँ इस कारण से अपने एरिया में बहुत मशहूर था और सुंदर कद काठी और रूप रंग गोरा होने के कारण हैंडसम भी दीखता था. लेकिन मुझे अपने लन्ड की प्यास किसी न किसी के बारे मैं सोच कर और अपनी मुट्ठ मार कर या अपना तकिये को चोदकर बुझानी पड़ती थी मैं अपनी हेल्पिंग हब्बिट्स के कारण भी बहुत मशहूर था और सभी मुझे प्यार भी इसीलिए बहुत करते थे।
मेरे घर के सामने ग्राउंड है जहा मैं खेलते हुए बड़ा हुआ और अपने सभी सपने सन्जोए। एक दिन हम कुछ दोस्त मोर्निंग एक्सर्साईज करके आ रहे थे तभी सामने से आती हुई ३ लड़कियों पर नज़र पड़ी। उनमे से दो को मैं चेहरे से तो जानता था कि वो मेरे घर के आस पास रहती है। तीसरी से बिल्कुल अनजान था और वो कोई ख़ास भी नहीं थी. हम दोस्त अपनी बातों में मस्त दौड़ लगाते हुए जैसे ही उनके पास पहुचे तो बीच वाली लड़की मेरे को बहुत पसंद आई. मै सिर्फ़ बनियान और नेक्कर मैं था तो मेरे सारे मस्सल्स दिखाई दे रहे थे जिससे शायद वो थोडी इम्प्रेस हुई उसने भी मुझे भरपूर नज़र देखा. मेरा ध्यान उस लड़की पर लगा होने से मैं नीचे पत्थर नही देख पाया और ठोकर खाकर गिर पड़ा वो तीनो लड़कियां बहुत जोरों से हंस पड़ी और भाग गई. मुझे घुटनों और सर में बहुत चोट लगी थी काफ़ी खून बहा था इस कारण मै कुछ दिन अपनी मोर्निंग एक्सर्साईज के लिए दोस्तों के पास नही जा पाया.
ठंडों का मौसम चल रहा था हमारे मोहल्ले मैं एक शादी थी. मेरी हर किसी से अच्छी पटती थी इसलिए मेरे बहुत सारे दोस्त हुआ करते थे. उस शादी में मैं अपने ऊपर एक जिम्मेदार पड़ोसी की भूमिका निभाते हुए बहुत काम कर रहा था. और मै जयादातर महिलाओं के आस पास मंडराता कि शायद कोई पट जाए या कोई लिंक मिल जाए मुनिया रानी को चोदने या दर्शन करने के। पर किस्मत ख़राब. कोई नही मिली. मुझ से किसी खनकती आवाज ने कहा " सुनिए आप तो बहुत अच्छे लग रहे है आप और बहुत मेहनत भी कर रहे है यहां "
मैंने जैसे ही मुड़कर देखा तो वो ही बीच वाली लड़की जिसको देखकर मै गिरा था और जिसके कारण मेरे सर पर अभी भी पट्टी बंधी हुई थी जिसमे ३ टाँके लगे हुए थे और घुटने का भी हाल कुछ अच्छा नही था... मैंने देखा वो खड़ी मुस्कुरा रही थी. मैंने कहा "आ आप ..... आपने मेरे से कुछ कहा"
" नही यहां ऐसे बहुत सारे लोग है जो मेरे को देख कर रोड पर गिरकर अपना सर फ़ुड़वा बैठे" वो अपनी सहेलियों से घिरी चहकती हुई बोली।
" आप लोग तो हंस कर भाग गई.... मेरे सर और पैर दोनों मैं बहुत चोट लगी थी" मैंने कहा
मेरे ही मोहल्ले की एक लड़की ज्योति जिसे मै पहले पटाने की कोशि्श कर चुका था पर वो पटी नहीं थी बल्कि मेरी उससे लडाई हो गई थी. ज्योति ने मेरे से मुह चिड़ाते हुए कहा इनको " च्च्च च्च छक ... अरे!! अरे!! बेचारा..... देव भैया अभी तक कोई मिली नही तो अब लड़कियों को देख कर सड़कों पर गिरने लगे " और खिल खिला कर हंस दी .....
(11-08-2010 08:49 PM) Hotfile 0
मैंने ज्योति के कई सपने देखे मै ज्योति को अपनी गाड़ी पर बिठाकर कही ले जा रहा हूँ उसके दूध मेरी पीठ से छु रहे है वो मेरे लंड को पकड़ कर मोटरसाईकिल पर पीछे बैठी है उसके बूब्स टच होने से मेरा लंड खड़ा हो जाता है तो मै धामोनी रोड के जंगल मै गाड़ी ले जाता हूँ जहा उसको गाड़ी से उतार कर अपने गले से लिपटा लेता हूँ उसके लिप्स, गर्दन बूब्स पर किस कर रहा हूँ और उसके मम्मे दबा रहा हूँ साथ ही साथ उसकी मुनिया(बुर) को भी मसल रहा हूँ वो पहले तो न नुकर करती है लेकिन जब मै उसकी मुनिया और बूब्स उसके कपडों के ऊपर से किस करता हूँ और उसकी सलवार खोल कर उसकी पैंटी के ऊपर से ही उसकी पेशाब को चाटने लगा ज्योति भी सीई हीई येः क्या कर रहे हो........ मैं जल रही हूँ मुझे कुछ हो रहा है ....... कह रही है और मै ज्योति को वहीं झाडियों मैं जमीन पर लिटाकर चोदने लगता हूं। पहले ज्योति का पानी छूटता है फिर मेरा.. जब ख्वाब पूरा हुआ तो देखा लंड मेरा मेरे हाथ मैं झड़ चुका है और मुट्ठी मारने से लंड लाल हो गया है
मुझे बहुत बुरा लगा ज्योति के तानों से मेरी बे-इज्ज़ती हुई थी वहां से मैंने इन दोनों को सबक सिखाने का ठान लिया. मैंने गुलाब जामुन का शीरा उसकी बैठने वाली सीट पर लगा दिया जिससे उसकी सफ़ेद ड्रेस ख़राब हो गई और वो ऐन मौके पर गन्दी ड्रेस पहने यहां वहां घूमती रही और लोग उसे कुछ न कुछ कहते रहे . पर उसका चेहरा ज्यों का त्यों था .. मैंने ज्योति को उसके हाल पर छोड़ कर अपने टारगेट पर कन्स्न्ट्रेट करनाउचित समझा
मै उससे जान पहचान करना चाहता था जब से उसको देखा था उसके भी नाम की कई मूठ मारी जा चुकी थी और तकिये का कोना चोदा जा चुका था.. मेरा तकिये के कोने मेरे स्पेर्म्स के कारण कड़क होना शुरू हो गई थे. पर कोई लड़की अभीतक पटी नहीं थी.
इसबार मैंने हिम्मत करके उसका नाम पूछ लिया. जहा वो खाना खा रही थी वहीं चला गया और पूछा "आप क्या लेंगी और..... कुछ लाऊँ स्वीट्स या स्पेशल आइटम आपके लिए...
भीड़ बहुत थी उस शादी मैं वो मेरे पास आ गई और चुपचाप खड़ी होकर खाना खाने लगी. मैंने उसको पूछा "आप इस ड्रेस मैं बहुत सुंदर लग रही है.. मेरा नाम देव है आपका नाम जान सकता हूँ..." फिर भी चुप रही वो और एक बार बड़े तीखे नैन करके देखा. हलके से मुस्कुराते हुए बोली" अभी नही सिर्फ़ हाल चाल जानना था सो जान लिया"
मैंने उसका नाम वहीँ उसकी सहेलियों से पता कर लिया और उसका एड्रेस भी पता कर लिया था. उसका नाम मीनू था. वो मेरे घर के ही पास रहती थी. पंजाबी फॅमिली की लड़की थी. सिंपल सोबर छरहरी दिखती थी. उसकी लम्बाई मेरे लायक फिट थी उसके बूब्स थोड़े छोटे ३२ के करीब होंगे और पतला छरहरा बदन तीखे नैन-नक्श थे उसके. वो मेरे मन को बहुत भा गई थी. शादी से लौट के मैंने उस रात मीनू के नाम के कई बार मुट्ठ मारी. मै उसको पटाने का बहुत अवसर खोजा करता था वो मेरे घर के सामने से रोज निकलती थी पर हम बात नही कर पाते थे. ऐसा होते होते करीबन १ साल बीत गया.
एक बार मै दिल्ली जा रहा था गोंडवाना एक्सप्रेस से. स्टेशन पर गाड़ी आने मैं कुछ देर बाकी थी शादियों का सीज़न चल रहा था काफ़ी भीड़ थी. मेरा रिज़र्वेशन स्लीपर में था. तभी मुझे मीनू दिखी, साथ में उसका भाई और सभी फॅमिली मेम्बेर्स भी थे। उसके भाई से मेरी जान पहचान थी सो हम दोनों बात करने लगे. मैंने पूछा "कहा जा रहे हो" तो बोले "मौसी के यहां शादी है दिल्ली मैं वहीँ जा रहे है".
मुझ से पूछा " देव जी आप कहा जा रहे हो"
मैंने कहा " दिल्ली जा रहा हूँ थोड़ा काम है और एक दोस्त की शादी भी अटेण्ड करनी है"
इतने में ट्रेन आने का अनौंसमेंट हो चुका था। उनके साथ बहुत सामान था, मेरे साथ सिर्फ़ एक एयर बैग था उन्होंने मेरे से सामान गाड़ी में चढाने की रेकुएस्ट करी गाड़ी प्लेटफोर्म पर आ चुकी थी यात्री इधर उधर अपनी सीट तलाशने के लिए बेतहाशा भाग रहे थे बहुत भीड़ थी. मीनू के भाई ने बताया की इसी कोच में चढना है तो हम फटाफट उनका सामान चढाने मैं बीजी हो गए. उनका सामान गाड़ी के अंदर करके उनकी सीट्स पर सामान एडजस्ट करने लगा मैंने अपना बैग भी उन्ही की सीट पर रख दिया था मुझे अपनी सीट पर जाने की कोई हड़बड़ी नही थी क्योंकि बीना जंक्शन तक तो गोंडवाना एक्सप्रेस मैं अपनी सीट का रिज़र्वेशन तो भूल जाना ही बेहतर होता है. क्योंकि डेली पैसेन्जर्स भी बहुत ट्रेवल करते है इस ट्रेन से सो मै उनका सामान एडजस्ट करता रहा.
गाड़ी सागर स्टेशन से रवाना हो चुकी थी. मै पसीने मैं तरबतर हो गया था. अब तक गाड़ी ने अच्छी खासी स्पीड पकड़ ली थी. मीनू की पूरी फॅमिली सेट हो चुकी थी और उनका सामान भी. गाड़ी बीना 9 बजे रात को पहुचती थी और फिर वहा से दूसरी गोंडवाना मैं जुड़ कर दिल्ली जाती थी. इसलिए बीना मैं भीड़ कम हो जाती है. मै सबका सामान सेट करके थोड़ा चैन की साँस लेने कम्पार्ट्मेन्ट के गेट पर आ गया फिर साथ खड़े एक मुसाफिर से पूछा "यह कौन सा कोच है " उसने घमंडी सा रिप्लाई करते हुए कहा एस ४.... तुम्हें कौन सो छाने ( आपको कौन सा कोच चाहिए)" "अरे गुरु जोई चाने थो .... जौन मैं हम ठाडे है ..... (बुन्देलखंडी) (यही चाहिए था जिसमे हम खड़े है)"
मैंने अपनी टिकेट पर सीट नम्बर और कोच देखा तो यही कोच था जिसमे मीनू थी बस मेरी बर्थ गेट के बगल वाली सबसे ऊपर की बर्थ थी. बीना मैं मैंने हल्का सा नाश्ता किया और घूमने फिरने लगा. मुझे अपने बैग का बिल्कुल भी ख्याल नही था. बिना से गाड़ी चली तो ठण्ड थोडी बढ गई थी मुझे अपने बैग का ख्याल आया. मै उनकी सीट के पास गया तो मैंने "पूछा मेरा बैग कहा रख दिया." मीनू की कजिन बोली " आप यहां कोई बैग नही छोड़ गए आप तो हमारा सामान चढवा रहे थे उस समय आपके पास कोई बैग नही था" जबकि मुझे ख्याल था की मैंने बैग मीनू की सीट पर रखा था. वो लोग बोली की आपका बैग सागर मैं ही छूट गया लगता है.
मैंने कहा कोई बात नही. उन्होंने पूछा कि आपकी कौन सी बर्थ है मैंने कहा इसी कोच मैं लास्ट वाली. मीनू की मम्मी बोली "बेटा अब जो हो गया तो हो गया जाने दो ठण्ड बहुत हो रही है ऐसा करो मेरे पास एक कम्बल एक्स्ट्रा है वो तुम ले लो"
मैंने कहा "जी कोई बात नहीं मै मैनेज कर लूँगा"
" ऐसे कैसे मनेज कर लोगे यहां कोई मार्केट या घर थोड़े ही किसी का जो तुमको मिल जाएगा ठण्ड बहुत है ले लो" मीनू की मम्मी ने कहा.
"मुझे नींद वैसे भी नहीं आना है रात तो ऐसे ही आंखों मैं ही कट जायेगी.." मैंने मीनू की ऑर देखते हुए कहा. मीनू बुरा सा मुह बनके दूसरे तरफ़ देखने लगी.
(11-08-2010 08:51 PM) Hotfile 0
ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार पर दौडी जा रही थी. मुझे ठण्ड भी लग रही थी तभी मीनू की मम्मी ने कम्बल निकालना शुरू किया तो मीनू ने पहली बार बोला. रुको मम्मी मै अपना कम्बल दे देती हूँ और मै वो वाला ओढ लूंगी. मीनू ने अपना कम्बल और बिछा हुआ चादर दोनों दे दी..... मुझे बिन मांगे मुराद मिल गई क्योंकि मीनू के शरीर की खुशबू उस कम्बल और चादर मैं समां चुकी थी. मै फटाफट वो कम्बल लेकर अपनी सीट पर आ गया
... मुझे नींद तो आने वाली नहीं थी आँखों मैं मीनू की मुनिया और उसका चेहरा घूम रहा था. मै मीनू के कम्बल और चादर को सूंघ रहा था उसमे से काफी अच्छी सुंगंध आ रही थी. मैं मीनू का बदन अपने शरीर से लिपटा हुआ महसूस करने लगा और उसकी कल्पनों मैं खोने लगा.. मीनू और मै एक ही कम्बल मै नंगे लेटे हुए है मै मीनू के बूब्स चूस रहा हूँ और वो मेरे मस्त लौडे को खिला रही है. मेरा लंड मै जवानी आने लगी थी जिसको मै अपने हाथ से सहलाते हुए आँखे बंद किए गोंडवाना एक्सप्रेस की सीट पर लेटा हुआ मीनू के शरीर को महसूस कर रहा था.
जैसे जैसे मेरे लंड मै उत्तेजना बढती जा रही थी वैसे वैसे मै मीनू के शरीर को अपने कम्बल मैं अपने साथ महसूस कर रहा था. इधर ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार पर थी मै मीनू के बूब्स प्रेस करते हुए उसके क्लिटोरिस( चूत के दाने) को मसल रहा था और उसके लिप्स और गर्दन पर लिक करता हुआ मीनू के एक-एक निप्प्ल को बारी बारी चूस रहा था.. इधर मीनू भी कह रही थी अह्ह्ह हह सीईईई ओम्म्म मम् बहु्त अच्छा लग रहा है मै बहुत दिन से तुमको चाहती हूँ देव ....... जबसे तुमको देखा है मै रोज तुम्हारे नाम से अपनी चूत को ऊँगली या मोमबत्ती से ...... चोदती हूं ...उम् म ..... आ अ अ अ .... तुम्हारा लंड तुम्हारे जैसा मस्त है उम् म म म बिल्कुल लम्बा चोडा देव .... उम् म म आ अअ अआ जल्दी से मेरी चूत में अपना लन्ड घुसा दो अब सहन नही हो रहा उ मम म आया अ अ अ और मै एक झटके में मीनू की बुर मैं लंड पेल कर धक्के मारने लगा ट्रेन की रफ्तार की तरह के धक्के ... फटाफट जैसे मीनू झड़ रही हो उम् मम् देव ......मेरी बुर र ... सी पेशाब.... निकलने वाली ही तुम्हारे लंड ने मुझे मूता दिया मेरी पहली चुदाई बड़ी जबरदस्त हुई उम् म आ अ अ जैसे ही मीनू झडी मैं भी झड़ने लगा मै भूल गया की मै ट्रेन मै हूँ और सपने मै मीनू को चौद्ते हुए मुट्ठ मार रहा हूँ और मैं भी आ आया.... हा ह मीनू... ऊऊ मजा आ गया मै कब से तुमको चोदना चाहता था कहते हुई झड़ने लगा और बहुत सारा पानी अपने रुमाल मैं निकाल कुछ मीनू के चादर मैं भी गिर गया.
जब मै शांत हुआ तो मेरे होश वापिस आए और मैंने देखा कि मै तो अकेला ट्रेन मै सफर कर रहा हूँ.. शुक्र है सभी साथी यात्री अपनी अपनी बेर्थ्स पर कम्बल ओढ कर सो रहे थी. ठण्ड बहुत तेज़ थी उस पर गेट के पास की बर्थ बहुत ठंडी लगती है अब मुझे पेशाब जाने के लिए उठाना था मै हाफ पेंट में सफर करता हूँ तो मुझे ज्यादा दिक्कत नही हुई.. अब तक रात के १.३० बज चुके थे मै जैसे ही नीचे उतरा तो मुझे लगा जैसे मीनू की सीट से किसी ने मुझे रुकने का संकेत किया हो मीनू की सीट के पास कोच के सभी यात्री गहरी नींद मै सो रहे थे और ट्रेन अभी १ घंटे कही रुकने वाली नही थी. मैंने देखा मीनू हाथ मै कुछ लिए आ रही है.. मेरे पास आकर बोली "बुधू तुम अपना बैग नहीं देख सके मुझे क्या संभालोगे" ठंड मैं ठिठुरते हो ..."
मैंने उसकी बात पर ध्यान नही दिया उसने क्या मेसेज दे दिया मै रिप्लाई दिया " मैं तुम्हारे कम्बल मै तुम्हारी खुशबू लेकर मस्त हो रहा था" मै अपने लंड के पानी से भरा रुमाल अपने हाथ मै लिए था. जिसको देख कर वो बोली "यह क्या है" मैंने कहा " रुमाल है".
"यह गीला क्यों है" मीनू ने पूछा " ऐसे ही... तुम्हारे कारण ... कह कर मैंने टाल दिया.....
मीनू ने पूछा "मेरे कारण कैसे......" फिर मुझे ध्यान आया की अभी अभी मीनू ने मुझे कुछ मेसेज दिया है....
मैंने मीनू को गेट के पास सटाया और उसकी आंखों मै देखते हुए उसको कहा मीनू आई लव यू और उसके लिप्स अपने लिप्स मैं भर लिए उसके मम्मे पर और गांड पर हाथ फेरने लगा. मीनू भी मेरा किस का जवाब दे रही थी.....
मै मीनू के दूधों की दरार मै चूसने लगा था और बूब्स को दबा रहा था... मेरा लंड जो आधा बैठा था फ़िर से ताकत भरने लगा और उसके पेट से टकराने लगा.. मीनू मेरे से बोली आई लव यू टू.. इधर कोई देख लेगा जल्दी से इंटर कनेक्ट कोच की और इशारा कर के कहने लगी उस कोच के टॉयलेट मैं चलो .....
हम दोनों टॉयलेट में घुस गए.... टॉयलेट को लाक करते ही मै उसको अपने से लिपटा लिया और पागलों की भाति चूमने लगा.. मीनू मै तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और तुमको दिलो जान से चाहता हूँ......
हां! मेरे राजा देव मै भी तुम्हारे बिना पागल हो रही थी..... जानते हो यह प्रोग्राम कैसे बना दिल्ली जाने का .....मेरे आने का मै तुम्हारे घर आई थी मम्मी के साथ तुम्हारी मम्मी और मेरी मम्मी संकट मोचन मन्दिर पर रामायण मंडल की मेंबर है.. तो उन्होंने बताया की देव को परसों दिल्ली जाना ही तो वो नही जा सकती उनके साथ. तब मैंने भी मम्मी को प्रोग्राम बनने को कह दिया मैंने कहा यह कहानी छोड़ो अभी तो मजा लो
मैंने उसको कमोड शीट पर बिठा दिया और उसके पैर से लेकर सर तक कपडों के ऊपर से ही चूसने चूमने लगा..... मैंने उसकी चूत पर हाथ रखा वो "सी ई ईई आई वहां नही वहां कुछ कुछ होता है जब भी तुमको देखती हु मेरी अंदर से पेशाब निकल जाती है वहां नही" ऐसा कहने लगी
मैंने कहा "मुझे विश्वास नही होता मुझे दिखाओ " ऐसा कहकर मै सलवार के ऊपर से उसकी अंदरूनी जांघ और बूब्स पर हाथ से मालिश करने लगा
" हट बेशरम कभी देखते है लड़कियों की ऐसे वो शादी के बाद होता है " मीनू बोली
मैंने मीनू के बूब्स को सहलाते हुई और उसकी अंदरूनी जांघ पर चूमते हुए उसकी चूत की तरफ़ बदने लगा और कहा " ठीक है जैसा तुम कहो पर मै कपड़े के ऊपर से तो चेक कर लूंगा"'' मीनू भी अब गरमाने लगी थी उसकी चूत भी काफ़ी गर्म और गीली होने लगी थी. वो अपने दोनों पैरो को सिकोड़ कर मेरे को चूत तक पहुचने से रोक रही थी... " प्लीज़ वहां नही मैं कंट्रोल नहीं कर पाऊँगी अपने आप, को कुछ हो जायेगा .... मेरी कजिन के भरोसे आई हूं उसको पटा रखा है मैंने। यदि कोई जाग गया तो उसकी भी मुसीबत हो जायेगी प्लीज़ मुझे जाने दो अब..."
मैंने मीनू के दोनों पैर अपनी ताकत से फैलाये और उसकी सलवार की सिलाई को फाड़कर उसकी पिंक पैंटी जो की उसके चूत के रस मैं सराबोर थी अपने मुह में ले लिया... उसकी पैंटी से पेशाब की मिलीजुली स्मेल के साथ उसके पानी का भी स्वाद मिल रहा था.....
मैंने पैंटी के ऊपर से ही उसकी चूत को जोरो से चूसना चालू कर दिया.. मीनू कहे जा रही थी" प्लीज़ नो ! मुझे जाने दो उई मा मैं कंट्रोल खो रही हूं उम् मम मम् मुझे जाने दो.... और.. जोर से चाटो मेरी पेशाब में कुछ हो रहा है बहुत अच्छा लग रहा है मेरे पेट में गुदगुदी हो रही है मीनू के निप्पल भी खड़े हो गए थी क्योंकि उसकी कुर्ती मै हाथ डाल कर उसके मम्मे मसल रहा था मीनू मेरे सर को अपनी चूत पर दबाये जा रही थी ... उम्म मै मीनू की पैन्टी को चूत से साइड में खिसका के उसकी चूत को चूत की लम्बाई में चूस रहा था।
मीनू अपने दोनों पैर टॉयलेट के विण्डो पर टिकाये मुझसे अपनी चूत चटवा रही थी मीनू की बुर बिल्कुल कुंवारी थी मैंने अपनी ऊँगली उसकी बुर मैं घुसेदी बुर बहुत टाइट और गीली थी मीनू हलके हलके से करह रही थी " उम्म्म आआ मर गई" मैं मीनू की बुर को ऊँगली से चोद रहा था और चूत के दाने को चाट और चूस रहा था.. सलवार पहने होने के कारण चूत चाटने मैं बहुत दिक्कत हो रही थी.