hotaks444
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आंटी और उनकी दो खूबसूरत बेटियाँ
मेरा नाम सोनू है, जमशेदपुर में रहता हूँ। जमशेदपुर झारखण्ड का एक
खूबसूरत सा शहर जो टाटा स्टील की वजह से पूरी दुनिया में मशहूर है।
वैसे मेरा जन्म बिहार की राजधानी पटना में हुआ था, मेरे पापा एक सरकारी
नौकरी में ऊँचे ओहदे पर थे जिसकी वाजह से उनका हर 2-3 साल में तबादला हो
जाता था। पापा की नौकरी की वजह से हम कई शहरों में रह चुके थे, उनका आखिरी
पड़ाव जमशेदपुर था। हमारे परिवार में कुल 4 लोग हैं, मेरे मम्मी-पापा, मैं
और मेरी बड़ी बहन।
जमशेदपुर आने के बाद हमने तय कर लिया कि हम हमेशा के लिए यहीं रहेंगे,
यही सोचकर हमने अपना घर खरीद लिया और वहीं रहने लगे। हम सब लोग बहुत खुश
थे।
अब जो बात मैं आपको बताने जा रहा हूँ वो आज से 4 साल पहले की घटना है,
जमशेदपुर में आए हुए और अपने नया घर लिए हुए हमें कुछ ही दिन हुए थे कि
मेरे पापा का फिर से ट्रान्सफर हो गया, यह हमारे लिए काफी दुखद था क्यूँकि
हमने यह उम्मीद नहीं की थी।
अब हमारे लिए मुश्किल आ खड़ी हुई थी कि क्या करें। पापा का जाना भी जरुरी था, हमें कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
फिर हम लोगों ने यह फैसला किया कि मम्मी पापा के साथ उनकी नई जगह पर
जाएँगी और हम दोनों भाई बहन जमशेदपुर में ही रहेंगे। लेकिन हमें यूँ अकेला
भी नहीं छोड़ा जा सकता था।
हमारी इस परेशानी का कोई हल नहीं मिल रहा था, तभी अचानक पापा के ऑफिस
में पापा की जगह ट्रान्सफर हुए सिन्हा जी ने हमें एक उपाय बताया। उपाय यह
था कि सिन्हा जी अपने और अपने परिवार के लिए नया घर ढूंढ रहे थे और उन्हें
पता चला कि पापा मम्मी के साथ नई जगह पर जा रहे हैं। सिन्हा अंकल ने पापा
को एक ऑफर दिया कि अगर हम चाहें तो सिन्हा अंकल अपने परिवार के साथ हमारे
घर के ऊपर वाले हिस्से में किरायेदार बन जाएँ और हमारे साथ रहने लगें।
हमारा घर तीन मंजिला है और ऊपर का हिस्सा खाली ही पड़ा था।
हम सब को यह उपाय बहुत पसंद आया, इसी बहाने हमारी देखभाल के लिए एक भरा
पूरा परिवार हमारे साथ हो जाता और मम्मी पापा आराम से बिना किसी फ़िक्र के
जा सकते थे।
तो यह तय हो गया कि सिन्हा अंकल हमारे घर में किरायदार बनेंगे और हमारे
साथ ही रहेंगे। सिन्हा अंकल के परिवार में उनकी पत्नी के अलावा उनकी दो
बेटियाँ थी, बड़ी बेटी का नाम रिंकी और छोटी का नाम प्रिया था। रिंकी मेरी
हम उम्र थी और प्रिया तीन साल छोटी थी। रिंकी की उम्र 21 साल थी और प्रिया
18 साल की। आंटी यानि सिन्हा अंकल की पत्नी की उम्र यही करीब 40 के आसपास
थी। लेकिन उन्हें देखकर ऐसा नहीं लगता था कि वो 30 साल से ज्यादा की हों।
उन्होंने अपने आपको बहुत अच्छे से मेंटेन कर रखा था।
खैर उनकी कहानी बाद में बताऊँगा। यह कहानी मेरी और उनकी दोनों बेटियों की है।
पापा और मम्मी सिन्हा अंकल के हमारे घर में शिफ्ट होने के दो दिन बाद
रांची चले गए। अब घर पर रह गए बस मैं और मेरी दीदी। मैंने अपनी दीदी के
बारे में तो बताया ही नहीं, मेरी दीदी का नाम नेहा है और उस वक्त उनकी उम्र
23 साल थी। दीदी ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली थी और घर पर रह कर सिविल
सर्विसेस की तैयारी कर रही थी। उनका रिश्ता भी तय हो चुका था और दिसम्बर
में उनकी शादी होनी थी।
रिंकी, और प्रिया ने आते ही दीदी से दोस्ती कर ली थी और उनकी खूब जमने
लगी थी, आंटी भी बहुत अच्छी थीं और हमारा बहुत ख्याल रखती थी, यहाँ तक
उन्होंने हमें खाना बनाने के लिए भी मना कर दिया था और हम सबका खाना एक ही
जगह यानि उनके घर पर ही बनता था।
रांची ज्यादा दूर नहीं है, इसलिए मम्मी-पापा हर शनिवार को वापस आ जाते
और सोमवार को सुबह सुबह फिर से वापस रांची चले जाते। हमारे दिन बहुत मज़े
में कट रहे थे। रिंकी ने हमारे घर के पास ही महिला कॉलेज में दाखिला ले
लिया था और प्रिया का स्कूल थोड़ा दूर था। मैं और रिंकी एक ही क्लास में थे
और हम अपने अपने फ़ाइनल इयर की तैयारी कर रहे थे, हमारे सब्जेक्ट्स भी एक
जैसे ही थे।
हमारे क्लास एक होने की वजह से रिंकी के साथ मेरी बात चीत उसके साथ होती
थी और प्रिया भी मुझसे बात कर लिया करती थी। प्रिया मुझे भैया कहती थी और
रिंकी मुझे नाम से बुलाया करती थी। मैं भी उसे उसके नाम से ही बुलाता था।
हमारे घर की बनावट ऐसी थी कि सबसे नीचे वाले हिस्से में एक हॉल और दो
बड़े बड़े कमरे थे। एक कमरा हमारे मम्मी पापा का था और एक कमरा मेहमानों के
लिए। ऊपर यानि बीच वाली मंजिल पर भी वैसा ही एक बड़ा सा हॉल और दो कमरे थे
जिनमें से एक कमरा मेरा और एक कमरा नेहा दीदी का था। रिंकी से घुल-मिल जाने
के कारण वो नेहा दीदी के साथ उनके कमरे में ही सोती थी और मैं अपने कमरे
में अकेला सोता था। बाकि लोग यानि सिन्हा अंकल अपनी पत्नी और प्रिया के साथ
सबसे ऊपर वाले हिस्से में रहते थे।
उम्र की जिस दहलीज़ पर मैं था, वहाँ सेक्स की भूख लाज़मी होती है दोस्तो,
लेकिन मुझे कभी किसी के साथ चुदाई का मौका नहीं मिला था। अपने दोस्तों और
इन्टरनेट की मेहरबानी से मैंने यह तो सीख ही लिया था कि भगवान की बनाई हुई
इस अदभुत क्रिया जिसे हम शुद्ध भाषा में सम्भोग और चालू भाषा में चुदाई
कहते हैं वो कैसे किया जाता है। इन्टरनेट पर सेक्सी कहानियाँ और ब्लू
फिल्में देखना मेरा रोज का काम था। मैं रोज नई नई कहानियाँ पढ़ता और अपने 7
इंच के मोटे तगड़े लंड की तेल से मालिश करता। मालिश करते करते मैंने मुठ
मारना भी सीख लिया था और मुझे ज़न्नत का मज़ा मिलता था। अपनी कल्पनाओं में
मैं हमेशा अपनी कॉलेज की प्रोफ्फेसर के बारे में सोचता रहता था और अपना लंड
हिला-हिला कर अपन पानी गिरा देता था। घर में ऐसा माहौल था कि कभी किसी के
साथ कुछ करने का मौका ही नहीं मिला। बस अपने हाथों ही अपने आप को खुश करता
रहता था।
मेरा नाम सोनू है, जमशेदपुर में रहता हूँ। जमशेदपुर झारखण्ड का एक
खूबसूरत सा शहर जो टाटा स्टील की वजह से पूरी दुनिया में मशहूर है।
वैसे मेरा जन्म बिहार की राजधानी पटना में हुआ था, मेरे पापा एक सरकारी
नौकरी में ऊँचे ओहदे पर थे जिसकी वाजह से उनका हर 2-3 साल में तबादला हो
जाता था। पापा की नौकरी की वजह से हम कई शहरों में रह चुके थे, उनका आखिरी
पड़ाव जमशेदपुर था। हमारे परिवार में कुल 4 लोग हैं, मेरे मम्मी-पापा, मैं
और मेरी बड़ी बहन।
जमशेदपुर आने के बाद हमने तय कर लिया कि हम हमेशा के लिए यहीं रहेंगे,
यही सोचकर हमने अपना घर खरीद लिया और वहीं रहने लगे। हम सब लोग बहुत खुश
थे।
अब जो बात मैं आपको बताने जा रहा हूँ वो आज से 4 साल पहले की घटना है,
जमशेदपुर में आए हुए और अपने नया घर लिए हुए हमें कुछ ही दिन हुए थे कि
मेरे पापा का फिर से ट्रान्सफर हो गया, यह हमारे लिए काफी दुखद था क्यूँकि
हमने यह उम्मीद नहीं की थी।
अब हमारे लिए मुश्किल आ खड़ी हुई थी कि क्या करें। पापा का जाना भी जरुरी था, हमें कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
फिर हम लोगों ने यह फैसला किया कि मम्मी पापा के साथ उनकी नई जगह पर
जाएँगी और हम दोनों भाई बहन जमशेदपुर में ही रहेंगे। लेकिन हमें यूँ अकेला
भी नहीं छोड़ा जा सकता था।
हमारी इस परेशानी का कोई हल नहीं मिल रहा था, तभी अचानक पापा के ऑफिस
में पापा की जगह ट्रान्सफर हुए सिन्हा जी ने हमें एक उपाय बताया। उपाय यह
था कि सिन्हा जी अपने और अपने परिवार के लिए नया घर ढूंढ रहे थे और उन्हें
पता चला कि पापा मम्मी के साथ नई जगह पर जा रहे हैं। सिन्हा अंकल ने पापा
को एक ऑफर दिया कि अगर हम चाहें तो सिन्हा अंकल अपने परिवार के साथ हमारे
घर के ऊपर वाले हिस्से में किरायेदार बन जाएँ और हमारे साथ रहने लगें।
हमारा घर तीन मंजिला है और ऊपर का हिस्सा खाली ही पड़ा था।
हम सब को यह उपाय बहुत पसंद आया, इसी बहाने हमारी देखभाल के लिए एक भरा
पूरा परिवार हमारे साथ हो जाता और मम्मी पापा आराम से बिना किसी फ़िक्र के
जा सकते थे।
तो यह तय हो गया कि सिन्हा अंकल हमारे घर में किरायदार बनेंगे और हमारे
साथ ही रहेंगे। सिन्हा अंकल के परिवार में उनकी पत्नी के अलावा उनकी दो
बेटियाँ थी, बड़ी बेटी का नाम रिंकी और छोटी का नाम प्रिया था। रिंकी मेरी
हम उम्र थी और प्रिया तीन साल छोटी थी। रिंकी की उम्र 21 साल थी और प्रिया
18 साल की। आंटी यानि सिन्हा अंकल की पत्नी की उम्र यही करीब 40 के आसपास
थी। लेकिन उन्हें देखकर ऐसा नहीं लगता था कि वो 30 साल से ज्यादा की हों।
उन्होंने अपने आपको बहुत अच्छे से मेंटेन कर रखा था।
खैर उनकी कहानी बाद में बताऊँगा। यह कहानी मेरी और उनकी दोनों बेटियों की है।
पापा और मम्मी सिन्हा अंकल के हमारे घर में शिफ्ट होने के दो दिन बाद
रांची चले गए। अब घर पर रह गए बस मैं और मेरी दीदी। मैंने अपनी दीदी के
बारे में तो बताया ही नहीं, मेरी दीदी का नाम नेहा है और उस वक्त उनकी उम्र
23 साल थी। दीदी ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली थी और घर पर रह कर सिविल
सर्विसेस की तैयारी कर रही थी। उनका रिश्ता भी तय हो चुका था और दिसम्बर
में उनकी शादी होनी थी।
रिंकी, और प्रिया ने आते ही दीदी से दोस्ती कर ली थी और उनकी खूब जमने
लगी थी, आंटी भी बहुत अच्छी थीं और हमारा बहुत ख्याल रखती थी, यहाँ तक
उन्होंने हमें खाना बनाने के लिए भी मना कर दिया था और हम सबका खाना एक ही
जगह यानि उनके घर पर ही बनता था।
रांची ज्यादा दूर नहीं है, इसलिए मम्मी-पापा हर शनिवार को वापस आ जाते
और सोमवार को सुबह सुबह फिर से वापस रांची चले जाते। हमारे दिन बहुत मज़े
में कट रहे थे। रिंकी ने हमारे घर के पास ही महिला कॉलेज में दाखिला ले
लिया था और प्रिया का स्कूल थोड़ा दूर था। मैं और रिंकी एक ही क्लास में थे
और हम अपने अपने फ़ाइनल इयर की तैयारी कर रहे थे, हमारे सब्जेक्ट्स भी एक
जैसे ही थे।
हमारे क्लास एक होने की वजह से रिंकी के साथ मेरी बात चीत उसके साथ होती
थी और प्रिया भी मुझसे बात कर लिया करती थी। प्रिया मुझे भैया कहती थी और
रिंकी मुझे नाम से बुलाया करती थी। मैं भी उसे उसके नाम से ही बुलाता था।
हमारे घर की बनावट ऐसी थी कि सबसे नीचे वाले हिस्से में एक हॉल और दो
बड़े बड़े कमरे थे। एक कमरा हमारे मम्मी पापा का था और एक कमरा मेहमानों के
लिए। ऊपर यानि बीच वाली मंजिल पर भी वैसा ही एक बड़ा सा हॉल और दो कमरे थे
जिनमें से एक कमरा मेरा और एक कमरा नेहा दीदी का था। रिंकी से घुल-मिल जाने
के कारण वो नेहा दीदी के साथ उनके कमरे में ही सोती थी और मैं अपने कमरे
में अकेला सोता था। बाकि लोग यानि सिन्हा अंकल अपनी पत्नी और प्रिया के साथ
सबसे ऊपर वाले हिस्से में रहते थे।
उम्र की जिस दहलीज़ पर मैं था, वहाँ सेक्स की भूख लाज़मी होती है दोस्तो,
लेकिन मुझे कभी किसी के साथ चुदाई का मौका नहीं मिला था। अपने दोस्तों और
इन्टरनेट की मेहरबानी से मैंने यह तो सीख ही लिया था कि भगवान की बनाई हुई
इस अदभुत क्रिया जिसे हम शुद्ध भाषा में सम्भोग और चालू भाषा में चुदाई
कहते हैं वो कैसे किया जाता है। इन्टरनेट पर सेक्सी कहानियाँ और ब्लू
फिल्में देखना मेरा रोज का काम था। मैं रोज नई नई कहानियाँ पढ़ता और अपने 7
इंच के मोटे तगड़े लंड की तेल से मालिश करता। मालिश करते करते मैंने मुठ
मारना भी सीख लिया था और मुझे ज़न्नत का मज़ा मिलता था। अपनी कल्पनाओं में
मैं हमेशा अपनी कॉलेज की प्रोफ्फेसर के बारे में सोचता रहता था और अपना लंड
हिला-हिला कर अपन पानी गिरा देता था। घर में ऐसा माहौल था कि कभी किसी के
साथ कुछ करने का मौका ही नहीं मिला। बस अपने हाथों ही अपने आप को खुश करता
रहता था।