FreeSexKahani - फागुन के दिन चार | Sex Baba Indian Adult Forum
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FreeSexKahani - फागुन के दिन चार

hotaks

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फागुन के दिन चार


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" फागुन के दिन चार " मेरी लम्बी कहानी बल्कि यूँ कहें की उपन्यास है। इसका काल क्रम २१ वी शताब्दी के शुरू के दशक हैं, दूसरे दशक की शुरुआत लेकिन फ्लैश बैक में यह कहानी २१ वीं सदी के पहले के दशक में भी जाती है.

कहानी की लोकेशन, बनारस और पूर्वी उत्तरप्रदेश से जुडी है, बड़ोदा ( वड़ोदरा ) और बॉम्बे ( मुंबई ) तक फैली है और कुछ हिस्सों में देश के बाहर भी आस पास चली आती है। मेरा मानना है की कहानी और उसके पात्र किसी शून्य में नहीं होने चाहिए, वह जहां रहते हैं, जिस काल क्रम में रहते हैं, उनकी जो अपनी आयु होती है वो उनके नजरिये को , बोलने को प्रभावित करती है और वो बात एक भले ही हम सेक्सुअल फैंटेसी ही लिख रहे हों उसका ध्यान रखने की कम से कम कोशिश करनी चाहिए।

लेकिन इसके साथ ही कहानी को कुछ सार्वभौम सत्य, समस्याओं से भी दो चार होना पड़ता है और होना चाहिए।

जैसा की नाम से ही स्पष्ट है कहानी फागुन में शुरू होती है और फागुन हो, बनारस हो फगुनाहट भी होगी, होली बिफोर होली भी होगी।

लेकिन होली के साथ एक रक्तरंजित होली की आशंका भी क्षितिज पर है और यह कहानी उन दोनों के बीच चलती है इसलिए इसमें इरोटिका भी है और थ्रिलर भी जीवन की जीवंतता भी और जीवन के साथ जुडी मृत्यु की आशंका भी। इरोटिका का मतलब मेरे लिए सिर्फ देह का संबंध ही नहीं है , वह तो परिणति है। नैनों की भाषा, छेड़छाड़, मनुहार, सजनी का साजन पर अधिकार, सब कुछ उसी ' इरोटिका ' या श्रृंगार रस का अंग है। इसलिए मैं यह कहानी इरोटिका श्रेणी में मैं रख रही हूँ .

और इस कहानी में लोकगीत भी हैं, फ़िल्मी गाने भी हैं, कवितायें भी है

पर जीवन के उस राग रंग रस को बचाये रखने के लिए लड़ाई भी लड़नी होती है जो अक्सर हमें पता नहीं होती और उस लड़ाई का थ्रिलर के रूप में अंश भी है इस कहानी में।

किसी एक टैग में जिंदगी को समेटना मुश्किल है और कहानी को भी। कहानी के कुछ रंग कर्टेन रेजर या पूर्वाभास के तौर पर मैं प्रस्तुत करुँगी, सतरंगी रंग कुछ इरोटिका के कुछ थ्रिलर के. कुछ उन शहरों के जहाँ यह कहानी चक्कर काटती है.

आप का दुलार, प्यार, साथ , आशीष मिलेगा तो अगले सप्ताह से यहाँ पोस्ट करना शुरू करुँगी


अगर समय मिला, मुझे, मेरे पाठक मित्रों को तो कोशिश करुँगी महीने में तीन चार भाग जरूर पोस्ट कर दूँ ,



तो पूर्वाभास की शुरआत के पहले इस कहानी के ही एक अंश से



और साथ में टीवी चैनेल वाले ये भी बताना नहीं भूलंगे की यहाँ के लोग पढ़ने, काम ढूँढ़ने बाहर जाते हैं, कोई खास रोजगार का जरिया यहां नहीं है।



लेकिन ये दर्द सिर्फ एक शहर का नहीं, शायद पूरे पूर्वांचल का है, और जमाने से है। मारीशस, फिजी, गुयाना, पूर्वांचल के लोग गए, और शूगर केन प्लांटेशन से लेकर अनेक चीजें, उनकी मेहनत का नतीजा है। वहां फैली क्रियोल, भोजपुरी, चटनी संगीत यह सब उन्हीं दिनों के चिन्ह है।



और उसके बाद अपने देश में भी, चाहे वह बंगाल की चटकल मिलें हो।



बम्बई (अब मुम्बई) और अहमदाबाद की टेक्सटाइल मिल्स पंजाब के खेत, काम के लिए। और सिर्फ काम की तलाश में ही नहीं, इलाज के लिए बनारस, लखनऊ, दिल्ली जाते हैं। पढ़ने के लिए इलाहबाद, दिल्ली जाते हैं।



लेकिन कौन अपनी मर्जी से घर छोड़कर काले कोस जाना चाहता है? उसी के चलते लोकगीतों में रेलिया बैरन हो गई, और अभी भी हवाओं में ये आवाज गूँजती रहती है-



भूख के मारे बिरहा बिसरिगै, बिसरिगै कजरी, कबीर।

अब देख-देख गोरी के जुबना, उठै न करेजवा में पीर।
 
1. बनारस की शाम ( पूर्वाभास कुछ झलकियां )


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हम स्टेशन से बाहर निकल आये थे। मेरी चोर निगाहें छुप छुप के उसके उभार पे,... और मुझे देखकर हल्की सी मुस्कराहट के साथ गुड्डी ने दुपट्टा और ऊपर एकदम गले से चिपका लिया और मेरी ओर सरक आई ओर बोली, खुश।


“एकदम…” और मैंने उसकी कमर में हाथ डालकर अपनी ओर खींच लिया।

“हटो ना। देखो ना लोग देख रहे हैं…” गुड्डी झिझक के बोली।

“अरे लोग जलते हैं। तो जलने दो ना। जलते हैं और ललचाते भी हैं…” मैंने अपनी पकड़ और कसकर कर ली।

“किससे जलते हैं…” बिना हटे मुस्करा के गुड्डी बोली।

“मुझ से जलते हैं की कितनी सेक्सी, खूबसूरत, हसीन…”

मेरी बात काटकर तिरछी निगाहों से देख के वो बोली- “इत्ता मस्का लगाने की कोई जरूरत नहीं…”

“और ललचाते तुम्हारे…” मैंने उसके दुपट्टे से बाहर निकले किशोर उभारों की ओर इशारा किया।

“धत्त। दुष्ट…” और उसने अपने दुपट्टे को नीचे करने की कोशिश की पर मैंने मना कर दिया।

“तुम भी ना,… चलो तुम भी क्या याद करोगे। लोग तुम्हें सीधा समझते हैं…” मुश्कुराकर गुड्डी बोली ओर दुपट्टा उसने और गले से सटा लिया।

“मुझसे पूछें तो मैं बताऊँ की कैसे जलेबी ऐसे सीधे हैं…” और मुझे देखकर इतरा के मुस्करा दी।



“तुम्हारे मम्मी पापा तो…”

मेरी बात काटकर वो बोली- “हाँ सच में स्टेशन पे तो तुमने। मम्मी पापा दोनों ही ना। सच में कोई तुम्हारी तारीफ करता है तो मुझे बहुत अच्छा लगता है…” और उसने मेरा हाथ कसकर दबा दिय

“सच्ची?”

“सच्ची। लेकिन रिक्शा करो या ऐसे ही घर तक ले चलोगे?” वो हँसकर बोली।



चारों ओर होली का माहौल था। रंग गुलाल की दुकानें सजी थी। खरीदने वाले पटे पड़ रहे थे। जगह-जगह होली के गाने बज रहे थे। कहीं कहीं जोगीड़ा वाले गाने। कहीं रंग लगे कपड़े पहने। तब तक हमारा रिक्शा एक मेडिकल स्टोर के सामने से गुजरा ओर वो चीखी- “रोको रोको…”

“क्यों कया हुआ, कुछ दवा लेनी है क्या?” मैंने सोच में पड़ के पूछा।

“हर चीज आपको बतानी जरूरी है क्या?”उस सारंग नयनी ने हड़का के कहा।

वो आगे आगे मैं पीछे-पीछे।

“एक पैकेट माला-डी और एक पैकेट आई-पिल…” मेरे पर्स से निकालकर उसने 100 की नोट पकड़ा दी।


रिक्शे पे बैठकर हिम्मत करके मैंने पूछा- “ये…”

“तुम्हारी बहन के लिए है जिसका आज गुणगान हो रहा था। क्या पता होली में तुम्हारा मन उसपे मचल उठे। तुम ना बुद्धू ही हो, बुद्धू ही रहोगे…” फिर मेरे गाल पे कसकर चिकोटी काटकर उस ने हड़का के कहा।

फिर मेरे गाल पे कसकर चिकोटी काटकर वो बोली-

“तुमसे बताया तो था ना की आज मेरा लास्ट डे है। तो क्या पता। कल किसी की लाटरी निकल जाए…”



मेरे ऊपर तो जैसे किसी ने एक बाल्टी गुलाबी रंग डाल दिया हो, हजारों पिचकारियां चल पड़ी हों साथ-साथ। मैं कुछ बोलता उसके पहले वो रिक्शे वाले से बोल रही थी- “अरे भैया बाएं बाएं। हाँ वहीं गली के सामने बस यहीं रोक दो। चलो उतरो…”

गली के अन्दर पान की दुकान। तब मुझे याद आया जो चंदा भाभी ने बोला था। दुकान तो छोटी सी थी। लेकिन कई लोग। रंगीन मिजाज से बनारस के रसिये। लेकिन वो आई बढ़कर सामने। दो जोड़ी स्पेशल पान।

पान वाले ने मुझे देखा ओर मुश्कुराकर पूछा- “सिंगल पावर या फुल पावर?”

मेरे कुछ समझ में नहीं आया, मैंने हड़बड़ा के बोल दिया- “फुल पावर…”

वो मुश्कुरा रही थी ओर मुझ से बोली- “अरे मीठे पान के लिए भी तो बोल दो। एक…”

“लेकिन मैं तो खाता नहीं…” मैंने फिर फुसफुसा के बोला।

पान वाला सिर हिला हिला के पान लगाने में मस्त था। उसने मेरी ओर देखा तो गुड्डी ने मेरा कहा अनसुना करके बोल दिया- “मीठा पान दो…”

“दो। मतलब?” मैंने फिर गुड्डी से बोला।
वो मुश्कुराकर बोली- “घर पहुँचकर बताऊँगी की तुम खाते हो की नहीं?”

मेरे पर्स से निकालकर उसने 500 की नोट पकड़ा दी। जब चेंज मैंने ली तो मेरे हाथ से उसने ले लिया और पर्स में रख लिया। रिक्शे पे बैठकर मैंने उसे याद दिलाया की भाभी ने वो गुलाब जामुन के लिए भी बोला था।


“याद है मुझे गोदौलिया जाना पड़ेगा, भइया थोड़ा आगे मोड़ना…” रिक्शे वाले से वो बोली।

“हे सुन यार ये चन्दा भाभी ना। मुझे लगता है की लाइन मारती हैं मुझपे…” मैं बोला।



हँसकर वो बोली-

“जैसे तुम कामदेव के अवतार हो। गनीमत मानो की मैंने थोड़ी सी लिफ्ट दे दी। वरना…”

मेरे कंधे हाथ रखकर मेरे कान में बोली- “लाइन मारती हैं तो दे दो ना। अरे यार ससुराल में आये हो तो ससुराल वालियों पे तेरा पूरा हक बनता है। वैसे तुम अपने मायके वाली से भी चक्कर चलाना चाहो तो मुझे कोई ऐतराज नहीं है…”

“लेकिन तुम। मेरा तुम्हारे सिवाय किसी और से…”

“मालूम है मुझे। बुद्धूराम तुम्हारे दिल में क्या है? यार हाथी घूमे गाँव-गाँव जिसका हाथी उसका नाम। तो रहोगे तो तुम मेरे ही। किसी से कुछ। थोड़ा बहुत। बस दिल मत दे देना…”

“वो तो मेरे पास है ही नहीं कब से तुमको दे दिया…”

“ठीक किया। तुमसे कोई चीज संभलती तो है नहीं। तो मेरी चीज है मैं संभाल के रखूंगी। तुम्हारी सब चीजें अच्छी हैं सिवाय दो बातों के…” गुड्डी, टिपिकल गुड्डी

तब तक मिठाई की दुकान आ गई थी ओर हम रिक्शे से उतर गए।

“गुलाब जामुन एक किलो…” मैंने बोला।

“स्पेशल वाले…” मेरे कान में वो फुसफुसाई।

“स्पेशल वाले…” मैंने फिर से दुकानदार से कहा।

“तो ऐसा बोलिए ना। लेकिन रेट डबल है…” वो बोला।

“हाँ ठीक है…” फिर मैंने मुड़कर गुड्डी से पूछा- “हे एक किलो चन्दा भाभी के लिए भी ले लें क्या?”

“नेकी और पूछ पूछ…” वो मुश्कुराई।

“एक किलो और। अलग अलग पैकेट में…” मैं बोला।

पैकेट मैंने पकड़े और पैसे उसने दिए। लेकिन मैं अपनी उत्सुकता रोक नहीं पा रहा था-

“हे तुमने बताया नहीं की स्पेशल क्या? क्या खास बात है बताओ ना…”



“सब चीजें बताना जरूरी है तुमको। इसलिए तो कहती हूँ तुम्हारे अंदर दो बातें बस गड़बड़ हैं। बुद्धू हो और अनाड़ी हो। अरे पागल। होली में स्पेशल का क्या मतलब होगा, वो भी बनारस में…”
बनारसी बाला ने मुस्कराते हुए भेद खोला।


सामने जोगीरा चल रहा था। एक लड़का लड़कियों के कपड़े पहने और उसके साथ।

रास्ता रुक गया था। वो भी रुक के देखने लगी। और मैं भी।



जोगीरा सा रा सा रा। और साथ में सब लोग बोल रहे थे जोगीरा सारा रा।

तनी धीरे-धीरे डाला होली में। तनी धीरे-धीरे डाला होली में।
 
पूर्वाभास कुछ झलकियां

(२) सुबहे बनारस - गुड्डी और गूंजा
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मेरी आँखें जब थोड़ी और नीचे उतरी तो एकदम ठहर गई। उसके उभार। उसके स्कूल की युनिफोर्म, सफेद शर्ट को जैसे फाड़ रहे हों और स्कूल टाई ठीक उनके बीच में, किसी का ध्यान ना जाना हो तो भी चला जाए। परफेक्ट किशोर उरोज। पता नहीं वो इत्ते बड़े-बड़े थे या जानबूझ के उसने शर्ट को इत्ती कसकर स्कर्ट में टाईट करके बेल्ट बाँधी थी।

पता नहीं मैं कित्ती देर तक और बेशर्मों की तरह देखता रहता, अगर गुड्डी ने ना टोका होता- “हे क्या देख रहे हो। गुंजा नमस्ते कर रही है…”

मैंने ध्यान हटाकर झट से उसके नमस्ते का जवाब दिया और टेबल पे बैठ गया। वो दोनों सामने बैठी थी। मुझे देखकर मुश्कुरा रही थी और फिर आपस में फुसफुसा के कुछ बातें करके टीनेजर्स की तरह खिलखिला रही थी। मेरे बगल की चेयर खाली थी।


मैंने पूछा- “हे चंदा भाभी कहाँ हैं?”

“अपने देवर के लिए गरमा-गरम ब्रेड रोल बना रही हैं। किचेन में…” आँख नचाकर गुंजा बोली।

“हम लोगों के उठने से पहले से ही वो किचेन में लगी हैं…” गुड्डी ने बात में बात जोड़ी।

मैंने चैन की सांस ली।

तब तक गुड्डी बोली- “हे नाश्ता शुरू करिए ना। पेट में चूहे दौड़ रहे हैं हम लोगों के और वैसे भी इसे स्कूल जाना है। आज लास्ट डे है होली की छुट्टी के पहले। लेट हो गई तो मुर्गा बनना पड़ेगा…”

“मुर्गा की मुर्गी?” हँसते हुए मैंने गुंजा को देखकर बोला। मेरा मन उससे बात करने को कर रहा था लेकिन गुड्डी से बात करने के बहाने मैंने पूछा- “लेकिन होली की छुट्टी के पहले वाले दिन तो स्कूल में खाली धमा चौकड़ी, रंग, ऐसी वैसी टाइटिलें…”


मेरी बात काटकर गुड्डी बोली- “अरे तो इसीलिए तो जा रही है ये। आज टाइटिलें…”

उसकी बात काटकर गुंजा बीच में बोली- “अच्छा दीदी, बताऊँ आपको क्या टाइटिल मिली थी…”


गुड्डी- “मारूंगी। आप नाश्ता करिए न कहाँ इसकी बात में फँस गए। अगर इसके चक्कर में पड़ गए तो…”

लेकिन मुझे तो जानना था। उसकी बात काटकर मैंने गुंजा से पूछा- “हे तुम इससे मत डरो मैं हूँ ना। बताओ गुड्डी को क्या टाइटिल मिली थी?”

हँसते हुए गुंजा बोली- “बिग बी…”

पहले तो मुझे कुछ समझ नहीं आया ‘बिग बी’ मतलब लेकिन जब मैंने गुड्डी की ओर देखा तो लाज से उसके गाल टेसू हो रहे थे, और मेरी निगाह जैसे ही उसके उभारों पे पड़ी तो एक मिनट में बात समझ में आ गई। बिग बी। बिग बूब्स । वास्तव में उसके अपने उम्र वालियों से 20 ही थे।

गुड्डी ने बात बदलते हुए मुझसे कहा- “हे खाना शुरू करो ना। ये ब्रेड रोल ना गुंजा ने स्पेशली आपके लिए बनाए हैं…”

“जिसने बनाया है वो दे…” हँसकर गुंजा को घूरते हुए मैंने कहा।

मेरा द्विअर्थी डायलाग गुड्डी तुरंत समझ गई। और उसी तरह बोली- “देगी जरूर देगी। लेने की हिम्मत होनी चाहिए, क्यों गुंजा?”

“एकदम…” वो भी मुश्कुरा रही थी। मैं समझ गया था की सिर्फ शरीर से ही नहीं वो मन से भी बड़ी हो रही है।

गुड्डी ने फिर उसे चढ़ाया- “हे ये अपने हाथ से नहीं खाते, इनके मुँह में डालना पड़ता है अब अगर तुमने इत्ते प्यार से इनके लिए बनाया है तो। …”

“एकदम…” और उसने एक किंग साइज गरम ब्रेड रोल निकाल को मेरी ओर बढ़ाया। हाथ उठने से उसके किशोर उरोज और खुलकर। मैंने खूब बड़ा सा मुँह खोल दिया लेकिन मेरी नदीदी निगाहें उसके उरोजों से चिपकी थी।

“इत्ता बड़ा सा खोला है। तो डाल दे पूरा। एक बार में। इनको आदत है…” गुड्डी भी अब पूरे जोश में आ गई थी।

“एकदम…” और सच में उसकी उंगलियां आलमोस्ट मेरे मुँह में और सारा का सारा ब्रेड रोल एक बार में ही।

स्वाद बहुत ही अच्छा था। लेकिन अगले ही पल में शायद मिर्च का कोई टुकड़ा। और फिर एक, दो, और मेरे मुँह में आग लग गई थी। पूरा मुँह भरा हुआ था इसलिए बोल नहीं निकल रहे थे।

वो दुष्ट। गुंजा। अपने दोनों हाथों से अपना भोला चेहरा पकड़े मेरे चेहरे की ओर टुकुर-टुकुर देख रही थी।

“क्यों कैसा लगा, अच्छा था ना?” इतने भोलेपन से उसने पूछा की।

तब तक गुड्डी भी मेरी ओर ध्यान से देखते हुए वो बोली- “अरे अच्छा तो होगा ही तूने अपने हाथ से बनाया था। इत्ती मिर्ची डाली थी…”

मेरे चेहरे से पसीना टपक रहा था।

गुंजा बोली- “आपने ही तो बोला था की इन्हें मिर्चें पसंद है तो। मुझे लगा की आपको तो इनकी पसंद नापसंद सब मालूम ही होगी। और मैंने तो सिर्फ चार मिर्चे डाली थी बाकी तो आपने बाद में…”

इसका मतलब दोनों की मिली भगत थी। मेरी आँखों से पानी निकल रहा था। बड़ी मुश्किल से मेरे मुँह से निकला- “पानी। पानी…”

“ये क्या मांग रहे हैं…” मुश्किल से मुश्कुराहट दबाते हुए गुंजा बोली।

गुड्डी- “मुझे क्या मालूम तुमसे मांग रहे हैं। तुम दो…” दुष्ट गुड्डी भी अब डबल मीनिंग डायलाग की एक्सपर्ट हो गई थी।

पर गुंजा भी कम नहीं थी- “हे मैं दे दूंगी ना तो फिर आप मत बोलना की। …” उसने गुड्डी से बोला।


यहाँ मेरी लगी हुई थी और वो दोनों।

“दे दे। दे दे। आखिर मेरी छोटी बहन है और फागुन है तो तेरा तो…” बड़ी दरियादिली से गुड्डी बोली।

बड़ी मुश्किल से मैंने मुँह खोला, मेरे मुँह से बात नहीं निकल रही थी। मैंने मुँह की ओर इशारा किया।

“अरे तो ब्रेड रोल और चाहिए तो लीजिये ना…” और गुंजा ने एक और ब्रेड रोल मेरी ओर बढ़ाया- “और कुछ चाहिए तो साफ-साफ मांग लेना चाहिए। जैसे गुड्डी दीदी वैसे मैं…”

वो नालायक। मैंने बड़ी जोर से ना ना में सिर हिलाया और दूर रखे ग्लास की ओर इशारा किया। उसने ग्लास उठाकर मुझे दे दिया लेकिन वो खाली था। एक जग रखा था। वो उसने बड़ी अदा से उठाया।

“अरे प्यासे की प्यास बुझा दे बड़ा पुण्य मिलता है…” ये गुड्डी थी।

“बुझा दूंगी। बुझा दूंगी। अरे कोई प्यासा किसी कुंए के पास आया है तो…” गुंजा बोली और नाटक करके पूरा जग उसने ग्लास में उड़ेल दिया। सिर्फ दो बूँद पानी था।

“अरे आप ये गुझिया खा लीजिये ना गुड्डी दीदी ने बनायी है आपके लिए। बहुत मीठी है कुछ आग कम होगी तब तक मैं जाकर पानी लाती हूँ। आप खिला दो ना अपने हाथ से…”

वो गुड्डी से बोली और जग लेकर खड़ी हो गई।

गुड्डी ने प्लेट में से एक खूब फूली हुई गुझिया मेरे होंठों में डाल ली और मैंने गपक ली। झट से मैंने पूरा खा लिया। मैं सोच रहा था की कुछ तो तीतापन कम होगा। लेकिन जैसे ही मेरे दांत गड़े एकदम से, गुझिया के अन्दर बजाय खोवा सूजी के अबीर गुलाल और रंग भरा था। मेरा सारा मुँह लाल। और वो दोनों हँसते-हँसते लोटपोट।

तब तक चंदा भाभी आईं एक प्लेट में गरमागरम ब्रेड रोल लेकर। लेकिन मेरी हालत देखकर वो भी अपनी हँसी नहीं रोक पायीं, कहा- “क्या हुआ ये दोनों शैतान। एक ही काफी है अगर दोनों मिल गई ना। क्या हुआ?”

मैं बड़ी मुश्किल से बोल पाया- “पानी…”

उन्होंने एक जासूस की तरह पूरे टेबल पे निगाह दौडाई जैसे किसी क्राइम सीन का मुआयना कर रही हों। वो दोनों चोर की तरह सिर झुकाए बैठी थी। फिर अचानक उनकी निगाह केतली पे पड़ी और वो मुश्कुराने लगी। उन्होंने केतली उठाकर ग्लास में पोर किया। और पानी।

रेगिस्तान में प्यासे आदमी को कहीं झरना नजर आ जाए वो हालत मेरी हुई। मैंने झट से उठाकर पूरा ग्लास खाली कर दिया। तब जाकर कहीं जान में जान आई। जब मैंने ग्लास टेबल पे रखा तब चन्दा भाभी ने मेरा चेहरा ध्यान से देखा। वो बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोकने की कोशिश कर रही थी लेकिन हँसी रुकी नहीं। और उनके हँसते ही वो दोनों जो बड़ी मुश्किल से संजीदा थी। वो भी। फिर तो एक बार हँसी खतम हो और मेरे चेहरे की और देखें तो फिर दुबारा। और उसके बाद फिर।

“आप ने सुबह। हीहीहीही। आपने अपना चेहरा। ही ही शीशे में। हीहीहीही…” चन्दा भाभी बोली।

“नहीं वो ब्रश नहीं था तो गुड्डी ने। उंगली से मंजन। फिर…” मैंने किसी तरह समझाने की कोशिश की मेरे समझ में कुछ नहीं आ रहा था।



“जाइए जाइए। मैंने मना तो नहीं किया था शीशा देखने को। मगर आप ही को नाश्ता करने की जल्दी लगी थी। मैंने कहा भी की नाश्ता कहीं भागा तो नहीं जा रहा है। लेकिन ये ना। हर चीज में जल्दबाजी…” ऐसे बनकर गुड्डी बोली।

गुंजा- “अच्छा मैं ले आती हूँ शीशा…”

और मिनट भर में गुंजा दौड़ के एक बड़ा सा शीशा ले आई। लग रहा था कहीं वाशबेसिन से उखाड़ के ला रही हो और मेरे चेहरे के सामने कर दिया।

मेरा चेहरा फक्क हो गया। न हँसते बन रहा था ना।

तीनों मुश्कुरा रही थी।

मांग तो मेरी सीधी मुँह धुलाने के बाद गुड्डी ने काढ़ी थी। सीधी और मैंने उसकी शरारत समझा था। लेकिन अब मैंने देखा। चौड़ी सीधी मांग और उसमें दमकता सिन्दूर। माथे पे खूब चौड़ी सी लाल बिंदी, जैसे सुहागन औरतें लगाती है। होंठों पे गाढ़ी सी लाल लिपस्टिक और। जब मैंने कुछ बोलने के लिए मुँह खोला तो दांत भी सारे लाल-लाल।

अब मुझे बन्दर छाप दन्त मंजन का रहस्य मालूम हुआ और कैसे दोनों मुझे देखकर मुश्कुरा रही थी। ये भी समझ में आया। चलो होली है चलता है।

चन्दा भाभी ने मुझे समझाया और गुंजा को बोला- “हे जाकर तौलिया ले आ…”

उन्होंने गुड्डी से कहा- “हे हलवा किचेन से लायी की नहीं?”

मैं तुरंत उनकी बात काटकर बोला- “ना भाभी अब मुझे इसके हाथ का भरोसा नहीं है आप ही लाइए…”

हँसते हुए वो किचेन में वापस में चली गईं। गुंजा तौलिया ले आई और खुद ही मेरा मुँह साफ करने लगी। वो जानबूझ कर इत्ता सटकर खड़ी थी की उसके उरोज मेरे सीने से रगड़ रहे थे। मैंने भी सोच लिया की चलो यार चलता है इत्ती हाट लड़कियां।

मैंने गुड्डी को चिढ़ाते हुए कहा- “चलो बाकी सब तो कुछ नहीं लेकिन ये बताओ। सिंदूर किसने डाला था?”

गुंजा ने मेरा मुँह रगड़ते हुए पूछा- “क्यों?”

“इसलिए की सिन्दूर दान के बाद सुहागरात भी तो मनानी पड़ेगी ना। अरे सिन्दूर चाहे कोई डाले सुहागरात वाला काम किये बिना तो पूरा नहीं होगा ना काम…” मैंने हँसते हुए कहा।
 
( 3) बड़े अरमानों से रखा है बलम तेरी कसम,

प्यार की दुनियां में ये पहला कदम

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लोग कहते हैं इश्क चाँद की तरह होता है। या तो बढ़ता है या घटता है। और यहाँ तो शुक्ल पक्ष अभी लगा ही था।

गुड्डी ने बताया की, वो परवान चढ़ा जब वो लोग लखनऊ गए एक इंटर कालेज कल्चरल फेस्ट में।


एक तो अपने शहर से दूर, दूसरे लखनऊ वैसे भी मुहब्बत और शायरी के लिए मशहूर। फेस्ट ल मार्टीनयर स्कूल में था। और रीत का स्कूल कभी तीसरे चौथे नंबर से ऊपर नहीं आ पाता था। पहले और दूसरे नंबर पे लखनऊ और नैनीताल के कान्वेंट स्कूल ही अक्सर रहते थे।

पहले तो हेड गर्ल ने बहुत नाक भौं सिकोड़ी की कोई नाइन्थ की लड़की जाय। लेकिन करन की जिद और आधी इवेंट्स में तो वही पार्टिसिपेट करने वाला था। लास्ट इवेंट के पहले तक उनका कालेज चौथे नंबर पर था। लेकिन सबसे ज्यादा बड़ी इवेंट अभी बाकी थी,

म्यूजिकल क्विज की।

रीत ने चार इवेंट में भाग लिया वो एक में फर्स्ट आई थी, वेस्टर्न डांस में, इन्डियन क्लासिकल और फिल्म में सेकंड और वेस्टर्न म्यूजिक में थर्ड। करन तीन इवेंट में फर्स्ट आया था और दो में सेकंड।

म्यूजिकल क्विज की इवेंट पचास नम्बर की थी और इसके तीन राउंड थे। फर्स्ट राउंड के तीस नम्बर थे। और इसमें फर्स्ट फोर टीम, सेकंड और थर्ड राउंड में भाग ले सकती थी। लेकिन वो राउंड आप्शनल थे और उसमें दस नम्बर मिलते जीतने वाली टीम को और लास्ट आने वाली दो टीम के पांच नम्बर कट जाते। थर्ड राउंड में सर्प्राइज पैकेट भी होता था।

म्यूजिकल क्विज शुरू हुई और उसमें रीत करन और वो हेड गर्ल तीनों ने भाग लिया। इस राउंड में तीन की टीम थी। और इसमें रीत का स्कूल फर्स्ट आ गया। अब ओवर आल रैंकिंग में वो लोग तीसरे पे आ गए थे। झगड़ा था नेक्स्ट राउंड में भाग लें की नहीं। दोनों राउंड इन्डियन फिल्म म्यूजिक पर थे।

हेड गर्ल बोली- “हमें नहीं पार्टिसिपेट करना चाहिए। अभी हमारी थर्ड पोजीशन तो सिक्योर है। अगर कहीं निएगेटिव नंबर मिल गए तो हम फोर्थ पे पहुँच जायेंगे।

लेकिन करन बोला यार नो रिस्क नो गेन। और रीत को लेकर पहुँच गया एंट्री देने।

चार टीमें थी। लखनऊ के दो कालेज लोरेटो और ल मार्टिनियर, नैनीताल से शेरवूड स्कूल। ये राउंड रिटेन था। और तीन पार्ट में। स्क्रीन पे एक सब्जेक्ट आता और कुछ कंडीशन और सारी टीमों को कागज पे लिख के देना होता। सबकी निगाहें स्क्रीन पे गड़ी थी। और एक ट्रेन की फोटो आई।

सब लोग इंतेजार कर रहे थे ट्रेन के बारे में पिक्चर का नाम। लेकिन जब डिटेल्स आये तो फूँक सरक गई। ट्रेन बे बेस्ड हिंदी गाने। ब्लैक एंड व्हाईट फिल्मो के, फिल्म और म्यूजिक डायरेक्टर के नाम के और पांच मिनट में जो टीम सबसे ज्यादा गानों के नाम लिखती वो फर्स्ट।

आडियेंस में बैठी लड़के लड़कियों ने जोर से बोऒ किया, ब्लैक एंड व्हाईट फिल्मो के गाने। करन ने भी परेशान होकर रीत की ओर देखा। लेकिन रीत कागज कलम लेकर तैयार। और जैसे ही अनाउंस हुआ।

योर टाइम स्टार्टस नाउ।

उसने लिखना शुरू किया। एक-दो गाने करन ने भी बताये।

और पांच मिनट के बाद

पांच मिनट खतम होते ही लिस्ट ले ली गई।

पहली टीम ने सिर्फ पांच गाने लिखे थे। उसमें से एक क्विज मास्टर ने कैंसल कर दिया। छैयां छैयां। कलर्ड होने के कारण यानी सिर्फ चार

दूसरी टीम उसी स्कूल की थी ल मार्टिनियर और क्लैप भी उसे सबसे ज्यादा मिल रहे थे। उसकी लिस्ट में छ गाने थे सारे सही।

खूब जोर से क्लैप हुआ। ब्लैक एंड व्हाईट। और वो भी एक सब्जेक्ट पे।

अगला नम्बर लोरेटो का था। उसके आठ गाने थे। और अबकी वहां की लड़कियों ने आसमान सिर पर उठा लिया। उनकी जो कान्टेसटेंटस थी वो दो बार बोर्न वीटा क्विज के फाइनल में पहुँच चुकी थी। और एक बार सेकंड भी आई थी।

अब तय हो गया की इन लड़कियों ने जीत लिया मैदान। वो हाथ हिलाकर लोगों को विश कर रही थी। अब क्विज मास्टर इन लोगों की लिस्ट चेक कर रहा था। और कुछ अनाउन्स नहीं कर रहा था। उधर आडियेंस शोर कर रही थी रिजल्ट रिजल्ट।

उन लोगों के बारह गाने थे।



चौथी आई टीम शेरवूड नैनीताल आउट हो गई थी। उसे निगेटिव प्वाइंट मिल गए।

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इसके बाद म्यूजिकल क्विज का फाइनल राउंड था। उसमें सिर्फ दो टीमें भाग ले सकती थी। उनकी टीम और लोरेटो।

ये सबसे टफ राउंड भी था, और स्क्रीन पर कंडीशंस आई।



01॰ पचास के दशक का गाना

02॰ ब्लैक एंड व्हाईट

03॰ डुएट

04॰ तीन अलग-अलग संगीत कारों के जिनकी चिट निकाली जायेगी।

रीत करन की चिट में रोशन, ओ पी नय्यर और शंकर जयकिशन निकले। एक बार करन को थोड़ी घबड़ाहट हुई लेकिन अबकी रीत ने उसका हाथ दबा दिया। सबसे पहले उन्होंने-
मांग के हाथ तुम्हारा, मांग लिया संसार,...

ओ पी नय्यर का गाया और पूरा हाल तालियों से गूँज उठा।

याद किया दिल ने कहाँ हो तुम,....

उसके बाद शंकर जयकिशन का,

सबसे अंत में रोशन का संगीत दिया मल्हार का रीत का फेवरिट और वैसे भी करन, मुकेश के गाने बहुत अच्छा गाता था। रीत ने लता- मुकेश का दुयेट शुरू किया-
बड़े अरमानों से रखा है बलम तेरी कसम, हो बलम तेरी कसम

प्यार की दुनियां में ये पहला कदम हो, पहला कदम।

और फिर करन।
जुदा न कर सकेंगे हमको जमाने के सितम

हो जमाने के सितम, प्यार की दुनियां में ये पहला कदम हो, पहला कदम।

पूरा हाल तालियां बजा रहा था। लेकिन रीत और करन सुधबुध खोये, मुश्कुराते एक दूसरे को देखते गा रहे थे, जैसे बस वहीं दोनों हाल में हो। जब गाना आखीर में पहुँचा-
मेरी नैया को किनारे का इन्तजार नहीं

तेरा आँचल हो तो पतवार की भी दरकार नहीं

तेरे होते हुए क्यों हो मुझे तूफान का गम

प्यार की दुनियां में ये पहला कदम हो, पहला कदम।

सारा हाल खड़ा हो गया। स्टैंडिंग ओवेशन। उन्हें दस में दस मिले। और इस गाने के लिए भी एक स्पेशल अवार्ड।

उनका कालेज पहली बार इस फेस्ट में फर्स्ट आया था।

गुड्डी बोली की जब वो दोनों लौट कर आये तो बस कालेज में छा गए।

घर लौटते हुए गुड्डी ने रीत से पूछा- “कुछ हुआ?”


और जवाब में जोर का घूंसा गुड्डी की पीठ पे पड़ा।
 
3 (b) अब सिर्फ मैं हूँ, यह तन है, और याद है।

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गुड्डी जोर से चिल्लाई, फिर पूछा।
“कुछ बोला उसने?”
रीत मुश्कुराती रही।

“बोल ना आई लव यू बोला की नहीं…” गुड्डी पीछे पड़ी रही।

“ना…” रीत ने मुश्कुराकर जवाब दिया

“कुछ तो बोला होगा…” गुड्डी पीछे पड़ी थी।

“हाँ। रीत ने मुश्कुराकर जुर्म कबूल किया। वो बोला- “मुझे तुमसे एक चीज मांगनी है…”

अब गुड्डी उतावली हो गई- “बोल ना दिया तुमने की नहीं…”


रीत बिना सुने बोलती गई-

“मैंने बोला मेरे पास तो जो था मैंने बहुत पहले तुम्हें दे दिया है। मेरा तो अब कुछ है नहीं। फिर हम दोनों बहुत देर तक चुपचाप, बिना बोले, हाथ पकड़कर बातें करते रहे…”

“बिना बोले बातें कैसे?” गुड्डी की कुछ समझ में नहीं आया।

“तू बड़ी हो जायेगी ना तो तेरे भी समझ में आ जायेंगी ये बातें…” हँसते हुए रीत बोली।

उसका घर आ गया था। बस एक बात उसे रोकते हुए गुड्डी बोली- “किस्सी ली उसने?”

एक जोर का और पड़ा गुड्डी की पीठ पे और रीत धड़धड़ाते हुए ऊपर चल दी। लेकिन दरवाजे से गुड्डी को देखते हुए मीठी निगाहों से, हल्के से हामी में सिर हिला दिया।

गुड्डी ने बोला की रीत ने बाद में बताया था। एक बहुत छोटी सी गाल पे। लेकिन वो पागल हो गई थी, दहक उठी थी। दिन सोने के तार से खींचते गए।

करन का आई॰एम॰ए॰ ( इंडियन मिलेट्री अकेडमी) देहरादून में एडमिशन हो गया। ये खबर भी उसने सबसे पहले रीत को दी और उसे स्टेशन छोड़ने उसके घर के के लोगों के साथ रीत भी गई और भी कालेज के बहुत से लोग, मुँहल्ले के भी।

गुड्डी ने हँसकर बोला-

“जो काम पहले वो करती थी। डाक तार वालों ने सम्हाल लिया। और बाद में इंटर नेट वालों ने। मेसेज इधर-उधर पहुँचाने का। गुड्डी उसकी अकेली राजदां थी। लेकिन वो दिन कैसे गुजरते थे। वो या तो रीत जानती थी या दिन।

अहमद फराज साहब की शायरी का शौक तो करन ने लगा दिया और दुष्यंत कुमार उसने खुद पढ़ना शुरू कर दिया। कविता समझने का सबसे आसन तरीका है इश्क करना, फिर कोई कुंजी टीका की जरूरत नहीं पड़ती। जो वो गाती गुनगुनाती रहती थी। उसने करन को चिट्ठी में लिख दिया:
मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आयेंगे

इस बूढे पीपल की छाया में सुस्ताने आयेंगे

हौले-हौले पाँव हिलाओ जल सोया है छेडो मत

हम सब अपने-अपने दीपक यहीं सिराने आयेंगे

मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता

हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आयेंगे।



जब वह करन को स्टेशन छोड़ने गई थी तो करन ने उसे धर्मवीर भारती की एक किताब लेकर दे दी थी और जब कोई विरह में हो तो संसार की सारी विरहणीयों का दुःख अपना लगने लगता है। वह बार-बार इन लाइनों को पढ़ती, कभी रोती, कभी मुश्कुराती-
कल तक जो जादू था, सूरज था, वेग था, तुम्हारे आश्लेष में

आज वह जूड़े से गिरे जुए बेले-सा टूटा है, म्लान है, दुगुना सुनसान है

बीते हुए उत्सव-सा, उठे हुए मेले सा मेरा यह जिस्म-

टूटे खँडहरों के उजाड़ अन्तःपुर में,

छूटा हुआ एक साबित मणिजटित दर्पण-सा-

आधी रात दंश भरा बाहुहीन

प्यासा सर्वीला कसाव एक, जिसे जकड़ लेता है

अपनी गुंजलक में

अब सिर्फ मैं हूँ, यह तन है, और याद है

मन्त्र-पढ़े बाण-से छूट गये तुम तो कनु,

शेष रही मैं केवल, काँपती प्रत्यंचा-सी।



विरह के पल युग से बन जाते, वो एक चिट्ठी पोस्ट करके लौटती तो दूसरी लिखने बैठ जाती और उधर भी यही हालत थी करन की चिट्ठी रोज। जिस दिन नहीं आती। गुड्डी उसे खूब चिढ़ाती।

देखकर आती हूँ, कहीं डाक तार वालों की हड़ताल तो नहीं हो गई। और जब करन आता, तो काले कोस ऐसे विरह के पल, कपूर बनकर उड़ जाते। लगता ही नहीं करन कहीं गया था स्कूल और मुँहल्ले की खबरों से लेकर देश दुनियां का हाल।

बस जो रीत उसे नहीं बताती, वो अपने दिल का हाल। लेकिन शायद इसलिए की ये बात तो उसने पहले ही कबूल कर ली थी की अब उसका दिल अपना नहीं है।

आई॰एम॰ए॰ से वो लौट कर आया। तो सबसे पहले रीत के पास, वो भी यूनिफार्म में, और उसने रीत को सैल्यूट किया। गुड्डी वहीं थी। रीत ने उसे बाहों में भींच लिया।

दोनों कभी हँसते कभी रोते।


रीत हाई स्कूल पास कर एलेव्न्थ में पहुँच गई।

करन की ट्रेनिंग करीब खतम थी।
 
थ्रिलर - १

स्कूल में बम

डी॰बी॰ ने बोला- “जीरो आवर इज 20 मिनटस फ्राम नाउ…”

मुझे 15 मिनट बाद घुसना था, 17 मिनट बाद प्लान ‘दो’ शुरू हो जायेगा 20वें मिनट तक मुझे होस्टेज तक पहुँच जाना है और अगर 30 मिनट तक मैंने कोई रिस्पान्स नहीं मिला तो सीढ़ी के रास्ते से मेजर समीर के लोग और छत से खिड़की तोड़कर पुलिस के कमान्डो।


डी॰बी॰ ने पूछा- “तुम्हें कोई हेल्प सामान तो नहीं चाहिये?”

मैंने बोला- “नहीं बस थोड़ा मेक-अप, पेंट…”

गुड्डी बोली- “वो मैं कर दूंगी…”

डी॰बी॰ बोले- “कैमोफ्लाज पेंट है हमारे पास। भिजवाऊँ?”

गुड्डी बोली- “अरे मैं 5 मिनट में लड़के को लड़की बना दूं। ये क्या चीज है? आप जाइये। टाइम बहुत कम है…”

डी॰बी॰ बगल के हाल में चले गये और वहां पुलिसवाले, सिटी मजिस्ट्रेट, मेजर समीर के तेजी से बोलने की आवाजें आ रही थीं।

गुड्डी ने अपने पर्स, उर्फ जादू के पिटारे से कालिख की डिबिया जो बची खुची थी, दूबे भाभी ने उसे पकड़ा दी थी, और जो हम लोगों ने सेठजी के यहां से लिया था, निकाली और हम दोनों ने मिलकर।

4 मिनट गुजर गये थे। 11 मिनट बाकी थे।

मैंने पूछा- “तुम्हारे पास कोई चूड़ी है क्या?”

“पहनने का मन है क्या?” गुड्डी ने मुश्कुराकर पूछा और अपने बैग से हरी लाल चूड़ियां। जो उसने और रीत ने मिलकर मुझे पहनायी थी।

सब मैंने ऊपर के पाकेट में रख ली। मैंने फिर मांगा-

“चिमटी और बाल में लगाने वाला कांटा…”

“तुमको ना लड़कियों का मेक-अप लगता है बहुत पसन्द आने लगा। वैसे एकदम ए-वन माल लग रहे थे जब मैंने और रीत ने सुबह तुम्हारा मेक अप किया था। चलो घर कल से तुम्हारी भाभी के साथ मिलकर वहां इसी ड्रेस में रखेंगें…” ये कहते हुये गुड्डी ने चिमटी और कांटा निकालकर दे दिया।

7 मिनट गुजर चुके थे, सिर्फ 8 मिनट बाकी थे। निकलूं किधर से? बाहर से निकलने का सवाल ही नहीं था, इस मेक-अप में। सारा ऐड़वान्टेज खतम हो जाता। मैंने इधर-उधर देखा तो कमरे की खिड़की में छड़ थी, मुश्किल था। अटैच्ड बाथरूम। मैं आगे-आगे गुड्डी पीछे-पीछे। खिड़की में तिरछे शीशे लगे थे। मैंने एक-एक करके निकालने शुरू किये और गुड्डी ने एक-एक को सम्हाल कर रखना। जरा सी आवाज गड़बड़ कर सकती थी। 6-7 शीशे निकल गये और बाहर निकलने की जगह बन गई।

9 मिनट। सिर्फ 6 मिनट बाकी। बाहर आवाजें कुछ कम हो गई थीं, लगता है उन लोगों ने भी कुछ डिसिजन ले लिया था। गुड्डी ने खिड़की से देखकर इशारा किया। रास्ता साफ था। मैं तिरछे होकर बाथरूम की खिड़की से बाहर निकल आया।

वो दरवाजा 350 मीटर दूर था। यानी ढाई मिनट। वो तो प्लान मैंने अच्छी तरह देख लिया था, वरना दरवाजा कहीं नजर नहीं आ रहा था। सिर्फ पिक्चर के पोस्टर। तभी वो हमारी मोबाईल का ड्राईवर दिखा, उसको मैंने बोला- “तुम यहीं खड़े रहना और बस ये देखना कि दरवाजा खुला रहे…”

पास में कुछ पुलिस की एक टुकडी थी। ड्राइवर ने उन्हें हाथ से इशारा किया और वो वापस चले गये। 13 मिनट, सिर्फ दो मिनट बचे थे।



मैं एकदम दीवाल से सटकर खड़ा था, कैसे खुलेगा ये दरवाजा? कुछ पकड़ने को नहीं मिल रहा था। एक पोस्टर चिपका था। सेन्सर की तेज कैन्ची से बच निकली, कामास्त्री। हीरोईन का खुला क्लिवेज दिखाती और वहीं कुछ उभरा था। हैंडल के ऊपर ही पोस्टर चिपका दिया था। दो बार आगे, तीन बार पीछे जैसा गुड्डी ने समझाया था। सिमसिम। दरवाजा खुल गया। वो भी पूरा नहीं थोड़ा सा।



15 मिनट हो गये थे। सीढ़ी सीधी थी लेकिन अन्धेरी, जाले, जगह-जगह कचडा। थोड़ी देर में आँखें अन्धेरे की अभ्यस्त हो गई थी। मेरे पास सिर्फ 10 मिनट थे काम को अन्जाम देने के लिये।
 
आपरेशन शुरू



15 मिनट हो गये थे। सीढ़ी सीधी थी लेकिन अन्धेरी, जाले, जगह-जगह कचडा। थोड़ी देर में आँखें अन्धेरे की अभ्यस्त हो गई थी। मेरे पास सिर्फ 10 मिनट थे काम को अन्जाम देने के लिये।

सीढ़ी दो मिनट में पार कर ली। साथ में कितनी सीढ़ीयां है रास्ते में, कौन सी सीढ़ी टूटी है, ऊपर के हिस्से पे सीढ़ी बस बन्द थी। लेकिन अन्दर की ओर इतना कबाड़, टूटी कुर्सियां, एक्जाम की कापियों के बन्डल, रस्सी। उसे मैंने एक किनारे कर दिया। लौटते हुये बहुत कम टाइम मिलने वाला था।

क्लास के पीछे के बरामदे में भी अन्धेरा था।

मैं उस कमरे के बाहर पहुँचा और दरवाजे से कान लगाकर खड़ा हो गया। हल्की-हल्की पदचाप सुनायी दे रही थी, बहुत हल्की। मैंने दरवाजे को धक्का देने की कोशिश कि। वो बस हल्के से हिला। मैंने नीचे झुक के देखा। दरवाजे में ताला लगा था।

गुड्डी ने तो कहा था कि ये दरवाजा खुला रहता है। अब।

तब तक मैंने देखा मोबाइल का नेटवर्क चला गया। लाइट भी चली गई। अन्दर कमरें में घुप्प अन्धेरा छा गया।

लाउडस्पीकर पर जोर से चुम्मन की माँ की आवाज आने लगी- “खुदा के लिये इन लड़कियों को छोड़ दो। इन्होंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? अल्लाह तुम्हारा गुनाह माफ कर देंगें। पुलिस के साहब लोग भी। बाहर आ जाओ…”

प्लान दो शुरू हो चुका था। 17 मिनट हो गये थे। मेरे पास सिर्फ 8 मिनट थे।

मैंने गुड्डी की चिमटी निकाली और ताला खोलकर हल्के से दरवाजा खोल दिया, थोड़ा सा।

घुप्प अन्धेरा। थोड़ी देर में मेरी आँखें अन्धेरे की आदी हो गई। एक बेन्च पे तीन लड़कियां, सिकुड़ी सहमी, गुन्जा की फ्राक मैंने पहचान ली। गुन्जा बीच में थी। बेन्च के ठीक नीचे था बाम्ब। बिजली की हल्की सी रोशनी जल बुझ रही थी। कोई तार किसी लड़की से नहीं बन्धा था। दीवाल के पास एक आदमी खड़ा था जो कभी लड़कियों की ओर, कभी दरवाजे की ओर देखता।

बाहर लाउडस्पीकर पर आवाज और तेज हो गई थी। कभी चुम्मन की माँ की आवाज। कभी पुलिस की मेगाफोन पे वार्निग। उस आदमी का ध्यान अब पूरी तरह बाहर से आती आवाजों पे था।

जमीन पर क्राल करते समय मुझे ये भी सावधानी रखनी पड़ रही थी की जो एक छोटा सा पिन्जड़ा मेरे पास था, वो जमीन से ना टकराये। उसमें दो मोटे-मोटे चूहे थे।

सबसे पहले गुन्जा ने मुझे देखा। वो चीखती उसके पहले मैंने उसे चुप रहने का इशारा किया और उंगली से समझाया की बाकी दोनों लड़कियों को भी समझा दे की पहले की तरह बैठी रहें रियेक्ट ना करें।

मुझे पहले बाम्ब को समझना था।

मैं उससे बस दो फीट दूर था। एक चीज मैं तुरन्त समझ गया की इसमें कोई टाईमर डिवाइस नहीं है। ना तो घड़ी की टिक-टिक थी ना वो सर्किटरी। तो सिर्फ ये हो सकता है की किसी तार से इसे बेन्च से बान्धा हो और जैसे ही बेन्च पर से वजन झटके से कम हो। बाम्ब ऐक्टिवेट हो जाय।

बहुत मुश्किल था। मैं खिड़की से चिपक के खड़ा था। कोई डाइवर्ज़न क्रियेट करना होगा।

मैंने गुन्जा को इशारे से समझा दिया। मेरे जेब में पायल पड़ी थी, जो सुबह गुड्डी और रीत ने मुझे पहनायी थी और घर से निकलते समय भी नहीं उतारने दिया था। बाजार में पहुँचकर मैंने वो अपनी जेब में रख ली थी।

चूहे के पिंजरे से मैंने पनीर का एक टुकड़ा निकाला और पायल में लपेट के, पूरी ताकत से बाहर की ओर अधखुले दरवाजे की ओर फेंका। झन्न की आवाज हुई। दरवाजे से लड़कर पायल अधखुले दरवाजे के बाहर जा गिरी-

“झन-झन-झन…”

“कौन है?” वो आदमी चिल्लाया और बाहर दरवाजे की ओर लपका जिधर से पायल की आवाज आई थी।

इतना डायवर्ज़न काफी था। मैंने गुन्जा को पहले ही इशारा कर रखा था।

उसके दायीं ओर वाली लड़की को पहले उठकर मेरे पास आना था। वो झटके से उठकर मेरे पास आई। एक पल के लिये मेरे दिल कि धड़कन रुक सी गई थी। कहीं बाम्ब।

लेकिन कुछ नहीं हुआ।

और जब वो मेरे पास आई तो मेरे दिल की धड़कन दो पल के लिये रुक गई।

महक,... लम्बी, गोरी, सुरू के पेड़ जैसी छरहरी और सबसे बढ़कर उसकी फिगर। लेकिन अभी उसका टाईम नहीं था। मैंने उसके कान में फुसफुसाया-

“दिवाल से सटकर जाना पीछे वाले दरवाजे पे। इसके बाद गुन्जा के बगल की दूसरी लड़की को मैं उठाऊँगा। तुम दरवाजे पे उस लड़की का इंतेजार करना और पीछे वाली सीढ़ी से…”

महक को सीढ़ी का रास्ता मालूम था। उसने मुझे आँखों में अश्योर किया और दीवाल से सटे-सटे बाहर की ओर। मैं डर रहा था की जब वो दरवाजे से बाहर निकले तब कहीं कोई आवाज ना हो?

और मैंने एक चूहा छोड़ दिया।

वो आदमी दरवाजे के बाहर खड़ा था, पनीर का टुकड़ा उसके पैरों के पास, और पल भर में चूहा वहीं।

वो जोर से उछला- “चूहा…”

और महक दरवाजे के पार हो गई।

बाहर से लाउडस्पीकर की आवाजें बन्द हो गई थी और अब फायर ब्रिगेड वाले वाटर कैनन छोड़ रहे थे।

बन्द होने पर भी कुछ पानी बाहर के बरामदे में आ रहा था।

वो आदमी फिर बेचैन होकर बाहर की ओर गया और फिर पायल, पनीर का टुकड़ा और चूहा। और अबकी चूहे ने उसे काट लिया।

वो चीखा और अब दूसरी लड़की दिवार से सटकर बाहर की ओर।
 
होस्टेज रिज्कयूड




वो चीखा और अब दूसरी लड़की दिवार से सटकर बाहर की ओर।

चूहे हमेशा दिवार से सटकर चलते हैं और अंधेरे में देख सकते हैं। जो चूहे मैं लाया था इनके दांत बड़े तीखे होते हैं। ये बात उस आदमी को भी मालूम थी और वो दीवार के नजदीक नहीं आ सकता था। लेकिन अब मामला फँस गया।

अभी तक बेन्च पे कम से कम गुन्जा का वजन था। लेकिन उसके हटने के बाद। मैंने उसे इशारा किया, और वो एकदम बेन्च के किनारे सरक कर बैठी थी, बस जस्ट टिकी थी। दूसरे डाईवर्ज़न। काठ की हान्डी एक बार चढ़ती है, और मैं दो बार चढ़ा चुका था, और मेरे पास अब ना तो पायल बची थी ना चूहे।

वो आदमी अब और एलर्ट होकर अन्दर की ओर देख रहा था। जैसे ही वो रियलाईज करता की दो लड़कियां गायब हैं, तो मेरे लिये मुश्किलें टूट पड़ती।

क्या करूं? क्या करूं? मैं सोच रहा था। तब तक जोरदार आवाज हुई- “बूम। बूम…”

मैं समझ गया ये डमी ग्रेनेड है। धुआँ और आवाज। लेकिन उसने बरामदे में शीशा तोड़ दिया था और उसी के रास्ते वाटर कैनन का पानी।

गुंजा बस टिकी बैठी थी और अब दुबारा मौका नहीं मिलने वाला था।

मेरे इशारे के पहले ही, वो मेरी ओर कूद पड़ी। और मैं स्लिप के फील्डर की तरह पहले से तैयार। मैंने उसे कैच किया और उसी के साथ रोल करते हुये जमीन पर दरवाजे की ओर।

बाम्ब नहीं फूटा।

लेकिन एक दूसरा धमाका हो गया।



कमरे में एक दूसरा आदमी दाखिल हो गया-

“क्या हो रहा है यहां? तू नीचे जा। अब लगता है की टाईम आ गया है…”

और उसने लाइटर निकालकर जला ली। और जैसे ही लाईटर की रोशनी बेन्च की ओर पड़ी। बेन्च खाली, चिल्लाया-

“लड़कियां कहां गईं?” देख जायेंगी कहां? यहीं कहीं होगीं, ढूँढ़ जल्दी…”

मैं और गुन्जा दम साधे फर्श पे थे, और लाइटर की रोशनी हम लोगों की ओर भी आ गई। एक चाकू तेजी से। हवा में लहराता। मैं सिर्फ इतना कर सका की रोल करके मैंने गुन्जा को अपने नीचे कर लिया। पूरी तरह मेरे नीचे दबी, चारों ओर मेरी बांहें, पैर।

चाकू मेरी बांह में लगा और अबकी बार वो खरोंच नहीं थी, घाव थोड़ा गहरा था। खून तेजी से निकलने लगा।

मैंने गुंजा से बोला- “तू भाग। बाकी लड़कियां पीछे वाली सीढ़ी पे खड़ी होंगी। तू भी वहीं खड़ी होकर मेरा इंतजार करना। मैं रोकता हूँ इसको…”

हम लोग दरवाजे के पास ही थे। गुंजा सरक कर, दरवाजे के बाहर निकल गई और दौड़ती हुई सीढ़ी की ओर।

वो आदमी मेरे पास आ चुका था। लाईटर बुझ चुका था। लेकिन उस अन्धेरे में भी। उसने एक बड़ा चाकू जो निकाला, उसकी चमक साफ दिख रही थी।

वो आदमी-

“क्यों साले, किसका आशिक है तू? उस महक का। बुरचोदी, उसकी बहन तो बच गई ये नहीं बचने वाली मेरे हाथ से। या गुंजा का? अब स्वर्ग में जाकर मिलना महक से। घबड़ाना मत दो-चार महीने मजे लेकर उसे भी भेज दूंगा तेरे पास, ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा…”

और उसने चाकू ऊपर की ओर उठाया।

मैं जमीन पे गिरा था, उसके पैरों के पास।

गुड्डी से जो मैंने बाल वाला कांटा लिया था और उसने मजाक में मेरे बालों में खोंस दिया था। मेरे हाथ में था।

खच्च। खच्च। खच्च। दो बार दायें पैर में एक बार बायें पैर में।

वो आदमी लड़खड़ाकर गिर पड़ा। उठते हुये मैंने उसके दायें हाथ की मेन आर्टरी में, पूरी ताकत से कांटा चुभोया और खून छल-छल बहने लगा। निकलते-निकलते मैंने देखा कि एक मोबाइल फर्श पे गिरा है। मैंने उसे तुरन्त उठा लिया और कमरे के बाहर।

उसी समय एक आँसू गैस का शेल खिड़की तोड़ता हुआ कमरे में। 20 मिनट हो चुका था। मुझे 5 मिनट में बाहर निकलकर आल क्लियर का मेसेज देना था, वरना कमांडो अन्दर। लेकिन ज्यादा तुरन्त की समस्या ये थी। ये दोनों पीछा तो करेंगे ही कैसे उसे कम से कम 5-10 मिनट के लिये डिले किया जाय।

दरवाजा बन्द करके मैंने टूटा हुआ ताला उसमें लटका दिया- ऐडवांटेज एक मिनट।

मैंने गुड्डी से जो चूड़ियां ली थी, सीढ़ी की उल्टी डायरेक्शन में मैंने बिखरा दी और कुछ एक कमरे के सामने। अगर वो कन्फुज हुये तो- ऐडवांटेज दो मिनट।

मैं वापस दौड़ता हुआ सीढ़ी की ओर। तीनों लड़कियां सीढ़ी के पार खड़ी थी।

महक ने बोला- “चलें नीचे?”

मैंने कहा- “अभी नहीं…” और सीढ़ी का दरवाजा बन्द कर दिया।



पीछे से जोर-जोर से दरवाजा खड़खड़ाने की आवाज आ रही थी।
 
सीढी पर फायरिंग


मैं वापस दौड़ता हुआ सीढ़ी की ओर। तीनों लड़कियां सीढ़ी के पार खड़ी थी।

महक ने बोला- “चलें नीचे?”

मैंने कहा- “अभी नहीं…” और सीढ़ी का दरवाजा बन्द कर दिया।

पीछे से जोर-जोर से दरवाजा खड़खड़ाने की आवाज आ रही थी।

मैंने बोला- “ये जो कापियों का बन्डल रखा है ना उसे उठा-उठाकर यहां रखो…”

वो बोली- “मेरा नाम महक है। महक दीप…”

मैंने कहा- “मुझे मालूम है। लेकिन प्लीज जरा जल्दी…” और जल्दी-जल्दी कापियों से जो बैरीकेडिंग हो सकती थी किया।

तीसरी लड़की से मैंने रस्सी के लिये इशारा किया और उसने हाथ बढ़ाकर रस्सी पास कर दी। ऊपर की सिटकिनी से बोल्ट तक फिर एक क्रास बनाते हुये। बीच में जो भी टूटी कुर्सियां, फर्नीचर सब कुछ, कम से कम 5-6 मिनट तक इसे होल्ड करना चाहिये।

तब तक दो बार पैरों से मारने की और फिर धड़ाम की आवाज आई। जिस कमरे में इन्हें होस्टेज बनाकर रखा था, और जिसे मैंने बाहर से बन्द कर दिया था, टूटा ताला लटका कर। उसका दरवाजा टूट गया था।

मैंने तीनों से बोला- “भागो नीचे। सम्हलकर। चौथी सीढ़ी टूटी है। 11वीं के ऊपर छत नीची है…”

महक ने उतरते हुये जवाब दिया- “मालूम है मालूम है। स्कूल बंक करने का फायदा…”

दौड़ते हुये कदमों की आवाज, सीधे सीढ़ी के दरवाजे की ओर से आ रही थी। मेरा चूड़ी वाली ट्रिक फेल हो गई थी। मेरे दिमाग की बत्ती जली, जो मेरा खून गिर रहा होगा। अन्धेरे में उससे अच्छा ट्रेल क्या मिलेगा। और वही हुआ।

हमारे नीचे पहुँचने से पहले ही सीढ़ी के दरवाजे पे हमला शुरू हो गया था।

इसका मतलब कि अब दोनों साथ थे, जिसके पैर में मैंने कांटा चुभोया था उसके पैर में इतनी ताकत तो होगी नहीं।

और तब तक गोली की आवाज। गोली से वो दरवाजे का बोल्ट तोड़ने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन मुझे ये डर था की कहीं वो इन लड़कियों को ना लग जाये।

मैंने बोला- “पीठ दीवाल से सटाकर चुपचाप…”

सब लाइन में खड़े हो गये। दिवाल से चिपक के और अगले ही पल अगली गोली वहीं से गुजरी जहां हम दो पल पहले थे। वो जाकर सामने वाले दरवाजे में पैबस्त हो गई। सबसे आगे गुंजा थी, पीछे वो दूसरी लड़की और सबसे अन्त में महक और मैं, एक दूसरे का हाथ पकड़े। गोली की आवाज सुनकर महक कांप गई और उसने कसकर मेरा हाथ भींच लिया और मैंने भी उसी तरह जवाब में उसका हाथ दबा दिया।

महक मुझे देखकर मुश्कुरा दी, और मैं भी मुश्कुरा दिया। अब हम लोग सीढ़ी के नीचे वाले हिस्से में थे, जहां निचले दरवाजे से छनकर रोशनी आ रही थी। मुझे देखकर महक मीठी-मीठी मुश्कुराती रही और मैं भी। इत्ती प्यारी सुन्दर कुड़ी मुश्कुराये और कोई रिस्पान्स ना दे? गुनाह है।

तब तक महक की निगाह मेरे हाथ पे पड़ी वो चीखी- “उईईई… कितना खून?”

अब मेरी नजर भी हाथ पर पड़ी। मैं इतना तो जानता था की चोट हड्डी में नहीं है वरना हाथ काम के लायक नहीं रहता। लेकिन खून लगातार बह रहा था। मेरी बांह और बायीं साईड की शर्ट खून से लाल हो गई थी। महक ने अपना सफेद दुपट्टा निकाला और एक झटके में फाड़ दिया। और आधा दुपट्टा मेरी चोट पे बांध दिया। खून अभी भी रिस रहा था लेकिन बहना बहुत कम हो गया था।

तब तक दुबारा गोली की आवाज और मैंने महक को खींचकर अपनी ओर। अचानक मैंने रियलाइज किया की मेरे हाथ उसके रूई के फाहे ऐसे उभार पे थे। मैंने झट से हाथ हटा लिया और बोला- “सारी…”

महक ने एक बार फिर मेरा हाथ खींचकर वहीं रख लिया और बोली- “किस बात की सारी? नो थैन्क नो सारी। वी आर फ्रेन्डस…”

मैंने मोबाइल की ओर देखा। सिर्फ दो मिनट बचे थे। अगर मैंने आल क्लियर ना दिया तो इसी रास्ते से मिलेट्री कमान्डो और हम लोग क्रास फायर में। नेटवर्क अभी भी गायब था। मैंने बीपर निकालकर मेसेज दिया। ये सीधे डी॰बी॰ को मिलता। सिर्फ चार सिढ़ियां बची थी। दीवाल से पीठ सटाये-सटाये। हम नीचे उतरे।

ऊपर से जो गोलियां चली थी, उससे नीचे सीढ़ी के दरवाजे में अनेक छेद हो गये थे। काफी रोशनी अंदर आ रही थी। पहली बार हम लोगों ने चैन की सांस ली, और पहली बार हम चारों ने एक दूसरे को देखा।

महक ने अपनी नीली-नीली आँखें नचाकर कहा- “आप हो कौन जी? इत्ते हैन्डसम पुलिस में तो होते नहीं। मिलेट्री में। लेकिन ना पिस्तौल ना बन्दूक…”

गुंजा आगे बढ़कर आई- “मेरे जीजू है यार। जीजू ये है। …”

“महक…” उसने खुद हाथ बढ़ाया और मैंने हाथ मिला लिया।

“मैं जैसमिन…” तीसरी लड़की बोली और अबकी मैंने हाथ बढ़ाया।

महक ने हँसकर कहा- “हे तेरे जीजू तो मेरे भी जीजू…”

जैसमिन बोली- “और मेरे भी…”

“एकदम…” गुंजा बोली- “लेकिन आपको ये कैसे पता चला की मैं यहां फँसी हूँ?”

“अरे यार सालियों को जीजा के अलावा और कहीं फँसने की इजाजत नहीं है…” मैंने कसकर महक और गुंजा को दबाते हुये कहा।
 
बूम --- बॉम्ब





मैं बात उन सबसे कर रहा था, लेकिन मेरी निगाह बार-बार ऊपर और नीचे के दरवाजों पे दौड़ रही थी। मुझे ये डर लग रहा था की अभी तो हम सब दिवाल से सटे खड़े हैं। लेकिन जब हम नीचे वाले दरवाजे पे खड़े होंगे अगर उस समय उन सबों ने गोली चलाई, तो हमारी पीठ उनकी ओर होगी। बहुत मुश्किल हो जायेगी। मैं इसलिये टाइम पास कर रहा था की। ऊपर से वो दोनों क्या करते हैं। मुझे एक तरकीब सूझी। कुछ रिस्क तो लेना ही था।

मैं- “तुम तीनों इसी तरह दीवार से चिपक के खड़ी रहो…” और मैं झुक के नीचे वाले दरवाजे के पास गया और ऊपर की ओर देख रहा था।

महक ने आह्ह… भरी- “काश इस निगोड़ी दीवाल की जगह ऐसे हैन्डसम जीजू के साथ सटकर खड़ा होना पड़ता…”

गुंजा बोली- “अरी सालियों वो मौका भी आयेगा। ज्यादा उतावली ना हो…”

एक मिनट तक जब कुछ नहीं हुआ तो मुझे लग गया कि कम से कम अब वो ऊपर दरवाजे के पीछे नहीं हैं। मैंने मुड़कर दरवाजे को खोलने की कोशिश की। वो नहीं खुला।-मैंने तो दरवाजा बन्द नहीं किया था। नीचे झुक के एक छेद से मैंने देखने की कोशिश की। तो देखा की बाहर एक ताला लटक रहा था।

मेरी ऊपर की सांस ऊपर, नीचे की नीचे। ये क्या हुआ? दरवाजा किसने बन्द किया? ड्राईवर को तो मैं बोलकर गया था की देखते रहने को। अब।

लड़कियां जो चुहल कर रही थी। वो मैं जानता था की चुहुल कम डर भगाने का तरीका ज्यादा है। लेकिन अब मेरे दिमाग ने काम करना बन्द कर दिया था, बाहर से दरवाजा बन्द और ऊपर से ताला। जब कि तय यही हुआ था की हम लोगों को इधर से ही निकलना है।

“कौन हो सकता है वो?” मेरा दिमाग नहीं सोच पा रहा था। मुझे याद आया, अगर दिमाग काम करना बन्द कर दे तो दिल से काम लो, और दिमाग की बत्ती तुरन्त जल गई।

पहला काम- सेफ्टी फर्स्ट। स्पेशली जब साथ में तीन लड़कियां हैं।

तो खतरा किधर से आ सकता है? दरवाजे से, ऊपर से या नीचे से? इसलिये दीवाल के सहारे रहना ही ठीक होगा और डेन्जर का एक्स्पोजर कम करने के लिये। चार के बजाय दो की फाइल में, और फाइल में, एक आगे एक पीछे।

मैं महक के पास गया। और बोला- “चलो तुम कह रही थी ना की दीवाल के बजाय जीजू के तो मैं तुम्हारे आगे खड़ा हो जाता हूँ और गुंजा तुम जैसमिन के आगे…”

महक बोली- “नहीं नहीं। “मैं आपके आगे खड़ी होऊंगी…” और मेरे आगे आकर खड़ी हो गई।

मैं उसकी कमर को पकड़े था की गुन्जा बोली- “जीजू आप गलत जगह पकड़े हैं। थोड़ा और ऊपर…”

महक ने खुद मेरा हाथ पकड़कर अपने एक उभार पे रख दिया और गुंजा की ओर देखकर बोला- “अब ठीक है ना। अब तू सिर्फ जल, सुलग। इत्ते खूबसूरत सेक्सी जीजू को छिपाकर रखने की यही सजा है…”

मैं कान से उनकी बातें सुन रही था, लेकिन आँख मेरी बाहर निकलने वाले दरवाजे पे गड़ी थी। मैंने आल क्लियर सिगनल दे दिया था। इसलिये किसी हेल्प पार्टी की उम्मीद करना बेकार था। नेटवर्क जाम था और अगले आधे घंटे और जाम रहने की बात थी, इसलिये मोबाइल से भी डी॰बी॰ से बात नहीं हो सकती थी। बन्द कोई गलती से कर सकता है लेकिन ताला नहीं, तो कोई बड़ा खतरा आने के पहले। मैं खुद, खुद ही कोई रास्ता निकालना पड़ेगा।

अचानक मुझे एक ब्रेन-वेव आई- “किसी के पास ऐसा नेल कटर है। जिसमें स्क्रू ड्राइवर है?”

जैसमिन ने कहा- “मेरे पास है…”

मैंने उसे लेकर जेब में रख लिया। मैं सोच रहा था की ताले के बोल्ट के जो स्क्रू हैं उन्हें ढीले करके। जोर से धक्का देने पर ताला कैसा भी हो बोल्ट निकल आयेगा। तब तक ऊपर से सिमेंट चूना गिरने लगा। पहले हल्का-हल्का फिर तेज।

मैं जोर से चिल्लाया- “बचो। सिर सीने में, कान बंद। हाथ से भी सिर ढक लो, पार्टनर को कसकर पकड़ लो…”

तब तक जोर से। बूम हुआ। पहले ऊपर का दरवाजा और साथ में कापियां टूटे फर्नीचर। छत पर से प्लास्टर के टुकड़े। अच्छा हुआ की मैंने महक को कसकर पकड़ रखा था। शाक वेव ऊपर से ही आई। लेकिन अगले पल नीचे का दरवाजा भी टूट करके बाहर। और साथ में हम चारों भी, लुढ़कते पुढ़कते।

“भागो…” मैं जोर से चिल्लाया और हम चारों हाथ में हाथ पकड़कर, स्कूल की बिल्डिंग से दूर 200-250 मीटर बाद ही हम रुके।

सबने एक साथ खुली हवा में सांस ली। अब हम लोगों ने स्कूल की ओर देखा। ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था। जिस कमरे में ये लोग पकड़े गये थे, उसकी छत, एक दीवाल काफी कुछ गिर गई थी। सीढ़ी के ऊपर का वरान्डा भी डैमेज हुआ था। अभी भी थोडे बहुत पत्त्थर गिर रहे थे।

बाम्ब एक्स्प्लोड किसने किया? उन दोनों का क्या हुआ? मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।


तब तक फायरिंग की आवाज ने मेरा ध्यान खींचा- टैक-टैक। सेल्फ लोडेड राईफल और आटोमेटिक गन्स की, 25-30 राउन्ड। सारा फायर प्रिन्सीपल आफिस की ओर केन्द्रित था। वो तो हम लोगों को मालूम था की वहां कोई नहीं हैं। स्कूल की ओर से कोई फायर नहीं हो रहा था।

तब तक मेगा फोन पर डी॰बी॰ की आवाज गुंजी- “स्टाप फायर…”

थोड़ी देर में एक पोलिस वालों की टुकडी, कुछ फोरेन्सिक वाले और एक एम्बुलेन्स अन्दर आ गई। कुछ देर बाद एक आदमी लंगड़ाते हुये और दूसरा उसके साथ जिसके कंधे पे चोट लगी थी, चारों ओर पुलिस से घिरे बाहर निकले।

स्कूल के गेट से वो निकले ही थे की धड़धड़ाती हुई 5 एस॰यू॰वी॰ और उनके आगे एक सफेद अम्बेसेडर और सबसे आगे एक सफेद मारुती जिप्सी जिसमें पीछे स्टेनगन लिये हुये। लोग बैठे थे, आकर रुकी।
 
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