07-04-2017, 12:30 PM,
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sexstories
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RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
“आईईइइ ... सीईईई ?’
“क्या हुआ ?”
“उईईईइ अम्माआ ...... ये मिर्ची तो बहुत त... ती..... तीखी है ...!”
“ओह ... तुम भी निरी पागल हो भला कोई ऐसे पूरी मिर्ची खाता है ?”
“ओह... मुझे क्या पता था यह इतनी कड़वी होगी मैंने तो आपको देखकर खा ली थी? आईइइ... सीईई ...”
“चलो अब वाश-बेसिन पर ... जल्दी से ठन्डे पानी से कुल्ली कर लो !”
मैंने उसे बाजू से पकड़ कर उठाया और इस तरह अपने आप से चिपकाए हुए वाशबेसिन की ओर ले गया कि उसका कमसिन बदन मेरे साथ चिपक ही गया। मैं अपना बायाँ हाथ उसकी बगल में करते हुए उसके उरोजों तक ले आया। वो तो यही समझती रही होगी कि मैं उसके मुँह की जलन से बहुत परेशान और व्यथित हो गया हूँ। उसे भला मेरी मनसा का क्या भान हुआ होगा। गोल गोल कठोर चूचों के स्पर्श से मेरी अंगुलियाँ तो धन्य ही हो गई।
वाशबेसिन पर मैंने उसे अपनी चुल्लू से पानी पिलाया और दो तीन बार उसने कुल्ला किया। उसकी जलन कुछ कम हो गई। मैंने उसके होंठों को रुमाल से पोंछ दिया। वो तो हैरान हुई मेरा यह दुलार और अपनत्व देखती ही रह गई।
मैंने अगला तीर छोड़ दिया,“अंगूर अब भी जलन हो रही हो तो एक रामबाण इलाज़ और है मेरे पास !”
“वो... क्या ... सीईईईईईईई ?” उसकी जलन कम तो हो गई थी पर फिर भी वो होले होले सी... सी.... करती जा रही थी।
“कहो तो इन होंठों और जीभ को अपने मुँह में लेकर चूस देता हूँ, जलन ख़त्म हो जायेगी !” मैंने हंसते हुए कहा।
मैं जानता था वो मना कर देगी और शरमा कर भाग जायगी। पर मेरी हैरानी की सीमा ही नहीं रही जब उसने अपनी आँखें बंद करके अपने होंठ मेरी ओर बढ़ा दिए।
सच पूछो तो मेरे लिए भी यह अप्रत्याशित सा ही था। मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था। मैंने देखा उसकी साँसें भी बहुत तेज़ हो गई हैं। उसके छोटे छोटे गोल गोल उरोज गर्म होती तेज़ साँसों के साथ ऊपर-नीचे हो रहे थे। मैंने उसके नर्म नाज़ुक होंठों पर अपने होंठ रख दिए।
आह ... उसके रुई के नर्म फोहे जैसे संतरे की फांकों और गुलाब की पत्तियों जैसे नाज़ुक अधरों की छुअन मात्र से ही मेरा तो तन मन सब अन्दर तक तरंगित ही हो गया। अचानक उसने अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी और मेरे होंठों को चूसने लगी। मैंने भी दोनों हाथों से उसका सिर थाम लिया और एक दूसरे से चिपके पता नहीं कितनी देर हम एक दूसरे को चूमते सहलाते रहे। मेरा पप्पू तो जैसे भूखे शेर की तरह दहाड़ें ही मारने लगा था।
मैंने धीरे से पहले तो उसकी पीठ पर फिर उसके नितम्बों पर हाथ फिराया फिर उसकी मुनिया को टटोलना चाहा। अब उसे ध्यान आया कि मैं क्या करने जा रहा हूँ। उसने झट से मेरा हाथ पकड़ लिया और कुनमुनाती सी आवाज में बोली,“उईई अम्मा ...... ओह.... नहीं !... रुको !”
वो कोशिश कर रही थी कि मेरा हाथ उसके अनमोल खजाने तक ना पहुँचे। उसने अपने आप को बचाने के लिए घूम कर थोड़ा सा आगे की ओर झुका लिया जिसके कारण उसके नितम्ब मेरे लंड से आ टकराए। वह मेरा हाथ अपनी बुर से हटाने का प्रयास करने लगी।
“क्यों क्या हुआ ?”
“ओह्हो... अभी मुझे छोड़िये। मुझे बहुत काम करना है !”
“क्या काम करना है ?”
“अभी बर्तन समेटने हैं, आपके लिए दूध गर्म करना है .... और ... !”
“ओह... छोड़ो दूध-वूध मुझे नहीं पीना !”
“ओहो ... पर मुझे आपने दोहरी कर रखा है छोड़ो तो सही !”
“अंगूर ... मेरी प्यारी अंगूर प्लीज ... बस एक बार मुझे अपनी मुनिया देख लेने दो ना ?” मैंने गिड़गिड़ाने वाले अंदाज़ में कहा।
“नहीं मुझे शर्म आती है !”
“पर तुमने तो कहा था मैं जो मांगूंगा तुम मना नहीं करगी ?”
“नहीं ... पहले आप मुझे छोड़ो !”
मैंने उसे छोड़ दिया, वो अपनी कलाई दूसरे हाथ से सहलाती हुई बोली,“कोई इतनी जोर से कलाई मरोड़ता है क्या ?”
“कोई बात नहीं ! मैं उसे भी चूम कर ठीक कर देता हूँ !” कहते हुए मैं दुबारा उसे बाहों में भर लेने को आगे बढ़ा।
“ओह... नहीं नहीं.... ऐसे नहीं ? आपसे तो सबर ही नहीं होता....”
“तो फिर ?”
“ओह... थोड़ी देर रुको तो सही ... आप अपने कमरे में चलो मैं वहीं आती हूँ !”
मेरी प्यारी पाठिकाओ और पाठको ! अब तो मुझे जैसे इस जहाँ की सबसे अनमोल दौलत ही मिलने जा रही थी। जिस कमसिन कलि के लिए मैं पिछले 10-12 दिनों से मरा ही जा रहा था बस अब तो दो कदम दूर ही रह गई है मेरी बाहों से।
हे ... लिंग महादेव तेरा लाख लाख शुक्र है पर यार अब कोई गड़बड़ मत होने देना।
अंगूर नज़रें झुकाए बिना मेरी ओर देखे जूठे बर्तन उठाने लगी और मैंने ड्राइंग रूम में रखे टेलीफोन का रिसीवर उतार कर नीचे रख दिया और अपने मोबाइल का स्विच भी ऑफ कर दिया। मैं किसी प्रकार का कोई व्यवधान आज की रात नहीं चाहता था।
मैं धड़कते दिल से अंगूर का इंतज़ार कर रहा था। मेरे लिए तो एक एक पल जैसे एक एक पहर की तरह था। कोई 20 मिनट के बाद अंगूर धीरे धीरे कदम बढ़ाती कमरे में आ गई। उसके अन्दर आते ही मैंने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया और उसे फिर से बाहों में भर कर इतनी जोर से भींचा कि उसकी तो हलकी सी चीख ही निकल गई। मैंने झट से उसके होंठों को अपने मुँह में भर लिया और उन्हें चूसने लगा। वो भी मेरे होंठ चूसने लगी। फिर मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी। वो मेरी जीभ को कुल्फी की तरह चूसने लगी। अब हालत यह थी कि कभी मैं वो मेरी जीभ चूसने लगती कभी मैं उसकी मछली की तरह फुदकती मचलती जीभ को मुँह में पूरा भर कर चूसने लगता। “ओह... मेरी प्यारी अंगूर ! मैं तुम्हारे लिए बहुत तड़पा हूँ !”
“अच्छा.... जी वो क्यों ?”
“अंगूर, तुमने अपनी मुनिया दिखाने का वादा किया था !”
“ओह ... अरे... वो ... नहीं... मुझे शर्म आती है !”
“देखो तुम मेरी प्यारी साली हो ना ?” मैंने घाघरे के ऊपर से ही उसकी मुनिया को टटोला।
“नहीं... नहीं ऐसे नहीं ! पहले आप यह लाईट बंद कर दो !”
“ओह, फिर अँधेरे में मैं कैसे देखूंगा ?”
“ओह्हो... आप भी... अच्छा तो फिर आप अपनी आँखें बंद कर लो !”
“तुम भी पागल तो नही हुई ? अगर मैंने अपनी आँखें बंद कर ली तो फिर मुझे क्या दिखेगा ?”
“ओह्हो ... अजीब मुसीबत है ...?” कहते हुए उसने अपने हाथों से अपना चेहरा ही ढक लिया।
यह तो उसकी मौन स्वीकृति ही थी मेरे लिए। मैंने होले से उसे बिस्तर पर लेटा सा दिया। पर उसने तो शर्म के मारे अपने हाथों को चेहरे से हटाया ही नहीं। उसकी साँसें अब तेज़ होने लगी थी और चेहरे का रंग लाल गुलाब की तरह हो चला था। मैंने हौले से उसका घाघरा ऊपर कर दिया। मेरे अंदाज़े के मुताबिक़ उसने कच्छी (पेंटी) तो पहनी ही नहीं थी।
उफ्फ्फ्फ़ ......
उस जन्नत के नज़ारे को तो मैं जिन्दगी भर नहीं भूल पाऊंगा। मखमली गोरी जाँघों के बीच हलके रेशमी घुंघराले काले काले झांटों से ढकी उसकी चूत की फांकें एक दम गुलाबी थी। मेरे अंदाज़े के मुताबिक़ चीरा केवल 3 इंच का था। दोनों फांकें आपस में जुड़ी हुई ऐसे लग रही थी जैसे किसी तीखी कटार की धार ही हो। बीच की रेखा तो मुश्किल से 3 सूत चौड़ी ही होगी एक दम कत्थई रंग की।
मैं तो फटी आँखों से उसे देखता ही रह गया। हालांकि अंगूर मिक्की से उम्र में थोड़ी बड़ी थी पर उन दोनों की मुनिया में रति भर का भी फर्क नहीं था। मैं अपने आप को कैसे रोक पता मैंने अपने जलते होंठ उन रसभरी फांकों पर लगा दिए। मेरी गर्म साँसें जैसे ही उसे अपनी मुनिया पर महसूस हुई उसकी रोमांच के मारे एक किलकारी ही निकल गई और उसके पैर आपस में जोर से भींच गए। उसका तो सारा शरीर ही जैसे कांपने लगा था। मेरी भी कमोबेश यही हालत थी। मेरे नथुनों में हलकी पेशाब, नारियल पानी और गुलाब के इत्र जैसी सोंधी-सोंधी खुशबू समा गई। मुझे पता है वो जरूर बॉडी स्प्रे लगा कर आई होगी। उसने जरूर मधु को कभी ऐसा करते देखा होगा। मैंने उसकी मुनिया पर एक चुम्बन ले लिया। चुम्बन लेते समय मैं यह सोच रहा था कि अगर अंगूर इन बालों को साफ़ कर ले तो इस छोटी सी मुनिया को चूसने का मज़ा ही आ जाए।
मैं अभी उसे मुँह में भर लेने की सोच ही रहा था कि उसके रोमांच में डूबी आवाज मेरे कानों में पड़ी,“ऊईइ ..... अम्माआआ ...” वो झट से उठ खड़ी हुई और उसने अपने घाघरे को नीचे कर लिया।
मैंने उसे अपनी बाहों में भरते हुए कहा,“अंगूर तुम बहुत खूबसूरत हो !”
पहले तो उसने मेरी ओर हैरानी से देखा फिर ना जाने उसे क्या सूझा, उसने मुझे अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी और मुझ से लिपट ही गई। मैं पलंग पर अपने पैर मोड़ कर बैठा था। वो अपने दोनों पैर चौड़े करके मेरी गोद में बैठ गई। जैसे कई बार मिक्की बैठ जाया करती थी। मेरा खड़ा लंड उसके गोल गोल नर्म नाज़ुक कसे नितम्बों के बीच फस कर पिसने लगा। मैंने एक बार फिर से उसके होंठों को चूमना चालू कर दिया तो उसकी मीठी सित्कारें निकालने लगी।
“अंगूर ...?”
“हम्म्म ... ?”
“कैसा लग रहा है ?”
“क्या ?” उसने अपनी आँखें नचाई तो मैंने उसके होंठों को इतने जोर से चूसा कि उसकी तो हल्की सी चीख ही निकल गई। पहले तो उसने मेरे सीने पर अपने दोनों हाथों से हलके से मुक्के लगाए और फिर उसने मेरे सीने पर अपना सिर रख दिया। अब मैं कभी उसकी पीठ पर हाथ फिराता और कभी उसके नितम्बों पर।
“अंगूर तुम्हारी मुनिया तो बहुत खूबसूरत है !”
“धत्त ... !” वह मदहोश करने वाली नज़रों से मुझे घूरती रही।
“अंगूर तुम्हें इस पर बालों का यह झुरमुट अच्छा लगता है क्या ?”
“नहीं .... अच्छा तो नहीं लगता... पर...?”
“तो इनको साफ़ क्यों नहीं करती ?”
“मुझे क्या पता कैसे साफ़ किये जाते हैं ?”
“ओह ... क्या तुमने कभी गुलाबो या अनार को करते नहीं देखा...? मेरा मतलब है... वो कैसे काटती हैं ?”
“अम्मा तो कैंची से या कभी कभी रेज़र से साफ़ करती है।”
“तो तुम भी कर लिया करो !”
“मुझे डर लगता है !”
“डर कैसा ?”
“कहीं कट गया तो ?”
“तो क्या हुआ मैं उसे भी चूस कर ठीक कर दूंगा !” मैं हंसने लगा।
पहले तो वो समझी नहीं फिर उसने मुझे धकेलते हुए कहा,“धत्त ... हटो परे...!”
“अंगूर प्लीज आओ मैं तुम्हें इनको साफ़ करना सिखा देता हूँ। फिर तुम देखना इसकी ख़ूबसूरती में तो चार चाँद ही लग जायेंगे ?”
“नहीं मुझे शर्म आती है ! मैं बाद में काट लूंगी।”
“ओहो ... अब यह शर्माना छोड़ो ... आओ मेरे साथ !”
मैं उसे अपनी गोद में उठा लिया और हम बाथरूम में आ गए। बाथरूम उस कमरे से ही जुड़ा है और उसका एक दरवाजा अन्दर से भी खुलता है।
मेरे प्यारे पाठको और पाठिकाओ ! आप जरूर सोच रहे होंगे यार प्रेम गुरु तुम भी अजीब अहमक इंसान हो ? लौंडिया चुदने को तैयार बैठी है और तुम्हें झांटों को साफ़ करने की पड़ी है। अमा यार ! अब ठोक भी दो साली को ! क्यों बेचारी की मुनिया और अपने खड़े लंड को तड़फा रहे हो ?
आप अपनी जगह सही हैं। मैं जानता हूँ यह कथानक पढ़ते समय पता नहीं आपका लंड कितनी बार खड़ा हुआ होगा या इस दौरान आपके मन में मुट्ठ मार लेने का ख़याल आया होगा और मेरी प्यारी पाठिकाएं तो जरूर अपनी मुनिया में अंगुली कर कर के परेशान ही हो गई होंगी। पर इतनी देरी करने का एक बहुत बड़ा कारण था। आप मेरा यकीन करें और हौंसला रखें बस थोड़ा सा इंतज़ार और कर लीजिये। मैं और आप सभी साथ साथ ही उस स्वर्ग गुफा में प्रवेश करने का सुख, सौभाग्य, आनंद और लुफ्त उठायेगे और जन्नत के दूसरे दरवाजे का भी उदघाटन करेंगे।
दरअसल मैं उसके कमसिन बदन का लुत्फ़ आज ठन्डे पानी के फव्वारे के नीचे उठाना चाहता था। वैसे भी भरतपुर में गर्मी बहुत ज्यादा ही पड़ती है। आप तो जानते ही हैं मैं और मधुर सन्डे को साथ साथ नहाते हैं और बाथटब में बैठे घंटों एक दूसरे के कामांगों से खेलते हुए चुहलबाज़ी करते रहते हैं। कभी कभी तो मधुर इतनी उत्तेजित चुलबुली हो जाया करती है कि गांड भी मरवा लेती है। पर इन दिनों में मधुर के साथ नहाना और गांड मारना तो दूर की बात है वो तो मुझे चुदाई के लिए भी तरसा ही देती है। आज इस कमसिन बला के साथ नहा कर मैं फिर से अपनी उन सुनहरी यादों को ताज़ा कर लेना चाहता था।
बाथरूम में आकर मैंने धीरे से अंगूर को गोद से उतार दिया। वो तो मेरे साथ ऐसे चिपकी थी जैसे कोई लता किसी पेड़ से चिपकी हो। वो तो मुझे छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी।
मैंने कहा,“अंगूर तुम अपने कपड़े उतार दो ना प्लीज ?”
“वो ... क्यों भला ...?”
“अरे बाबा मुनिया की सफाई नहीं करवानी क्या ?”
“ओह ... !” उसने अपने हाथों से अपना मुँह फिर से छुपा लिया।
मैंने आगे बढ़ कर उसके घाघरे का नाड़ा खोल दिया और फिर उसकी कुर्ती भी उतार दी।
आह...
ट्यूब लाईट की दूधिया रोशनी में उसका सफ्फाक बदन तो कंचन की तरह चमक रहा था। उसने एक हाथ अपनी मुनिया पर रख लिया और दूसरे हाथ से अपने छोटे छोटे उरोजों को छुपाने की नाकाम सी कोशिश करने लगी। मैं तो उसके इस भोलेपन पर मर ही मिटा। उसके गोल गोल गुलाबी रंग के उरोज तो आगे से इतने नुकीले थे जैसे अभी कोई तीर छोड़ देंगे। मुझे एक बात की बड़ी हैरानी थी कि उसकी मुनिया और कांख (बगल) को छोड़ कर उसके शरीर पर कहीं भी बाल नहीं थे। आमतौर पर इस उम्र में लड़कियों के हाथ पैरों पर भी बाल उग आते हैं और वो उन्हें वैक्सिंग से साफ़ करना चालू कर देती हैं। पर कुछ लड़कियों के चूत और कांख को छोड़ कर शरीर के दूसरे हिस्सों पर बाल या रोयें बहुत ही कम होते हैं या फिर होते ही नहीं। अब आप इतने भोले भी नहीं हैं कि आपको यह भी बताने कि जरूरत पड़े कि वो तो हुश्न की मल्लिका ही थी उसके शरीर पर बाल कहाँ से होते। मैं तो फटी आँखों से सांचे में ढले इस हुस्न के मंजर को बस निहारता ही रह गया।
“वो... वो ... ?”
“क्या हुआ ?”
“मुझे सु सु आ रहा है ?”
“तो कर लो ! इसमें क्या हुआ ?”
“नहीं आप बाहर जाओ ... मुझे आपके सामने करने में शर्म आती है !”
“ओह्हो ... अब इसमें शर्म की क्या बात है ? प्लीज मेरे सामने ही कर लो ना ?”
वो मुझे घूरती हुई कमोड पर बैठने लगी तो मैंने उसे रोका,“अर्ररर ... कमोड पर नहीं नीचे फर्श पर बैठ कर ही करो ना प्लीज !”
उसने अजीब नज़रों से मुझे देखा और फिर झट से नीचे बैठ गई। उसने अपनी जांघें थोड़ी सी फैलाई और फिर उसकी मुनिया के दोनों पट थोड़े से खुले। पहले 2-3 बूँदें निकली और उसकी गांड के छेद से रगड़ खाती नीचे गिर गई। फिर उसकी फांकें थरथराने लगी और फिर तो पेशाब की कल-कल करती धारा ऐसे निकली कि उसके आगे सहस्त्रधारा भी फीकी थी। उसकी धार कोई एक डेढ़ फुट ऊंची तो जरूर गई होगी। सु सु की धार इतनी तेज़ थी कि वो लगभग 3 फुट दूर तक चली गई। उसकी बुर से निकलती फ़ीच... च्चच..... सीईई इ ....... का सिसकारा तो ठीक वैसा ही था जैसा लिंग महादेव मंदिर से लौटते हुए मिक्की का था। हे भगवान् ! क्या मिक्की ही अंगूर के रूप में कहीं दुबारा तो नहीं आ गई ? मैं तो इस मनमोहक नज़ारे को फटी आँखों से देखता ही रह गया। मुझे अपनी बुर की ओर देखते हुए पाकर उसने अपना सु सु रोकने की नाकाम कोशिश की पर वो तो एक बार थोड़ा सा मंद होकर फिर जोर से बहने लगा। आह एक बार वो धार नीचे हुई फिर जोर से ऊपर उठी। ऐसे लगा जैसे उसने मुझे सलामी दी हो।
शादी के शुरू शुरू के दिनों में मैं और मधुर कई बार बाथरूम में इस तरह की चुहल किया करते थे। मधु अपनी जांघें चौड़ी करके नीचे फर्श पर लेट जाया करती थी और फिर मैं उसकी मुनिया की दोनों फांकों को चौड़ा कर दिया करता था। फिर उसकी मुनिया से सु सु की धार इतनी तेज़ निकलती कि 3 फुट ऊपर तक चली जाती थी। आह ... कितनी मधुर सीटी जैसी आवाज निकलती थी उसकी मुनिया से। मैं अपने इन ख़यालों में अभी खोया ही था कि अब उसकी धार थोड़ी मंद पड़ने लगी और फिर एक बार बंद होकर फिर एक पतली सी धार निकली। उसकी लाल रंग की फांके थरथरा रही थी जैसे। कभी संकोचन करती कभी थोड़ी सी खुल जाती।
अंगूर अब खड़ी हो गई। मैंने आगे बढ़ कर उसकी मुनिया को चूमना चाहा तो पीछे हटते हुए बोली,“ओह ... छी .... छी .... ये क्या करने लगे आप ?”
“अंगूर एक बार इसे चूम लेने दो ना प्लीज .... देखो कितनी प्यारी लग रही है !”
“छी .... छी .... इसे भी कोई चूमता है ?”
मैंने अपने मन में कहा ‘मेरी जान थोड़ी देर रुक जाओ फिर तो तुम खुद कहोगी कि ‘और जोर से चूमो मेरे साजन’ पर मैंने उससे कहा,“चलो कोई बात नहीं तुम अपना एक पैर कमोड पर रख लो। मैं तुम्हारे इस घास की सफाई कर देता हूँ !”
उसने थोड़ा सकुचाते हुए बिना ना-नुकर के इस बार मेरे कहे मुताबिक़ एक पैर कमोड पर रख दिया।
आह ... उसकी छोटी सी बुर और 3 इंच का रक्तिम चीरा तो अब साफ़ नज़र आने लगा था। हालांकि उसकी फांकें अभी भी आपस में जुड़ी हुई थी पर उनका नज़ारा देख कर तो मेरे पप्पू ने जैसे उधम ही मचा दिया था।
मैंने अपने शेविंग किट से नया डिस्पोजेबल रेज़र निकला और फिर हौले-हौले उसकी बुर पर फिराना चालू कर दिया। उसे शायद कुछ गुदगुदी सी होने लगी थी तो वो थोड़ा पीछे होने लगी तो मैंने उसे समझाया कि अगर हिलोगी तो यह कट जायेगी फिर मुझे दोष मत देना। उसने मेरा सिर पकड़ लिया। उसकी बुर पर उगे बाल बहुत ही नर्म थे। लगता था उसने कमरे में आने से पहले पानी और साबुन से अपनी मुनिया को अच्छी तरह धोया था। 2-3 मिनट में ही मुनिया तो टिच्च ही हो गई।
आह ... उसकी मोटी मोटी फांकें तो बिलकुल संतरे की फांकों जैसी एक दम गुलाबी लग रही थी। फिर मैंने उसके बगलों के बाल भी साफ़ कर दिए। बगलों के बाल थोड़े से तो थे। जब बाल साफ़ हो गए तो मैंने शेविंग-लोशन उसकी मुनिया पर लगा कर हैण्ड शावर उठाया और उसकी मुनिया को पानी की हल्की फुहार से धो दिया। फिर पास रखे तौलिये से उसकी मुनिया को साफ़ कर दिया। इस दौरान मैं अपनी एक अंगुली को उसकी मुनिया के चीरे पर फिराने से बाज नहीं आया। जैसे ही मेरी अंगुली उसकी मुनिया से लगी वो थोड़ी सी कुनमुनाई।
“ऊईईइ.... अम्माआ ....!”
“क्या हुआ ?”
“ओह ... अब मेरे कपड़े दे दो ....!” उसने अपने दोनों हाथ फिर से अपनी मुनिया पर रख लिए।
“क्यों ?”
“ओह ... आपने तो मुझे बेशर्म ही बना दिया !”
“वो कैसे ?”
“और क्या ? आपने तो सारे कपड़े पहन रखे हैं और मुझे बिलकुल नंगा ....?” वह तो बोलते बोलते फिर शरमा ही गई ......
“अरे मेरी भोली बन्नो ... इसमें क्या है, लो मैं भी उतार देता हूँ।”
मैंने अपना कुरता और पजामा उतार फेंका। अब मेरे बदन पर भी एक मात्र चड्डी ही रह गई थी। मैंने अपनी चड्डी जानबूझ कर नहीं उतारी थी। मुझे डर था कहीं मेरा खूंटे सा खड़ा लंड देख कर वो घबरा ही ना जाए और बात बनते बनते बिगड़ जाए। मैं इस हाथ आई मछली को इस तरह फिसल जाने नहीं देना चाहता था। मेरा पप्पू तो किसी खार खाए नाग की तरह अन्दर फुक्कारें ही मार रहा था। मुझे तो लग रहा था अगर मैंने चड्डी नहीं उतारी तो यह उसे फाड़ कर बाहर आ जाएगा।
“उईइ ... यह तो चुनमुनाने लगी है ?” उसने अपनी जांघें कस कर भींच ली। शायद कहीं से थोड़ा सा कट गया था जो शेविंग-लोशन लगने से चुनमुनाने लगा था।
“कोई बात नहीं इसका इलाज़ भी है मेरे पास !”
उसने मेरी ओर हैरानी से देखा। मैं नीचे पंजों के बल बैठा गया और एक हाथ से उसके नितम्बों को पकड़ कर उसे अपनी और खींच लिया और फिर मैंने झट से उसकी मुनिया को अपने मुँह में भर लिया।
वो तो,“उईइ इ ... ओह ......... नहीं .... उईईईई इ .... क्या कर रहे हो ... आह ...........” करती ही रह गई।
मैंने जैसे ही एक चुस्की लगाई उसकी सीत्कार भरी किलकारी निकल गई। उसकी बुर तो अन्दर से गीली थी। नमकीन और खट्टा सा स्वाद मेरी जीभ से लग गया। उसकी कुंवारी बुर से आती मादक महक से मैं तो मस्त ही हो गया। उसने अपने दोनों हाथों से मेरा सिर पकड़ लिया। अब मैंने अपनी जीभ को थोड़ा सा नुकीला बनाया और उसकी फांकों के बीच में लगा कर ऊपर नीचे करने लगा। मेरे ऐसा करने से उसे रोमांच और गुदगुदी दोनों होने लगे। मैंने अपने एक हाथ की एक अंगुली उसकी मुनिया के छेद में होले से डाल दी।
आह उसकी बुर के कसाव और गर्मी से मेरी अंगुली ने उसकी बुर के कुंवारेपन को महसूस कर ही लिया।
“ईईइ ..... बाबू ... उईईइ ... अम्मा ........ ओह ... रुको ... मुझे ... सु सु .... आ ... रहा है .... ऊईइ ... ओह ... छोड़ो मुझे.... ओईईइ ... अमाआआ .... अह्ह्ह .... य़ाआअ ..... !!”
पढ़ते रहिए ....
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07-04-2017, 12:30 PM,
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RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
“ऊईइ ..... आम्माआअ ..... ईईईईईईईईईईईईई ..... ” उसने अपनी बाहें मेरी कमर पर कस लीं और मेरे होंठों को मुँह में भर कर जोर से चूसने लगी। उसका शरीर कुछ अकड़ा और फिर हल्के-हल्के झटके खाते वो शांत पड़ती चली गई। पर उसकी मीठी सीत्कार अभी भी चालू थी। प्रथम सम्भोग की तृप्ति और संतुष्टि उसके चहरे और बंद पलकों पर साफ़ झलक रही थी। मैंने उसे फिर से अपनी बाहों में कस लिया और जैसे ही मैंने 3-4 धक्के लगाए मेरे वीर्य उसकी कुंवारी चूत में टपकने लगा।
मेरी पाठिकाएं शायद सोच रही होंगे कि बुर के अन्दर मैंने अपना वीर्य क्यों निकाला? अगर अंगूर गर्भवती हो जाती तो ? आप सही सोच रही है। मैंने भी पहले ऐसा सोचा था। पर आप तो जानती ही हैं मैं मधुर (मेरी पत्नी) को इतना प्रेम क्यों करता हूँ। उसके पीछे दरअसल एक कारण है। वो तो मेरे लिए जाने अनजाने में कई बार कुछ ऐसा कर बैठती है कि मैं तो उसका बदला अगले सात जन्मों तक भी नहीं उतार पाऊंगा।
ओह ... आप नहीं समझेंगी मैं ठीक से समझाता हूँ :
मैंने बताया था ना कि मधुर ने पिछले हफ्ते मुझे अंगूर के लिए माहवारी पैड्स लाने को कहा था ? आप तो जानती ही हैं कि अगर माहवारी ख़त्म होने के 8-10 दिन तक सुरक्षित काल होता है और इन दिनों में अगर वीर्य योनी के अन्दर भी निकाल दिया जाए तो गर्भधारण की संभावना नहीं रहती। ओह ... मैं भी फजूल बातें ले बैठा।
हम दोनों एक दूसरे की बाहों में जकड़े पानी की ठंडी फुहार के नीचे लेटे थे। मेरा लंड थोड़ा सिकुड़ गया था पर उसकी बुर से बाहर नहीं निकला था। वो उसे अपनी बुर के अन्दर संकोचन कर उसे जैसे चूस ही रही थी। मैं अभी उठने की सोच ही रहा था कि मुझे ध्यान आया कि अंगूर की बुर से तो खून भी निकला था। शायद अब भी थोड़ा निकल रहा होगा। चुदाई की लज्जत में उसे दर्द भले ही इतना ना हो रहा हो पर जैसे ही मेरा लंड उसकी बुर से बाहर आएगा वो अपनी बुर को जरूर देखेगी और जब उसमें से निकलते हुए खून को देखेगी तो कहीं रोने चिल्लाने ना लग जाए। मैं ऐसा नहीं होने देना चाहता था क्यों कि मुझे तो अभी एक बार और उसकी चुदाई करनी थी। मेरा मन अभी कहाँ भरा था। ओह ... कुछ ऐसा करना होगा कि थोड़ी देर उसकी निगाह और ध्यान उसकी रस टपकाती बुर पर ना जा पाए।
“अंगूर इस पानी की ठंडी फुहार में कितना आनंद है !” मैंने कहा।
“हाँ बाबू मैं तो जैसे स्वर्ग में ही पहुँच गई हूँ !”
“अंगूर अगर हम दोनों ही थोड़ी देर आँखें बंद किये चुपचाप ऐसे ही लेटे रहें तो और भी मज़ा आएगा !”
“हाँ मैं भी यही सोच रही थी।”
मैं धीरे से उसके ऊपर से उठ कर उसकी बगल में ही लेट सा गया और अपने हाथ उसके उरोजों पर हौले हौले फिराने लगा। वो आँखें बंद किये और जाँघों को चौड़ा किये लेटी रही। उसकी बुर की फांकें सूजी हुई सी लग रही थी और उनके बीच से मेरे वीर्य, उसके कामराज और खून का मिलाजुला हलके गुलाबी रंग का मिश्रण बाहर निकल कर शावर से निकलती फुहार से मिल कर नाली की ओर जा रहा था। उसकी मोटी मोटी सूजी गुलाबी लाल फांकों को देख कर तो मेरा मन एक बार फिर से उन्हें चूम लेने को करने लगा। पर मैंने अपना आप को रोके रखा।
कोई 10 मिनट तक हम चुप चाप ऐसे ही पड़े रहे। पहले मैं उठा और मैंने अपने लंड को पानी से धोया और फिर मैंने अंगूर को उठाया। उसकी बुर में अभी भी थोड़ा सा दर्द था। उसने भी नल के नीचे अपनी बुर को धो लिया। वो अपनी बुर की हालत देख कर हैरान सी हो रही थी। उसकी फांकें सूज गई थी और थोड़ी चौड़ी भी हो गई थी।
“बाबू देखो तुमने मेरी पिक्की की क्या हालत कर दी है ?”
“क्यों ? क्या हुआ ? अच्छी भली तो है ? अरे ... वाह... यह तो अब बहुत ही खूबसूरत लग रही है !” कहते हुए मैंने उसकी ओर अपना हाथ बढ़ाया तो अंगूर पीछे हट गई। वो शायद यही सोच रही थी कहीं मैं फिर से उसकी पिक्की को अपने मुँह में ना भर लूँ।
“दीदी सच कहती थी तुम मुझे जरूर खराब कर के ही छोड़ोगे !” वो कातर आँखों से मेरी ओर देखते हुए बोली।
हे भगवान् कहीं यह मधुर की बात तो नहीं कर रही ? मैंने डरते डरते पूछा,“क ... कौन ? मधुर ?”
“आप पागल हुए हो क्या ?”
“क... क्या मतलब ?”
“मैं अनार दीदी की बात कर रही हूँ !”
“ओह ... पर उसे कैसे पता ... ओह... मेरा मतलब है वो क्या बोलती थी ?” मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था। कहीं अनार ने इसे हमारी चुदाई की बातें तो नहीं बता दी ?
“वो कह रही थी कि आप बहुत सेक्सी हो और किसी भी लड़की को झट से चुदाई के लिए मना लेने में माहिर हो !”
“अरे नहीं यार .... मैं बहुत शरीफ आदमी हूँ !”
“अच्छाजी .... आप और शरीफ ??? हुंह .... मैं आपकी सारी बातें जानती हूँ !!!” उसने अपनी आँखें नचाते हुए कहा फिर मेरी ओर देख कर मंद मंद मुस्कुराने लगी। फिर बोली,“दीदी ने एक बात और भी बताई थी ?”
“क ... क्या ?” मैं हकलाते हुए सा बोला। पता नहीं यह अब क्या बम्ब फोड़ने वाली थी।
“वो ... वो ... नहीं... मुझे शर्म आती है !” उसने अपनी मुंडी नीचे कर ली।
मैंने उसके पास आ गया और उसे अपनी बाहों में भर लिया। मैंने उसकी ठोड़ी पर अंगुली रख कर उसकी मुंडी ऊपर उठाते हुए पूछा,“अंगूर बताओ ना .... प्लीज ?”
“ओह ... आपको सब पता है ... !”
“प्लीज !”
“वो ... बता रही थी कि आप बुर के साथ साथ गधापच्चीसी भी जरूर खेलते हो !” कहते हुए उसने अपनी आँखें बंद कर ली। उसके गालों पर तो लाली ही दौड़ गई। मेरा जी किया इस पर कुर्बान ही हो जाऊं।
“अरे उसे कैसे पता ?” मैंने हैरान होते हुए पूछा।
“उसको मधुर दीदी ने बताया था कि आप कभी कभी छुट्टी वाले दिन बाथरूम में उनके साथ ऐसा करते हो !”
अब आप मेरी हालत का अंदाज़ा बखूबी लगा सकते हैं। मैंने तड़ातड़ कई चुम्बन उसकी पलकों, गालों, छाती, उरोजों, पेट और नाभि पर ले लिए। जैसे ही मैं उसकी पिक्की को चूमने के लिए नीचे होने लगा वो पीछे हटते हुए घूम गई और अपनी पीठ मेरी और कर दी। मैंने पीछे से उसे अपनी बाहों में भर लिया। मेरा शेर इन सब बातों को सुनकर भला क्यों ना मचलता। वो तो फिर से सलाम बजने लगा था। मेरा लंड उसके नितम्बों में ठीक उसकी गांड के सुनहरे छेद पर जा लगा। अंगूर ने अपने दोनों हाथ ऊपर उठाये और मेरी गर्दन में डाल दिए। मैंने एक हाथ से उसके उरोजों को पकड़ लिया और एक हाथ से उसकी बुर को सहलाने लगा। जैसे ही मेरा हाथ उसकी फांकों से टकराया वो थोड़ी सी कुनमुनाई तो मेरा लंड फिसल कर उसकी जाँघों के बीच से होता उसकी बुर की फांकों के बीच आ गया। उसने अपनी जांघें कस ली।
“अंगूर एक बार तुम भी इसका मज़ा लेकर तो देखो ना ?”
“अरे ना बाबा ... ना .... मुझे नहीं करवाना !”
“क्यों ?”
“मैंने सुना है इसमें बहुत दर्द होता है !”
“अरे नहीं दर्द होता तो मधु कैसे करवाती ?”
“पर वो... वो ... ?”
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RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
मुझे कुछ आस बंधी। मेरा लंड तो अब रौद्र रूप ही धारण कर चुका था। मेरा तो मन करने लगा बस इसे थोड़ा सा नीचे झुकाऊं और अपने खड़े लंड पर थूक लगा कर इसकी मटकती गांड में डाल दूं। पर मैं इतनी जल्दबाजी करने के मूड में नहीं था।
मेरा मानना है कि ‘सहज पके सो मीठा होय’
“अरे कुछ नहीं होता इसमें तो आगे वाले छेद से भी ज्यादा मज़ा आता है ! मधुर तो इसकी दीवानी है। वो तो मुझे कई बार खुद कह देती है आज अगले में नहीं पीछे वाले छेद में करो ?” मैंने झूठ मूठ उसे कह दिया।
थोड़ी देर वो चुप रही। उसके मन की दुविधा और उथल-पुथल मैं अच्छी तरह जानता था। पर मुझे अब यकीन हो चला था कि मैं जन्नत के दूसरे दरवाजे का उदघाटन करने में कामयाब हो जाउंगा।
“वो ... वो ... रज्जो है ना ?” अंगूर ने चुप्पी तोड़ी।
“कौन रज्जो ?”
“हमारे पड़ोस में रहती है मेरी पक्की सहेली है !”
“अच्छा ?”
“पता है उसके पति ने तो सुहागरात में दो बार उसकी गांड ही मारी थी ?”
“अरे वो क्यों ?”
“रज्जो बता रही थी कि उसके पति ने उसे चोदना चालू किया तो उसकी बुर से खून नहीं निकला !”
“ओह ... अच्छा... फिर ?”
“फिर वो कहने लगा कि तुम तो अपनी सील पहले ही तुड़वा चुकी लगती हो। मैं अब इस चुदे हुए छेद में अपना लंड नहीं डालूँगा। तुम्हारे इस दूसरे वाले छेद की सील तोडूंगा !”
“अरे ... वाह ... फिर ?”
“फिर क्या ... उसने रज्जो को उल्टा किया और बेचारी को बहुत बुरी तरह चोदा। रज्जो तो रोती रही पर उसने उस रात दो बार उसकी जमकर गांड मारी। वो तो बेचारी फिर 4-5 दिन ठीक से चल ही नहीं पाई !”
“पर रज्जो की बुर की सील कैसे टूट गई उसने बताया तो होगा ?” मैंने पूछा।
“वो.... वो.... 8 नंबर वाले गुप्ता अंकल से उसने कई बार चुदवाया था !”
“अरे उस लंगूर ने उसे कैसे पटा लिया ?”
उसने मेरी ओर ऐसे देखा जैसे मैं किसी सर्कस का जानवर या एलियन हूँ। फिर वह बोली,“पता ही वो कितने अच्छे अच्छे गिफ्ट उसे लाकर दिया करते थे। कभी नई चप्पलें, कभी चूड़ियाँ, कभी नई नई डिजाइन की नेल पोलिश ! वो तो बताती है कि अगर गुप्ता अंकल शादीशुदा नहीं होते तो वो तो रज्जो से ही ब्याह कर लेते !”
मैं सोच रहा था कि इन कमसिन और गरीब घर की लड़कियों को छोटी मोटी गिफ्ट का लालच देकर या कोई सपना दिखा कर कितना जल्दी बहकाया जा सकता है। अब उस साले मोहन लाल गुप्ता की उम्र 40-42 के पार है पर उस कमसिन लौंडिया की कुंवारी बुर का मज़ा लूटने से बाज़ नहीं आया।
“स ... साला .... हरामी कहीं का !” मेरे मुँह से अस्फुट सा शब्द निकला।
“कौन ?”
ओह... अब मुझे ध्यान आया मैं क्या बोल गया हूँ। मैंने अपनी गलती छिपाने के लिए उसे कहा,“अरे नहीं वो ... वो मैं पूछ रहा था कि उसने कभी रज्जो की गांड भी मारी थी या नहीं ?”
“पता नहीं ... पर आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं ?”
“ओह ... वो मैं इसलिए पूछ रहा था कि अगर उसने गांड भी मरवा ली होती तो उसे सुहागरात में दर्द नहीं होता ?” मैंने अपनी अंगुली उसकी बुर की फांकों पर फिरानी चालू कर दी और उसकी मदनमणि के दाने को भी दबाना चालू कर दिया। साथ साथ मैं उसके कानो की लटकन, गर्दन, और कन्धों को भी चूमे जा रहा था।
“वैसे सभी मर्द एक जैसे ही तो होते हैं !”
“वो कैसे ?”
“वो... वो.... जीजू भी अनार दीदी की गांड मारते हैं और .... और ... बापू भी अम्मा की कई बार रात को जमकर गांड मारते हैं !”
“अरे ... वाह ... तुम्हें यह सब कैसे पता ?”
“हमारे घर में बस एक ही कमरा तो है। अम्मा और बापू चारपाई पर सोते हैं और हम सभी भाई बहन नीचे फर्श पर सो जाते हैं। रात में कई बार मैंने उनको ऐसा करते देखा है।”
मुझे यह सब अनारकली ने भी बताया था पर मुझे अंगूर के मुँह से यह सब सुनकर बहुत अच्छा लग रहा था। दरअसल मैं यह चाहता था कि इस सम्बन्ध में इसकी झिझक खुल जाए और डर निकल जाए ताकि यह भी गांड मरवाने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो जाए और गांड मरवाते समय मेरे साथ पूरा सहयोग करे। पहले तो यह जरा जरा सी बात पर शरमा जाया करती थी पर अब एक बार चुदने के बाद तो आसानी से लंड, चूत, गांड और चुदाई जैसे शब्द खुल कर बोलने लगी है।
मैंने बात को जारी रखने की मनसा से उसे पूछा,“पर गुलाबो मना नहीं करती क्या ?”
“मना तो बहुत करती है पर बापू कहाँ मानते हैं। वो तो अम्मा को अपना हथियार चूसने को भी कहते हैं पर अम्मा को घिन आती है इसलिए वो नहीं चूसती इस पर बापू को गुस्सा आ जाता है और वो उसे उल्टा करके जोर जोर से पिछले छेद में चोदने लग जाते हैं। अम्मा तो बेचारी दूसरे दिन फिर ठीक से चल ही नहीं पाती !”
“तुम्हारा बापू भी पागल ही लगता है उसे ठीक से गांड मारना भी नहीं आता !”
वो तो हैरान हुई मुझे देखती ही रह गई। थोड़ी देर रुक कर वो बोली,“बाबू मेरे एक बात समझ नहीं आती ?”
“क्या ?”
“अम्मा बापू का चूसती क्यों नहीं। अनार दीदी बता रही थी कि वो तो बड़े मजा ले ले कर चूसती है। वो तो यह भी कह रही थी कि मधुर दीदी भी कई बार आपका .... ?” कहते कहते अंगूर रुक गई।
मैं भी कितना उल्लू हूँ। इतना अच्छा मौका हाथ में आ रहा है और मैं पागलों की तरह ऊलूल जुलूल सवाल पूछे जा रहा हूँ।
ओह ... मेरे प्यारे पाठको ! आप भी नहीं समझे ना ? मैं जानता हूँ मेरी पाठिकाएं जरूर मेरी बात को समझ समझ कर हँस रही होंगी। हाँ दोस्तो, कितना बढ़िया मौका था मेरे पास अंगूर को अपने लंड का अमृतपान करवाने का। मैं जानता था कि मुझे बस थोड़ी सी इस अमृतपान कला की तारीफ़ करनी थी और वो इसे चूसने के लिए झट से तैयार हो जाएगी। मैंने उसे बताना शुरू किया।
पढ़ते रहिए .....
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RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
“अम्मा बापू का चूसती क्यों नहीं। अनार दीदी बता रही थी कि वो तो बड़े मजा ले ले कर चूसती है। वो तो यह भी कह रही थी कि मधुर दीदी भी कई बार आपका .... ?” कहते कहते अंगूर रुक गई।
मैं भी कितना उल्लू हूँ। इतना अच्छा मौका हाथ में आ रहा है और मैं पागलों की तरह ऊलूल जुलूल सवाल पूछे जा रहा हूँ।
ओह ... मेरे प्यारे पाठको ! आप भी नहीं समझे ना ? मैं जानता हूँ मेरी पाठिकाएं जरूर मेरी बात को समझ समझ कर हँस रही होंगी। हाँ दोस्तो, कितना बढ़िया मौका था मेरे पास अंगूर को अपने लंड का अमृतपान करवाने का। मैं जानता था कि मुझे बस थोड़ी सी इस अमृतपान कला की तारीफ़ करनी थी और वो इसे चूसने के लिए झट से तैयार हो जाएगी। मैंने उसे बताना शुरू किया।
“हाँ तुम सही कह रही हो। मधुर को तो इसे चूसना बड़ा पसंद है। वो तो लगभग रोज़ ही रात की चुदाई करवाने से पहले एक बार चूसती जरूर है !”
“हाँ मुझे पता है। अनार दीदी ने तो मुझे यह भी बताया था कि इससे घिन कैसी ? इसे पीने से तो आँखों की ज्योति बढ़ती है। यही तो वह रस है जिससे मैं, तुम, रज्जो, गौरी, मीठी, कालू, सत्तू और मोती बने हैं। इसी रस से तो औरत माँ बनती है और यही वो रस है जो हमारे जीवन का मूल है। यह रस नहीं होता तो ना मैं होती ना तुम।”
‘वाह मेरी जान तुमने तो मेरी मुश्किल ही आसान कर दी’ मैंने अपने मन में सोचा। मैं जानता था यह पट्टी मधुर ने अनार को पढ़ाई थी और उसने इस नादान कमसिन अंगूर को कभी अपनी बुद्धिमत्ता दर्शाने को बता दी होगी। वाह मधुर, अगर मैं तुम्हारा लाख लाख बार भी धन्यवाद करूँ तो कम है।
मेरा पप्पू तो अब घोड़े की तरह हिनहिनाने लगा था। वो अंगूर के नितम्बों के नीचे लगा बार बार जैसे उफन ही रहा था। अंगूर अपने नितम्बों को भींच कर उसका होसला बढ़ा रही थी।
मैंने अंगूर से कहा,“अंगूर क्या तुमने कभी कोशिश नहीं की ?”
“धत्त ?” आप भी कैसी बातें करते हैं ?”
“अच्छा एक बात बताओ ?
“क्या ?”
“कभी तुम्हारे मन में चूसने की बात आई या नहीं ?”
वो कुछ पलों के लिए सोचती रही और फिर बोली,“कई बार मैंने मोती को नहाते समय अपने लंड से खेलते देखा है और अपने मोहल्ले के लड़कों को भी गली में मूतते देखा है। वो लड़कियों को देख कर अपना जोर जोर से हिलाते रहते हैं। तब कई बार मुझे गुस्सा भी आता था और कई बार इच्छा भी होती थी कि मैं भी कभी किसी का पकड़ लूं और चूस लूँ !”
“अंगूर एक बार मेरा ही चूस लो ना ?”
वो मेरी बाहों से छिटक कर दूर हो गई। एक बार तो मुझे लगा कि वो नाराज़ हो गई है पर फिर तो वो एक झटके के साथ नीचे बैठ गई और मेरे लंड को अपने मुँह में गप्प से भर कर चूसने लगी। मैं सच कहता हूँ मैंने जितनी भी लड़कियों और औरतों की चुदाई की है या गांड मारी है सिमरन को छोड़ कर लगभग सभी को अपना लंड जरूर चुसवाया है। लंड चुसवाने की लज्जत तो चुदाई से भी अधिक होती है। उसके लंड चूसने के अंदाज़ से तो मुझे भी एक बार ऐसा लगने लगा था कि इसने पहले भी किसी का जरूर चूसा होगा या फिर देखा तो जरूर होगा। वो कभी मेरे लंड पर जीभ फिराती कभी उसका टोपा अपने होंठों और दांतों से दबाती। कभी उसे पूरा का पूरा अन्दर गले तक ले जाती और फिर हौले हौले उसे बाहर निकालती। हालांकि मधुर भी लंड बहुत अच्छा चूसती है पर यह तो उसे भी मात कर रही थी। मुझे लगा अगर इसने मेरा 2-3 मिनट बिना रुके ऐसे ही चूसना जारी रखा तो मैं तो इसके मुँह में ही झड़ जाऊँगा। दरअसल मैं पहले एक बार तसल्ली से इसकी गांड मारना चाहता था। कहीं ऐसा ना हो कि मधुर ही जाग जाए। अगर ऐसा हो गया तो मेरी तो सारी मेहनत और योजना ही खराब हो जायेगी।
मैं अभी यह सोच ही रहा था कि वो अपने होंठों पर जीभ फिराती उठ खड़ी हुई। मैंने एक बार उसके होंठों को फिर से चूम लिया।
“बाबू बहुत देर हो गई कहीं मधुर दीदी ना जाग जाए ?”
“अरे तुम उसकी चिंता मत करो। वो सुबह से पहले नहीं जागेगी !” मैंने उसे बाहों में भर लेना चाहा।
“बस बाबू, अब छोड़ो मुझे, जाने दो !”
“अंगूर तुम मेरी कितनी प्यारी साली हो !”
“तो ?”
“अंगूर यार मेरी एक और इच्छा पूरी नहीं करोगी क्या ?”
“अब और कौन सी इच्छा बाकी रह गई है ?”
“अंगूर यार एक बार अपने पिछले छेद में भी करवा लो ना ?”
मैं उसे पकड़ने के लिए जैसे ही थोड़ा सा आगे बढ़ा वो पीछे हटती हुई बोली,“ना बाबा ना .... मैं तो मर ही जाउंगी !”
“अरे नहीं मेरी जान तुम्हें मरने कौन बेवकूफ देगा ? तुम तो मेरी जान हो !” मैंने उसे अपनी बाहों में भरते हुए कहा।
“इसका मतलब दीदी सच कह रही थी ना ?” उसने अपनी आँखें नचाते हुए कहा।
“क्या मतलब ?”
“तुम सभी मर्द एक जैसे होते हो। ऊपर से शरीफ बनते हो और ... और ...?”
“ओह ... अंगूर देखो मैं बहुत प्यार से करूँगा तुम्हें जरा भी दर्द नहीं होने दूंगा !” कहते हुए मैंने उसके होंठों को चूम लिया।
“वो.... वो ... ओह ... नहीं !”
“प्लीज मेरी सबसे प्यारी साली जी !”
“ओह ... पर वो... वो.... यहाँ नहीं !”
“क ... क्या मतलब ?”
“यहाँ बे-आरामी होगी, बाहर कमरे में चलो !”
मैं तो उस पर मर ही मिटा। मधु तो इसे मासूम बच्ची ही समझती है। मुझे अब समझ आया कि लड़की दिखने में भले ही छोटी या मासूम लगे पर उसे सारी बातें मर्दों से पहले ही समझ आ जाती है। इसी लिए तो कहा गया है कि औरत को तो भगवान् भी नहीं समझ पाता।
हमने जल्दी से तौलिये से अपना शरीर पोंछा और फिर मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया। उसने अपनी बाहें मेरे गले में ऐसे डाल दी जैसे कोई प्रियतमा अपने प्रेमी के गले का हार बन जाती है। हम दोनों एक दूसरे की बाहों में समाये कमरे में आ गए।
मैंने उसे बिस्तर पर लेटा दिया। वो अपनी जांघें थोड़ी सी फैला कर आँखें बंद किये लेटी रही। मेरा ध्यान उसकी बुर की सूज कर मोटी मोटी और लाल हो गई फांकों पर चला गया। मेरा तो मन करने लगा कि गांड मारने के बजाये एक बार फिर से इसकी बुर का ही मज़ा ले लिया जाए। ओह ... इस समय उसकी बुर कितनी प्यारी लग रही थी। मुझे आज भी याद है जब मैंने सिमरन के साथ पहली बार सम्भोग किया था तो उसकी बुर भी ऐसी ही हो गई थी।
मेरा मन उसका एक चुम्मा ले लेने को करने लगा। जैसे ही मैं नीचे झुकने लगा अंगूर बिस्तर पर पलट गई और अपने पेट के बल हो गई। उसके गोल गोल कसे हुए नितम्ब इतने चिकने लग रहे थे जैसे रेशम हों। मैंने बारी बारी एक एक चुम्बन उन दोनों नितम्बों पर ले लिया। अंगूर के बदन में एक हलकी सी झुरझुरी सी दौड़ गई। मैं जानता था यह डर, रोमांच और पहली बार गांड मरवाने के कौतुक के कारण था। मेरी भी यही हालत थी। मेरा पप्पू तो ऐसे तना था जैसे कोई फौजी जंग के लिए मुस्तैद हो। मैंने पास रखे टेलकम पाउडर का डिब्बा उठाया और उसकी कमर, नितम्बों और जाँघों के ऊपर लगा दिया और अपने हाथ उसके नितम्बों और कमर पर फिराना चालू कर दिया। बीच बीच में मैंने उसकी गांड के छेद पर भी अपनी अंगुली फिरानी चालू कर दी।
आप जरूर सोच रहे होंगे यार प्रेम अब क्यों तरसा रहे हो साली को ठोक क्यों नहीं देते।
ओह ... मेरे प्यारे पाठको और पाठिकाओ ... बस थोड़ा सा सब्र और कर लो। आप तो सभी बहुत गुणी और अनुभवी हैं। आप अच्छी तरह जानते हैं कि पहली बार किसी कमसिन लड़की की कुंवारी गांड मारना और कितना दुश्कर कार्य होता है। पहले क्रीम और बोरोलीन से इसे रवां करके इस कसे और छोटे से छेद को ढीला करना होगा। सबसे ज्यादा अहम् बात तो यह है कि भले ही अंगूर मेरे कहने पर गांड मरवाने को राज़ी हो गई थी पर अभी वो शारीरिक रूप से इसके लिए पूरी तरह तैयार नहीं हुई थी। जब तक वो पूरी तरह अपने आप को इसके लिए अंतर्मन से तैयार नहीं कर लेगी उसकी कोरी गांड का छल्ला ढीला नहीं होगा।
मैंने अंगूर के नितम्बों को एक बार फिर से थपथपाया और फिर उन्हें चूमते हुए कहा,“अंगूर अपनी जांघें थोड़ी से चौड़ी करो प्लीज !”
मेरी बात सुनकर उसने एक बार मेरी ओर देखा और फिर अपने नितम्बों को थोड़ा सा ऊपर करते हुए अपने घुटनों को मोड़ कर उसने अपना सिर झुका कर अपने घुटनों पर ही रख लिया। ऐसा करने से उसके नितम्ब जो आपस में जुड़े थे खुल गए और गांड का सांवले रंग का छोटा सा छेद अब साफ़ नज़र आने लगा। वह कभी खुल और कभी बंद होने लगा था। शायद रोमांच और डर के कारण ऐसा हो रहा था। मैंने अपनी अंगुली पर वैसलीन की डब्बी से खूब सारी वैसलीन निकाली।
और उसकी गांड के छेद पर लगाने में लिए जैसे ही अपना हाथ बढ़ाया, वो बोली,“बाबू ... जरा धीरे करना ... मुझे डर लग रहा है ... ज्यादा दर्द तो नहीं होगा ना ?”
ओह ... मेरे प्यारे पाठको और पाठिकाओ ... बस थोड़ा सा सब्र और कर लो। आप तो सभी बहुत गुणी और अनुभवी हैं। आप अच्छी तरह जानते हैं कि पहली बार किसी कमसिन लड़की की कुंवारी गांड मारना और कितना दुश्कर कार्य होता है। पहले क्रीम और बोरोलीन से इसे रवां करके इस कसे और छोटे से छेद को ढीला करना होगा। सबसे ज्यादा अहम् बात तो यह है कि भले ही अंगूर मेरे कहने पर गांड मरवाने को राज़ी हो गई थी पर अभी वो शारीरिक रूप से इसके लिए पूरी तरह तैयार नहीं हुई थी। जब तक वो पूरी तरह अपने आप को इसके लिए अंतर्मन से तैयार नहीं कर लेगी उसकी कोरी गांड का छल्ला ढीला नहीं होगा।
मैंने अंगूर के नितम्बों को एक बार फिर से थपथपाया और फिर उन्हें चूमते हुए कहा,“अंगूर अपनी जांघें थोड़ी से चौड़ी करो प्लीज !”
मेरी बात सुनकर उसने एक बार मेरी ओर देखा और फिर अपने नितम्बों को थोड़ा सा ऊपर करते हुए अपने घुटनों को मोड़ कर उसने अपना सिर झुका कर अपने घुटनों पर ही रख लिया। ऐसा करने से उसके नितम्ब जो आपस में जुड़े थे खुल गए और गांड का सांवले रंग का छोटा सा छेद अब साफ़ नज़र आने लगा। वह कभी खुल और कभी बंद होने लगा था। शायद रोमांच और डर के कारण ऐसा हो रहा था। मैंने अपनी अंगुली पर वैसलीन की डब्बी से खूब सारी वैसलीन निकाली।
और उसकी गांड के छेद पर लगाने में लिए जैसे ही अपना हाथ बढ़ाया, वो बोली,“बाबू ... जरा धीरे करना ... मुझे डर लग रहा है ... ज्यादा दर्द तो नहीं होगा ना ?”
मैं तो उसके इस भोलेपन पर मर ही मिटा। ओह ... वो तो शायद यही सोच रही थी की मैं थूक लगा कर एक ही झटके में अपना लंड उसकी गांड में घुसेड़ने की कोशिश करूँगा।
“अरे मेरी रानी तुम चिंता क्यों करती हो मैं इस तरह से करूँगा कि तुम्हें तो पता भी नहीं चलेगा ?”
अब मैंने उसके खुलते बंद होते छेद पर वैसलीन लगा दी और धीरे धीरे उसे रगड़ने लगा। बाहर से उसकी गांड का छेद कुछ सांवला था पर मैं जानता हूँ अन्दर से तो वो चेरी की तरह बिलकुल लाल होगा। बस थोड़ा सा नर्म पड़ते ही मेरी अंगुली अन्दर चली जायेगी। मुझे कोई जल्दी नहीं थी। मैंने थोड़ी क्रीम और निकाली और अपनी अंगुली का एक पोर थोड़ा सा गांड के छेद में डाला। छल्ला बहुत कसा हुआ लग रहा था। वो थोड़ी सी कुनमुनाई पर कुछ बोली नहीं। मैंने अपनी अंगुली के पोर को 3-4 बार हौले हौले उसके छल्ले पर रगड़ते हुए अन्दर सरकाया। अब मेरी अंगुली का पोर थोड़ा थोड़ा अन्दर जाने लगा था। मैंने इस बार बोरोलीन की ट्यूब का ढक्कन खोलकर उसका मुँह उसकी गांड के छेद से लगाकर थोड़ा सा अन्दर कर दिया और फिर उसे भींच दिया। ट्यूब आधी खाली हो गई और उसकी क्रीम अन्दर चली गई। उसे जरूर यह क्रीम ठंडी ठंडी लगी होगी और गुदगुदी भी हुई होगी। जैसे ही मैंने ट्यूब हटाई उसका छेद फिर से खुलने और बंद होने लगा और उस पर लगी सफ़ेद क्रीम चारों और फ़ैल सी गई।
अब तो मेरी अंगुली बिना किसी रुकावट के आराम से अन्दर बाहर होने लगी थी। मैंने अपनी अंगुली पर फिर से क्रीम लगाई और उसके नर्म छेद में अन्दर बाहर करने लगा। मैंने अंगूर को अपनी गांड को बिलकुल ढीला छोड़ देने को पहले ही कह दिया था। और अब तो उसे भी थोड़ा मज़ा आने लगा था। उसने अपनी गांड का कसाव ढीला छोड़ दिया जिससे मेरी अंगुली का पोर तो छोड़ो अब तो पूरी अंगुली अन्दर बाहर होने लगी थी।
अंगूर पहले तो थोड़ा आह ... ऊँह ... कर रही थी पर अब तो वो भी मीठी सीत्कार करने लगी थी। शायद उसके लिए यह नया अहसास और अनूठा अनुभव था। उसे यह तो पता था कि सभी मर्दों को गांड मारने में बहुत मज़ा आता है पर उसे यह कहाँ पता था कि अगर कायदे से (सही तरीके से) गांड मारी जाए और गांड मारने वाला अनाड़ी ना होकर कोई गुरु घंटाल हो तो गांड मरवाने औरत को चूत से भी ज्यादा मज़ा आता है।
दरअसल इसका एक कारण है। पुरुष हमेशा स्त्री को पाने के लिए प्रेम दर्शाता है पर स्त्री अपने प्रेमी का प्रेम पाने के लिए और उसकी ख़ुशी के लिए ही प्रेम करती है। जिस क्रिया में उसके प्रियतम को आनंद मिले वो कष्ट सह कर भी उसे पूरा करने में सहयोग देती है। अंगूर की मानसिक हालत भी यही बता रही थी। हो सकता है अंगूर को गांड मरवाने में आने वाले आनंद का ना पता हो पर वो तो इस समय मुझे हर प्रकार से खुश कर देना चाहती थी। उसने रोमांच और नए अनुभव के आनंद से सराबोर होकर मीठी सीत्कारें करना भी चालू कर दिया था और अब तो उसने अपने हाथ का एक अंगूठा मुँह में लेकर उसे भी चूसना चालू कर दिया था। आह ... मेरी मिक्की ... तुमने तो नया जन्म ही ले लिया है ?
कभी कभी वो अपने गांड के छल्ले को सिकोड़ भी लेती थी। उसकी गांड के कसाव को अपनी अंगुली पर महसूस करके मैं तो रोमांच से लबालब भर उठा। मेरा पप्पू तो झटके पर झटके मारने लगा था। बस अब तो जन्नत के इस दूसरे दरवाजे का उदघाटन करने का सही वक़्त आ ही गया था।
“ओहो... बाबू अब करो ना ... क्यों देर कर रहे हो ?”
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07-04-2017, 12:31 PM,
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RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
सच पूछो तो उसकी अम्मा की गांड चुदाई की बातों को सुनने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी। मैंने अब अपने धक्कों को लयबद्ध ढंग से लगाना चालू कर दिया। अंगूर की मीठी सीत्कार पूरे कमरे में गूँज रही थी। अब तो वो अपने नितम्बों को मेरे धक्कों के साथ इस तरह उछाल रही थी जैसे वो गांड मरवाने में बहुत माहिर हो गई है और कोई प्रतियोगिता ही जीतना चाहती है।
अब मुझे लगने लगा था कि मेरी पिचकारी फूट सकती है। मैंने उसके पेट के नीचे से तकिया निकाल दिया और अपने घुटने उसके नितम्बों के दोनों ओर कर दिए। ऐसा करने से मुझे अपने लंड पर उसकी गांड के छल्ले का कसाव और ज्यादा महसूस होने लगा। मैं कभी उसके गालों को चूमता कभी उसके कानों की लटकन को और कभी उसकी पीठ चूम लेता। मैं एक हाथ से उसके उरोजों को दबाने लगा और दूसरे हाथ से उसकी बुर की फांकों को मसलने लगा। उसकी बुर तो पानी छोड़ छोड़ कर सहस्त्रधारा ही बन चली थी। मैंने उसकी मदनमणि को दबाने के साथ साथ उसकी बुर में भी अंगुली करनी चालू कर दी। मैं चाहता था कि वो भी मेरे साथ ही झड़े।
“ऊईईईईईईइ ... म्माआआआ ............... ईईईईईई....इ”
अंगूर की सीत्कार गूँज गई। उसने अपनी जांघें समेटते हुए जोर जोर से अपने नितम्ब उछालने चालू कर दिए। शायद वो झड़ने लगी थी। मेरी अंगुली ने गर्म और तरल द्रव्य महसूस कर ही लिया था। मैंने भी उसकी चूत में अंगुली करने की गति बढ़ा दी और अपने आखिरी धक्के जोर जोर से लगाने चालू कर दिए।
“अंगूर मेरी जान ... तुमने तो मुझे जन्नत की सैर ही करवा दी। आह ... मेरी जान ... मैं तो ... मैं ... तो .... ग ... गया...... आआआआअ..... ”
और इसके साथ ही मेरे लंड ने भी मोक्ष प्राप्त कर ही लिया। मेरी पिचकारी गांड के अन्दर ही फूट गई। अंगूर तो कब की निढाल हो गई थी मुझे पता ही नहीं चला। वो तो बस नीचे लेटी आँखें बंद किये लम्बी लम्बी साँसें ले रही थी। हम दोनों ने ही मोक्ष का परम पद पा लिया था।
कोई 10 मिनट तक हम ऐसे ही एक दूसरे से लिपटे पड़े रहे। जब मेरा लंड फिसल कर बाहर आ गया तो मैं उसके ऊपर से उठा गया। वो ऐसे ही लेटी रही। उसकी गांड से मेरा वीर्य निकल कर उसकी बुर की ओर प्रस्थान कर उसकी फांकों और चीरे को भिगोने लगा तो उसे गुदगुदी सी होने लगी थी। मैंने उसके नितम्बों पर अपने हाथ फिराने चालू कर दिए और फिर उन्हें थपथपाने लगा तो वो पलट कर सीधी हो गई और फिर एकाएक मुझे से लिपट गई। मैंने उसे फिर से अपनी बाहों में भर लिया। वो उछल कर मेरी गोद में चढ़ गई मैं भला क्यों पीछे रहता मैंने उसे कस कर भींच लिया और उसके अधरों को अपने मुँह में लेकर चूमने लगा। मैंने एक हाथ से उसकी गांड के छेद को टटोला तो उससे झरते वीर्य से मेरी अंगुलियाँ चिपचिपा गई मैंने एक अगुली फिर से उकी गांड में डाल दी तो वो जोर से चीखी और फिर उसने मेरे होंठों को इतना जोर से काटा कि मुझे लगा उनमें से खून ही झलकने लगा होगा ।
मैं उसे गोद में उठाये ही बाथरूम में ले गया। वो नीचे बैठ कर सु सु करने लगी। सु सु करते समय उसकी धार इस बार कुछ मोटी थी और ज्यादा दूर नहीं गई पर संगीत इस बार भी मधुर ही था। उसकी गांड से भी रस निकल रहा था। उसकी बुर की सूजी हुई फांकें देख कर तो मेरा जी एक बार फिर से उसे चोद लेने को करने लगा था। सच पूछो तो उस पहली चुदाई में तो प्रमुख भागीदारी तो अंगूर की ही थी। वो ही मेरे ऊपर आकर करती रही थी। और गांड मारने में भी उतना मज़ा नहीं आया क्यों कि वो भी हमने डरते डरते किया था। मैं एक बार उसे बिस्तर पर लिटा कर ढंग से चोदना चाहता था। उसे अपनी बाहों में जकड़ कर इस तरह पीसना चाहता था कि वो बस इस्स्स्सस्स्स्स कर उठे। और फिर उसकी पनियाई बुर में अपना लंड डाल कर सुबह होने तक उसे अपने आगोश में लिए लेटा ही रहूँ।
हम दोनों ने अपने अपने गुप्तांगों को डिटोल के पानी और साबुन से धो लिया। जैसे ही हम कमरे में वापस आये अंगूर चौंकते हुए बोली,“हाय राम ... दो बज गए ?”
“ओह... तो क्या हुआ ?”
“कहीं दीदी जग गई तो मुझे तो कच्चा ही चबा जायेगी और आपको जरूर गोली मार देगी !”
“तुम्हारे जैसी खूबसूरत साली के लिए अगर मैं शहीद भी हो जाऊं तो अब कोई गम नहीं !”
पहले तो वो कुछ समझी नहीं बाद में उसने मेरे होंठों पर अपना हाथ रख दिया और बोली,“ना बाबू ऐसा नहीं बोलते !”
मैंने उसे फिर से बाहों में भर लेना चाहा तो वो छिटक कर दूर होती बोली,“नहीं बाबू बस अब और तंग ना करो ... देखो मेरी क्या हालत हो गई है। मुझे लगता है मैं 2-3 दिन ठीक से चल भी नहीं पाऊँगी ? अगर मधुर दीदी को जरा भी शक हो गया तो मुश्किल हो जायेगी ! और अनार दीदी को तो पक्का यकीन हो ही जाएगा कि आपने मुझे भी ...?” उसने अपनी नज़रें झुका ली ।
मुझे भी अब लगने लगा था कि अंगूर सही कह रही है। पर पता नहीं क्यों मेरी छठी हिस्त (इन्द्रिय) मुझे आभास दिला रही थी कि यह चिड़िया आज के बाद तुम्हारे हाथों में दुबारा नहीं आएगी। उसकी चूत और गांड की हालत देख कर मुझे नहीं लगता था कि वो कम से कम 3-4 दिन किसी भी हालत में चुदाई के लिए दुबारा राज़ी होगी। आज तो फिर भी कुछ उम्मीद है। पर मैं मरता क्या करता। मैंने तो उसे कपड़े पहनता बस देखता ही रह गया ।
मुझे यूँ उदास देख कर अंगूर बोली,“बाबू आप उदास क्यों होते हो मैं कहाँ भागी जा रही हूँ। बस आज आज रुक जाओ कल मैं फिर आपकी बाहों में आ जाउंगी !”
“हाँ अंगूर ... तुम ठीक कह रही हो !”
“बाबू मैं तो खुद आपसे दूर नहीं होना चाहती पर क्या करूँ ?”
“पर मधुर तो कह रही थी ना कि अब वो तुम्हें यहीं रख लेगी ?”
“मैं तो दासी बनकर भी रह लूंगी उनके पास पर बाबू एक ना एक दिन तो जाना ही होगा ना। मुझे इतने बड़े सपने ना दिखाओ मैं मधुर दीदी के साथ धोखा नहीं कर सकती उनके हम पर बहुत उपकार हैं। वो तो मुझे अपनी छोटी बहन ही मानती हैं। वह आपसे भी बहुत प्रेम करती हैं। बहुत चाहती हैं वो आपको !”
मैं तो उसे देखता ही रह गया। अंगूर तो इस समय कोई नादान और मासूम छोकरी नहीं अलबत्ता कोई बहुत ही समझदार युवती लग रही थी।
उसने अपनी बात जारी रखी,“बाबू आप नहीं जानते अम्मा तो मुझे उस 35 साल के मुन्ने लाल के साथ खूंटे से बाँध देने को तैयार है !”
“क्या मतलब ?”
“ओह ... मैंने आपको मुन्ने लाल के बारे में बताया तो था। वह अनार दीदी का जेठ है। 6 महीने पहले तीसरा बच्चा पैदा होते समय उसकी पत्नी की मौत हो गई थी और अब वो अम्मा और अनार दीदी को पैसे का लालच देकर मुझ से शादी कर लेना चाहता है। वो किसी सरकारी दफ्तर में काम करता है और उसकी ऊपर की बहुत कमाई है !” कहते कहते अंगूर का गला सा रुंध गया। मुझे लगा वो रो देगी ।
मैं क्या बोलता। मैं तो बस मुँह बाए उसे देखता ही रह गया। अंगूर भी जाना तो नहीं चाहती थी पर मधुर को कोई शक ना हो इसलिए उसकी मधुर के कमरे में जाकर सोने की मजबूरी थी। उसने मुझे अंतिम चुम्बन दिया और फिर वो मधुर वाले कमरे में सोने चली गई। जाते समय उसने एक बार भी मुड़ कर मेरी ओर नहीं देखा। उसने ओढ़नी का पल्लू अपने मुँह और आँखों से लगा लिया था। मैं जानता था वो अपने आँसू और बेबसी मुझे नहीं दिखाना चाहती थी।
मेरे प्यारे पाठको और पाठिकाओ ! मैंने आपको बताया था ना कि मेरी किस्मत इतनी सिकंदर नहीं है। फिर वही हुआ जिसका मुझे डर था। अगले 3 दिन तो अंगूर मुश्किल से चल फिर सकी थी। उसके गालों, होंठों, गले, पीठ और जाँघों पर मेरे प्रेम के नीले नीले निशान से पड़ गए थे। पर उसने अपने इस दर्द और प्रेम के निशानों के बारे में मधुर को तो हवा भी नहीं लगने दी थी ।
आज सुबह जब मैं ऑफिस के लिए निकल रहा था तो अंगूर रसोई में थी। मैंने चुपके से जाकर उसे पीछे से अपनी बाहों में भर लिया। वो तो,“उईईईईईई .... अम्माआआ ....” करती ही रह गई। मैंने तड़ातड़ कई चुम्बन उसके गालों और गर्दन पर ले लिए। वो तो बस आह ... उन्ह ... करती ही रह गई। और फिर जब उसने आज रात मेरे पास आ जाने की हामी भरी तब मैंने उसे छोड़ा । दिन में मैंने कई तरह की योजनाएँ बनाई कि किस तरह और किन किन आसनों में अंगूर की चुदाई करूँगा। मेरा मन कर रहा था कि जिस तरीके से मैंने मधुर के साथ अपनी सुहागरात मनाई थी ठीक उसी अंदाज़ में अंगूर के साथ भी आज की रात मनाऊंगा। पहले तो एक एक करके उसके सारे कपड़े उतारूंगा फिर मोगरे और चमेली के 15-20 गज़रे उसके हर अंग पर सज़ा दूंगा। उसके पाँव, जाँघों, कमर, गले, बाजुओं और कलाईयों पर हर जगह गज़रों के हार बाँध दूंगा। उसकी कमर के गज़रे की लटकन बस थोड़ी सी नीची रखूँगा ताकि उसकी मुनिया आधी ही ढकी रहे। उसके दोनों उरोजों पर भी एक एक गज़रे की छोटी माला पहना दूंगा। उसके बालों के जूड़े में भी एक गज़रा लगा दूंगा। पूरा बिस्तर गुलाबों की कोमल पत्तियों से सजा होगा और फिर में उसके हर अंग को चूम चूम कर उसे इतना कामातुर कर दूंगा कि वो खुद मेरे लंड को अपनी मुनिया में एक ही झटके में अन्दर समां लेगी। और फिर मैं उसे इतनी जोर जोर से रगडूंगा कि बिस्तर पर बिछी सारी गुलाब और चमेली की पत्तियों के साथ साथ उसकी बुर का भी कचूमर ही निकल जाए। और उन पत्तियों के रस और हमारे दोनों के कामरज में वो बिस्तर की चद्दर पूरी भीग जाए। मुझे तो लगने लगा था मेरा शेर अब मेरी पैंट में ही दम तोड़ देगा ।
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07-04-2017, 12:31 PM,
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RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
लिंगेश्वर की काल भैरवी
(एक रहस्य प्रेम-कथा) मेरे प्रिय पाठको और पाठिकाओ, मेरी यह कहानी मेरी एक ई-मित्र सलोनी जैन को समर्पित है जिनके आग्रह पर मैंने अपने इस अनूठे अनुभव को कहानी का रूप दिया है। ............ प्रेम गुरु
अपना पिछला जन्म और भविष्य जानने की सभी की उत्कट इच्छा रहती है। पुरातन काल से ही इस विषय पर लोग शोध कार्य (तपस्या) करते रहे हैं। उनकी भविष्यवाणियाँ सत्य हुई हैं। आपने भारतीय धर्मशास्त्रों में श्राप और वरदानों के बारे में अवश्य सुना होगा। वास्तव में यह भविष्यवाणियाँ ही थी। उन लोगों ने अपनी तपस्या के बल पर यह सिद्धियाँ (खोज) प्राप्त की थी। यह सब हमारी मानसिक स्थिति और उसकी किसी संकेत या तरंग को ग्रहण करने की क्षमता पर निर्भर करता है। अध्यात्म में इसे ध्यान, योग या समाधि भी कहा जाता है। इसके द्वारा कोई योगी (साधक) अपने सूक्ष्म शरीर को भूत या भविष्य के किसी कालखंड या स्थान पर ले जा सकता है और उन घटनाओं और व्यक्तियों के बारे में जान सकता है। आपने फ्रांस के नास्त्रेदमस की भविष्यवाणियों के बारे में तो अवश्य सुना होगा। आज भी ऐसा संभव हो सकता है। ... इसी कहानी में से समय कब पंख लगा कर उड़ जाता है पता ही नहीं चलता। अब देखो हमारी शादी को इस नवम्बर में पूरे 6 साल हो गए हैं पर आज भी लगता है जैसे कुछ दिनों पहले ही हमारी शादी हुई है। जब भी नवम्बर का महीना आता है मुझे अपना मधुर-मिलन (सुहागरात) और मधुमास (हनीमून) याद आ जाता है। शादी के 8-10 दिनों बाद मैं और मधु (मेरी पत्नी मधुर) घूमने फिरने खजुराहो गए थे। मैं और मधु तो दिन रात अपनी चुदाई में इतने मस्त रहते थे कि कहीं जाना ही नहीं चाहते थे पर मौसी और सुधा (मधु की भाभी) के जोर देने पर हमने यह प्रोग्राम बनाया था। मेरा एक बहुत अच्छा मित्र है सत्यजीत। रोहतक का रहने वाला है। उसने मेरे साथ ही इंजीनियरिंग की थी। उसकी भी नई नई शादी हुई थी और उसने भी हमारे साथ ही खजुराहो जाने का प्रोग्राम बना लिया था। नई दिल्ली से खजुराहो के लिए प्रति दिन एयर सर्विस है। हम लोग यहाँ हवाई जहाज से लगभग 1:30 बजे पहुंचे। हालांकि नवम्बर का महीना था पर ठण्ड इतनी ज्यादा नहीं थी। गुलाबी ठण्ड कही जा सकती थी। मधु ने जीन्स और गुलाबी रंग का टॉप और उसके ऊपर काली जाकेट पहनी थी। आँखों पर काला चश्मा, खुले बाल, ऊंची सैंडल, कलाइयों में कोहनियों तक लाल रंग की चूड़ियाँ। हाथों और पैरों में मेहंदी और बिल्लोरी आँखों में हल्का सा काज़ल। इन 8-10 दिनों में तो उसका रंग रूप जैसे और भी निखर आया था। उसके नितम्ब तो इतने कसे लग रहे थे कि बार बार मेरा ध्यान उनकी ओर ही चला जाता था। मेरी बड़ी उत्कट इच्छा हो रही थी कि एक बार मधु मुझे गांड मार लेने दे तो यह मधुमास (हनीमून) यादगार ही बन जाए। पर अपनी नव विवाहिता पत्नी को इसके लिए कहना और मनाना बड़ा ही मुश्किल काम था। मैं तो बस अपने सूखे होंठों पर अपनी जबान ही फेरता रह गया। मैं सत्यजीत से इस मसले पर बात करना चाहता था। मुझे पता था कि वो भी गांड का बड़ा शौक़ीन है। पता नहीं साले ने अपनी पत्नी की गांड मार भी ली होगी। उसकी पत्नी जिस तरीके से टांगें चौड़ी करके चल रही थी मेरा शक और भी पक्का हो जाता है। उसकी पत्नी रूपल भी नाम के अनुसार कमाल की सुन्दर है। रंग जरूर थोड़ा सांवला है पर नैन नक्श बहुत तीखे हैं। उसके नितम्ब तो उस समय मधु जितनी भारी नहीं थे पर उसके उरोज तो कहर बरपा ही थे। सच कहूं तो इस साले सत्यजीत की तो लाटरी ही लग गई थी। इतने बड़े बड़े और सुडौल स्तनों को चूस और मसल कर वो तो इस्स्स्सस ...... ही कर उठता होगा। इस हरियाणा के सांड को इतनी मस्त मोरनी पता नहीं कहाँ से मिल गई है। मधु और रूपल तो ऐसे घुल मिल गई थी जैसे बचपन की सहेलियां हों। होटल कलिंग में हमने दो कमरे पहले से ही बुक करवा लिए थे। पर काउंटर पर बैठा क्लर्क पता नहीं कमरे की चाबी देने में इतनी देर क्यों लगा रहा था। बस 5 मिनट - 5 मिनट ही करता जा रहा था। पता नहीं कमरा साफ़ करवाने का बहाना मार रहा था या कोई और बात थी। मुझे इस बात से बड़ी कोफ़्त सी हो रही थी वो तो साला मधुर और रूपल को घूरे ही जा रहा था। "अरे भाई जरा जल्दी करो ! कितनी देर और लगेगी ?" मैंने उकता कर कहा। "सर, बस 5 मिनट और। मैं चाहता हूँ कि आप लोगों के कमरे अच्छे से साफ़ हो और थोड़ा सजा भी दिया जाए। आप हनीमून कपल हैं ना?" उसने मेरी ओर रहस्यमयी ढंग से मुस्कुराते हुए कहा। उसकी कांइयाँ नज़रें मैं अच्छी तरह पहचानता था। ये होटल के क्लर्क और वेटर सब बड़े घाघ किस्म के होते हैं, मैं जानता था। इतने में वेटर नीचे आया और बोला "आइये सर, कमरा तैयार है। आइये मैडम..." और वो हमारा सामान लेकर लिफ्ट की ओर चलने लगा। हम सभी उसके पीछे पीछे आ गए। कमरा काफी बड़ा था। सामने टीवी, सीडी प्लयेर, एक कोने में छोटा सा फ्रिज और साइड टेबल पर टेलीफोन और नाईट लैम्प। एक बड़ा सा पलंग जिस पर साफ़ धुली हुई चद्दर 4-5 तकिये। गुलाब के फूलों की पत्तियाँ पलंग पर बिखरी हुई थी और विदेशी इत्र की खुशबू से पूरा कमरा महक रहा था। सामने दीवाल पर एक 15-16 साल की उम्र की पहाड़ी लड़की की तस्वीर लगी थी। उसने केवल घुटनों तक साड़ी पहन रखी थी और उसके सुडौल वक्ष उस झीनी साड़ी में साफ़ नज़र आ रहे थे। मोटी मोटी काली आँखों में गज़ब की सम्मोहन शक्ति थी किसी का भी मन मोह ले। पास पड़ी मेज़ पर एक फूलों का गुलदस्ता और उसके नीचे एक गुलाबी कार्ड रखा था जिस पर दो दिल बने थे। मधु ने उस कार्ड को उठा लिया और पढ़ने लगी। "आपका मधुर मिलन मंगलमय हो !" मधु मुस्कुराने लगी। साले ये होटल वाले भी किस किस तरह के टोटके आजमाते हैं। मैंने मधु को बाहों में भर लेने की कोशिश की तो मधु ने इशारे से मुझे रोक दिया। वेटर अभी भी वहीं खड़ा था। मैंने उसे 100 रुपये का एक नोट पकड़ाया तो उसने अपनी मुंडी और कमर झुका कर 3 बार हाथ से सलाम किया जैसे राजा महाराजाओं को कोर्निश करते हैं। उसने अपना नाम जयभान बताया और जाते जाते उसने बताया कि टीवी का रिमोट मेज़ की दराज़ में रखा है और उस में नई नई हिंदी और इंग्लिश फिल्मों की सीडी भी पड़ी हैं। इंग्लिश फिल्मों की सीडी का मतलब मैं अच्छी तरह जानता था। उसने बताया कि किसी और चीज की जरुरत हो तो 9 नंबर पर काउंटर पर बैठे उदय भान से बात कर लें। वह धन्यवाद करता हुआ दरवाज़ा बंद करके चला गया। मैंने झट से मधु को धर दबोचा और अपनी बाहों में भर कर इतना जोर से भींचा कि उसकी तो चीख निकलते निकलते बची। मैंने उसे पलंग पर पटक दिया और उसके गालों और होंठों को चूमने लगा। "ओह... प्रेम तुम्हें तो ज़रा सा भी सब्र नहीं होता। रुको थोड़ी देर ! मुझे बाथरूम जाना है!" मधु ने मेरी बाहों में कसमसाते हुए कहा। "अरे मेरी शहद रानी तुम्हें क्या पता, मैं पिछले 41 घंटों से सूखा ही हूँ। कल रात को तो तैयारी के चक्कर में तुमने बहाना मार लिया था और मुझे कुछ करने ही नहीं दिया था !" "चलो अब छोड़ो मुझे... कल की कमी रात को पूरी कर लेना.... ओहो.... हटो भई !" ना चाहते हुए भी मुझे उसके ऊपर से उठना पड़ा। मधु अपना वैनिटी बैग उठा कर बाथरूम में घुस गई। उस को जाते हुए मैं तो बस उसके नितम्बों को लचकता हुआ देखता ही रह गया। मेरा प्यारेलाल (लंड) तो बस आहें ही भरता रह गया। मधु बाथरूम का दरवाज़ा थोड़ा सा खोलते हुए बोली "प्रेम मुझे थोड़ा समय लगेगा तुम बाज़ार से "वो" ले आओ इतनी देर !" मधु ने मेरी ओर आँख मार दी। अब मुझे परसों रात वाली बात याद आई। ओह मधु को तो बाथरूम में कम से कम एक घंटा तो जरूर लगेगा। ओह... आप भी इन छोटी छोटी बातों को पता नहीं क्यों नहीं समझते। उसे आज अपने अनचाहे बाल साफ़ करने थे। परसों ही वो कह रही थी कि उसे अपने गुप्तांगों पर बढ़े हुए बाल बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगते। पिछले 8-10 दिनों में उसे इन्हें साफ़ करने का मौका ही नहीं मिला था। मुझे निरोध (कंडोम) का पैकेट भी खरीदना था। मधु ने कह दिया था कि वो बिना निरोध के नहीं करने देगी और वैसे भी हम दोनों ही अभी बच्चा नहीं चाहते थे। मधु पिल्स तो लेती नहीं थी इसलिए कोई सावधानी रखने की मजबूरी थी। मैं बाजार जाने के लिए कमरे से बाहर आ गया। मैं सत्यजीत को भी साथ ले लेना चाहता था। अगले दिन का प्रोग्राम बनाना था। उनको भी साथ वाला कमरा मिला था। मैंने जैसे ही उसके कमरे के दरवाजे को खटखटाना चाहा, कमरे के अन्दर से आती सिसकारियां सुनकर मैं रुक गया। "ओह ... जरा धीरे ... ओह ... जीत बड़ा मज़ा आ रहा है। आह... ओईईइ ... माआआ...." शहद जैसी मीठी आवाज़ तो रूप की रानी चंद्रावल (जीत की पत्नी रूपल) की ही हो सकती थी। "अरे मेरी रूपा रानी तेरी गांड है ही इतनी कमाल की ... मज़ा क्यों नहीं आएगा ... आह... या ... गोपी किशन की सौगंध तूने तो मुझे निहाल ही कर दिया है।" एक थप्पी जैसी आवाज आई जैसे कई बार मैं मधु के नितम्बों पर लगाता हूँ। जरूर इस साले ने रूपल को इस समय घोड़ी बना रखा होगा। मैंने नीचे झुक कर की-होल से अन्दर का दृश्य देखना चाहा पर अन्दर कुछ नज़र नहीं आया। "ओह ... जीत ... आह... पहले तो मुझे बड़ा डर लगता था और दर्द भी होता था पर अब तो सच कहती हूँ जब तक तुम एक बार मेरी गांड नहीं मार लेते मुझे मज़ा ही नहीं आता ... उईई ... मा.... आ... आ ... !" "यार तुम्हारे चूतड़ हैं ही इतने मस्त कि मैं तो इनका मुरीद (दीवाना) ही हो गया हूँ।" "हाय ... नितम्ब तो उस बिल्लो रानी के हैं ! मुझे तो ईर्ष्या होती है उसके इतने कसे हुए सुडौल नितम्बों को देख कर !" "अरे मेरी रूप कँवल ! तुम देखना दो महीने में ही तुम्हारे भी चूतड़ उस बिल्लो रानी जैसे हो जायेंगे ..." "उईई ... माँ... आह..." रूपल ने एक सिसकारी ली। पता नहीं ये दोनों किस बिल्लो रानी की बात कर रहे थे। "रूप एक बात तो है ? ये प्रेम का बच्चा तो उनका पूरा मज़ा लूटता होगा... साले ने क्या तकदीर पाई है।" "अरे नहीं... सब मेरी तरह थोड़े ही होती हैं !" "क्या मतलब ?" "मधुर बता रही थी कि प्रेम बहुत ललचाई नज़रों से उसके नितम्बों को देखता रहता है। वो भी उसकी गांड मारना चाहता है पर संकोच के मारे कह नहीं पा रहा है कहीं नवविवाहिता पत्नी को बुरा ना लगे !" "एक नंबर का लल्लू है साला ! ऐसी मटकती गांड भी भला कोई बिना मारे छोड़ने की होती है ?" "तुम्हें क्या पता कि वो कितना प्रेम करता है मधुर को ?" "हाँ यह तो है... पर मेरी रूपा रानी मैं भी तो तुम से बहुत प्रेम करता हूँ ?" "हाँ... यह बात तो है... इसीलिए तो मैं भी तुम्हें किसी चीज के लिए मना नहीं करती। तुमने तो सुहागरात में ही इसका भी मज़ा लूट ही लिया था ? पता है लड़कियां कितने नखरे करके गांड मरवाने के लिए राज़ी होती हैं ?" "अरे मेरी जान तू है ही इतनी कसूती चीज मैं अपने आप को कैसे रोक पाता !" "ऊईईई ... माँ ............" एक मीठी सीत्कार कमरे में गूंजी। "ओह ... जीत ... मेरी चूत को भी तो मसलो ... ओह ... जरा 2-3 धक्के जोर से लगाओ ... आह... ईईईइइइइइ......" "आह ... ओईई... मैं तो... मैं तो ... या इस्स्स्सस ... मैं तो ग... गया ......" "ऊईईईइ ......... मैं भी ग ......... गइइइईईईईई...." अब वहाँ रुकने का कोई अर्थ नहीं रह गया था। लिफ्ट से नीचे आते मैं सोच रहा था कि ये औरतें भी कितनी जल्दी आपस में खुल कर एक दूसरे से अपने अंतरंग क्षणों की सारी बातें बता देती हैं। मधु मेरे सामने तो लंड, चूत और चुदाई का नाम लेते भी कितना शर्माती है और इस जीत रानी (रूपल) को सब कुछ बता दिया। ओह ... मधु मेरे मन की बात जानती तो है। चलो कोई अच्छा मौका देख कर इस बाबत बात करूंगा।
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