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RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
नन्दोईजी नहीं लण्डोईजी
मैंने लोगों से सुना था कि किसी लड़की या औरत की खूबसूरती उसके उरोजों और नितम्बों से जानी जा सकती है। पर गुरूजी तो कुछ और ही फरमाते हैं। वो कहते हैं “चूत की सुन्दरता उसकी चौड़ाई से, गांड की सुन्दरता उसकी गहराई से और लंड की सुन्दरता उसकी लम्बाई से जानी जाती है। एक बार मैंने विशेष प्रवचन में गुरूजी से पूछा था कि चूत तो दो अंगुल की सुन्दर मानी जाती है तो फिर चूत की चौड़ाई से क्या अभिप्राय है तो गुरूजी ने डांटते हुए कहा था, “अरे भोले इसके लिए दोनों अंगुलियों को आड़ी नहीं सीधी यानि कि लम्बवत देखा जाता है और ये अंगुलियों जैसी, जितनी लम्बी होगी, उतनी ही सुन्दर होगी। इसीलिए चूत दो अंगुल की सुन्दर मानी जाती है। मैं जिस चौड़ाई की बात कर रहा हूँ वो चूत के नीचे दोनों जाँघों की चौड़ाई की बात है.”
गुरूजी की बातें सब के समझ में इतनी जल्दी नहीं आती। खैर अगर ऐसी चूत और गांड की बात की जाए तो मधु से भी ज्यादा सुन्दर तो सुधा है। सुधा मेरी सलहज है। अरे भई मेरी पत्नी मधु के भैय्या की प्यारी पत्नी। वो पंजाब से है ना। उन्होंने रमेश से प्रेम विवाह किया है। उम्र ३६ साल, रंग गोरा, ३८-२८-३६ ।
आप सोच रहे होंगे नितम्बों में २” की कंजूसी क्यों? पूरे ३८’ क्यों नहीं ? इसका कारण साफ़ है वो बेचारी गांड मरवाने के लिए तरसती रही है। आप तो जानते हैं गांड मरवाने से नितम्बों का आकार और सुन्दरता बढ़ती है। रमेश का जब से एक्सीडेंट हुआ है और सेक्स-क्षमता कुछ कम हुई है, वो बेचारी तो लंड के लिए तरस ही रही थी। वैसे भी रमेश को गांड मारना बिल्कुल पसंद नहीं है।
गुरूजी कहते हैं जिस आदमी ने अपनी खूबसूरत पत्नी की गांड नहीं मारी समझो वो जीया ही नहीं। उसका ये जन्म तो व्यर्थ ही गया। ऐसे ही आदमियों के लिए शायद ये गाली बनी है ‘साला चूतिया !’
सुधा मुझे नन्दोईजी कहकर बुलाती थी। लगता था जैसे उसके मुंह से लन्दोईजी ही निकल रहा हो। पहले तो मैंने ध्यान नहीं दिया पर जब भी मैं अकेला होता तो पता नहीं वो जानबूझ कर ऐसा बोलती थी या उसकी बोली ही ऐसी थी मैंने गौर नहीं किया।
एक बार जब मैं और मधु उनके यहाँ गए हुए थे मैंने बातों ही बातों में उसे मज़ाक में कह दिया,“भाभी आप मुझे नन्दोईजी मत बुलाया करो !”
“क्यों क्या आपको लन्दोईजी कहना अच्छा नहीं लगता ?” उसके चेहरे पर कोई ऐसा भाव नहीं था जिससे मैं समझ सकता कि उसके मन में क्या है। यही तो कुदरत ने इन औरतों को ख़ास अदा दी है।
“नहीं ऐसी बात नहीं है, दरअसल मैं आप से छोटा हूँ और आप मुझे जी लगाकर बुलाती है तो मुझे लगता है कि मैं कोई ६० साल का बूढा हूँ। ” मैंने हंसते हुए कहा कहा।
“तो फिर कैसे … किस नाम से बुलाऊं लन्दोईजी ?”
“आप मुझे प्रेम ही बुला लिया करो !”
“ठीक है प्रेम प्यारे जी !” सुधा ने हंसते हुए कहा।
जिस अंदाज में उसने कहा था उस फिकरे का मतलब तो मैं पिछले चार पांच महीनों से सोचता ही रहा था। अब भी कभी कभी मजाक में वो लंदोईजी कह ही देती है पर सबके सामने नहीं अकेले में.
बात कोई मेरी शादी के डेढ़ दो साल के बाद की है। इतने दिनों तक तो मैं मधु की चूत पर ही मोर (लट्टू) बना रहा पर जब उसकी चूत का छेद कुछ चौड़ा हो गया तो मेरा ध्यान उसकी नाजुक कोरी नरम मुलायम गांड पर गया। वो पट्ठी गांड के नाम से ही बिदक गई। उसने अपनी कॉलेज की किसी सहेली से सुना था कि गांड मरवाने में बहुत दर्द होता है और उसकी सहेली की तो पहली ही रात में उसके पति ने इतनी जोर से गांड मारी थी कि वो खून-ओ-खून हो गई थी और डॉक्टर बुलाने की नौबत आ गई थी।
अब भला वो मुझसे इतनी जल्दी गांड कैसे मरवाती। मुझे उसे गांड मरवाने के लिए तैयार करने में पूरे ३ साल लग गए। खैर ये किस्सा अभी नहीं, बाद में अभी तो सिर्फ सुधा की बात ही करेंगे।
कहते है जहां चाह वहाँ राह। लंड और पानी अपना रास्ता खुद बना लेते हैं। मधु को पहली डिलिवरी होने वाली थी। कभी भी हॉस्पिटल ले जाना पड़ सकता था। डॉक्टरों ने चुदाई के लिए मना कर दिया था और वो गांड तो वैसे भी नहीं मारने देती थी। घर पर देखभाल के लिए सुधा (मेरी सलहज) आई हुई थी।
अक्टूबर का महीना चल रहा था। गुलाबी ठण्ड शुरू हो चुकी थी और मैं अपने लंड को हाथ में लिए मुठ मारने को मजबूर था। हमारे घर में गेस्ट-रूम के साथ लगता एक कोमन बाथरूम है। एक दिन जब मैं उस बाथरूम में मुठ मार रहा था तो मैं जोर जोर से सीत्कार कर रहा था। ‘हाईई… शहद रानीई… तुम ही अपनी चूत दे दो ! क्या अचार डालोगी हाईई … ! चूत नहीं तो गांड ही दे दो …!” अचानक मुझे लगा कि कोई चाबी-छिद्र से देख रहा है। मैं झड़ तो गया पर मैंने सोचा कौन हो सकता है। मधु तो अपने कमरे में है फिर ….। नौकरानी है या कहीं मेरी शहद रानी (सुधा) तो नहीं थी। सुधा शहद की तरह मीठी है मैं उसे शहद रानी ही कह कर बुलाता हूँ।
जब मैं बाहर निकला तो सुधा तो मधु के पास बैठी गप्प लगा रही थी। नौकरानी अभी नहीं आई थी। मैं समझ गया ये जरूर सुधा ही थी। जैसे कि आप तो जानते ही हैं कि मैं एक नंबर का चुद्दकड़ हूँ पर मेरी पत्नी और ससुराल वालों के सामने मेरी छवि एकदम पत्नी भक्त और शरीफ आदमी की है। मधु तो मुझे निरा मिट्ठू ही समझती है। हे भगवान् सुधा ने क्या समझा होगा। उसके बाद तो दिन भर मैं उससे नजरें ही नहीं मिला सका।
संयोग से दो तीन दिनों बाद ही करवा-चोथ का व्रत था। मधु की हालत ऐसी नहीं थी कि वो व्रत रख सकती थी। मैंने उसकी जगह व्रत रख लिया। सुधा का भी व्रत था। इस व्रत में दिन भर भूखा रहना पड़ता है। चाँद को देखकर ही अपना व्रत तोड़ते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दूँ उत्तरी भारत में इस व्रत का बड़ा महत्व है। ख़ासकर राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में तो औरतें दिन में पानी तक नहीं पीती।
मेरा दोस्त गोटी (गुरमीत सिंह) बताता है कि उसकी पत्नी तो बिना लंड चूसे और चूत चुसवाये अपना व्रत तोड़ती ही नहीं है। ऐसी मान्यता है कि करवा का व्रत रखने से और लंड का पानी पीने से पहला बच्चा लड़का ही पैदा होता है। पता नहीं कहाँ तक सच है पर जिस हिसाब से पंजाब और हरियाणा में लड़के ज्यादा पैदा होते है इस बात में दम जरूर नजर आता है। अगले प्रवचन में गुरूजी से ये बात जरूर पूछूँगा।
एक खास बात तो बताना ही भूल गया। मधु भले ही उन दिनों गांड न मारने देती हो पर लंड चूसने में कोई कोताही नहीं करती थी। और मेरा वीर्य तो जैसे उसके लिए अमृत है। वो कहती है कि पति का वीर्य पीने से उनकी उम्र बढ़ती है और उसे शहद के साथ चाटने या पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है। वैसे तो ये गोली भी उसे मैंने ही पिलाई थी। पर इसी लिए तो मैं उसका मिट्ठू बना हुआ हूँ। करवाचोथ की रात चाँद देखने के बाद वो मेरा लंड चूसती है और पूरा पानी पीकर ही अपना व्रत तोड़ती है। मैं अपना व्रत उसका मधु रस (चूत रस) पीकर तोड़ता हूँ। पर मैं आज सोच रहा था कि आज तो मुझे सादा पानी पीकर और मधु को दवाई लेकर ही अपने व्रत तोड़ने पड़ेंगे।
ये कार्तिक माह का चाँद भी साला (बच्चो का मामा मेरा साला ही तो हुआ ना) रात को देर से ही उगता है बेचारी औरतों को सताने में पता नहीं इसको क्या मजा आता है। यार कम से कम हम जैसों के लिए तो पहले उग जाया करो। खैर कोई रात के ९.३० या १० बजे के आस-पास मैं छत पर चाँद देखने गया। पूर्व दिशा में चाँद ने अपनी लाली कब की बिखेरनी शुरू कर दी थी नीचे पेड़ पोधों और मकानों के कारण पता ही नहीं लगा। मैं जल्दी से सीढ़ियों से नीचे आया। मधु तो ऊपर जा नहीं सकती थी सुधा एक थाली में कुछ फूल, रोली, करवा (मिटटी का बना छोटा सा लोटा), चावल, शहद, गुड़, मिठाई आदि रख कर मेरे साथ ऊपर आ गई। हमारे घर की छत पर एक छोटा सा स्टोर बना है उसके पीछे जाकर चाँद देखा जा सकता था। हम दोनों उसके पीछे चले गए। अगर कोई सीढ़ियों से आ भी जाए तो कुछ दिखाई नहीं पड़ता। सुधा ने छलनी के अन्दर से चाँद को देखकर उसे करवे से पानी अर्पित किया और फिर खड़ी खड़ी अपनी जगह पर दो बार घूम गई। इस दौरान उसका पैर थोड़ा सा डगमगाया और उसके नितम्ब मेरे पाजामे में खड़े ७” के लंड से टकरा गए। मैंने अन्दर चड्डी नहीं पहनी थी। उसने एक बार मेरी ओर देखा पर बोली कुछ नहीं। उसने चाँद के आगे अपनी मन्नत मांगनी शुरू की :
“हे चाँद देवता मेरे पति की उम्र लम्बी हो उनका स्वास्थ्य ठीक रहे…। ”
फिर थोड़ी धीमी आवाज में आगे बोली “और उनका वो सदा खड़ा और रस से भरा रहे !”
‘वो’ का नाम सुनकर मैं चोंका। मैंने जानता था ‘वो’ क्या होता है पर मैंने सुधा से पूछ ही लिया “भाभी ‘वो’ क्या हुआ ?”
“धत् …” वो इतना जोर से शरमाई जैसे १६ साल की नव विवाहिता हो।
“प्लीज बताओ ना भाभी ‘वो’ क्या ?”
“नहीं मुझे शर्म आती है !”
“प्लीज भाभी बताओ ना !”
“क्या मधु ने नहीं बताया ?”
“नहीं तो !” मैं साफ़ झूठ बोल गया।
“इतने भोले तो आप और मधु नहीं लगते ?”
“सच भाभी वो तो वो तो … मेरा मतलब है …” मेरा तो गला ही सूखने लगा और मेरा लंड तो पहले से ही १२० डिग्री पर खड़ा था पत्थर की तरह कड़ा हो गया।
“मैं सब जानती हूँ मेरे लन्दोईजी … मुझे इतनी भोली भी मत समझो !” और उसने मेरे खड़े लंड पर एक प्यारी सी चपत लगा दी। “ हाय राम ये तो बड़ा दुष्ट है !” वो हंसते हुए बोली।
अब बाकी क्या बचा रह गया था। मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया। वो भी मुझ से लिपट गई। मैंने अपने जलते हुए होंठ उसके होंठों पर रख दिए। उफ्फ्फ …। गुलाब की पंखुड़ियों जैसे नरम मुलायम होंठ। पता नहीं मैं कितनी देर उनका रस चूसता रहा। सुधा ने पजामे के ऊपर से ही मेरा लंड पकड़ रखा था और धीरे धीरे सहला रही थी। मैंने भी एक हाथ से उसकी साड़ी के ऊपर से ही उसकी चूत सहलानी शुरू कर दी, शायद उसने भी पेंटी नहीं पहनी थी। उसकी झांटों को मैं अच्छी तरह महसूस कर रहा था।
कोई ५ मिनट के बाद एक झटके के साथ वो अपने घुटनों के बल बैठ गई और मेरे पजामे का नाड़ा खोल कर मेरे पप्पू को बाहर निकाल लिया। मेरा लंड तो पिछले २ महीनों से प्यासा था। उसने बिना कोई देरी किये मेरा लंड एक ही झटके में अपने मुंह में ऐसे ले लिया जैसे कोई बिल्ली किसी मुर्गे की गर्दन पकड़ लेती है। मैं उसका सिर सहला रहा था। पता नहीं वो दिन भर की प्यासी थी या कई बरसों की।
उसकी चूसने की लज्जत से मैं तो निहाल ही हो गया। क्या कमाल का लंड चूसती है। हालांकि मधु को मैंने लंड चूसने की पूरी ट्रेनिंग दी है पर सुधा जिस तरीके से मेरा लंड चूस रही थी मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि अगर लंड चुसाई का कोई मुकाबला करवा लिया जाए तो सुधा अव्वल नंबर आएगी।
वो कभी मेरे लंड को पूरा मुंह में ले लेती कभी बाहर निकाल कर चाटती कभी सुपाड़े को ही मुंह में लेकर चूसती कभी उस पर अपने दांत से हौले से काट लेती। एक दो बार उसने मेरे दोनों चीकुओं (अण्डों) को भी मुंह में लेकर चूसा।
मैं तो बस आह्ह … ओईई …। ओह्ह … या …। ही करता जा रहा था। कोई ७-८ मिनट हो गए थे। मैंने उसका सिर पकड़ रखा था और उसका मुंह ऐसे चोद रहा था जैसे वो कोई चूत ही हो। वो तो मस्त हुई जोर जोर से चूसे जा रही थी। अब मुझे लगाने लगा कि मैं झड़ने के करीब हूँ तो मैंने उसे इशारा किया मैं जाने वाला हूँ तो उसने भी इशारे से कहा “कोई बात नहीं !”
मैंने उसका सिर जोर से पकड़ लिया और अपने लंड को उसके मुंह में आगे पीछे करने लगा जैसे उसका मुंह न होकर चूत या गांड हो। और फिर एक दो तीन चार पांच ….। कितनी ही पिचकारियाँ मेरे लंड ने दनादन छोड़ दी। सुधा तो जैसे निहाल ही हो गई उस अमृत को पी कर। उसका व्रत टूट गया था। उसने एक चटखारा लेकर कहा “वह मजा आ गया मेरे लन्दोईजी !”
“आपका व्रत तो टूट गया पर मेरा कैसे टूटेगा ?”
“नहीं..। अभी नहीं … बाद में… ”
पर मैं कहाँ मानने वाला था। मैंने एक झटके में उसकी साड़ी और पेटीकोट ऊपर कर दिया। वाह …। चाँद की दुधिया रोशनी में उसकी काले काले घुंघराले झांटों के झुरमुट से ढकी मखमली चूत देखने लायक थी। हालांकि उसकी चूत पर बहुत सारे झांट थे लम्बे लम्बे पर उसमे छुपी हुई मोटे मोटे होंठों वाली चूत साफ़ देखी जा सकती थी। जैसे किसी गुलदस्ते में सजा हुआ एक खिला गुलाब का फूल हो एकदम सुर्ख लाल। उसकी चूत पर उगे लम्बे लम्बे झांट देख कर मुझे पाकीज़ा फिल्म का वो डायलोग याद आ गया :
“आपकी चूत पर उगी काली लम्बी घनी रेशमी झांटें देखी
इन्हें काटियेगा नहीं, चूत बे-परदा हो जायेगी ”
मैंने तड़ से एक चुम्बन उस पर ले लिया और उसके होंठ अपने मुंह में लेकर चूमने लगा। अन्दर वाले होंठ तितली के पंखों की तरह कोई दो ढाई इंच लम्बे तो जरूर होंगे। तोते की चोंच की तरह बने बीच के होंठ बहुत बड़ी चुद्दकड़ औरतों के होते है। मुझे लगा सुधा भी एक नंबर की चुद्दकड़ है। साले रमेश (मेरा साला) ने उसे ढंग से चोदा हो या नहीं पर चूत की फांकों को कमाल का चूसा होगा तभी तो इतनी बड़ी हो गई हैं।
“बस अब चलो बाकी बाद में नहीं तो मधु तुम्हारी जान निकाल देगी मेरे प्यारे नन्दोईजी अ…अरे नहीं लण्डोईजी …!” उसने हंसते हुए कहा। मैं मन मार कर प्यासा ही बिना व्रत तोड़े नीचे आ गया।
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RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
क्यों हो गया ना ?
गुरूजी कहते हैं “जिन के घर शीशे के होते हैं वो लाईट जला कर मुट्ठ नहीं मारा करते ”
रात के कोई साढ़े दस बजे हैं। मैंने सभी दरवाजे और खिड़कियाँ बंद कर के एक ब्लू-मूवी डाल लगाई। एक ३५-३६ साल की औरत सोफे की आर्म्स पर अपनी दोनों टांगें चौड़ी किये हस्त मैथुन कर रही है, एक हाथ की अंगुली उसकी चूत में सटासट आ जा रही है और दूसरे हाथ की अंगुली उसकी गांड में। बीच बीच में वो अपनी चूत वाली अँगुली को मुंह में लेकर चटखारे ले रही है और आह …. उन्ह्ह…. की आवाज निकाल रही है।
वाह…. क्या मस्त सीन है !
मैं ड्राइंग रूम में अकेला सोफे पर बैठा हूँ बिलकुल नंगधड़ंग, पप्पू बेकाबू हुआ जा रहा है। आज तो उसका जलाल और लम्बाई देखने लायक है। अड़ियल टट्टू की तरह अकड़ा हुआ है. इतने में मोबाइल की घंटी बजती है, मैंने मोबाइल की स्क्रीन देखी पर नंबर की जगह केवल ********** आ रहे हैं. कमाल है ये कैसा और किसका नंबर हो सकता है ? …..
हेल्लो ?
हाय कैसे हो ?
आप कौन बोल रही हैं ?
क्या बेहूदा सवाल है ?
क्या मतलब ?
अच्छा क्या कर रहे थे ?
वो …. वो.. मैं …. मु …. ओह.. सॉरी…. आप कौन ?
फिर वो ही बेहूदा सवाल ?
देखिये मैं फोन बंद कर दूंगा ?
तुम्हारे बाप का राज़ है क्या ? ओह सॉरी डियर …. बुरा मत मानना ….. ओह …. कहीं मैंने डिस्टर्ब तो नहीं किया?
नहीं कोई बात नहीं…. पर आप क ? ………….
अच्छा कहीं मुट्ठ तो नहीं मार रहे थे ?
क्या मतलब ?
ओह फिर वही बे ….. अच्छा चलो कोई बात नहीं कभी कभी मुट्ठ मारना भी अच्छा रहता है ?
पर आप हैं कौन ?
नाम जानकर क्या करोगे ?
नहीं पहले अपना नाम बताइये !
चलो, मैं तुम्हारी एक चाहने वाली हूँ !
कोई नाम तो होगा ?
मुझे मैना कह सकते हो ?
मैना.. ? कौन मैना ?
क्या फर्क पड़ता है कोई भी हो ?
वो.. वो…. पर …. ?
अरे रुक क्यों गए …. मुट्ठ मारना चालू रखो !
आप कमाल करती हैं?
कमाल तो तुम कर रहे हो !
वो कैसे ?
अरे बाबा जिनके घर शीशे के होते हैं वो लाईट जला कर मुट्ठ नहीं मारा करते ? कम से कम खिड़की और दरवाजे तो बंद कर लिए होते !
वो.. वो.. सॉरी …. ओह.. पर खिड़की और दरवाजे तो बंद हैं ?
इसका मतलब मैं ठीक सोच और बोल रही हूँ न ? तुम वाकई मुट्ठ ही मार रहे थे ना ?
आप हद पार कर रही हैं !
तुम हद पार कहाँ करने दे रहे हो ?
मतलब ?
अच्छा चलो एक बात बताओ !
क्या ?
ये मैना कहाँ गई हुई है ?
मैना…. कौन मैना ?
ओह.. मेरे भोले मिट्ठू मैं तुम्हारी असली मैना की बात कर रही हूँ !
ओह.. मधु.. वो…. ओह.. वो हाँ वो यहाँ नहीं है !
शाबास …. एक बात और बताओ !
क्या ?
उसकी ज्यादा याद आ रही थी क्या ?
क्या मतलब ?
तुम भी एक नंबर के गैहले हो !
क्या मतलब ये गैहला क्या होता है ?
तुम निरे लोल हो अब लोल का मतलब मत पूछना !
ओह ….
अच्छा छोडो एक और बात बताओ !
क्या ?
क्या तुमने कभी मधु के साथ गधा-पचीसी खेली है ?
गधा पचीसी …. क्या मतलब ?
ओह.. लोल गधा-पचीसी बोले तो क्या तुमने मधु की गांड मारी है ?
देखिये….
ओह.. नाराज़ क्यों होते हो इसमें बुरा मानने वाली क्या बात है ?
मेरी पत्नी के बारे में …. ऐसी …. बात ….
अरे फिर क्या हुआ सभी मर्द अपनी औरतों की गांड मारते ही हैं इसमें बुराई क्या है ?
पर मैं ऐसा नहीं हूँ।
आर यू श्योर ?
ओह आप बड़ी बे-शर्म हैं ?
एक बात पूछूं सच बताना ?
क्या ?
तुम ने कभी उसकी गांड मारने की कोशिश नहीं की ?
नहीं ?
ऐसा कैसे हो सकता है ?
क्या मतलब ?
इतने मस्त कूल्हे देखकर तो किसी नामर्द का भी लौड़ा उठ खडा होता है फिर तुम कैसे कह सकते हो की तुमने उसकी गांड मारने की कोशिश नहीं की ?
वो.. वो …. दरअसल….
ओह …. इसका मतलब वो तुम्हे गांड नहीं मारने देती ?
चलो ऐसा ही मान लो !
तुम भी एक नंबर के लोल हो ?
वो कैसे ?
गुरूजी कहते हैं जिस आदमी ने अपनी औरत की गांड नहीं मारी समझो उसका यह जन्म और अगला जन्म तो बेकार ही गया। अगर ऐसे मस्त नितम्बों वाली औरतों की गांड नहीं मारी जाए तो वे उभयलिंगी बन सकती हैं और अगले जन्म में तो शर्तिया वो खच्चर या किन्नर बनती हैं तो सोचो दोनों ही जन्म व्यर्थ गए या नहीं।
ओह …. नहीं आप झूठ बोल रही है ?
पर गुरूजी तो ऐसा ही कहते हैं।
ये गुरूजी कौन है ?
इसीलिए तो मैं कहती हूँ तुम एक नम्बर के लोल हो !
जरा खुल कर बताओ !
तो फिर प्रेम आश्रम में क्या गांड मरवाने जाते हो ?
वो.. वो.. आप कैसे जानती हैं ?
मैंने भी वहाँ से खास ट्रेनिंग की है चलो छोड़ो ! क्या वाकई तुम मधु की गांड मारना चाहते हो ?
चलो तुम्हारी ख़ुशी के लिए हाँ !
वो क्या कहती है ?
वो तो कहती है भला गांड भी कोई मारने की चीज है ?
साली एक नंबर की चोदू है उसे कोई पूछे तो क्या चूत केवल मूतने के लिए ही होती है ? जब चूत में लंड लिया जा सकता है तो फिर गांड में क्यों नहीं ? और तुमने उस साली की बातों पर यकीन कर लिया ?
हाँ !!
कैसे मर्द हो तुम भी ? साली को पटक कर ठोक दो किसी दिन !
ठीक है ऐसा ही करूँगा !
तुमने मुट्ठ मारना बंद तो नहीं कर दिया ?
ओह …. आ …. न्न ….ऽऽऽ
चलो शुरू हो जाओऽऽ
तुम तो मेरी क्लास टीचर की तरह मुझे हुक्म दे रही हो ?
क्या मतलब ?
वो भी ऐसे ही डांटती थी।
ओ.के. चलो शुरू हो जाओ !
ठीक है !
मैं भी सोफे पर बैठी मुट्ठ ही मार रही थी !
तुम मेरे पास चली आओ ना ?
ऐसे तो बड़े मिट्ठू बनाते हो मैना के ?
तुम मधु से इतना जलती क्यों हो ?
वो साली चीज ही ऐसी है ! हाय क्या मस्त चूतड़ हैं ! इसीलिए तो कहती हूँ उसे तो उल्टा पटक कर ही ठोकना चाहिए।
ठीक है, क्या तुम भी गांड मरवाती हो ?
हाँ कभी कभी पर मेरे पति का तो बहुत छोटा है ?
कितना बड़ा है ?
कोई ३ या ४ इंच का होगा !
बस ?
हाँ. और तुम्हारा कितना बड़ा है ?
क्या तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा ?
अबे साले पर्दा खिड़की दरवाजा सब तो बंद कर रखा है फिर कैसे दिखेगा ?
खोल दूँ क्या ?
पड़ोसी मारेंगे !
मेरा तो ७” का है
आईला ….. क्या मस्त पप्पू है ?
तुम्हारी उम्र कितनी है ?
औरतों की एज नहीं पूछी जाती ?
तो फिर क्या पूछा जाता है ?
उनकी तो साइज़ पूछी जाती है
अच्छा साइज़ ही बता दो ?
किसकी ?
चूत की और किसकी ?
धत् …. शैतान कहीं के ….. ?
ओह .. तुम तो शरमा गई …. प्लीज बताओ नाऽऽऽ !
ओह.. मेरी मुनिया तो बहुत छोटी है !
फिर भी कितनी बड़ी ?
एक माचिस की तिकोनी डिब्बी जीतनी और चीरा तो बस ३ इंच का है जैसे किसी छोटी सी परवल को बीच में से चीर दिया हो !
बस ?
हाँ
पर इतनी छोटी कैसे ?
मैंने ओपरेशन जो करवा लिया है पहले मेरी चूत का चीरा ५” का था उसमे मज़ा नहीं आता था तो मैंने उसकी सिलाई करवा ली है !
अब तो बड़ा मज़ा आता होगा ?
क्या ख़ाक मज़ा आता है ?
क्यों ?
अरे उस साले का खड़ा ही नहीं होता !
अच्छा तुम्हारी चूत कैसी है और उसका रंग कैसा है ?
होंठ संतरे की फांकों की तरह हैं पर थोड़े काले हैं पर अन्दर से एक दम गोरी गुलाबी रतनार है बिलकुल रस भरी कुप्पी की तरह. पंखुडियां बाहर से कुछ काली लगती हैं पर अन्दर से गुलाबी और बहुत पतली हैं. किसमिस का दाना तो मोटा और सुरमई है ?
क्या चुसवाती हो ?
अब तो यही करना पड़ता है !
तुम कौन से आसन में चुदवाना पसंद करती हो ?
ओह.. मैं तो चाहती हूँ की कोई मुझे पकड़ कर रगड़ दे बस..
ओफो.. फिर भी कैसे ?
दोनों टांगें को हाथों से पकड़ कर ऊपर तान दे और मोटा सा लंड गच्च से अन्दर ठोक दे या फिर …. मुझे कुत्ता बिल्ली आसन सबसे ज्यादा पसंद है।
ये भला कौन सा आसन हुआ ?
तुम आदमी हो या पजामा ?
ओह.. बताओ ना ?
इस आसन में औरत बेड के एक किनारे पर अपने पंजे थोड़े से बाहर निकल कर घुटनों के बल बैठ जाती है, अगर औरत थोडी मोटी है और ज्यादा चुद्दक्कड़ है या उसकी चूत कुछ बड़ी या ढीली है तो गोद में एक तकिया रखकर घुटनों में सर लग कर अपने नितम्ब कुछ ऊँचे कर लेती है. पीछे से उसका पार्टनर फर्श पर खडा होकर उसकी कमर को दोनों हाथों से पकड़ कर एक ही झटके में लंड उसकी चूत में ठोक देता है बिना रहम किये. एक बार उस मैना को भी ऐसे ही ठोक कर देखो मज़ा आ जायेगा ?
ओह.. तुम तो बड़ी बे-रहम हो उस बेचारी की तो जान ही निकल जायेगी !
अबे लोल.. औरत के साथ शुरू शुरू में तो ठीक है बाद में रहम नहीं करना चाहिए. नहीं तो आदमी को लोल समझ लेती है !
ठीक है मास्टरनीजी !
मैं तो चाहती हूँ इसी तरह कोई मेरी कमर पकड़ कर एक ही झटके में अपना पूरा लंड मेरी गांड में भी ठोक दे और आधे घंटे पेलने के बाद 8-१० पिचकारी अन्दर ही छोड़ दे….बस मज़ा आ जाए !
क्या चुसवाती भी हो ?
अब तो यही करना पड़ता है वो साला तो २ मिनिट में ही टीं हो जाता है।
कमर कितनी होगी ?
कमर है ३२ इंच !
और स्तन ?
वो तो बड़े मस्त हैं ३६ साइज़ के गोल मटोल बिलकुल ठां लगती हूँ !
ठां बोले तो ?
ओह …. लोल …. कहीं के “ठां” मतलब बिलकुल बोम्ब पटाका !
कभी चुसवाये हैं ?
हाँ मैं तो खूब चुसवाती हूँ और कभी कभी खुद भी इनके चूचुक मुंह में डाल कर चूसती हूँ, बड़ा मज़ा आता है ! क्या तुम्हें मोटे वक्ष पसंद हैं ?
हाँ मैं तो रात भर चूसता रहता हूँ !
और मैना क्या करती है उस दौरान ?
वो मेरे पप्पू से खेलती रहती है !
अच्छा तुम्हारे नितम्बों का साइज़ क्या है ?
क्यों ?
ऐसे ही जानकारी के लिए !
कोई गलत इरादा तो नहीं ?
अरे नहीं ?
क्यों क्या मटकते कूल्हे तुम्हे अच्छे नहीं लगते ?
मैं तो मुरीद हूँ मोटे नितम्बों का !
तो मधु को क्यों छोड़ रखा है ?
ओह.. उसकी कमी तुम पूरी कर दो ना ?
बड़े बदमाश हो ?
ओह.. बताओ ना तुम्हारे नितम्बों का साइज़ क्या है ?
बहुत ही मस्त हैं पर साली मधु से ज्यादा सुन्दर नहीं हैं।
क्या तुम्हे गांड मरवाना पसंद है ?
ओह …. मैं तो तीनों छेदों में लेती हूँ !
दो तो सुने थे ये तीसरा छेद कौन सा हुआ ?
ओह.. लोल …. ओह.. ना रे तुम लोल नहीं पूरे गुरुघंटाल हो. अब तुम इतने लोल भी नहीं की तीसरे छेद का मतलब भी ना जानो ?
हा.. हा …. हा …..
तुम हंस रहो हो ?
तुम्हारे तो मज़े ही मज़े हैं !
अच्छा तुम्हारी मलाई निकालने में कितनी देर लगती है ?
चूत में या मुट्ठ मारने में ?
चलो दोनों में ही बता दो !
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07-04-2017, 12:42 PM,
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RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
उस रात की बात
मिक्की-एक रहस्य प्रेम कथा प्रस्तुत है :
जब मैं आगरा से भरतपुर के लिए चला था तो मेरा अंदाजा था कि मैं कोई 10 – 10:30 तक पहुँच जाऊँगा। पर रास्ते में कार का पहिया पंचर हो गया और फिर सामने आइसक्रीम पार्लर में खड़ी उस मिक्की जैसी लड़की को देखने के चक्कर में एक घंटा लेट हो गया। ऐसा नहीं है कि मैं मिक्की को याद नहीं करता पर जब भी 11 या 13 सितम्बर की तारीख आती है मैं उदास सा हो जाता हूँ। 11 सितम्बर को मिक्की का जन्म दिन होता है और 13 सितम्बर को 23:59 पर वो हमें छोड़कर इस दुनिया से चली गई थी। जिस दिन वो वापस जा रही थी उसने मुझसे वादा किया था कि वो लौट कर जरूर आएगी।
आज भी उसके अंतिम शब्द मेरे कानों में गूंजते रहते हैं :
“मेरे प्रथम पुरुष मेरे कामदेव मेरी याद में रोना नहीं। अच्छे बच्चे रोते नहीं हैं। मैं फिर आउंगी, मेरी प्रतीक्षा करना”
मिक्की मैं तो जन्म जन्मान्तर तक तुम्हारी प्रतीक्षा करता रहूँगा मेरी प्रेयसी।
मैं मिक्की की याद में खोया उसी रेशमी रुमाल और पेंटी को हाथों में लिए कार चला रहा था और मिक्की द्बारा किये वादे के बारे में ही सोच रहा था रात के कोई 12 या पोने बारह बजने वाले थे। सामने मील पत्थर पर भरतपुर 13 कि. मी. लिखा था। अचानक मुझे लगा कार हिचकोले खाने लगी है। हे भगवान् इस घने जंगल और बीच रास्ते में कहीं गाड़ी खराब हो गई तो ? मैंने आगरा में पेट्रोल से टंकी फुल करवाई थी पर फ्यूल इंडिकेटर दिखा था कि पेट्रोल ख़तम हो गया है। ये कैसे हो सकता है ?
मैंने गाड़ी साइड में लगाईं और फ्यूलटेंक देखा। वो तो खाली था। मुझे ध्यान आया कि पिछले आधे पौने घंटे में किसी भी गाड़ी ने क्रॉस नहीं किया वरना तो ये रोड बहुत ही व्यस्त रहती है। आमतौर पर इन दिनों में बारिश नहीं के बराबर होती है पर बादल भी हो रहे थे और बिजली भी चमक रही थी। लगता था बारिश हो सकती है। हे भगवान् इस घने जंगल में ना कोई मकान ना कोई पेट्रोल पम्प और ना कोई गाड़ी। मैं मील पत्थर पर पैर रखकर किसी गाड़ी का इन्तजार करने लगा।
तभी एक गाड़ी की हेड लाईट दिखाई दी। मैं झट से सड़क पर आ गया और उसे रुकने को हाथ दिया। कार ठीक मेरे पास आकर रुक गई। कार को कोई जवान सी दिखने वाली लड़की सफ़ेद सा कोट पहने आँखों पर मोटा चश्मा लगाए चला रही थी।
जब उसने अपना मुंह खिड़की से बाहर निकाला तो मैंने उससे कहा,“मैडम मेरी गाड़ी खराब हो गई है। ये देखिये मेरा आई. डी. कार्ड मैं भरतपुर का रहने वाला हूँ। मैं एक शरीफ ………” मैंने अपना आई डी कार्ड उसे दिखाते हुए कहा पर उसने कार्ड की ओर ध्यान ना देते हुए कहा “कोई बात नहीं आप चाहें तो मेरे साथ आ सकते हैं। हमारा घर पास ही है वो सामने रहा !”
पता नहीं मेरी निगाह पहले उस मकान की ओर क्यों नहीं गई। एक छोटी सी कोठी थी जिसमें लाईट जल रही थी। मैं उसके पास वाली सीट पर बैठ गया। गाड़ी कच्चे रास्ते से होती हुई कोठी की ओर बढ़ गई। मुझे बड़ी हैरानी हुई इस बिंदास लड़की पर बिना कोई जान पहचान इसने मुझ पर विश्वास कैसे कर लिया। मैंने उड़ती सी नजर उस पर डाली। पहरावे से तो कोई डॉक्टर लगती है। उम्र तो कोई 18 साल जैसी लगती है। इतनी छोटी उम्र में ये डॉक्टर कैसे बन गई आँखों पर मोटा चश्मा, कन्धों तक कटे बाल गोरा रंग, पतली सी छुईमुई सी। अगर वो चश्मा हटा दे तो मिक्की या निशा का भ्रम हो जाए। पर इस समय मिक्की या निशा के होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। मुझे ज्यादा हैरानी तो इस बात को लेकर थी की इस उजाड़ और वीराने में ये परिवार यहाँ कैसे रह रहा है।
कोठी के गेट पर नेम प्लेट पर लिखा था डॉ. (मिसेज) मो-निशा पी.जी.एम। अजीब नेम प्लेट थी। पता नहीं ये कौन सी डिग्री है ? गाड़ी देख कर चौकीदार ने सलाम किया और गेट खोला। अरे ये मुच्छड़, सिर पर साफा बांधे, 303 की बन्दूक कंधे पर लटकाए हमारे उदयपुर वाले रघु से ही मिलता जुलता था। गाड़ी अन्दर खड़ी करके हम ड्राइंग रूम में आ गए। हमारे ड्राइंग रूम जितना ही बड़ा था। सामने एक सीनरी लगी थी। अरे यह तो वही सीनरी थी जो हमारे स्टडी रूम में लगी थी। अगर ये लड़की अपना चश्मा उतार दे तो लगभग वैसी ही लगेगी जैसी इस सीनरी में वो तितालियाँ पकड़ती लड़की लगती है। सीनरी के ठीक ऊपर दीवाल घड़ी में 11:59 बजे थे। मुझे शक सा हुआ सेकंड की सुई तो चल रही है पर घंटे और मिनट की सुई नहीं चल रही है।
“आप बैठें मैं अभी आती हूँ” उसने सोफे की ओर इशारा करते हुए कहा। थोड़ी देर बाद वो बेड रूम से बाहर आई तो मैंने ध्यान से उसे देखा। उसने गुलाबी रंग का टॉप और सफ़ेद रंग का पतला सा पाजामा पहन रखा था। छोटे छोटे गोल गोल नितम्ब। कानो में सोने की पतली बालियाँ। काली आँखे। कमाल है अभी थोड़ी देर फले तो मोटा चश्मा और मोटी मोटी बिल्लोरी ऑंखें थी। इसकी शक्ल तो मिक्की से मिलती जुलती है अरे नहीं ये तो निशा जैसी लगाती है। पर वो ……
“क्या सोच रहे हैं मि. प्रेम ?” एक मीठी सी आवाज से मैं चौंक गया।
“ओह… मैं तो ये सोच रहा था इस सीनरी में जो लड़की दिखाई दे रही है उसकी शक्ल आप से कितनी मिलती है।” मैंने कहा।
“कहते हैं हर इंसान का एक डुप्लीकेट भगवान् ने जरूर बनाया है” वो मुस्कुराते हुए बोली “ओह … आप चाय लेंगे ?”
“ओह नो थैंक्स मुझे एक गिलास पानी मिलेगा ?”
“हाँ हाँ क्यों नहीं” उसने फ्रिज से पानी निकाला और मुझे दिया।
बाहर बारिश होने लगी थी मैंने उस से पूछा “आप इतने बड़े मकान में अकेले… मेरा मतलब … ?”
“ओह। दरअसल हमारी शादी एक महीने पहले ही हुई है। और डॉक्टर साहब को 15 दिन बाद ही कांफ्रेंस में अमेरिका जाना पड़ गया। हम तो ठीक से हनीमून भी … ओह … सॉरी …” वो अपनी झोंक में बोल तो गई पर बाद में शरमा गई। वो तो लाल ही हो गई और मैं रोमांच से लबालब भर गया। इस तरह से तो मधु (मेरी पत्नी) शरमाया करती थी शुरू शुरू के दिनों में। ईश श श् ………
थोड़ी देर बाद वो बात का रुख मोड़ते हुए बोली “आज नौकरानी भी नहीं आई। डॉक्टर साहब न्यूयार्क कांफ्रेंस में गए है। शायद कल की फ्लाईट से वापस आ जाएँ”
“आप अगर चौकीदार से कह कर थोड़ा सा पेट्रोल अपनी गाड़ी से निकलवा दें तो मैं आपका शुक्रगुजार (आभारी) रहूँगा … डॉक्टर साहिबा !” मैंने कहा!
“ओह मुझे आप मो-निशा कह सकते हैं” उसने मो और निशा को अलग अलग बोला था। पता नहीं क्यों। मुझे लगा अगर मोना और निशा दोनों को मिला दिया जाए तो जरूर मोनिशा ही बन जायेगी। हे भगवान् ये क्या चक्कर है ?
“बाहर बारिश होने लगी है इतनी रात में आप कहाँ जायेंगे यहीं रुक जाइए!”
“पर वो आप अकेली … मैं … मेरा मतलब …?”
“ओह … आप उसकी चिंता ना करें!”
“पर वो एक गैर मर्द के साथ … रात …?” मैं कुछ बोलने में झिझक रहा था।
“देखिये मुझे कोई समस्या नहीं है। आप तो ऐसे डर रहे हैं जैसे मैं कोई दूसरे ग्रह से आई कोई भटकती आत्मा हूँ और आप के साथ कुछ ऐसा वैसा कर बैठूंगी” वो खिलखिला कर हंस पड़ी मेरी भी हंसी निकल गई। एक बार तो मुझे वहम सा हुआ कि कहीं ये निशा तो नहीं है ?
वो बिना दूध की चाय बना कर ले आई और बोली, ”सॉरी आज दूध ख़तम हो गया !”
मैंने मन में सोचा ‘अपना डाल दो ना … इन अमृत कलशों में भरा खराब हो रहा है ! पर मैंने कहा “इट इज ओ के। कोई बात नहीं !”
“आप इतनी रात गए मेरा मतलब …?”
“ओह तकलुफ्फ़ छोडें आप मुझे मोना कह सकते हैं। दरअसल एक लड़की का रोड एक्सीडेंट हो गया था उसके ओपरेशन में देर हो गयी” उसने बताया फिर वो बोली “और आप ?”
“ओह… मुझे भी एक मीटिंग में देर हो गई और रास्ते में गाड़ी ने धोखा दे दिया” मैंने बताया। मैं उस से पूछना तो चाहता था कि उस लड़की का क्या हुआ पर पूछ नहीं पाया।
“डॉक्टर साहब का नाईट सूट है अगर आप पहनना चाहें तो …”
“ओह मैं ऐसे ही ठीक हूँ !”
“अरे भाई हम भरतपुर वालों की मेहमान नवाजी को तो मत बट्टा लगाओ !” और वो फिर हंस पड़ी। हंसती हुई तो वो बिलकुल मिक्की ही लग रही थी। मैं तो मर ही मिटा। मैंने मन में सोचा इस रात को रंगीन बना ही लिया जाए। मेरा अनुभव कहता है कि चिड़िया फंस सकती है। मैं पहले तो थोड़ा डर सा रहा था पर उसके बिंदास स्वभाव को देखकर मेरे अन्दर का प्रेम गुरु जाग गया और मेरा पप्पू तो हिलोरें ही लेने लगा। क्या मस्त माल है गुरु इसकी गांड तो लाजवाब होगी चूत तो चुद गई है पर एक महीने में (10-15 दिनों में) कितना चुदी होगी ? खैर मेरा अंदाजा है कि गांड जरूर कुंवारी ही होगी। चलो इस रात में जो मिल जाए बोनस ही तो है।
उसके दुबारा कहने पर मैंने कुरता पाजामा पहन लिया और रात यहीं बिताने का प्रोग्राम बना लिया। वैसे भी मधु तो जयपुर गयी हुई थी जल्दी पहुँच कर क्या करना था। उसके जोर देने पर मैं उसके साथ बेड-रूम में चला गया। अन्दर से तो मैं भी यही चाहता था। मैंने कहा “यहाँ तो एक ही बेड है और हम दोनों… मेरा मतलब …?”
“क्यों अपने आप पर भरोसा नहीं है क्या …?” उसने मेरी आँखों में झांकते हुए पूछा।
मैंने देखा उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। आँखें बिलकुल बिल्लोरी। ये कैसे हो सकता है। अभी तो काली थी। इस से पहले कि मैं कुछ बोलता वो बोली “दरअसल मैं कांटेक्ट लेन्सेस लगाती हूँ काले रंग के वैसे तो मेरी आँखें बिल्लोरी ही है क्यों अच्छी है ना ?” उसने मेरी आँखों में झांकते हुए कहा।
मैं झेंप सा गया।
“ओह आप तो कुछ बोलते ही नहीं ?”
मैंने मन में सोचा ‘मैं मुंह से नहीं लंड से बोलता हूँ मेरी जान थोड़ी देर ठहर जाओ मुझे अपना प्रोग्राम सेट तो कर लेने दो ’ पर मैंने कहा “ओह ऐसी कोई बात नहीं है आप बहुत खूबसूरत है।”
अचानक फ़ोन की घंटी बजी। हे भगवान् इस समय इतनी रात को … हे लिंग महादेव मेरी लाज रख लेना कहीं कोई गड़बड़ मत कर देना … बड़े दिनों के बाद ऐसी फुलझड़ी मिली है … समझ रहे हो ना ? मैं एक नहीं इस बार दो सोमवार दूध और जल चढ़ाने आऊंगा … पक्की बात है।
“हाय लव कैसे हो !” मोनिशा की मीठी सी आवाज निकली।
“हाय हनी !” फ़ोन के रिसीवर से साफ़ सुनाई दे रहा था। कमाल है। पता नहीं कैसा फ़ोन है। आमतौर पर दूसरे को रिसीवर की आवाज नहीं सुनाई देती।
“हैप्पी बर्थ डे हनी !” कमाल है ऐसा तो मैं मधु को बोलता हूँ ये डॉक्टर भी साला पूरा आशिक मिजाज़ पत्ता लगता है।
“थैंक्यू लव। कब आ रहे हो ?”
“कोशिश तो की थी पर आज नहीं आ पाया। कल की फ्लाईट है। ओ. के. हनी टेक केयर !”
मोनिशा ने फ़ोन रख दिया। मैंने उसकी ओर देखा वो कुछ उदास सी थी। उसने बताया की डॉक्टर साहब का फ़ोन था वो कल की फ्लाईट से आ रहे हैं।
“मेरी ओर से भी जन्म दिन की बहुत बहुत बधाई हो !” मैंने उसकी ओर हाथ बढ़ा दिया। इस से अच्छा बहाना उसे छूने का और क्या हो सकता था। क्या नाजुक मुलायम हाथ था। मैंने उसे चूम लिया। मैं जानता था ऊँची सोसाइटी वाले ऐसी चूमा चाटी का बुरा नहीं मानते। उसने भी थैंक्यू कहते हुए मेरा हाथ चूम लिया। आईला ……
“वो … आपने अपना जन्म दिन नहीं मनाया ?”
“ओह दरअसल मेरे जन्म दिन में कनफ्यूजन है?”
“क्या मतलब ?
“दरअसल मेरा जन्म 13 तारीख की रात को ठीक 12 बजे (00 आवर्स) हुआ था न ? इसलिए मैं अपना जन्मदिन 14 को मनाती हूँ। और अब तो 14 तारीख हो ही गई होगी। हमने घड़ी देखी वो तो अभी भी 11:59 ही बता रही थी। मेरा अंदाजा सही था सेकंड की सुई चल रही थी पर घंटे और मिनट की सुई बंद थी। चलो कोई बात नहीं। मुझे फिर मिक्की की याद आ गई। उसकी मौत भी तो रात में 11:59 बजे ही हुई थी।
मैं अपने खयालों में डूबा था कि मोनिशा बोली,“अच्छा एक बात बताओ क्या आप पुनर्जन्म या आत्मा आदि में विश्वास रखते हैं ?”
अजीब सवाल था। डॉक्टर होकर ऐसा सवाल पूछ रही है। मैंने कहा “हाँ भी और ना भी !”
“क्या मतलब ?”
जिस अंदाज में उसने ‘क्या मतलब’ बोला था मुझे तो लगा कि निशा ही मेरे सामने बैठी है फिर मैंने कहा “आपको देख कर तो पुनर्जन्म में विश्वास करने को जी चाहता है।”
“क … क्या मतलब ?”
हे भगवान् ये तो मिक्की ही है जैसे। मैंने उस से कहा मेरी एक क्लास फेलो थी बिलकुल आप ही की तरह उसकी एक रोड एक्सीडेंट में मौत हो गई थी। उसका चेहरा तो बिलकुल आप से मिलता जुलता है मोनिशाजी !” मैंने इस बार जी पर ज्यादा जोर दिया था।
“आप मुझे मोना कहें ना। घर वाले मुझे मोना ही कहते हैं!”
“और डॉक्टर साहब ?” मैंने पूछा
“वो तो मुझे हनी कहते हैं” वो शरमा गई। इस्स्स्स … इस अदा पर मैं तो मर ही मिटा। मैं तो बेसाख्ता उसे देखता ही रह गया। “एक्चुअली जब मैं एम.बी.बी.एस. की स्टुडेंट थी डॉक्टर साहब से प्रेम हो गया था। उन दिनों डॉक्टर साहब मुझे मिक्की माउस कह कर बुलाते थे। डॉक्टर साहब मुझ से 12 साल बड़े हैं ना। और फिर एम.बी.बी.एस. पास करते ही हमने जल्दी ही शादी कर ली। वैसे भी मैं मांगलिक हूँ ना मेरी शादी 24 वें साल में ही हो गई।”
मैं सोच रहा था ‘ये डॉक्टर भी एक नंबर का गधा है इतनी खूबसूरत बला को छोड़ कर न्यूयार्क गांड मरवाने गया है चूतिया साला !’ मैंने कहा “ये तो आप जैसी खूबसूरत … मेरा मतलब है नव विवाहिता के साथ ना इंसाफी ही है ना ?”
“पर प्यार अँधा होता है ना ?”
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07-04-2017, 12:42 PM,
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RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
उसकी यह बात सुनकर मुझे अटपटा सा लगा। मैं कुछ अंदाजा नहीं लगा पाया। ये लड़की तो रहस्यमयी लग रही है। उसने मांग नहीं भर रखी थी और ना ही मुझे कहीं उस चूतिये डॉक्टर की कोई फोटो नजर आई। अब मुझे लगने लगा कि कहीं ना कहीं कोई गड़बड़ जरूर है। पर मेरा पप्पू तो अकड़ रहा था ‘गुरु अच्छा मौका है ठोक दो साली को। डॉक्टर तो चूतिया है साला उसने भला क्या चुदाई की होगी इस मस्त मोरनी की एक दम गुलाब की कली ही है बिलकुल मिक्की और निशा की तरह। थोड़ा सा ड्रामा करो और लौंडिया तुम्हारी बाहों में। किसी को क्या पता चलेगा ’ मैंने उसे चोदने का मन बना ही लिया। आखिर मैं अपने पप्पू की नाराजगी कैसे मोल लेता। मैंने अपना ड्रामा (चुदाई की तैयारी का प्रोजेक्ट) चालू कर दिया :
“सच में मोनाजी आप सही कह रही हैं” मैंने उदास स्वर में कहा तो वो मेरी ओर हैरानी से देखने लगी। मैंने आगे कहा “मैं तो आज तक भी अँधा बना हुआ हूँ”
“क्या मतलब ?”
“अब देखो ना मोना को इस दुनिया से गए 8 साल हो गए पर मैं अभी तक उसे भुला नहीं पाया” मैंने लगभग रो देने वाली एक्टिंग की। वो मेरे पास आ गई। उसकी गरम होती साँसे मैं अपने चहरे पर साफ़ महसूस कर रहा था। उसके जवान जिस्म की खुसबू मुझे अन्दर तक मदहोश करती जा रही थी। मेरा पप्पू तो अकड़ कर लोहे की रोड ही बना था। “वो कहती थी कि मैं जरूर तुम्हारी बनूंगी चाहे मुझे फिर से क्यों ना जन्म लेना पड़े। पर एक बार जो इस दुनिया से चला जाता है वो वापस कब आता है ?” मेरी आँखों से टप टप आंसू निकलने लगे।
“ओह … आई ऍम सॉरी … वो … वो … प्लीज आप ऐसा ना करें वरना मैं भी रो पडूँगी, मेरा दिल बहुत भारी हो रहा है !”
‘मेरी जान हल्का तो अब मैं कर ही दूंगा अभी तो शुरुवात है नाटक की, आगे आगे देखो !’ मैंने सचमुच ऐसी एक्टिंग की थी कि मेरी आँखों से आंसू निकलने लगे। आप सोच रहे होंगे आंसू भला कैसे निकल आये इतनी जल्दी ? औरतें तो चलो इस काम में माहिर होती है पर आदमी ? आप को बता दूँ अगर आप 2-3 मिनट तक आँखें नहीं झपकाएं तो आपकी आँखों से पानी अपने आप निकलने लग जाएगा। और फिर मैं तो पक्का प्रेम गुरु हूँ मुझे से ज्यादा ये टोटके भला कौन जानता है। अब तो वो इतना भावुक हो गई थी कि वो मेरे आंसू पोंछने लगी। आह … क्या मस्त चिकनी अंगुलियाँ थी। बिलकुल मिक्की और निशा की तरह।
“आप शादी क्यों नहीं कर लेते ?” उसने मेरे आंसू पोंछते हुए कहा।
“अब मोना जैसी तो मिल नहीं सकती। अगर आप बुरा न माने तो एक बात पूछूं ?”
“हूँ … हां …आं क्यों नहीं”
“क्या आपकी कोई छोटी बहन है ?”
“क … क्या मतलब … ओह … ” वो खिलखिला कर हंस पड़ी।
“आप हंस रही हैं … आपने ही तो कहा था कि इस दुनिया में हर व्यक्ति का एक डुप्लीकेट भगवान् ने जरूर बनाया है”
“ओह … वो … पर मेरी तो कोई बहन नहीं है पर … पर ऐसा क्या है मुझ में ?”
“ओह तुम नहीं जानती ” मैं आप से तुम पर आ गया “हीरा अपनी कीमत खुद नहीं जानता।”
“क्या मैं सचमुच इतनी सुन्दर हूँ …?”
“तुम मेरी आँखों में झाँक कर तो देखो अपने रूप और हुश्न को। मेरे धड़कते दिल को छू कर तो देखो। मेरी साँसों को महसूस तो कर के देखो” मेरी एक्टिंग चालू थी। चिड़िया दाना चुगने को बेताब लगाने लगी है। जाल की ओर बढ़ाना शुरू कर दिया है। अब तो बस थोड़ी सी देर है जाल की रस्सी खींचने में।
“ओह आप तो ऐसे ही मजाक कर रहे हैं !” वो मेरी आँखों में झांकने लगी। उसकी आँखों में लाल डोरे तैरने लगे थे। उसकी साँसे तेज होती जा रही थी। होंठ काँप रहे थे। दिल की धड़कन साफ़ सुनाई दे रही थी। अब प्रोग्राम की अंतिम लाइन लिखनी थी। मैंने कहा “ओह … मेरी मोना मेरी मिक्की। तुम क्यों मुझे छोड़ कर चली गई … ”
मिक्की मेरी जान, मेरी आत्मा, मेरी प्रेयसी, मेरी प्रियतमा मैं तुमसे प्रेम करता था, आज भी करता हूँ और करता रहूँगा”। मेरी आँखों से आंसू निकलते जा रहे थे। उसने अपने कांपते हाथों की अंगुलियाँ मेरे होंठो पर रख दी। मैं उन्हें हाथ में लेकर चूमने लगा। वो मेरी ओर बढ़ी और फिर उसने अपने कांपते और जलते होंठ मेरे होंठों पर रख दिए।
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RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
जैसे कोई गुलाब की पंखुडिया हों रस से लबालब भरी हुई। मैं तो मस्त हुआ उन्हें चूसने लगा। उसने मुझे बाहों में भर लिया। वो तो मुझे ऐसे चूमती जा रही थी जैसे कितने ही जन्मों की प्यासी हो, “ओह मेरे प्रेमदेव, मेरे शहजादे, मेरे मन मयूर तुम कहाँ थे इतने दिन !” अब मेरे हैरान होने की बारी थी। ये शब्द तो … मिक्की या निशा के थे। हे भगवान् ये क्या मामला है ? वोही आवाज वोही हावभाव वो ही शक्ल-ओ-सूरत। मैं किसी आत्मा, पुनर्जनम या भूत प्रेत में विस्वास नहीं करता पर अब तो मुझे भी थोड़ा डर सा लगाने लगा था।
“ओह प्रेम अब कुछ मत सोचो बस मुझे प्यार करो।” उसने मुझे अपनी बाहों में जकड़ सा रखा था। वो मुझे चूमते जा रही थी और कभी मेरी पीठ सहलाती कभी सिर के बालों को जोर से पकड़ लेती। मैं अपने खयालों से जैसे जागा। दिल ने कहा यार छोड़ो फजूल के इन चक्करों को इतनी हसींन लौंडिया तुम्हारी बाहों में है चुदवाने के लिए तैयार है क्यों बेकार की बातों में वक़्त जाया कर रहे हो। ठोक दो साली को बड़ी मुश्किल से मिली है। पता नहीं बाद में कभी मिले ना मिले। पप्पू तो जैसे खूनी शेर ही बना हुआ था।
मैंने भी कस कर उसे बाहों में भर लिया और अपनी जीभ उसके मुंह में डाल दी। वो तो उसे कुल्फी की तरह चूसने लगी। मैंने एक हाथ से उसके उरोज मसलने शुरू कर दिए। मोटे मोटे जैसे कंधारी अनार हों। एक दो बार उसके नितम्बों पर हाथ फेरा। चूत की दरार का पता नहीं चल रहा था। वो भी जोश में आकर आह … ओह … करने लगी थी। उसने भी मेरे लंड को पकड़ लिया और ऊपर से ही मसलने लगी। कोई 10 मिनट तो जरूर हमारी चूसा चुसाई चली ही होगी। फिर मैंने उस से कपड़े उतारने को कहा तो वो बोली “मुझे शर्म आती है तुम खुद ही उतार दो ना ?” वो घुटनों के बल खड़ी हो गई और उसने अपने हाथ ऊपर उठा दिए।
पहले मैंने उसका टॉप उतरा। और फिर पाजामा उफ़ … वही डोरी वाली काली ब्रा और पेंटी जो मधु की फेवरेट थी। 2 इंच पट्टी वाली। पता नहीं आजकल भरतपुर में इन ब्रा और पेंटीज का फैशन ही हो गया है जैसे। टॉप उतारते हुए मैंने गौर किया की उसकी कांख में एक भी बाल नहीं है। मैं तो रोमांच से ही भर गया। मेरा पप्पू तो यह सोच कर ही मस्त हुआ जा रहा था कि अगर कांख में बाल नहीं है तो चूत का क्या हाल होगा।
ये तो मुझे बाद में उसने बताया था कि उसने लेजर ट्रीटमेंट करवा लिया था। और उसकी चूत पर भी कोई बाल नहीं है। डॉक्टर साहब को चूत और कांख पर बाल बिलकुल पसंद नहीं है। साला ये डॉक्टर भी शौकीन तो है पर है चूतिया, इतनी मस्त क़यामत को मेरे लिए छोड़ गया। पजामा उतारते हुए मैंने देखा था उसकी जांघें तो मधु और सुधा की तरह मोटी मोटी थी। दायीं जांघ पर वो ही काला तिल। हे भगवान् मैं तो पागल ही हो जाऊँगा। एक बार अगर गांड मारने को मिल जाए तो मैं सारी कायनात ही न्योछावर कर दूँ। क्या मस्त मोटे मोटे नितम्ब है साली के। ऐसे नितम्ब तो अनारकली के भी नहीं थे। हे भगवान् कहीं साले डॉक्टर ने गांड तो नहीं मार ली होगी इस कमसिन कली की। फिर मैंने अपने आप को तसल्ली दी कि जो साला चूत ही ठीक से नहीं मार पाया है वो भला गांड क्या मारेगा। और अगर एक दो बार गांड मार भी ली होगी तो भी कोई बात नहीं कुंवारी जैसी ही होगी। मैं तो यही सोच कर पागल हो रहा था कि उसकी गांड का छेद। कितना बड़ा होगा और उसकी सिलवटें और रंगत कैसी होंगी।
अब मैंने भी अपना कुरता और पाजामा उतार दिया। चड्डी और बनियान तो मैंने पहनी ही नहीं थी। मेरा 7 इंच का लंड तो 120 डिग्री पर खड़ा उसे सलाम बजा रहा था।
मैंने उसकी ब्रा की डोरी खोल दी। मोटे मोटे दो हापुस आम जैसे अमृत कलश मेरे सामने थे। बिलकुल गोरे गुलाबी पतली पतली नीली नशे। निप्पलस मूंग के दाने जितने। डॉक्टर तो वैसे ही चूतिया है किसी और ने भी नहीं चूसे होंगे। एरोला कोई 1.5 इंच का। कैरम की गोटियों वाली रानी की तरह बिलकुल लाल सुर्ख।
हे भगवान् अगर पुनर्जन्म जैसी कोई बात अगर है तो जरूर ये मिक्की ही है। मैं शर्त लगा कर कह सकता हूँ अब तक मैंने जितने भी उरोज देखे है इतने सुडौल तो किसी के भी नहीं थे। जैसे शहद से भरी हुई दो कुप्पियाँ हों। पतली कमर कोई 23-24 इंच की। गहरी नाभि और उसके नीचे का भाग कुछ उभरा हुआ। अब मैंने उसकी पेंटी को धीरे धीरे उतरना चालू कर दिया। वो तो बस आँखें बंद किये लेती हुई सीत्कार किये जा रही थी। धीरे धीरे मैंने उसकी पेंटी उतार दी। चूत पर कोई बाल नहीं। रोएँ भी नहीं। तिकोने आकार की फूली हुई पाँव रोटी हो जैसे। वाह … क्या मस्त चीज है। छोटी सी सेब की तरह लाल-गुलाबी रंग की चूत। दो मोटी मोटी संतरे जैसी फांके। बीच की दरार (चीरा) कोई 3 इंच लम्बी – गहरे बादामी रंग की जैसे किसी नई दुल्हन ने अपनी मांग भर रखी हो। मुझे तो लगा जैसे किसी 13-14 साल की लड़की की पिक्की ही है जैसे। ओह कहीं ये मिक्की ही तो नहीं ? पता नहीं साले चूतिये डॉक्टर ने इसके साथ सुहारात भी ठीक से मनाई है या नहीं।
मैंने उसका एक रस कूप (उरोज) अपने मुंह में ले लिया और चूसने लगा। उसने एक जोर की किलकारी मारी और मेरे लंड को अप्पने हाथ में लेकर मसलने लगी। लुंड ने 2-3 ठुमके लगाए और प्री कम के 3-4 तुपके छोड़ दिए। मैं कभी एक उरोज चूसता कभी दूसरा। एक हाथ से कभी उसके नितम्ब सहलाता कभी बुर (ये चूत तो हो ही नहीं सकती) पर मसलता। वो तो बस मस्त हुई किलकारियाँ मारती जा रही थी। उसने मेरे सिर के बाल अपने हाथों में पकड़ लिए। फिर मैंने उसके होंठ चूमने चालू कर दिए और उसके ऊपर आ गया। पप्पू तो अँधा धुंद चूत (सॉरी बुर) पर धक्के लगा रहा था पर उसे इतनी जल्दी रास्ता कहाँ मिलने वाला था।
मैंने उसके कपोलों पर, आँखों की पलकों पर, गले पर, छाती पर, नवल पर चुम्बनो की झड़ी लगा दी। वो तो मस्त हुई आह। उह्ह … करती जा रही थी। उसकी आँखें बंद थी। मैंने उसकी कांख सूंघी। आह … इस मस्त तीखी खुशबू को तो मैं मरते दम तक नहीं भूल सकता। ये तो वोही मिक्की वाली खुशबू थी। अब चूत रानी की बारी थी। अब मैंने उस कातिल तिल वाली जगह पर चुम्बन लिया तो उसने इतनी जोर से किलकारी मारी कि मुझे लगा वो झड़ गई है। वो तो बड़ी ही कच्ची निकली मैंने तो अभी उसकी चूत को तो चूमा ही नहीं था। अब मैंने उसकी चूत की पंखुडियों को खोला। अन्दर से एक दम गुलाबी रस से भरी। लाल नसें बिलकुल सिर के बालों जितनी पतली। अनारदाना तो गोल लाल मोती जैसा।
मैंने जीभ उसके अनारदाने पर जैसे ही रखी उसने मेरा सिर पकड़ लिया और अपनी बुर की और दबा दिया। मैं भी तो यही चाहता था। मैंने उसकी बुर को पहले चाटा। पसीने, पेशाब और नारियल पानी जैसी जानी पहचानी खुशबू से मेरा स्नायु तंत्र (नाक की मांस पेशियाँ) भर उठा। मैंने उसकी बुर को पूरा अपने मुंह में भर लिया और जोर से चूसने लगा जैसे कोई टपका आम चूसता है।
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