मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
06-08-2021, 12:48 PM,
#49
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
माँ जैसे ही दूध लाने के लिए उठीं.. अंकल ने उन्हें फिर से गोदी में खींच लिया और उनकी चूचियों को अपने मुँह से दबा लिया।
‘कोमल.. मेरी जान कहाँ जा रही हो.. अपने दूध नहीं पिलाओगी क्या?’
अंकल माँ को गुदगुदाते हुए दूध पीने लगे।
‘हुंह..’
मैं अपनी चूत में उंगली करते हुए सोच रही थी कि अंकल माँ के दूध तो खूब चूस-चूस कर पी रहे हैं.. मेरे तो चूसते ही नहीं हैं..
माँ गुदगुदी के मारे सिसकारियाँ भरने लगीं।
‘बहुत प्यारे हो तुम दोनों.. कैसी-कैसी शरारतें करते हो..’
दोनों नंगे ही एक-दूसरे के साथ खेल रहे थे.. खेलते हुए उन दोनों में फिर से आग भरने लगी थी। जय अंकल का लण्ड फुंफकारने लगा था।
‘अब देरी किस बात की है..’ माँ ने चुदासे स्वर में कहा।
‘नहीं मुझे अभी दूध पीने दो.. न..’
‘पहले बस एक बार.. मेरे ऊपर चढ़ जाओ.. मुझे शांत कर दो..’
माँ ने अपनी दोनों खूबसूरत सी टांगें उठा लीं.. अंकल उन टांगों के बीच में समा गए। कुछ ही पलों में अंकल का मोटा लण्ड माँ की चूत को चूम रहा था। चाचा का लण्ड माँ की चूत में घुसता चला गया।
माँ आनन्द से झूम उठी थीं।
इधर मेरी चूत ने भी पानी छोड़ दिया.. मुझे भी एक मीठी सी गुदगुदी हुई।
मेरी माँ अपनी टांगें ऊपर उठा कर उछल-उछल कर चुदवा रही थीं और राज अंकल का लण्ड चूस रही थीं।
मेरा हाल इधर खराब होता जा रहा थ, माँ की मधुर चीखें मेरे कानों में रस घोल रही थीं।
दोनों गुत्थम-गुत्था हो गए थे.. कभी अंकल ऊपर तो कभी माँ ऊपर..! खूब जम कर चुदाई हो रही थी।
माँ को इस रूप में मैंने पहली बार देखा था.. वो एकदम रांड बनी हुई थीं। लगता था जिन्दगी भर की चुदाई वो तीनों आज ही कर डालेंगे।
तभी तीनों का जोश ठण्डा पड़ता दिखाई देने लगा..
अरे..!
क्या दोनों झड़ चुके थे?
सफ़र की इति हो चुकी थी.. हाँ सच में वो दोनों झड़ चुके थे।
राज अंकल ने मुस्करा कर माँ कर चूचे अपने मुँह में भर लिए और ‘पुच्च.. पुच्च..’ करके चूसने लगे।
माँ धीरे से नीचे बैठ गईं और राज का लण्ड पकड़ कर सहलाने लगीं, उसका लण्ड अपने मुँह में लेकर उसे चूसने लगीं।
राज कभी तो माँ की जांघें चूमता और कभी उनके बालों को सहलाता- जोर से चूसो कोमल डार्लिंग.. उफ़्फ़ बहुत मजा आ रहा है.. और कस कर जरा..
अब माँ जोर-जोर से ‘पुच्च.. पुच्च..’ की आवाजें निकालने लग गई थीं, राज की तड़प साफ़ नजर आने लगी थी।
फिर माँ ने गजब कर डाला.. माँ ने अपनी एक टांग उसके दायें और एक टांग राज के बायें डाल दी। राज का सख्त लण्ड सीधा खड़ा हुआ था, दोनों प्यार से एक-दूसरे को निहार रहे थे।
माँ उसके तने हुए लण्ड पर बैठने ही वाली थीं.. मेरे दिल से एक ‘आह..’ निकल पड़ी ‘माँ प्लीज ये मत करो.. प्लीज नहीं ना..’
पर माँ तो बेशर्मी से किसी रंडी की तरह उसके लण्ड पर बैठ गईं।
‘माँ घुस जायेगा ना.. ओह्हो समझती ही नहीं है..’
पर मैं उनके लण्ड को किसी खूँटा की तरह माँ की चूत में घुसता हुआ देखती ही रह गई.. कैसा चीरता हुआ माँ की चूत में घुसता ही जा रहा था।
फिर माँ के मुँह से एक आनन्द भरी चीख निकल गई।
‘उफ़्फ़्फ़.. कहा था ना जड़ तक घुस जाएगा.. पर ये क्या..? माँ तो राज से जोर से अपनी चूत का पूरा जोर लगा कर उससे लिपट गईं और अपनी चूत में लण्ड घुसवा कर ऊपर-नीचे हिलने लगीं।
अह्ह्ह.. खुदा वो तो मस्त चुद रही थीं.. सामने से राज माँ की गोल-गोल कठोर चूचियाँ मसल-मसल कर दबा रहा था। उसका लण्ड बाहर आता हुआ और फिर ‘सररर..’ करके अन्दर घुसता हुआ मेरे दिल को भी चीरने लगा था।
मेरी चूत का पानी निकल कर मेरी टांगों पर बहने लगा था। पूरी रात जय अंकल और उनके दोस्त राज ने मेरी माँ को किसी रांड की तरह चोदा था।
मुझे अपनी बारी का इंतज़ार था.. जो कि जल्द ही आने वाली थी।
मैं अपने बिस्तर पर आ गई और चूत में उंगली डाल कर अन्दर-बाहर करने लगी।
संयोग से एक रात को माँ को चुदवाते हुए देखकर मैं अपनी चूत में उंगली कर रही थी कि मेरे मुँह से सीत्कार निकल गई जिसको माँ ने सुन लिया। मैं जान नहीं पाई कि क्या हुआ लेकिन अगले दिन माँ का व्यवहार कुछ बदला-बदला सा था।
मुझसे रहा नहीं गया.. मैंने माँ से पूछा- क्या बात है माँ.. आज बहुत उदास हो?
माँ ने कहा- नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है।
कुछ देर के बाद माँ ने मुझे अकेले में बुलाया और बोलीं- कल रात..
इतना सुनते ही मेरे कान खड़े हो गए.. मेरा चेहरा लाल हो गया।
तब माँ ने कहा- देखो बेटी मेरी उम्र इस वक़्त 32 साल है.. और तुम जानती हो कि तुम्हारे पापा बाहर रहते हैं.. उनको दुबई गए हुए दो साल से ऊपर हो गया।
ये सब कहते हुए माँ का गला भर आया.. उनकी आँखों से आंसू छलक पड़े। मैंने माँ को दिलासा दिया और कहा- मैं समझती हूँ.. कोई बात नहीं है माँ।
मेरी इस बात से उनका दिल कुछ हल्का हुआ और वो बोलीं- बेटी तुम नाराज़ नहीं हो न मुझसे?
मैंने कहा- नहीं माँ.. इसमें नाराज़ होने वाली कौन सी बात है.. ऐसा तो सबके साथ होता होगा?
माँ के चहरे पर कुछ मुस्कान आई।
मैं उस वक़्त कुछ और नहीं बोली।
उस दिन के बाद मैं तीन रातों तक माँ के चुदने का इंतज़ार करती रही लेकिन जय अंकल नहीं आए, उनकी चुदाई नहीं हुई।
अब मैं माँ की हमराज़ हो ही गई थी, मैंने माँ से पूछा- क्यों माँ.. आजकल अंकल रात को क्यों नहीं आ रहे हैं?
माँ ने थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा- तुमको क्या दिक्कत हो रही है?
इधर मेरा भी तो जय के बिना बुरा हाल था, मुझे भी अंकल से चुदे कई दिन हो चुके थे। माँ के साथ-साथ मेरी चूत को भी लण्ड की ज़रूरत सताने लगी थी।
जिसका नतीजा यह हुआ कि मैंने बेअदबी के साथ माँ से कह दिया- माँ मुझे भी वही चाहिए.. जो तुम रोजाना रात को अपनी चूत में डलवाती हो।
माँ तो बिल्कुल सन्न रह गईं, उन्हें मुझसे ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी- देखो डॉली, तुम अभी बच्ची हो।
‘माँ मैंने आपको बताया नहीं.. जय अंकल मेरे साथ भी वो सब कर चुके हैं।’
‘क्या..???’
मेरे जवाब से माँ के पैरों तले जैसे ज़मीन खिसक गई थी।
‘माँ प्लीज़..’ मैंने माँ के गले लगते हुए कहा।
मेरी जिद के आगे माँ मजबूर हो गई थीं, उन्होंने कहा- ठीक है.. तुम्हारी चूत में भी लण्ड पेलवा दूँगी.. लेकिन ध्यान रहे पापा को ये सब बातें मालूम नहीं होनी चाहिए।
मैंने ख़ुशी से उछलते हुए कहा- ओके माँ.. तुम कितनी अच्छी हो।

दोस्तो.. जब मेरी माँ ने मुझसे कहा कि वे मेरी चूत में लण्ड पेलवा देंगी.. तो मैं बहुत खुश हुई कि मैंने माँ को मजबूर कर दिया था।
वैसे तो जय अंकल मुझे कई बार चोद चुके थे.. लेकिन अब मैं यह सब बिना डरे करना चाहती थी।
उसी दिन जब मैं नहाने जा रही थी तो माँ बाथरूम में आ गईं और दरवाजा बंद कर लिया।
वे बोलीं- अपने कपड़े उतारो।
मैंने माँ से कहा- माँ.. मुझे शर्म आएगी।
माँ ने मुझे डांटते हुए कहा- छिनाल कहीं की.. चूत और लण्ड का खेल देखकर पेलवाने की तुम्हारी हवस जाग उठी.. लेकिन यह नहीं जानती हो कि मर्द को क्या पसंद आता है? मर्द को चिकनी चूत चाहिए.. देखूं तुम्हारी झांटें साफ़ हैं या नहीं?
इसी के साथ माँ ने अपने सारे कपड़े उतार दिए और पूरी तरह नंगी हो गईं, उनकी चूत के बाल एकदम साफ़ थे।
सच में क्या शानदार चूत थी माँ की.. मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि मैं इसी चूत के रास्ते बाहर निकली हूँ।
मैं भी फटाफट अपनी सलवार कुर्ती उतार कर नंगी हो गई। माँ ने मेरी चूत को सहलाया और बोली- आज तुम्हारे अंकल इसमें अपना लण्ड पेलकर बहुत खुश होंगे। एक बात बता दूँ.. उन्होंने मुझसे एक बार कहा था कि कोमल.. एकाध नए माल का इंतज़ाम करो.. पैसों की फ़िक्र मत करना।
माँ ने मुझे रगड़-रगड़ कर अच्छी तरह नहलाया.. मेरी चूत के बाल साफ़ किए और तब बोलीं- अब तुम्हारी चूत लण्ड लेने के लिए एकदम तैयार है।
शाम को राज अंकल आए तो मैं उनको निहारती रह गई। क्या बलिष्ठ गठा हुआ बदन पाया था अंकल ने..! मैं समझी कि माँ जय अंकल की बात कर रहीं हैं लेकिन मेरी चुदाई का प्रोग्राम राज अंकल के साथ था।
हम लोग खाना खाकर लेटने की तैयारी करने लगे। आज हम तीन लोग एक ही कमरे में एक ही बिस्तर पर आ गए।
माँ ने अंकल से कहा- क्यों जी.. आप किसी नए माल के बारे में कह रहे थे.. आज मैं अपनी मासूम बच्ची को आपके हवाले कर रही हूँ.. लेकिन ध्यान रखिएगा.. कि बेचारी की चूत एकदम कोरी है बहुत आराम से पेलिएगा..
‘फ़िक्र मत करो कोमल.. बस तुम देखो कैसे आज मैं तुम्हारी इस बच्ची को मासूम कच्ची कली से पूरी औरत बनाता हूँ।’
‘हम्म..’
अंकल बोले- कोमल.. तुम भी तो साथ ही रहोगी.. जब मैं इसकी चूत में अपना डंडा पेलूँगा.. तो तुम देखती रहना।
माँ ने कहा- हाँ मेरा रहना ज़रूरी है.. क्या पता तुम क्या हाल करोगे मेरी बच्ची का..
माँ ने हँसते हुए जवाब दिया।
मैं बोली- माँ मैं बच्ची नहीं हूँ.. आप ऐसे ही डर रही हो..
इस दौरान माँ ने कुर्ती और सलवार निकाल दी, मेरी चूत को सहलाकर अंकल को दिखाकर बोलीं- देखो जी कितनी चिकनी गुलाबी चूत है.. मेरी रानी बिटिया की..
मैंने अंकल के पजामे पर हाथ फ़ेरते हुए कहा- अंकल इस उम्र में भी आपका लण्ड भी कोई कम नहीं है..
माँ ने भी अपने सारे कपड़े उतार दिए, अंकल भी अपने कपड़े उतार चुके थे, अब हम तीनों मादरजाद नंगे थे। अंकल मेरे होंठों को चूसते हुए एक हाथ से मेरी चूत को सहला रहे थे.. तथा दूसरे हाथ से माँ की गाण्ड सहला रहे थे।
मैं तो गर्म होने लगी.. लेकिन माँ अभी गरम नहीं हुई थीं।
माँ ने मुझसे पूछा- क्यों बेटी.. लण्ड चूसोगी?
मैंने कहा- आप लोग जैसा आदेश करें.. मैं तो अनाड़ी हूँ.. मुझे आप लोगों की निगाहबानी में ही चूत चुदवानी है।
माँ बोलीं- तब ठीक है..मैं जैसा कहती हूँ.. तुम वैसा करो।
हम तीनों ऐसी पोजीशन में हो गए कि मैं राज अंकल का लण्ड चूस रही थी। माँ मेरी चूत चाट रही थीं और अंकल माँ की चूत चाट रहे थे.. अर्थात तीनों लोगों ने एक सर्किल बना रखा था।
मैं तो माँ द्वारा चूत की चटाई से ही एक बार झड़ गई।
थोड़ी देर बाद मैंने माँ से कहा- माँ.. मेरी चूत में जल्दी लण्ड डलवा दो नहीं तो मैं पागल हो जाऊँगी।
माँ ने कहा- अच्छा.. अपनी टांगें फैलाकर पीठ के बल लेट जाओ.. मैं वैसलीन की शीशी लाती हूँ।
माँ ने मेरी चूत के अन्दर वैसलीन लगा दी और अंकल से बोलीं- मेरी रानी बिटिया की कुंवारी चूत को अपने लम्बे लण्ड से आबाद कीजिए।
माँ ने अंकल के सुपाड़े पर भी वैसलीन लगा दी। अंकल ने मेरी टांगों को फैलाकर लण्ड को मेरी प्यासी चूत के मुहाने पर रखा और मेरी माँ ने अंकल के पीछे से मेरी चूत को फैला रखा था।
अंकल ने धक्का लगाया लेकिन निशाना चूक गया।
मेरी चूत लौड़े के लिए तड़प रही थी.. कि जल्दी से उसमें लण्ड घुसे, मैं लगभग रोते हुए बोली- माँ.. पेलवा दो न.. क्यों देरी हो रही है?
माँ ने कहा- इस बार घुस जाएगा बेटी.. घबराओ मत.. मैं भी तो लगी हूँ इसी कोशिश में.. पेलिए जी मेरी बेटी को.. देखो बेचारी तड़प रही है।
जब इस बार अंकल ने अपना सुपाड़ा घुसा दिया तो मुझे लगा कि मेरी जान निकल जाएगी.. लेकिन मैंने अपने दांत भींच लिए।
‘आईईए.. माँ.. दर्द हो रहा है..’
मैंने सोचा नहीं था कि राज अंकल का लण्ड जय अंकल से मोटा और लम्बा भी है।
‘बस.. बस.. धीरे धीरे.. राज.. अभी ये कमसिन कुंवारी है..’
माँ मेरी चूत को पीछे से सहला रही थीं ताकि दर्द न हो।
अंकल ने थोड़ा और घुसाया तो मुझे लगा कि अब पूरा हो गया.. लेकिन जब मैंने अंकल से कहा- अब धक्का लगाइए.. तो उनके बोलने से पहले माँ ने बाहर निकले हुए लण्ड को नापकर कहा- बस बेटी 5 इंच लण्ड अभी बाहर है.. 3 इंच तो तुमने निगल लिया है।
यह सुनकर मेरी तो हालत खराब हो गई.. खैर अंकल ने थोड़ा और जोर लगाया.. तो दो बार में पूरा लण्ड जड़ तक घुस गया। अंकल ने स्पीड तेज़ की तो धीरे-धीरे मुझे मज़ा आने लगा।
मैं बोलने लगी ‘आह्ह्ह्ह ऊह..ह उह.. पेल दो अंकल.. फाड़ दो मेरी चूत को.. उफ़..’
थोड़ी देर के बाद ‘फच.. फच..’ की आवाज़ आने लगीं।
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RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह - by desiaks - 06-08-2021, 12:48 PM

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