10-24-2023, 07:44 PM,
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aamirhydkhan
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RE: महारानी देवरानी
महारानी देवरानी
अपडेट 56-C
पारस जाने की तयारी और यात्रा की शुरुआत
बलदेव: अब तो समय व्यर्थ करना ठीक नहीं होगा, मैं जल्द ही स्नान कर के आया।
बद्री और श्याम समझ जाते हैं और अपने साथ लाया हुआ समान सैनिक को कह कर कक्ष में रखवाते है और पहनने के लिए अपने साथ लाये वस्त्र का चुनाव करने लगते हैं।
थोड़ी देर में बलदेव स्नान कर के आ जाता है और बारी-बारी से सभी स्नान कर लेते हैं और अपने राजसी परिधान पहन लेते हैं।
देवरानी इधर आकर अपनी कक्ष में पहले अगरबत्ती जलाती है और कुछ प्रसाद का चढ़ावा लगा कर रोज़ की तरह अपना पाठ पढ़ रही थी, कुछ देर पाठ पढ़ने के बाद पूजा ख़तम होती है और देवरानी अपने और बलदेव के लिए कामना करती है।
"भगवान धन्यवाद तूने मेरी हृदय की बात सुन ली और इतने बरसो बाद मैं अपने मायके पारस जा रही हूँ । हम सब दूर की यात्रा करने जा रहे हैं। हम सब पर अपनी कृपा रखना । भगवान!"
देवरानी दोनों हाथो जोड़े खड़ी भगवान से उनकी कृपा मांग रही थी। उसने मंदिर में दीया जला कर पूजा की थी। वह पूजा की थाली ले कर बलदेव के कक्ष की ओर जाती है।
देवरानी देखती है। तीनो त्यार हो कर बैठे हुए थे।
देवरानी: लो बच्चो तुम सब के लिए पूजा का प्रसाद!
बद्री और श्याम झट से अपना सारा झुक कर अपना हाथ आगे बढ़ा कर प्रसाद ले लेते हैं। पर बलदेव नहीं लेता।
देवरानी: अरे बलदेव तुम भी लो बेटा।
बलदेव सर निचे कर के बोलता है ।
"मां मैं बाद में ले लूंगा" और देवरानी को एक अंदाज़ से देखता है।
श्याम: मौसी! महराज ने अभी सभा क्यू बुलायी है?
देवरानी: सभा बुलाने के बारे में तो मैंने नहीं सुना और तुम मुझे मौसी कहते हो और उनको महाराज । ऐसा क्यों?
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श्याम: क्यू के मौसी महाराज राजपाल खड्डूस है। इसलिए उन्हें मौसा नहीं कहता और आप एक दम अपनी-सी लगती हो तो आपको महारानी नहीं कह सकता । आपको मौसी कहना ही अच्छा लगता है।
देवरानी श्याम की बात पर मुस्कुराती है।
बद्री: मुर्ख श्याम चुप रहो! वैसे मौसी अभी थोड़ी देर पहले हमने ढिंढोरा सुना, सभा के बारे में! उस समय शायद आप पूजा कर रही होंगी।
देवरानी: हाँ मैं पूजा कर रही थी।
बद्री: आप तो देवी हैं। मौसी! आपने तो सच में कुछ नहीं सुना जबकि पूरे घटराष्ट्र ने सुन लिया, सच कहु आप की भक्ति को मेरा नमन है ।
देवरानी: अरे बस भगवान की कृपा है। मेरे जैसी पुजारिने तो करोड़ो होंगी ।
बद्री: मौसी इस श्याम को भी कुछ सिखा दो। इसे कुछ नहीं आता।
श्याम: हाँ जैसे तुम बहुत ने बड़े भक्त हो और साक्षात शिव जी से वार्तालाप करते हो।
ये सुन कर सब हसने लगते है।
देवरानी: अगर ऐसा है। तो तुम लोग जाओ. हम सबको प्रसाद दे कर आते हैं।
देवरानी प्रसाद की थाली ले कर चली जाती है और बलदेव अपने मित्रो को ले कर महल के बाहर निकल सभा स्थल की और जाने लगता है।
देवरानी सबसे पहले सृष्टि के कक्ष की और जाती है।
"दीदी श्रुष्टि!"
"आओ देवरानी।"
"दीदी ये लीजिए भगवान का प्रसाद।"
"अरे वाह देवरानी इतनी सवेरे तुमने पूजा पाठ भी कर लीया ।"
"हाँ दीदी! वैसे आज आप उदास-सी लग रही हो। क्या हुआ आप की तबीयत तो ठीक है ना?"
शुरुष्टि अंदर से जल भुन जाती है।
"क्यू? ऐसा क्यू कह रही हो देवरानी में ठीक तो हूँ।"
"दीदी वह मैं रात में उठी तो मैंने देखा था आप अपने कक्ष में जा रही थी और जब तक मैं आवाज देती आप ने दरवाजा बंद कर लिया था।"
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"श्रुष्टि दीदी लगता है। आपकी नींद पूरी नहीं हो पाई है।"
शुरष्टि को इतना गुस्सा आया की वह अब देवरानी के गालो पर रख कर दे पर वह अपने आप पर काबू रख बोलती है ।
शुरुष्टि: (मन में-कामिनी तू रंडीनाच कर ले जितना करना है बस आगे आने वाले दो दिन में तेरे चिता में आग मैं ही दूंगी।)
देवरानी: क्या सोचने लगी आप? ये लीजिए प्रसाद, भगवान मनुष्य को शक्ति वह उतनी ही देता है। जितने की अवश्यक्ता होती है। इसलिए हमें अपनी शक्ति का कभी भी गलत इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। जो भगवान शक्ति देता है वही गलत इतेमाल करने पर उसे छीन भी लेता है।
सृष्टि हाथ आगे बढ़ा कर अपने मन को मार कर प्रसाद देवरानी के हाथों से लेती है।
शुरष्टि: (मन में-रंडी बड़ा ज्ञान दे रही है। देवी बनने कि कोशिश कर के शुरू से ही तुमने सोचा था घर पर अपना सिक्का जमाने का। पर आज तक तुम सब के पैरो की धूल ही हो, एक दो दिन अपने बेटे पर इतरा लो । फिर तो मैं तुम से स्वर्ग लोक में मिलूंगी, कमिनी वही पर अपने बेटे से प्रेम का खेल खेलना...देवरानी! उह्ह्ह! बड़ी आयी है देवी माँ!
सृष्टि के चेहरे पर एक बड़ी कुटिलता भरी मुस्कान आ जाती। जिसे देवरानी देख लेती है।
देवरानी: क्या बात है। दीदी बेवजह मुस्कुरा रही हो! कहीं रात की महाराज की कोई बात तो याद नहीं आ गई?
शुरष्टि: तुम कहना क्या चाहती हो देवरानी?
देवरानी: यहीं जब मैं पानी पीने उठी थी तब मैंने आपको महाराज के कक्ष से निकलते हुए देखा था ।
सृष्टि चुप चाप बूत बनी देवरानी की बात सुन रही थी । उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे?
देवरानी: वैसे लगता है कल रात आपने खूब आनंद लिया, इसलिए आप अब तक मुस्कुरा रही हो।
शुरष्टि के लगा जैसे देवरानी ने उसके जले पर नमक छिड़क दिया हो । महाराज ने तो असल में शुरुष्टि को असंतुष्ट, तड़पती हुई प्यासी और खुमारी में छौड दिया था। वह प्यास और खुमार सृष्टि अब तक महसुस कर रही थी।
जारी रहेगी
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10-24-2023, 07:45 PM,
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aamirhydkhan
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RE: महारानी देवरानी
महारानी देवरानी
अपडेट 56-D
पारस जाने की तयारी और यात्रा की शुरुआत
शुरष्टि: (मन में-रंडी बड़ा ज्ञान दे रही है। देवी बनने कि कोशिश कर के शुरू से ही तुमने सोचा था घर पर अपना सिक्का जमाने का। पर आज तक तुम सब के पैरो की धूल ही हो, एक दो दिन अपने बेटे पर इतरा लो । फिर तो मैं तुम से स्वर्ग लोक में मिलूंगी, कमिनी वही पर अपने बेटे से प्रेम का खेल खेलना...देवरानी! उह्ह्ह! बड़ी आयी है देवी माँ!
सृष्टि के चेहरे पर एक बड़ी कुटिलता भरी मुस्कान आ जाती। जिसे देवरानी देख लेती है।
देवरानी: क्या बात है। दीदी बेवजह मुस्कुरा रही हो! कहीं रात की महाराज की कोई बात तो याद नहीं आ गई?
शुरष्टि: तुम कहना क्या चाहती हो देवरानी?
देवरानी: यहीं जब मैं पानी पीने उठी थी तब मैंने आपको महाराज के कक्ष से निकलते हुए देखा था ।
सृष्टि चुप चाप बूत बनी देवरानी की बात सुन रही थी । उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे?
देवरानी: वैसे लगता है कल रात आपने खूब आनंद लिया, इसलिए आप अब तक मुस्कुरा रही हो।
शुरष्टि के लगा जैसे देवरानी ने उसके जले पर नमक छिड़क दिया हो । महाराज ने तो असल में शुरुष्टि को असंतुष्ट, तड़पती हुई प्यासी और खुमारी में छौड दिया था। वह प्यास और खुमार सृष्टि अब तक महसुस कर रही थी।
शुरष्टि: (मन में-देवरानी की बच्ची मेरा मज़ाक उड़ा रही है। पर इसे कैसे पता राजपाल ने मुझे प्यासी छोड़ देता है। , हाँ इसने भी तो राजपाल का लिंग लीया है। भले ही ये आज से 17 साल पहले ही चुदी थी पर जानती है कि बूढ़े महाराज के 4 इंच के लौड़े से क्या होता है।)
देवरानी: (मन में-अब तुम उस बूढ़े के छोटे से लिंग को खड़ा करती रहना जीवन भर और तीन धक्के में ही खुश रहना, भले ये कद की नाटी है पर चालबाज़ी तो भरपूर है कमीनी।)
सृष्टि: नहीं, नहीं देवरानी। ये क्या बकवास कर रही हो तुम, अब मैं 48 साल की हो गई हूँ, अब मेरा दिल नहीं करता, वह सब का करने का ।
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देवरानी: (मन में-वह तो तेरा दिल जानता हैै । शुरुष्टि)
देवरानी: ऐसा क्या! दीदी मुझे तो पता नहीं था।
शुरष्टि: हाँ अब बकवास तुम्हारी ख़तम हो गई हो तो जाओ. मुझे कुछ काम है।
देवरानी को गुस्सा आता है। पर ये बदला लेने का सही समय नहीं था । इसलिए वह वहाँ से चल देती है।
देवरानी जीविका के ओर चल देती है।
"माँ जी कहा हो आप?"
जीविका अपनी कक्षा से बाहर आते हुए-"हाँ बहु कहो!"
और गुस्से से देखते हुए देवरानी से पूछती है।
"वो माँ जी आपके लिए प्रसाद लायी थी।"
जीविका को उस रात का दृश्य याद आता है जब बलदेव देवरानी के कुल्हो को हाथ से दबा कर देवरानी को गोद में ले रसोई से ले जा रहा था।
जीविका अपने मन में "देवरानी तू कितनी बड़ी पापिन है। मैंने कभी नहीं सोचा था तुम ऐसा कुछ करोगी। मुझे शर्म आती है अपने ऊपर अब!"
"माँ जी क्या सोच रही हैं। मुझे आशीर्वाद दीजिए । मैं कई वर्षों बाद अपने मायके पारस जा रही हूँ ।"
देवरानी जीविका के पाँव छू लेती है।
जीविका नहीं चाहते हुए भी आशीर्वाद देती है ।
"हाँ हाँ जीती रहो!"
देवरानी एक कातिल मुस्कान के साथ जीविका की परिस्तिथि समझते हुई खड़ी होती है और जीविका को देखती है। जिसका चेहरा उतरा हुआ था।
देवरानी को जीविका का चेहरा देख कर बहुत ख़ुशी होती है।
जीविका (मन में "मुझे इन दोनों को पाप करने से कैसे रोकना चाहिए, राजपाल को कैसे बतायू की उसकी पत्नी और उसका बेटा अवैध सम्बंध बना रहे हैं।")
देवरानी सबको प्रसाद बांटती है और फिर कमला को थाली दे कर बोलती है ।
देवरानी: कमला इसे बांट दो!
कमला: क्या बात है। आज बहुत खिल रही हो?
देवरानी: क्यू क्या मैं रोज़ अच्छी नहीं लगती?
कमला: नहीं महारानी आज ऐसा खिल रही हो जैसे युवराज ने खूब अंदर तक अपने काले से मालिश कर दी हो।
देवरानी: चुप कर पगली...ऐसा कुछ नहीं हुआ।
कमला: तो कैसा हुआ?
देवरानी: बस तुझे तो बताया तो था। बस वहा तक । बिना विवाह के और आगे नहीं जाना ...डर लगता है। कहीं कुछ...?
कमला: देवरानी कहीं ये डर तो नहीं है कि के कहि युवराज आप को पेट से कर के छोड़ नहीं दे। (तो फिर तुम ना घर की रहोगी ना घाट की) इसलिए पहले उसे बंधन में बाँधना चाहती हो।
देवरानी शर्मा जाती है।
देवरानी: कमला! तू छिनाल है। ...मुझे बलदेव पर पूरा भरोसा है। ...
कमला अरो डरो मत मेरी बहना! बलदेव तुमसे सच्चा प्यार करता है। उसके सामने कोई हूर या परी भी आ जाए तो वह आपको छोड़ उसको देखेगा भी नहीं!
देवरानी: पहले मैं ...!
कमला: मैं समझ रही हूँ महारानी आप सोच रही हो कहीं आगे जा कर उसका मन बदल जाए किसी कुंवारी दुल्हन के लिए और वह विवाह कर ले...पर ऐसा नहीं होगा।
देवरानी: भगवान न करे ऐसा हो, ठीक है। अब मैं चलती हूँ मुझे जरूरो काम है।
देवरानी अपने कक्ष में जाती है और सभा में जाने की तयारी करने लगती है।
धीरे-धीरे सब सभा में पहुँचते हैं और महराजा, महारानी और युवराज सबका जय जयकार से स्वागत होता है।
जारी रहेगी
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