मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:04 PM,
#9
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
रास्ते भर तांगे मे बैठे मामाजी कनखियों से भाभी की थिरकती हुई चूचियों को देखते रहे.

घर पहुंचकर मामाजी बोले, "मीना बहु, थोड़ा चाय-नाश्ता बना दे! बहुत भूख लगी है." मैने मन मे सोचा, "मामाजी, आपको तो अब भाभी की जवानी की भूख है! नाश्ते से क्या होगा?"

मैं भाभी के पीछे किचन मे गयी. भाभी ने चुल्हे पर चाय का पानी चढ़ा दिया. वह बहुत गुस्से मे लग रही थी.

मैने पूछा, "भाभी, इतनी गुस्से मे क्यों हो?"
भाभी- "बाबूजी की वजह से सारा मज़ा किरकिरा हो गया और तुम बोलती हो गुस्से मे क्यों हूँ!"
मैने भोली बनते हुए पूछा, "कौन सा मज़ा, भाभी?"
भाभी - "बहुत भोली बनती हो मेरी रांड ननद रानी! जैसे खुद मेले मे चूची, चूत, और गांड टिपवा के मज़ा नही ले रही थी! और थोड़ा वक्त मिलता तो वह दोनो आदमी मुझे मेले के बाहर कहीं सुनसान मे ले जाकर पटक के चोदते. पता है, कल की चुदाई के बाद से मैं लौड़ा लेने के लिये मरी जा रही हूँ!"
मैं- "भाभी, मेरी भी यही हालत है! पर कोई बात नही. फिर कभी मौका मिल जायेगा."
भाभी - "अब कहाँ मौका मिलेगा, वीणा! सासुमाँ के लौटते ही बाबूजी हमको हाज़ीपुर वापस ले जायेंगे. वहाँ सब की निग्रानी मे कहाँ इतना जवानी का मज़ा मिलेगा!"

मैने मन मे सोचा, "तू तो साली लण्ड ढूँढ ही लेगी. एक तो तेरा पति है तेरी प्यास बुझाने के लिये. ऊपर से तेरी सास कल चुदवा के रांड बन गयी है. दूजे तेरा ससुर भी तेरी जवानी पे आशिक हो गया है. तेरा तो पेट भी ठहर गया तो किसी को कुछ पता नही चलेगा. पर मेरा क्या होगा? घर जाने के बाद तो मैं लण्ड के लिये तरस जाऊंगी!"

भाभी ने चाय बनाकर कप मे डाली तो मैने कहा, "भाभी तुम मामाजी को चाय देकर आओ. मैं कुछ जुगत लगाती हूँ."

भाभी मामाजी को चाय देने गयी तो मैं किवाड़ पर खड़े होकर दोनो को देखने लगी. भाभी का थोड़ा घूंघट था, पर जब चाय देने के लिये झुकी तो ब्लाऊज़ के ऊपर से उसके चूचियों की झलक मामाजी को दिख गयी. मामाजी अपनी बहु की मस्त चूचियों को आँखें गाड़े घूरते रहे जब तक कि ना भाभी ने आंचल से अपनी चूचियों को ढक लिया.

भाभी किचन मे वापस आई तो मैने कहा, "क्यों भाभी, कुछ आया समझ मे?"
भाभी का चेहरा शरम से लाल हो रहा था और वह मंद मंद मुसकुरा रही थी. बिना जवाब दिये वह कढ़ाई मे मामाजी के लिये पकोड़े तलने लगी.

मैने कहा, "भाभी, तुम्हारा काम तो समझो बन गया."
भाभी- "क्या मतलब?"
मैं- "मतलब ससुराल मे तुम्हारी चुदाई की व्यवस्था हो गयी."
भाभी- "वह व्यवस्था तो मेरी पहले से ही है. मेरा आदमी है न वहाँ."
मैं- "अरे वह चुदाई भी कोई चुदाई है! सोनपुर की सामुहिक रगड़ाई के बाद अपने पति की चुदाई तुमको बिलकुल फिकी लगेगी, भाभी!"
भाभी- "यह तो तुम ठीक कह रही हो, वीणा. चुदाई का जितना मज़ा यहाँ आकर मिला, घर पर नही मिल सकता. पर मैं करूं तो क्या करूं?"
मैं- "भाभी, यह बताओ, बलराम भईया (भाभी के पतिदेव) घर पर कितने रहते हैं?"
भाभी- "वह तो सारा दिन खेत मे काम पर ही रहते हैं. रात को ही घर आते हैं."
मैं- "बस और क्या चाहिये? रात को तुम भईया का लण्ड लेना. और दिन मे जो लण्ड घर पर मिल जाये वह ले लेना!"
भाभी- "ननद रानीजी, यह भी तो बताओ घर पर और कौन सा लण्ड है?"
मैं- "क्यों, तुम्हारे देवर किशन का नही है क्या?"
भाभी- "वह तो बच्चा है, यार! अभी 18 का ही हुआ है."
मैं- "तो चुदाई सिखा दो ना उसको! और मामाजी का लण्ड भी तो है ना!"

भाभी ने मुझे बनावटी गुस्से से देखा और कहा, "चुप कर मुँहफट! कुछ भी बोल देती हो. वह मेरे ससुर हैं!"
मैं- "तो यह बताओ भाभी, जब तुम चाय देने गयी थी, ससुरजी अपनी प्यारी बहु की गोल-गोल जवान चूचियां क्यों आँखों से भोग रहे थे?"

भाभी कुछ न बोली. थोड़ा मुसकुराते हुये पकोड़े तलने लगी.

मैने कहा, "और यह भी बताओ भाभी, जब तुम आज मेले मे उन दो आदमीयों से अपनी चूचियां मिसवा रही थी, तब तुम्हारी गांड कौन दबा रहा था?"
भाभी- "कौन?"
मैं- "मामाजी."
भाभी- "झूठ बोल रही हो तुम!"
मैं- "मेरा यकीन ना मानो तो अपने ससुर को थोड़ा मौका दे कर देखो. सब समझ मे आ जायेगा. मामाजी तुम्हारी जवानी को पीने के लिये बेचैन हैं."
"चुप झूठी!" बोल कर भाभी प्लेट मे पकोड़े लेकर मामाजी को देने गयी. मैं पीछे पीछे दरवाज़े तक गयी.
भाभी ने पकोड़ों की प्लेट टेबल पर रखी तो मामाजी बोले, "बहु, बहुत थक गयी है क्या, काम कर कर के?"
भाभी बोली "नही, बाबूजी."
मामाजी भाभी का हाथ पकड़ कर बोले, "अरे बैठ ना इधर, बहु! कितना काम करती है! थोड़ा आराम भी कर लिया कर."

मामाजी ने भाभी को खींच कर खुद से बिलकुल सटाकर सोफ़े पर बिठाया और बोले, "ले मेरे साथ थोड़े पकोड़े तू भी खा."

भाभी ने एक पकोड़ा उठाया और खाने लगी. मामाजी से सटकर बैठने के कारण उसे बहुत शरम आ रही थी.

"कितनी गरमी है ना, बहु?" मामाजी अपने शरीर को भाभी के जवान शरीर से चिपकाकर मज़ा लेते हुये बोले. "तू हमेशा घूंघट क्यो किये रहती है?"
भाभी- "मुझे शरम आती है, बाबूजी. आप बड़े हैं ना!"
मामाजी- "अरे मुझसे कैसी शरम! मै तो तेरे अपनों जैसा हूँ. घूंघट करना है तो अपनी सासुमाँ के सामने करना. चल घूंघट उतार कर थोड़ा आराम से बैठ. बहुत गरमी हो रही है."

भाभी ने थोड़ी ना-नुकुर की फिर घूंघट सर से गिरा दिया. भाभी के ब्लाऊज़ के ऊपर से उसकी मस्त कसी-कसी चूचियां दिखाई दे रही थी. अब मामाजी आराम से बहु की चूचियों का नज़ारा करते हुये पकोड़े खाने लगे. फिर उन्होने अपने एक हाथ से भाभी की कमर को घेर लिया और उनके पेट को हल्के से सहलाते हुए कहा, "कितनी अच्छी है मेरी बहु! मेरा बेटा कितना किस्मत वाला है कि उसको इतनी जवान, सुन्दर बीवी मिली है."

भाभी को ना चाहते हुए भी अपने ससुर से सट कर बैठे रहना पड़ा.

मामाजी ने एक पकोड़ा भाभी के मुँह मे डाला और कहा, "मेरा बेटा तेरी सारी ज़रूरतों का खयाल रखता है के नही?"
भाभी- "जी बाबूजी, रखतें हैं वह."
मामाजी- "अगर नही रखता है तो मुझे बताना. मैं बलराम को समझा दूँगा. जब औरत की ज़रूरतें अपने पति से पूरी नही होती है तो वह इधर उधर मुँह मारती है."

मामाजी की बात सुनकर भाभी शर्म (और डर) से लाल हो गयी. आखिर पिछले 2-3 दिनो से वह भी भरपूर मुँह मार रही थी - यानी सब से चुदवा कर अपनी प्यास बुझा रही थी.
मामाजी- "अरे शरमा मत बहु! यह तो दुनिया की सच्चाई है. अगर औरत का पति उसको पूरा मज़ा नही देता है तो वह किसी और से मज़ा लेने लगती है. और यह गलत भी तो नही है!"
भाभी- "जी, बाबूजी."
मामाजी- "पर यह सब समाज से छुपा कर करनी चाहिये, नही तो बड़ी बदनामी होगी. तू समझ रही है न मै क्या कह रहा हूँ?"

भाभी अब समझ गयी कि उनके ससुर का इशारा किस तरफ़ है. उठते हुए बोली, "बाबूजी, मैने रसोई मे पानी चढ़ा रखा है. आती हूँ थोड़ी देर मे."

भाभी उठकर आयी तो मामाजी उसकी मटकते चूतड़ों को भूखी नज़रों से देखते रहे.
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