मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:05 PM,
#13
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मैने मामीजी की चूची को और थोड़ा दबाया तो वह फिर मस्ती की आह भर उठी. मै समझ गयी कि यह सब सुनकर उनको जोश आने लगा है. मैने कहा, "मामीजी, आप मैके जाने के रास्ते विश्वनाथजी के साथ मुँह काला कर रहीं थी, तो कोई बात नही थी. भाभी और मैने मामाजी के साथ मुँह काला किया तो बुरी बात हो गयी! यह कैसी बात हुई?"

मामीजी हंसकर बोली, "नही रे, मुझे बस विश्वास नही हो रहा कि मेरे पीछे जवानी का ऐसा गंदा खेल तुम लोग खेल रहे थे."
मैने कहा, "मामीजी, अगर आपको मेरी बात पर विश्वास नही हो रहा तो अपने आँखों से देख लीजिये. अभी नीचे चलकर."

मामीजी ने कुछ नही कहा, पर मेरे पीछे पीछे पेटीकोट और ब्रा मे ही नीचे चली आयी.
विश्वनाथजी के कमरे के बाहर मामाजी नही दिखे. कमरे से मस्ती की हल्की आवाज़ें ज़रूर आ रही थी. "आहहह!! और जोर से!! उम्म!! क्या स्वाद है!! आहहह!! और पेलो मेरे राजा!!"

मर्दों की भी आवाज़ आ रही थी. "ले साली छिनाल! ले मेरा लौड़ा अपनी भोसड़ी मे! चूस कुतिया, चूस अच्छे से!"

मामीजी दरवाज़े के पास गयी और फ़ांक से अंदर देखी. वह चौंक के पीछे आ गयी. मैने पूछा, "क्या हुआ, मामी?". मामीजी बोली, "हाय राम! तेरे मामाजी और विश्वनाथजी एक साथ मीना बहु को ठोक रहे हैं!"

मैने अंदर देखा तो पाया कि भाभी अब भी साड़ी कमर तक उठा कर बिस्तर पर पड़ी थी, पर उसके ब्लाऊज़ और ब्रा उतार दिये गये थे. विश्वनाथजी उनके गोल गोल चूचियों को मलते हुए उसे चोदे जा रहे थे. मामाजी ने अपनी पैंट उतार दी थी और भाभी विश्वनाथजी की चुदाई खाते हुए मामाजी का लण्ड मज़े से चूस रही थी.

"यह तो बहुत अच्छा हुआ." मैने कहा.
"मतलब?" मामीजी ने हैरान होकर पूछा
"अब आप भी खुल कर विश्वनाथजी से जवानी का मज़ा ले सकती हैं. मामाजी कुछ नही बोल पायेंगे." मैने कहा
"वो कैसे?"
"मामीजी, आप भी कितनी भोली हैं!" मैने कहा, "अभी अंदर जाकर मामाजी को रंगे हाथों पकड़ लीजिये. फिर ज़िंदगी भर जिससे चाहे अपनी चूत मरवानी हो मरवाते रहना, वह चूँ तक नही करेंगे!"
"चुप, फूहड़ कहीं की!" मामीजी बोली, "वैसे बात तो तू ठीक कह रही है, वीणा. पर मुझे अंदर जाते डर लग रहा है."
"डरने की क्या बात है, मामी!" मैने कहा और उनको अचानक दरवाज़े पर धकेल दिया. दरवाज़ा अंदर से बंद नही था. तुरंत खुल गया और हम दोनो अंदर जा गिरे.

हमें देखकर मामाजी ने हड़बड़ा के अपना लण्ड भाभी के मुँह से निकाल लिया.

मामीजी को देखकर तो भाभी शर्म से पानी पानी हो गयी. उसने चीखकर अपना चेहरा अपने हाथों से ढक लिया और विश्वनाथजी से छूटने की कोशिश करने लगी. पर विश्वनाथजी ने भाभी को चोदना बंद नही किया. उसके दोनो पाँव कस के पकड़कर अपना मूसल जैसा लण्ड उसकी चूत मे पेलते हुए बोले, "आइये, भाभीजी! बस आपकी ही कमी थी. देखिये आपकी चुदैल बहु कैसे दो दो लौड़ों से चुदवा रही है."

मामी गुस्से का नाटक कर के मामाजी को बोली, "हाय राम! आप यह क्या कर रहे हैं अपनी बहु के साथ! आपको शरम नही आती?"

मामाजी डरने की बजाय जोर से हंसे और बोले, "कौशल्या, शरम तो तुम्हे आनी चाहिये, जो उस रात शराब पीकर रामेश और उसके ३ दोस्तों से चुदवाई थी. और मैके जाने के बहाने होटल मे और ट्रेन के टायलेट मे विश्वनाथ से चुदवा कर अपने जिस्म की भूख मिटा कर आ रही हो."

मामीजी ने गुस्से से विश्वनाथजी की तरफ़ देखा तो उन्होने कहा, "अरे भाभीजी! हम्माम मे हम सब नंगे हैं. यहाँ कौन है जो किसी और पे उंगली उठाने की हालत मे है? इसलिये मैने हमारे कुकर्म की सारी कथा भाईसाहब को बता दी है. अब गुस्सा छोड़िये और आप भी हमारे खेल मे शामिल हो जाईये. वैसे ब्रा और पेटीकोट मे बहुत सुंदर लग रही हैं आप. लगता है चुदाने के इरादे से ही यहाँ आयी हैं!"

मामाजी ने मामीजी का हाथ पकड़ा और अपने बाहों मे खींचकर कहा, "कौशल्या, अब गुस्सा थूक भी दो! आओ, तुम भी कपड़े उतार कर हमारे साथ मज़ा लो. देखो बहु बेचारी कैसे शर्म से मरी जा रही है."

भाभी अब भी अपना चेहरा छुपाये विश्वनाथजी के जोरदार ठाप खाये जा रही थी.

मैने पीछे से मामीजी की ब्रा का हूक खोल दिया और उनकी विशाल चूचियाँ आज़ाद हो गयी. मामाजी ने उनके पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और उनको पूरा नंगा कर दिया. मैने पीछे से पकड़ कर उनकी चूचियों को मसलना शुरु कर दिया और उनके मोटे मोटे निप्पलों को छेड़ने लगी. मामीजी को जल्दी ही बहुत मस्ती चढ़ गयी. 

मामाजी ने जैसे ही मामी को भाभी के बगल मे लिटाया, उन्होने अपने पाँव खोल दिये और अपनी मोटी बुर को सहलाते हुए बोली, "हाय विश्वनाथजी! आईये मेरी चूत को थोड़ा और मारिये. होटल और ट्रेन मे आपसे चुदवाकर मेरा मन नही भरा है."

विश्वनाथजी हंसे और बोले, "यह हुई ना बात! सास और बहु एक साथ एक ही बिस्तर मे चुदवा रहीं हैं!" बोलकर उन्होने अपना विशाल लण्ड भाभी की चूत से निकाला और मामीजी पर चढ़कर उनकी मोटी बुर मे एक धक्के मे पेल दिया. मामीजी ने विश्वनाथजी को अपनी बाहों मे जकड़ लिया और कमर उठा उठा कर उनसे चुदने लगी.

इधर अपने बगल मे नंगी सास को चुदवाते देखकर भाभी की शरम भी छूट गयी. वह चिल्लाकर बोली, "हाय, मेरा क्या होगा? मेरा पानी तो अभी निकला नही है! कोई मुझे भी तो चोदो!!"
मामी विश्वनाथजी का ठाप खाते खाते अपने पति को बोली, "सुनो जी! ज़रा अपनी बहु को चोद दो. बेचारी का पानी झड़ने ही वाला है!"

मामाजी यह सुनते ही भाभी पर चढ़ गये और उसे जोर जोर से चोदने लगे.

पूरे कमरे मे मस्ती का महौल हो गया. उधर मामीजी विश्वनाथजी से चुद रही थी और कह रही थी, "हाय मेरे राजा! जोर जोर से पेलो मुझे!! हाय दो दिन से होटल और ट्रेन मे कितना चोदे हो! मैके जा कर मुझे इतना मज़ा कभी नही मिला! आहहह!! चोद डालो मुझे! उफ़्फ़्फ़!! क्या मस्त मूसल है तुम्हारा!! साली यह रांड बहु अकेली क्यों खायेगी तुम्हारा यह मूसल! ओफ़्फ़्फ़!! और जोर से दो अपना लौड़ा!!"

इधर भाभी तो मस्ती के शिखर तक पहुच गयी थी. अपने सास के सामने कमर उठा उठा कर अपने ससुर का लण्ड ले रही थी और बड़बड़ा रही थी, "बाबूजी! आहहह!! मैं खलास हो रही हूँ!! चोदो जोर जोर से, मेरे प्यारे बाबूजी!! दिखा दो सासुमाँ को कि बहु की चूत कैसे मारी जाती है!! और जोर से, हाय और जोर से पेलो मुझे!! आहहह!! ओहहह!! मैं झड़ी! आहहह!!"

भाभी के झड़ते ही मामाजी उठे और अपना खड़ा लण्ड लिये मेरे पास आये. "वीणा, तुम क्या यहाँ फ़िल्म देखने आयी हो? उतारो अपने कपड़े!"

मुझे तो यह सब नज़ारा देख कर बहुत जोश चढ़ चुका था. मैने जल्दी से अपनी साड़ी उतार दी, पर पेटीकोट उतारने से पहले ही मामाजी ने मुझे बिस्तर पर भाभी के बगल मे लिटा दिया. मेरे पेटीकोट को खींच कर कमर तक चढ़ा कर उन्होने अपना लण्ड मेरी चूत पर रखा और अंदर ठांस दिया. मैं इतनी पनिया गयी थी कि लण्ड आराम से एक बार मे अंदर चला गया. मामाजी मुझ पर चढ़कर दना-दन मेरी चुदाई करने लगे.

भाभी जो अब थोड़ी तृप्त हो चुकी थी उठी और मेरे ब्लाऊज़ और ब्रा उतार दी. मैं अब ऊपर से नंगी थी और मेरे कमर पर बस मेरा पेटीकोट सिकुड़ा हुआ था. मामाजी का मोटा लण्ड मेरी चिकनी चूत के अंदर बाहर हो रहा था और उनके होंठ मेरे होठों और चूचियों को पिये जा रहे थे. मेरे बगल मे मामीजी भी पूरी तरह नंगे होकर विश्वनाथजी से चुदाये जा रही थी. सामुहिक चुदाई के इस माहौल मे मुझे अपूर्व मज़ा आने लगा.

कुछ देर की चुदाई के बाद मामीजी और मै झड़ने लगे. उधर मामी विश्वनाथजी को जकड़के चिल्लाने लगी, "हाय मेरे राजा! और जोर से चोदो अपनी रखैल को!! हाय अपनी रंडी को चोद चोद के मार डालो!! आहहह!!! मेरा पानी छूट रहा है, मेरे जान! और पेलो मुझे! जी करता है ज़िन्दगी भर तुमसे अपनी चूत मरवाती रहुं! हाय!! कभी ट्रेन मे, कभी खेत मे, बस मेरी चूत मारते रहो मेरे राजा!! आहहह!!!"

इधर मैं भी मामाजी को जकड़ कर झड़ने लगी और मस्ती मे अनाप-शनाप बकने लगी. मामाजी भी जोरों का ठाप देकर मेरे चूत मे झड़ने लगे.

जब सब लोग झड़ चुके तो हम सब हाँफ़ रहे थे. काफ़ी देर बाद हम लोगों की सांसें काबू मे आयी.


उसके बाद मामा, मामी, भाभी और मैं पूरी तरह से खुल गये. हम औरतें तो घर पर अध-नंगे ही रहने लगे. बस ब्रा और पेटीकोट या ब्लाऊज़ और पेटीकोट मे रहते थे ताकि मर्द लोग जब चाहे हमारे जिस्म से खेल सकें. मामाजी और विश्वनाथजी भी सिर्फ़ एक लुंगी मे रहते थे जिससे कि हम उनके नंगे बदन से और झूलते लौड़ों से खेल सकें.

अगले 4 दिनो तक हम पांचों ने जी भर कर सामुहिक सम्भोग किया. दिन हो या रात हम पांच नंगे होकर चोदा-चोदी मे डूबे रहते थे.
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