RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
गुलाबी की आंखों मे लाल डोरे तैर रहे थे. शरम से आंखे नीची किये उसने हाँ मे सर हिलाया.
"और जब उन्होने तेरी चूत को सहलाया था तब मज़ा आया था?"
"जी, आया तो था. पर ई गलत बात है." गुलाबी धीरे से बोली.
"ओफ़्फ़ो! फिर तु सही-गलत मे पड़ गयी!" मैने गुस्सा दिखाकर कहा, "जब तुझे मज़ा आया तो इसमे गलत क्या है?"
"पर भाभी, ई गलत तो है ना! हम एक सादी-सुदा औरत हैं." गुलाबी बोली, "आप भी सादी-सुदा औरत हो. आप कभी पराये मरद का पियार ली हो का?"
"हाँ, गुलाबी, मैने पराये मरद का प्यार लिया है." मैने कहा.
गुलाबी मुझे बहुत इज़्ज़त देती है. मेरी बात सुनकर दंग रह गई. "कब? कैसे?" आंखें बड़ी बड़ी करके उसने पूछा.
मैने मुस्कुरकर कहा, "यह सब तु किसी को नही बताना, समझी? सोनपुर के मेले मे बहुत भीड़ थी. भीड़ मे आदमी लोग मेरे चूची, गांड, और चूत को बहुत दबा रहे थे. बहुत मज़ा आया था उनके छेड़-छाड़ मे."
"सच? किसी ने फिर आपको बड़े भैया की तरह जबरदस्ती पियार किया था?" गुलाबी ने पूछा.
"हाँ, गुलाबी. भीड़ मे से चार लोग मुझे पकड़कर एक सुनसान जगह ले गये और उन्होने मेरे जिस्म से बहुत खेला." मैने कहा. पर वीणा, मैने गुलाबी को यह नही बताया कि मेरे साथ तुम्हारा भी बलात्कार हुआ था.
"हाय राम! ई का कह रही हैं, भाभी?" गुलाबी हैरत से पूछी, "चार-चार मरदों ने आपके जोबन को हाथ लगया था?"
"अरी बुद्धू, जब चार-चार मरद किसी औरत को प्यार जताते हैं, वह सिर्फ़ जोबन को हाथ लगाकर छोड़ नही देते. मेरे सारे कपड़े उतारकर उन्होने मेरे साथ कुकर्म किया था."
"हाय! और आप कुछ नही बोली?" गुलाबी ने पूछा. उसकी आवाज़ मे हैरत के साथ उत्तेजना साफ़ सुनाई पड़ रही थी.
"कैसे बोलती? वह चार थे और मैं अकेली थी." मैने कहा, "उन चारों ने बारी-बारी बहुत देर तक मेरी इज़्ज़त लूटी."
"हाय दईया, ई तो बहुत बुरा हुआ! फिर आप थाने मे रपट लिखाने जरूर गयी होंगी!" सुनकर गुलाबी ने कहा.
"पागल है तु?" मैने कहा, "थाने मे बताने जाती तो पूरे घर की बदनामी होती. और दारोगा बाबू पूछते कि मुझे मज़ा आया था कि नही तो मैं क्या जवाब देती?"
"हाय भाभी, आप को का इज्जत लुटाने मे मज़ा आया था?"
"हाँ रे, गुलाबी!" मैने कहा, "बहुत, बहुत, मज़ा आया था!"
"भाभी, पर आप को मजा कैसे आ सकता है? आप तो एक सादी-सुदा औरत हो!"
"तो क्या हुआ?" मैने कहा, "मरद अपना हो या पराया, मरद के प्यार मे बहुत मज़ा होता है. ऊपर से मुझे कुछ दिनो से तेरे बड़े भैया का प्यार नही मिला था और मैं बहुत ठरकी हुई थी. जब उन चारों मे मुझे मिलकर चोदा तो मैं तो मज़े मे पागल हो गयी. मैने कमर उठा उठाकर उन चारों का लौड़ा अपनी चूत मे लिया. सच मान गुलाबी, पराये मर्द से चुदवाने मे अपने मरद से ज़्यादा मज़ा आता है. खासकर जब वह जबरदस्ती चोदते हैं!"
मेरी अश्लील भाषा सुनकर गुलाबी ने अपने गालों पर हाथ रख लिये.
"क्या हुआ गुलाबी?" मैने गुलाबी की एक चूची को धीरे से दबाया और पूछा, "तेरा आदमी तुझे चोदता नही है क्या?"
"हाँ, रोज करता है." गुलाबी बोली. "कभी कभी दिन मे 2-3 बार भी करता है."
"और तुझे रामु से चुदवाने मे मज़ा आता है?"
"जी, आता है. बहुत मजा आता है." गुलाबी बोली. उसकी सांसें फूल रही थी. बहुत जोश आ गया था उसे.
"और जब तेरे बड़े भैया ने तेरे जोबन दबाये थे और चूत सहलाया था तब भी मज़ा आया था ना?"
"जी, भाभी."
"तो सुन, अगर तेरे बड़े भैया उस दिन तुझे खेत मे जबरदस्ती चोद देते, तो तुझे बहुत मज़ा आता." मैने कहा, "अगर तुझे विश्वास नही हो रहा, तो एक बार अपने बड़े भैया को अपने जोबन दे दे दबाने के लिये. बहुत मज़ा पायेगी. चूचियों को मसल मसल के, चूस चूस के बहुत मजा देंगे. मुझे भी देते हैं."
गुलाबी चुप रही पर उसके आंखों के चमक से मैं समझ गयी वह अब पराये मर्द का स्वाद चखने के लिये आतुर थी. आखिर, वह एक भरे यौवन की लड़की है और दस दिनो से उसने अपने आदमी के साथ संभोग नही किया था. पर उसने थोड़ी आपत्ति की, "पर भाभी, मेरे मरद को पता चल गया तो?"
"कैसे पता चलेगा?" मैने कहा, "रामु तो अपने गाँव गया है. और तुझे यहाँ प्यासा छोड़ गया है. तु अपने पसंद के किसी मरद से अपनी प्यास बुझायेगी तो उसे कैसे पता चलेगा?"
"हमे तो डर लग रहा है, भाभी." गुलाबी बोली.
"अरे डर मत, लड़की!" मैने कहा, "सब शादी-शुदा औरतें पराये मर्दों के साथ मज़े करती हैं. किसी को पता नही चलता, इसलिये सब सती-सावित्री लगती हैं. मैने सोनपुर मे उन चारों आदमियों से कितना चुदवाया. मैं तुझे नही बताती तो तुझे पता चलता? तु भी अपने बड़े भैया को प्यार करने दे. बहुत मज़ा पायेगी."
"पर भाभी, हम उनको सिरफ अपने जोबन दबाने देंगे." गुलाबी बोली, "और कुछ नही करने देंगे."
"ठीक है बाबा!" मैने कहा, "तुझे उनसे नही चुदवाना तो मत चुदवा. मैं जोर नही करूंगी. वैसे भी उनके पैर मे चोट लगी है. तुझे चोद भी नही पायेंगे. और चोदना चाहे भी तो बाद के लिये टाल देना, समझी?"
"ठीक है, भाभी." गुलाबी मुस्कुराकर बोली. लगा जैसे मैने उसे बहुत दिनो की छुपी हुई इच्छा पूरी करने की इजाज़त दे दी है.
गुलाबी और मैं रसोई मे आ गये और सासुमाँ के साथ मिलकर दोपहर का खाना बनाने लगे.
दोपहर के खाने के बाद सासुमाँ अपने कमरे मे चली गयी. मेरे वह भी सो गये. किशन ने अपने कमरे मे जाकर दरवाज़ा बंद कर लिया. मौका देखकर मैं किशन के कमरे के पास गई.
दरवाज़े के फांक से देखा वह कल रात वाली किताब पढ़ रहा था और पजामे के ऊपर से अपना लन्ड सहला रहा था. मैने जैसे ही दरवाज़े पर दस्तक दी उसने वह किताब अपने तकिये के नीचे छुपा दी और जल्दी से अपना खड़ा लौड़ा दबाकर पजामे मे छुपाने की कोशिश करने लगा.
"देवरजी! क्या कर रहे हो?" मैने आवाज़ लगाई.
"कुछ नही, भाभी!" बोलकर वह जल्दी से आया और दरवाज़ा खोल दिया. मैने घूंघट नही किया था. आंचल के नीचे मेरी चूचियां बहुत उभरी दिख रही थी. किशन ने अपनी आंखे तुरंत मेरी चूचियों पर जमा दी. मैने गौर किया कि पजामे मे उसका लौड़ा अब भी खड़ा था.
मैं जाकर उसके बिस्तर पर बैठ गयी और वह पास खड़ा रहा. मैने उसे मुस्कुराकर देखा और कहा, "सो रहे थे क्या, देवरजी?"
"नही भाभी." उसने कहा.
"तो कुछ पढ़ रहे थे?"
"नही भाभी. बस यूं ही..."
मैने अचानक उसके तकिये के नीचे हाथ डाला और उसकी छुपाई हुई किताब निकाली.
"तो यह क्या है?" मैने पूछा.
किशन को काटो तो खून नही! खड़े-खड़े कांपने लगा और हकलाकर बोला, "कु-कुछ नही भाभी. ब-बस स्कूल की किताब है." बोलकर मेरे हाथों से किताब छीनने को आया.
मैने किताब अपने पीठ पीछे छुपा ली और कहा, "अरे मैं भी तो देखूं तुम्हारे स्कूल मे क्या पढ़ाते हैं!"
डर के मारे किशन को पसीने आने लगे.
मैं किताब को पढ़ने लगी. किताब का नाम था "हरजाई डाईजेस्ट". खोलकर देखा तो पाया कि उसमे हिंदी मे कुछे कहानियाँ थी.
"यह तो कहानियों की किताब जान पड़ती है." मैने कहा.
"भ-भाभी, मेरी नही है. स्क-स्कूल के एक द-दोस्त ने दी है." वह हकलाकर बोला.
"देखूं तो कैसी कहानियाँ पढ़ता है तुम्हारा यह दोस्त." मैने कहा, "हूं. पहली कहानी है, ’भाभी का प्यार’. क्या कहानी है यह?"
"भ-भाभीयाँ अपने द-देवर को प्यार करती हैं ना. बस वही." किशन ने कहा.
"ओ अच्छा! हूं. यह वाली है ’पापा के साथ जन्नत की सैर’. सैर-सपाटे वाली कहानी लगती है." मैने कहा, "पर यह कैसी कहानी हुई, ’मेरे भईया, मेरे सईयाँ’? और ’मैने अपनी माँ को माँ बनाया’? देवरजी, मुझे तो दाल मे कुछ काला लग रहा है!"
किशन अगर मिट्टी मे समा पता तो उस वक्त खुशी खुशी पताल मे चला जाता. हाथ जोड़कर बोला, "भाभी, आप मत पढ़िये इस किताब को. यह आपके लिये नही है!"
"क्यों नही है मेरे लिये? ऐसा क्या है इस किताब मे?" मैने पूछा और पन्नो को उलट-पुलटकर पढ़ने लगी. जल्दी ही मुझे समझ आ गया कि पहली कहानी एक देवर-भाभी की चुदाई की थी, दूसरी एक बाप-बेटी के चुदाई की कहानी थी, तीसरी एक भाई और छोटी बहन के चुदाई की थी, और चौथी, एक माँ की थी जिसका गर्भ अपने बेटे से चुदवा के ठहर जाता है.
"देवरजी, अब समझी यह कैसी किताब है. कितनी अश्लील भाषा है इसमे. चूत, लन्ड, चूची, गांड, बुर, लौड़ा, चुदाई. छी!" मैने कहा, "तुमको यह सब अच्छा लगता है पढ़ना?"
"नही भाभी." किशन बोला.
"सच बोलो!" मैने डांटकर कहा, "नही तो तुम्हारे भैया को सब बता दूंगी!"
"भगवान के लिये भैया को कुछ मत बताना, भाभी!!" किशन डरकर बोला.
"तो बताओ, तुम्हे ऐसी कहानियाँ पढ़नी अच्छी लगती है? जैसे माँ-बेटे या भाई-बहन या बाप-बेटी के शारीरिक संबंध की कहानियाँ?"
"जी."
"कभी अपनी माँ के बारे मे ऐसी गंदी बातें सोचते हो?" मैने पूछा.
"भाभी, यह तो बस कहानियाँ है...." किशन बोला.
"और मेरे बारे मे?" मैने पूछा.
किशन चुप-चाप खड़ा रहा. उसका लौड़ा कब का ठंडा हो चुका था.
"बोलो, देवरजी, मेरे बारे मे बुरे खयाल मन मे लाते हो?"
"नही भाभी. कभी नही." किशन ने कहा.
"तो यह बताओ, कल रात मेरे दरवाज़े के बाहर क्या कर रहे थे?" मैने पूछा.
"भ-भाभी मैं तो ब-बस प-पानी पीने जा रहा था." किशन बोला.
"सच? रसोई तो उस तरफ़ है. तुम पानी पीने मेरे कमरे के पास क्यों गये थे?" मैने पूछा. "मुझे तो लगता है तुम दरवाज़े के फांक से अन्दर देख रहे थे."
"नही भ-भाभी." किशन बोला.
"झूठ मत बोलो, देवरजी. देख रहे थे तो देख रहे थे. तुम एक नौजवान लड़के हो." मैने कहा, "और मैं देखने मे कुछ बुरी तो नही हूँ. हूँ क्या?"
"नही, भाभी."
"नही क्या?"
"मेरा मतलब, आप बहुत सुन्दर हैं." किशन ने हिचकिचाकर कहा.
सुनकर मैं बहुत खुश हुई. मुस्कुरकर मैने पूछा, "तो क्या देखा तुमने अन्दर."
"जी, आप थीं और भैया थे."
"और हम क्या कर रहे थे अन्दर?" मैने पूछा.
किशन चुप रहा तो मैने कहा, "अरे बोलो ना, भई! लड़कियों की तरह शरमाओ मत. क्या देखा तुमने अन्दर?"
"जी, आप और भैया लिपटे हुए थे..."
"हमने कपड़े पहने हुए थे?"
"भैया नंगे थे और आपने सिर्फ़ पेटीकोट पहन रखी थी."
मुझे लगा किशन को अब मज़ा आने लगा था मुझसे ऐसी बातें करने मे. उसके पजामे मे उसका लौड़ा तनने लगा था.
"और हम क्या कर रहे थे?"
"जी, आप दोनो...प्यार कर रहे थे." किशन ने कहा.
"ओहो, तो उसे प्यार कहते हैं?" मैने मसखरा कर के कहा, "तुम्हारे इस किताब मे तो लिखा है उसे चुदाई कहते हैं!"
मेरे मुंह से यह अश्लील शब्द सुनकर किशन झेंप गया.
"फिर तो तुमने पहले भी देखा होगा अपने भैया-भाभी को चुदाई करते हुए?" मैने पूछा.
"जी, रोज़ देखता हूँ." किशन ने कहा और थोड़ा सा मुस्कुरा दिया.
"अच्छा? मज़ा आता है अपनी भाभी को नंगी देखकर?" मैने पूछा.
"नही, भाभी." किशन ने कहा. उसका लौड़ा अब काफ़ी तन गया था.
"क्यों? मैं बिना कपड़ों के अच्छी नही लगती क्या?" मैने गुस्सा दिखाकर कहा.
"बाहर से ठीक से दिखाई नही देता ना!" किशन ने शरारती मुसकान के साथ जवाब दिया.
"ओहो! तो मेरे प्यारे देवर को शिकायत है कि वह मेरे जलवे ठीक से देख नही पाते हैं!" मैने हंसकर कहा. "अगर देखने का इतना ही मन था, तो कभी कहा क्यों नही? तुम्हारी भाभी ने तुम्हे किसी बात के लिये कभी ना किया है क्या? कल रात तो मैं तुम्हारे सामने सिर्फ़ पेटीकोट मे खड़ी थी. और अपने सीने पर सिर्फ़ अपनी साड़ी दबा रखी थी. चाहते तो हाथ लगाकर भी देख सकते थे! "
किशन का चेहरा तमतमाने लगा. उसक लौड़ा पजामे मे फनफना के खड़ा था और उसके चड्डी के काबू मे नही रह रहा था.
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