मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:06 PM,
#23
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मैने किशन का लन्ड फिर अपने चूत के फांक मे रखा और उसने कमर से दबाव डालकर अन्दर पेल दिया. दो बार झड़ लेने की वजह से अबकी बार वह अपने जोश को काबू मे रख पा रहा था. धीरे धीरे, मज़े लेकर वह मुझे चोदने लगा. मुझे भी अबकी बार ज़्यादा मज़ा आ रहा था.

"बहुत अच्छा चोद रहे हो, देवरजी!" मैने उसका हौसला बढ़ाने के लिये कहा, "जल्दी ही मैं तुमको एक अव्वल दर्जे का चोदू बना दूंगी. फिर घर के सब औरतों को मज़ा दिये फिरना."

अबकी बार चुदाई लगभग 10 मिनट चली, फिर हम दोनो ने अपना पानी छोड़ दिया.

किशन अपने बिस्तर पर नंगा लेटा रहा और मैने उठकर अपनी पेटीकोट, ब्लाउज़, साड़ी वगैरह पहन ली.

कमरे से निकलते हुए बोली, "देवरजी, अब तुम यह गंदी कहानियाँ पढ़ना छोड़ दो. इनमे कुछ नही रखा है. जब मन करे, मुझे कहना और मैं तुम्हे अपनी चूत दे दूंगी चोदने के लिये. समझे? बिलकुल संकोच नही करना!"
"जी भाभी." किशन खुश होकर बोला.

मैं किशन के कमरे से निकली तो देखा तुम्हारे मामा और मामी बाहर खड़े है. सासुमाँ की आंखे वासना से लाल थी. उनका ब्लाउज़ खुल हुआ था और उनकी बड़ी बड़ी चूचियां लटक रही थी. ससुरजी की लुंगी उनके पैरों के बीच थी और उनका लन्ड तनकर खड़ा था.

"हाय, माँ-बाबूजी, आप दोनो का अभी हुआ नही क्या?" मैने फुसफुसाकर कहा.
"मैं तो दो बार झड़ चुकी हूँ, बहु." सासुमाँ बोली, "बहुत मज़ा आया किशन और तेरी चुदाई देखकर. तेरे बाबूजी तो अभी तक झड़े नही हैं."
"फिर अपने कमरे मे जाकर बाकी काम कीजिये." मैने कहा.

हम तीनो सासुमाँ के कमरे मे आ गये. मेरे दरवाज़ा बंद करते ही ससुरजी और सासुमाँ ने अपने सारे कपड़े उतार दिये और बिस्तर पर एक दूसरे पर टूट पड़े. ससुरजी ने सासुमाँ के पाँव फैलाकर अपना लन्ड उनकी भोसड़ी मे पेल दिया और लगे सासुमाँ को तबाड़-तोड़ चोदने.

"हाय बहुत गरम हो गये हो तुम?" सासुमाँ कमर उठाकर ठाप लेटे हुए बोली.
"हाँ, कौशल्या!" ससुरजी बोले, "देवर और भाभी की चुदाई का ऐसा कामुक खेल मैने कभी नही देखा है. इतना मज़ा आयेगा यह खेल देखकर मे मुझे पता नही था."
"तुम बस देखते जाओ." सासुमाँ बोली, "जब मैं बलराम और किशन से चुदुंगी, तब तुम्हारी क्या हालत होगी तुम सोच भी नही सकते!"
"छिनाल! रंडी! मैं तुझे अपने दोनो बेटों का लन्ड अपनी चूत और गांड मे लेते देखना चाहता हूँ!" ससुरजी बोले, "ले साली, मेरा लन्ड ले! तु इतनी बड़ी रंडी होगी मुझे अंदाज़ा ही नही था."
"हाय, राजा, बहुत जोश मे आ गये हो!" सासुमाँ बोली, "बजाओ मेरी भोसड़ी को! आह!! जल्दी ही तुम्हारी सारी इच्छायें मैं पूरी कर दूंगी! और जोर से! हाय मैं फिर झड़ने वाली हूँ!"

मैने बिस्तर पर बैठकर तुम्हारे मामा और मामी की जोशीली चुदाई देख रही थी. कुछ ही देर मे दोनो से और रहा नही गया और वह जोरों की आवाज़ें निकालकर झड़ने लगे. अपना सारा पानी सासुमाँ की चूत मे डालकर ससुरजी शांत हुए.

उस रात मैं फिर ससुरजी और सासुमाँ के साथ सोई. पर हमने और चुदाई नही की. सासुमाँ और मैं ससुरजी को दोनो तरफ़ से पकड़कर सो गये.

बताओ, वीणा, कैसी लगी मेरी कहानी? मुझे जल्दी से ख़त लिखकर बताना. कल के कारनामों को लेकर कल एक और ख़त लिखूंगी. तब तक के लिये तुम अपनी चूत मे बैंगन पेलकर काम चलाओ.

तुम्हारी चुदैल भाभी

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मीना भाभी की चिट्ठी पढ़कर मैं उदास हो गयी. भाभी अपने घर पर कितने मज़े कर रही है. भाभी अब अपने ससुर और देवर दोनो के साथ चुदाई का मज़ा ले रही है. और मैं यहाँ एक मर्द के प्यार के लिये तरस रही हूँ. कभी सोचती थी गाँव मे किसी से चुदवा लूं, पर फिर सोचती थी कि बात बाहर आ गयी तो मेरे माँ-बाप की कितनी बदनामी होगी. भाभी की सलाह अनुसार मैने अपनी छोटी बहन नीतु के साथ शारीरिक संबंध बनाने की सोची, पर मैं उसके ईर्ष्यालु स्वभाव से इतनी चिढ़ती थी कि उसे हाथ लगाने का भी मन नही करता था.

मैने आखिर भाभी की चिट्ठी का जवाब दिया.

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प्रिय मीना भाभी,

तुम्हारी चिट्ठी मिली. हमेशा की तरह पढ़कर बहुत मज़ा आया और बहुत चुदास भी चढ़ी. मैं तो बोली ही थी तुम्हे अपने देवर को पटाने मे कोई मुश्किल नही होगी.

पर भाभी, गाँव लौटने के बाद मेरा मन घर पर लगता ही नही है. पूरी ज़िन्दगी जैसे सूनी सूनी हो गयी है. मुझे हर वक्त सोनपुर मे हम सब ने जो मज़े किये थे उसकी याद आती है. मैं हर समय चुदासी रहती हूँ और अपनी बुर मे लंबे बैंगन घुसाकर अपनी प्यास बुझने की कोशिश करती हूँ. पर तुम ही बताओ, बैंगन से लौड़े का सुख मिलता है भला? यही सब सोचकर मैं उदास हो जाती हूँ.

तुम ने नीतु के साथ संभोग करने को कहा था. वह तो मुझसे नही होगा. बहुत ही अड़ियल और उबाऊ लड़की है. मुझे तो अपनी प्यास बुझाने के लिये कोई मर्द ही चाहिये.

मेरे माँ-बाप मेरी शादी के लिये एक दो रिश्ते देख रहे हैं. सोचती हूँ हाँ कर दूं. कम से कम पति का लौड़ा तो मिलेगा.

खैर, तुम बताओ तुम्हारी आगे की योजना क्या है. तुम्हारी चिट्ठी की प्रतीक्षा रहेगी.

तुम्हारी दुखियारी ननद वीणा

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भाभी की अगली चिट्ठी अगले ही दिन आ गयी. आजकल मेरे जीवन मे यही एक मनोरंजन का साधन था. अपने कमरे मे छुपकर मैं उसकी चिट्ठी पढ़ने लगी.

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मेरी प्यारी वीणा,

आशा है तुम्हे मेरी चिट्ठियां पढ़ने मे बहुत मज़ा आ रहा है. मुझे तो लिखने मे बहुत ही मज़ा आता है.

कल सुबह तो गज़ब ही हो गया. जिस बात की हम सब ने सिर्फ़ योजना बनाई थी वह सफल हो गयी. अब लगता है हमारे बाकी सब कर्यक्रम आसानी से पूरे होने वाले हैं!

नाश्ते के बाद रोज़ की तरह गुलाबी गरम पानी लेकर तुम्हारे बलराम भैया के कमरे मे गयी. उसने बहुत प्यार से उनका पाँव गीले कपड़े से सेंका.

हैरत की बात यह है की तुम्हारे भैया ने गुलाबी का बलात्कार करने की कोशिश की थी और अब मौका पाते ही उसे जगह जगह पर हाथ लगाते हैं. पर गुलाबी फिर भी उनके पास जाती है उनकी सेवा करने के लिये. मेरे समझाने का शायद कुछ असर हुआ है क्योंकि आज जब मैं दोनो को बाहर से देख रही थी, गुलाबी उनसे काफ़ी खुलकर बात कर रही थी.

"गुलाबी, बहुत सुन्दर लग रही है आज तु?" मेरे उन्होने कहा.
"नही बड़े भैया, हम तो एक नौकरानी हैं." गुलाबी शरमाकर बोली.
"तो क्या नौकरानी लोग सुन्दर नही होते?" उन्होने कहा, "बहुत कटीली जवानी है तेरी, गुलाबी. क्या सुन्दर तेरी कजरारी आंखें हैं. और कितने लुभावने तेरे जोबन हैं. रामु तो तुझे पाकर बहुत खुश होगा?"
"बड़े भैया, ऊ तो न जाने कब से घर पर ही नही हैं." गुलाबी आंखे नीची कर के बोली.
"तो मरद के बिना कैसे सम्भालती है अपनी जवानी को तु?" मेरे पति ने पूछा.
"आप भी क्या कहते हैं, बड़े भैया!" गुलाबी बोली, पर उसकी आवाज़ मे एक कसक थी.

"हर औरत को मर्द की ज़रूरत होती है. है कि नही?" उन्होने पूछा.
"होती है, बड़े भैया." गुलाबी मुस्कुराकर बोली. लग रहा था उसकी लाज काफ़ी कम हो गयी थी.
"और मर्द को तो बहुत ही ज़रूरत होती है जवान औरत की."
"क्यों, भाभी जो हैं आपके लिये." गुलाबी बोली.
"कहाँ रे!" मेरे वह एक ठंडी आह भरकर बोले, "वह तो मेरे पास आती ही नही. जबसे आयी है मेरे साथ सोती भी नही."
"हाय राम! फिर आप कैसे सोते हैं?"
"नींद नही आती है, गुलाबी. 10-15 दिनों से किसी औरत के साथ मिलन नही हुआ है ना." मेरे वह बोले.

मेरे उनके मुंह से चुदाई के बातें सुनकर गुलाबी की आंखें चमक रही थी, पर वह कुछ नही बोली.

"क्यों, गुलाबी, तुझे रात को नींद आती है?" तुम्हारे भैया ने पूछा.
"नही आती." गुलाबी थोड़ा नखरा करके बोली.
"मैं तेरा दर्द समझ सकता हूँ." वह बोले, "तेरा भी तो किसी मर्द के साथ 10-15 दिनों से मिलन नही हुआ है."
"कैसी बातें करते हैं आप, बड़े भैया!" गुलाबी बोली, "हम काहे किसी और मरद के साथ मिलन करें? मेरा मरद तो आने ही वाला है."
"रामु तो जाने कब आयेगा. तु तब तक कैसे जियेगी?"

गुलाबी कुछ न बोली.

मेरे उन्होने कहा, "गुलाबी, मेरे पाँव का दर्द तो अब चला ही गया है. ज़रा मेरे कंधे दबा दे ना. बैठे-बैठे बहुत थक जाता हूँ."

गुलाबी आना-कानी किये बगैर तुम्हारे भैया के बगल मे जा बैठी और उनके दायें कंधे को अपने कोमल हाथों से दबाने लगी.

"आह! कितना अच्छा दबा रही है तु!" वह बोले, "ठीक से बैठ ना मेरे पास! मुझसे संकोच कर रही है क्या?"

गुलाबी और थोड़ा करीब होकर बैठी. अब तुम्हारे भैया ने अपना हाथ उसके जांघ पर रखा और घाघरे के ऊपर से सहलाने लगे.

जब गुलाबी ने कुछ नही कहा तो उन्होने उसके घाघरे के नीचे हाथ डालकर उसके नंगे जांघ को सहलाना शुरु किया. गुलाबी सिहर उठी, पर उसने कुछ नही कहा.

हिम्मत बढ़ाकर, तुम्हारे भैया ने दूसरे हाथ को गुलाबी के एक चूची पर रखा और कहा, "गुलाबी, जब कोई मरद तेरे जांघों को सहालत है तुझे मज़ा आता है?"

गुलाबी ने हाँ मे सर हिलाया और उनके कंधे को दबाती रही.

"और मैं जो तेरे जोबन को दबा रहा हूँ, तुझे मज़ा आ रहा है?" कहकर उन्होने गुलाबी के चूची को प्यार से दबाया.

गुलाबी गनगना उठी और उसने हाँ मे सर हिलाया.

मेरे वह समझ गये के लड़की अब पटने ही वाली है. अपना दायाँ हाथ गुलाबी के घाघरे के और अन्दर ले जाकर उन्होने उसके नंगी चूत को छुआ. गुलाबी का सारा शरीर कांप उठा.

धीरे धीरे वह गुलाबी की चूत को सहलाने लगे और बोले, "गुलाबी, तु चड्डी नही पहनती है?"
"नही, बड़े भैया. मेरा मरद मना करता है." गुलाबी अपनी उखड़ी सांसों के बीच बोली.
"क्यों? तेरा मरद तुझे कभी भी कहीं भी चोदता है क्या?"

उनकी अश्लील भाषा को नज़र-अंदाज़ करके गुलाबी ने हाँ मे सर हिलाया.

"कहाँ कहाँ चोदा है रे तुझे रामु ने?" उन्होने पूछा.

बायाँ हाथ चूची दबाये जा रहा था. दायाँ हाथ चूत सहलाये जा रहा था. मेरे उनका लौड़ा खड़ा हो गया था. वे आजकल लुंगी के नीचे चड्डी नही पहन रहे थे, इसलिये लौड़ा तम्बू बनाये खड़ा था.

"कमरे मे." गुलाबी बोली. फिर थोड़ा रुक कर बोली, "खेत मे भी."
"बहुत गरम औरत है रे तु, गुलाबी." मेरे वह बोले, "खेत मे भी चुदाई है? अच्छा यह बता, उस दिन जब मैने तुझे खेत मे प्यार किया था तब तु भाग क्यों गयी थी?"

गुलाबी सर झुकये बैठी रही. उसने कोई जवाब नही दिया.

मेरे उन्होने एक हाथ से अपना लौड़ा पकड़कर हिलाया और गुलाबी से बोले, "देख गुलाबी, तेरी जवानी ने मेरा क्या हाल कर दिया है."

गुलाबी ने पीछे मुड़कर उनके लुंगी मे ढके खड़े लन्ड को देखा और मुस्कुरा दी.

"हाथ लगा के देख ना." मेरे वह बोले, "डर मत."

गुलाबी ने एक कांपते हाथ से उनके लौड़े को पकड़ा और थोड़ा हिलाकर बोली, "बहुत मोटा है, बड़े भैया." उसकी आंखें वासना से लाल हो उठी थी. मेरे वह मज़े मे कसमसा रहे थे.

"तु रामु का लन्ड चूसती है?" उन्होने पूछा.
गुलाबी ने नही मे सर हिलाया.
"मेरा लन्ड चूसेगी?"
"नही, बड़े भैया." गुलाबी नखरा करके बोली. पर वह अपने छोटे से कोमल हाथ से तुम्हारे भैया के लन्ड को हिलाती रही. उसकी सांसें तेज चल रही थी और उसकी जवान चूचियां चोली मे ऊपर-नीचे हो रही थी.

तुम्हारे भैया बोले, "अच्छा ठीक है. तु मेरे पास आ."
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