मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:15 PM,
#69
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
मेरी सबसे प्यारी ननद,

अब तक तो तुम समझ ही गयी होगी मैने तुम्हारे लिया क्या योजना बनाई है! आशा करती हूँ तुम्हे मेरा भाई पसंद आया है. वह तो तुम्हारी फोटो देखकर ही दिवाना हो गया था और अब वह तुम्ही से शादी करना चाहता है. अब तुम बस हाँ कर दो तो हम जल्द से जल्द तुम्हारी शादी अमोल से करवा दें. देर करना बिलकुल उचित नही होगा क्योंकि जल्दी ही तुम्हारा पेट फूलने लगेगा.

तुम शायद यह सोच रही हो कि मैं जान-बूझकर अपनी भाई की शादी ऐसी लड़की से क्यों करवा रही हूँ जो पहले से ही कई मर्दों से चुदवाकर गर्भवती हो गयी है. तुम निश्चिंत रहो - अमोल अनजाने मे कोई कदम नही उठा रहा है. वह सब कुछ जान समझकर ही कर रहा है.

अब बाकी यह तय करना बचा है कि शादी के बाद मैं तुम्हे ननद कहूंगी या फिर तुम मुझे ननद कहोगी!

अभी ज़्यादा कुछ लिखने का समय नही है. यह ख़त अमोल के हाथों भिजवा रही हूँ. बाकी सब बाद मे विस्तार से लिखूंगी.

तुम्हारी भाभी

**********************************************************************

चिट्ठी पढ़कर मैं शरम से लाल हो गयी. मैं सोचने लगी, यह आदमी जानता है कि मैं पहले से गर्भवती हूँ. और एक बदचलन लड़की ही कुंवारेपन मे गर्भवती हो जाती है. फिर भी यह मुझसे शादी क्यों करना चाहता है? मैने सोचकर परेशान हो गयी.

"आपको अचानक क्या हुआ, वीणा जी? ख़त मे क्या लिखा है दीदी ने?" अमोल ने पूछा.
"जी कुछ खास नही..." मैने कहा. मैं उससे नज़रें ही नही मिला पा रही थी.
"आप मुझसे कुछ छुपा रही हैं." उसने कहा.
"जी, नही तो!" मैने कहा. पर मेरा सर झुका ही रहा.

अमोल ने मेरी ठोड़ी पर उंगली रखी और मेरे सर को उठाकर बोला, "आप जो बात छुपा रही हैं, वह मुझे पता है."
"क-क्या मतलब है आपका?" मैने घबराकर पूछा.
"यही कि आपका गर्भ ठहरा हुआ है." अमोल ने कहा, "मुझे दीदी ने पहले ही बता दिया है."

मेरा चेहरा लाल होकर तपने लगा. मैं शर्म से पानी-पानी होने लगी. मेरा दिल बहुत जोर से धड़कने लगा.

मैने कहा, "फिर...फिर आप मेरे जैसी बदचलन लड़की से शादी क्यों करना चाहते हैं?"

"पहला कारण यह है, वीणा जी, कि जवानी मे गलती सबसे हो जाती है." अमोल ने कहा, "मुझसे भी हुई है. इसलिये मुझे आप पर उंगली उठाने का कोई हक नही है."
"आपसे भी गलती हुई है?" मैने पूछा और मन मे सोचा, और जो भी हो, मेरी तरह छह लोगों चुदवाकर पेट बनाने जैसी गलती तो नही हुई होगी.
"बेशक हुई है." अमोल ने जवाब दिया.

"दूसरा कारण यह है कि..." अमोल ने कहा, "गर्भ ठहरने का भी इलाज होता है."
"इलाज! कैसा इलाज?" मैने पूछा.
"हाज़िपुर बाज़ार मे मैं एक डाक्टर को जानता हूँ जो अवैध गर्भपात करवाता है. मैं आपको उसके पास ले जाऊंगा और आपका गर्भपात करवा दूंगा." अमोल बोला.

"आप कैसे जानते हैं उस डाक्टर को?" मैने उत्सुक होकर पूछा.
"मैने कहा ना, मुझसे भी गलतियां हुई हैं?" अमोल मुस्कुराकर बोला, "पिछले साल जब घर के सब लोग किसी की शादी मे गये हुए थे, जवानी के जोश मे मैं घर की नौकरानी का बलात्कार कर बैठा था. बेचारी बच्ची ही थी. उसने जाकर अपनी माँ को सब बता दिया. अगले दिन उसकी माँ मेरे पास आयी. बहुत बखेड़ा की और मुझसे पैसे मांगने लगी..."
"हाय राम!" मैने कहा.
"बोली, मैने पैसे नही दिये तो वह मेरे घर पर सब को बता देगी. मजबूरी मे मैं व्यापार के खाते से निकालकर हर महीने उसे कुछ रुपये देने लगा." अमोल बोला.

"और वह नौकरानी?" मैने पूछा, "उसका आप क्या किये?"
"रुपये मिलने पर उसकी माँ ने उसे पूरी छूट दे दी. इसलिये वह रोज़ मुझसे खुशी खुशी करवाने लगी."

"फिर क्या हुआ?" अमोल की बातों से मेरी उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी.
"वही जो आपके साथ हुआ है." अमोल हंसकर बोला, "वासना के अंधे खेल मे लड़की का गर्भ ठहर गया. दो-तीन महीने मे जब लड़की का पेट फुल उठा तो लड़की की माँ बोलने लगी कि मैने उसकी बेटी को बर्बाद कर दिया है. मुझे उससे शादी करनी पड़ेगी. परेशान होकर मैने अपने एक ऐयाश दोस्त की मदद मांगी. उसने मुझे हाज़िपुर के इस डाक्टर के बारे मे बताया."
"फिर?" मैने पूछा.
"फिर क्या था. लड़की को किसी बहाने हाज़िपुर ले गया. डाक्टर ने उसका गर्भपात कर दिया. और इस तरह मेरी जान छूटी."

"मैं तो आपको बहुत मासूम समझी थी!" मैने मुस्कुराकर कहा, "आप तो बहुत पहुंचे हुए हैं!"
"वीणा जी, सूरत से तो आप भी कुछ कम मासूम नही लगती हैं." अमोल हंसकर बोला.

"मै फिर भी नही समझी कि आप मेरे जैसी एक बदचलन लड़की से शादी क्यों करना चाहते हैं." मैने कहा.

अमोल हंसा और मेरे कमर मे हाथ डालकर उसने मुझे अपने बलिष्ठ सीने से चिपका लिया.

"तीसरा कारण यह है वीणा जी..." उसने मेरे चेहरे के पास अपना चेहरा लाकर कहा, "मैं आपको अपनी दीदी की शादी मे देखकर पहले ही दिल दे बैठा था. मुझे तब यह नही पता था कि आप मेरी दीदी की ननद लगती हैं, नही तो मैं आपको आपके घर से कब का उठा के ले जाता! जब मीना दीदी ने मुझे आपकी फोटो दिखाई तब मुझे पता चला की आप कौन हैं."
"सच?" मैने उसकी आंखों मे देखकर पूछा.
"हुं." अमोल ने कहा. और उसने अचानक मेरे होठों को चुम लिये.

इतने दिनो बाद एक मर्द के होठों के छुअन से मेरा पूरा शरीर सिहर उठा. उसके बाहों के घेरे मे सिमटी मैं हलके से कांपने लगी.

अमोल बोला, "अपनी दीदी के मुंह से आपकी तारीफ़ सुन सुनकर मैं पागल सा हो गया था. कल आपको देखकर मुझे लगा, मेरी दीदी ने आपकी तारीफ़ मे बहुत कमी कर दी है. वीणा जी, मैं आपसे बहुत प्यार करने लगा हूँ."

सुनकर मैं मन ही मन बहुत खुश हुई, पर बोली, "अमोल, तुम भूल रहे हो कि मैं एक बदचलन, छिनाल लड़की हूँ."

"मुझे पता है, वीणा." अमोल ने कहा और फिर मेरे होठों का उसने गहरा चुंबन लिया, "तुम कैसी भी हो, मैं तुम्हारे बिना नही जी सकता."
"हाय अमोल, यह तुम क्या कह रहे हो!" मैने अपने शरीर को उसके बाहों मे पूरी तरह समर्पण कर दिया था. मैने उसके कंधे पर अपना सर रखा और कहा, "मै भी तुम्हे बहुत पसंद करती हूँ. पर मैं नही चाहती मुझसे शादी कर के कल तुम्हे कोई पछतावा हो."
"नही होगा, मेरी जान!" अमोल ने कहा और मेरे होठों को आवेग मे पीने लगा. "बस तुम शादी के बाद बदल नही जाना."

मै अमोल के कहने का मतलब नही समझी. पर उस वक्त मेरा पूरा शरीर सनसना रहा था और मैं प्यार और वासना के लहरों मे गोते लगा रही थी. अमोल को अपनी बाहों मे पकड़कर मैं उसके मर्दाने होठों को चूमने लगी. उसके हाथ भी मेरी पीठ पर चल रहे थे और मेरी उत्तेजना को बढ़ा रहे थे.

मै और खुद को सम्भाल नही सकी और नीचे घाँस पर बैठ गयी. हमारे चारो तरफ़ ऊंचे ऊंचे मकई के पौधे थे. ऊपर खुला आसमान था. शाम ढल रही थी और इस वक्त खेत की तरफ़ कोई आता भी नही था.

अमोल ने मुझे घाँस पर लिटा दिया और मेरे पास लेट गया.
मैने खुद ही अमोल को अपनी ओर खींचा और फिर उसके होठों को पीने लगी. इतने दिन उपवासी रहने के बाद एक मर्द का प्यार पाकर मैं पागल सी हो गयी थी. मेरी चुदास सर पर चढ़ चुकी थी.

मैने अमोल का हाथ लेकर अपने चूचियों पर रख दिया. अमोल मेरे होठों को पीते हुए ब्लाउज़ और आंचल के ऊपर से मेरी चूचियों को दबाने लगा. हम दोनो चुप थे पर हमारी सांसे तेजी से चल रही थी.

"वीणा, मैं तुम्हे पाना चाहता हूँ. अभी और यहीं!" अमोल ने भारी आवाज़ मे कहा.
"अमोल, मैं तुम्हारी हूँ." मैने उसे चूमते हुए जवाब दिया. "मुझे जैसे चाहो भोग करो!" उस वक्त मैं इतनी गरम हो चुकी थी कि किसी से भी चुदवा सकती थी. और अमोल पर तो मुझे बहुत प्यार आ रहा था.

अमोल ने मेरे सीने पर से मेरा आंचल हटा दिया और मेरी ब्लाउज़ के हुक खोलने लगा. जैसे ही मेरे ब्लाउज़ के हुक खुले, मैने अपनी ब्रा खींचकर ऊपर कर दी और अपनी गोरी गोरी चूचियों को उसके सामने नंगी कर दी.

"हे भगवान!" अमोल मेरी चूचियों को देखकर बोला, "तुम्हारी चूचियां कितनी सुन्दर है, वीणा!"
बोलकर वह मेरी चूचियों को जोश के साथ पीने और दबाने लगा. मेरे निप्पलों को चूसने और धीरे से काटने लगा.

चूचियों पर मर्द के होंठ पाकर मैं मस्ती मे "आह!! ऊह!! उम्म!!" करने लगी. 

उधर अमोल मेरी चूचियों को प्यार कर रहा था और इधर मैने अपना हाथ उसके पैंट के ऊपर से उसके लन्ड पर रखा. उसका लन्ड पत्थर की तरह सख्त हो गया था और पैंट को फाड़कर बाहर आना चाहता था.

मैने उसके पैंट के हुक और ज़िप को खोल दिये. मेरी इच्छा देखकर अमोल उठा खड़ा हुआ और उसने पहले अपनी पैंट और फिर अपनी चड्डी उतार दी.

अमोल का गोरा गोरा लन्ड कुछ 7 इंच का था और काफ़ी मोटा था. नीचे मस्त सा पेलड़ लटक रहा था. हालांकि मैने अब तक इससे बड़े लन्डों से ही चुदवाया था, मुझे अमोल का लन्ड बहुत पसंद आया. क्यों न हो, जिससे प्यार होता है उसके लन्ड का आकर नही देखा जाता है.

अमोल मेरे सामने खड़ा था और उसका लन्ड उत्तेजना मे उछल रहा था. मैने प्यार से उसके के लन्ड को पकड़कर हिलाया. उफ़्फ़! कितना गरम था उसका लन्ड! और कैसे मेरे हाथों मे ताव खा रहा था! 

मैं खुद को रोक नही सकी और मैने उसके लन्ड को अपने मुंह मे ले लिया. मर्द के लौड़े की मतवाली महक मेरे सर पर चढ़ गयी. क्या स्वाद था उसके लन्ड मे! कितने दिनो बाद मेरे जीभ को लन्ड का स्वाद मिल रहा था! मैं पगालों की तरह उसके लन्ड को चूसने लगी.

"हाय वीणा, क्या हो गया है तुम्हे?" अमोल मुझे रोक कर बोला, "लग रहा है बहुत दिनो से नही चुदवाई हो."
"हाँ अमोल, बहुत दिन हो गये हैं!" मैने कहा और उसको खींचकर अपने पास बिठा लिया.

फिर उसे घाँस पर लिटाकर मैं उस पर चढ़ गयी और उसके मुंह मे अपनी नंगी चूचियों को ठूंस दी. वह मेरी चूचियों को पकड़कर चूसने लगा और मैं जोर जोर से कराहने लगी.

कुछ देर बाद अमोल ने मुझे नीचे लिटा दिया और उठकर मेरे पैरों के बीच बैठ गया. मैने अपने घुटने मोड़ लिये और अपनी साड़ी और पेटीकोट को अपनी कमर तक चढ़ा ली. मैने लाल रंग की छोटी सी चड्डी पहन रखी थी. मेरी चूत इतनी गरम हो चुकी थी कि मेरी चड्डी भीग गयी थी. 

अमोल ने अपना लन्ड मेरी चड्डी के ऊपर से मेरी चूत पर रखा और सुपाड़े को ऊपर-नीचे करके रगड़ने लगा.

उस वक्त मैं लन्ड लेने के लिये मरी जा रही थी. चिल्लाकर बोली, "हाय अमोल! मुझे और मत तड़पाओ, मेरे जान! चोद डालो अपनी वीणा को!"

अमोल ने तरस खाकर मेरी चड्डी को मेरे टांगों से अलग कर दिया. अब मेरी चूत उसके सामने खुली हुई थी.

सोनपुर से आने के बाद मैने अपनी चूत के बालों को साफ़ नही किया था. बाल थोड़े थोड़े बढ़ गये थे. मुझे बहुत शरम आने लगी. अगर मुझे पता होता आज खेत मे मेरी चुदाई होगी तो मैं अपनी चूत ज़रूर साफ़ रखती!

पर अमोल ने कुछ नही कहा. मेरे जांघों को पूरा फैलाकर वह मेरे चूत पर झुक गया और मेरी चूत को चूमने लगा. फिर जीभ निकालकर मेरी चूत के होठों को और उनके बीच चाटने लगा.

दो ही मिनट मे मैं उसके बालों को कसकर पकड़कर जोर जोर से "ऊंह!! ऊंह!! ऊंह!!" करती हुए झड़ गयी. मेरा शरीर पसीने-पसीने हो गया.

अमोल फिर भी दक्षता के साथ मेरी चूत चाटता रहा और जल्दी ही मैं फिर से पूरी गरम हो गयी.

"हाय अमोल, क्यों सता रहे हो मुझे बेचारी को!" मैने उसके बालों को मुट्ठी मे पकड़कर अपनी ओर खींचा और कहा, "जानते हो कितने दिन हुए हैं मुझे अपनी चूत मे लन्ड लिये हुए?"
"जानता हूँ, मेरी जान!" अमोल मुस्कुराकर बोला, "बस अब और देर नही करुंगा."

अमोल ने अपना लन्ड पकड़कर मेरी चूत के छेद पर रखा और कमर के एक धक्के से लन्ड को पेलड़ तक अन्दर पेल दिया. मेरी चूत शायद उसे बहुत कसी हुई लगी क्योंकि वह जोर से "आह!!" कर उठा.

उसका लन्ड मेरी चूत मे घुसना था कि मैं उसे जकड़कर फिर से झड़ गयी. इतने दिनो बाद अपने चूत मे एक मोटे लन्ड को पाकर मैं खुद के काबू के बाहर हो गयी थी. कामुक उत्तेजना मे मेरी ऐसी हालत हो गयी थी कि अमोल की पीठ मे अपनी उंगलियां गाड़कर मैं जोर जोर से कराहने लगी और झड़ने लगी. अभी तक उसने एक भी ठाप नही लगाया था!

जब मैं शांत हुई अमोल मेरे ऊपर झुक गया और मेरी चूचियों को पीते पीते मुझे चोदने लगा.

मैं जल्दी ही फिर गरम हो गयी और मानो जन्नत की सैर करने लगी. मैने सोनपुर मे चुदाया तो बहुत था पर जिस आदमी से मैं प्यार कर बैठी थी उससे चुदाने मे मुझे एक अलग ही आनंद आ रहा था.
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